पादपों में पोषण


मृत्तजीवी : सैपरोफाइट

बहुत सारे जीव मरे हुए तथा सड़ रहे जैव पदार्थों पर जन्म लेते हैं तथा पोषण प्राप्त करते हैं।

जीव जो मरे हुए तथा सड़ रहे जैव पदार्थों पर बढ़ते हैं तथा पोषण प्राप्त करते हैं मृतजीवी कहलाते हैं। इन जीवों को कवक या फंजाई कहते हैं।

सामान्यत: कवक तथा फंजाई के जीवाणु हवा में मौजूद रहते हैं। जब ये मरे हुए तथा सड़ने वाले जैव पदार्थों जिसमें नमी तथा उष्णता हो पर बैठते हैं तो अंकुरित हो जाते हैं नये कवकों को जन्म देते हैं एवं बढ़ने लगते हैं।

ये कवक तथा फंजाई मरे हुए तथा सड़नेवाले जैव पदार्थों पर पाचक रस का स्त्राव करते हैं जिससे वे विलयन के रूप में बदल जाते हैं उसके बाद ये उस विलयन का पोषण प्राप्त करने के लिए अवशोषण कर लेते हैं।

इस प्रकार की पोषण प्रणाली जिसमें जीव मृत तथा विघटित जैविक पदार्थों से पोषण प्राप्त करते हैं, मृतजीवी पोषण प्रणाली कहते हैं।

तथा मृतजीवी पोषण प्रणाली का उपयोग कर पोषण प्राप्त करने वाले जीवों को मृतजीवी कहते हैं।

चूँकि वर्षा ऋतु में नमी तथा उष्णता दोनों रहती है अत: ये मृतजीवी प्राय: वर्षा ऋतु में अधिक उगते तथा बढ़ते हैं।

कवक तथा फंजाई अचार, पुराने ब्रेड, चमड़े के वस्तु आदि पर उगते हैं। ये उजले, भूरे तथा अन्य कई रंगों के होते हैं।

class 7th science Nutrition in plants fungi

मशरूम, जिनका उपयोग सब्जी के रूप में भी किया जाता है मृतजीवी का एक उदाहरण है।

सहजीवी संबंध (Symbiotic Relation)

कुछ जीव एक दूसरे के साथ रहते हैं तथा एक दूसरे की मदद करते हैं। जीवों के ऐसे संबंध को सहजीवी संबंध कहते हैं। सहजीवी संबंध को अंग्रेजी में सिमबायोटिक रिलेशनशिप (Symbiotic Relationship) कहते हैं।

उदाहरण

सहजीवी संबंध वाले दो जीवों शैवाल (काई या अल्गा) तथा कवक (फंगस) के संयोग को लाइकेन कहा जाता है। इस जीवों के युग्म में शैवाल (काई या अल्गा) में क्लोरोफिल पाया जाता है तथा यह अपना भोजन खुद बना सकता है, अर्थात स्वपोषी है। जबकि कवक (फंगस) मृतजीवी [सैपरोफाइट (Saprophyte)] है।

लाइकेन के युग्म में कवक (फंगस) खनिज तथा लवण प्रदान करता है जबकि शैवाल (काई या अल्गा) बदले में प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन को तैयार कर बांटता है। इस तरह लाइकेन के युग्म में दोनों जीव लाभांवित होते हैं।

खाद या उर्वरक का उपयोग

खाद या उर्वरक का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है। पौधे कार्बोहाइड्राइट के अतिरिक्त अन्य खनिज पदार्थ तथा लवण मिट्टी से अवशोषित करते हैं। जिसके कारण एक ही खेत में लगातार खेती होने के कारण मिट्टी में इन आवश्यक पोषक़ तत्वों की कमी हो जाती है। पोषक तत्वों की कमी के कारण पौधे अच्छे नहीं होते हैं तथा उत्पाद में कमी आ जाती है।

इन पोषक पदार्थों जैसे नाइट्रोजन, पोटैशियम, फॉस्फोरस आदि की कमी को पूरा करने के लिए किसान समय समय पर जरूरत के अनुसार खेतों यूरिया आदि अन्य उर्वरक डालते रहते हैं ताकि खेतों की उर्वरता बनी रहे।

प्राय: पौधे प्रोटीन के संश्लेषण के लिए नाइट्रोजन का उपयोग अधिक मात्रा में करते हैं। फसल कटने के बाद किसान खेत में यूरिया डालते हैं। यूरिया एक उर्वरक है जो कि नाइट्रोजन खेतों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता है।

खेतों की मिट्टी की समय समय पर प्रयोगशाला में जाँच की जाती है। जाँच में जिस खनिज तथा लवण की कमी पाई जाती है, खेतों में उससे संबंधित उर्वरक को मिलाया जाता है।

मृदा में पोषकों की पूर्ति किस प्रकार होती है?

बैक्टीरिया एक सूक्ष्मजीवी है जो मिट्टी में नाइट्रोजन के स्तर को बनाये रखने में मदद करता है। इन बैक़्टीरिया को डायजोट्रॉप्स (diazotrophs) कहा जाता है।

राइजोबियम एक प्रकार का बैक्टीरिया है जो वातावरण से नाइट्रोजन लेकर उसे घुलनशील रूप में मिट्टी में छोड़ता है। पौधे नाइट्रोजन के इस घुअनशील रूप को जड़ों द्वारा अवशोषित कर लेते हैं। चूँकि राइजोबियम नाइट्रोजन के स्तर को बनाये रखता है अत: राइजोबियम को भी डायजोट्रॉप्स (diazotrophs) कहा जाता है।

राइजोबियम दाल के फसलों के साथ सहजीवी संबंध रखते हैं। राइजोबियम अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते हैं। राइजोबियम चना, मटर, मूँग, सेम आदि तथा अन्य फलीदार पौधों की जड़ों में रहते हैं तथा उन्हें नाइट्रोजन प्रदान करते हैं। बदले में ये फसल राइजोबियम जीवाणुओं को आवास तथा भोजन प्रदान करते हैं।

राइजोबियम तथा दाल एवं अन्य फलीदार फसलों के बीच सहजीवी संबंध (सिमबायोटिक रिलेशनशिप) का किसानों के लिए बड़ा ही महत्व है। दालों की फसलों को उगाने के लिए नाइट्रोजन वाले उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं होती है। इतना ही नहीं दाल के फसल के कटने के बाद भी अगली फसल के लिए खेतों में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन उपलब्ध रहता है। तथा दूसरे फसल के लिये प्राय: अन्य उर्वरक देने की भी आवश्यकता नहीं होती है।

यही कारण है कि दाल तथा अन्य फलीदार फसलों को नाइट्रोजन प्रतिपूर्ति वाला फसल कहा जाता है।

पादपों में पोषण का सारांश

(a) जीवन के लिए पौधे अतिआवश्यक हैं। पौधों के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

(b) पौधे ही एक मात्र जीव हैं, जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। मनुष्य सहित अन्य जानवर अपना भोजन नहीं बनाते हैं और ये पौधों द्वारा बनाये गये भोजन पर निर्भर होते हैं।

(c) मनुष्य सहित अन्य जानवर या तो पौधों से प्राप्त भोजन ग्रहण करते हैं, जैसे धान, दाल, गेहूँ, आलू, मटर, आदि; या पौधों से प्राप्त भोजन ग्रहण करने वाले जानवरों जैसे हिरण, बकरी, भेड़, आदि से प्राप्त भोजन करते हैं।

(d) अत: मनुष्य सहित अन्य सभी जानवर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर आश्रित होते हैं।

(e) पोषण – सजीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने एवं इसके उपयोग की विधि को पोषण कहते हैं।

(f) पोषक – भोजन के घटक पोषक कहलाते हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज भोजन के घटक हैं।

(g) हरे पौधे वातावरण से साधारण पदार्थ, कार्बन डायऑक्साइड तथा जल लेकर सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में भोजन तैयार करते हैं। हरे पौधों द्वारा भोजन बनाने का यह प्रक्रम प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) कहलाता है।

(h) स्वपोषी – वैसे जीव जो अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं स्वपोषी (ऑटोट्रॉप्स) कहलाते हैं। स्वपोषी को अंग्रेजी में ऑटोट्रॉप्स कहते हैं। ऑटोट्रॉप्स ग्रीक के दो शब्दों "ऑटो" तथा "ट्रॉप्स" के मिलने से बना है। जिसमें "ऑटो" का अर्थ "स्वयं" तथा "ट्रॉप्स" का अर्थ "पोषण" होता है। (Auto – Self; Trophos – nourishment). स्वयं से भोजन बनाकर पोषण लेने की विधि को स्वपोषण प्रणाली कहते हैं। चूँकि हरे पौधे स्वयं से भोजन बनाते हैं अत: हरे पौधों को ऑटोट्रॉप्स कहते हैं।

(i) विषमपोषी – वैसे जीव जो दूसरे जीवों द्वारा बनाए गये भोजन प निर्भर होते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं। विषमपोषी को अंग्रेजी में हेट्रोट्रॉप्स कहा जाता है। "हेट्रोट्रॉप्स" एक ग्रीक शब्द है जिसमें "हेट्रो" का अर्थ "दूसरा" तथा "ट्रॉप्स" का अर्थ "पोषण" होता है। (Heteros – other; trophos – nourishment)। विषमपोषी द्वारा उपयोग की जाने वाली पोषण की प्रणाली को विषमपोषी प्रणाली कहा जाता है। चूँकि मनुष्य सहित सभी जानवर पौधों द्वारा बनाये गये भोजन पर आश्रिअ होते हैं अत: उन्हें विषमपोषी कहा जाता है।

(j) पौधे जो हरे रंग के नहीं होते हैं उनमें क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है। ऐसे पौधे दूसरे पौधों पर चढ़ जाते हैं तथा उनसे पोषण प्राप्त करते हैं। ऐसे पौधे जो दूसरे पौधे पर पलते हैं तथा जीवित रहते हैं परजीवी कहलाते हैं। परजीवी जिन पौधों पर चढ़ जाते हैं तथा पोषण प्राप्त करते हैं उन पौधों या पेड़ों को परपोषी कहा जाता है।

(k) सहजीवी संबंध – कुछ पौधे आपस में मिलकर पोषण प्राप्त करने के लिए एक दूसरे की मदद करते हैं, ऐसे संबंध को सहजीवी संबंध कहा जाता है। जैसे लाइकन शैवाल तथा कवक (फंजाई) का युग्म होता है। शैवाल हरे रंग के होते हैंI कवक शैवाल को रहने का स्थान, जल एवं पोषक तत्व उपलब्ध कराता है बदले में शैवाल प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाकर आपस में बाँटते हैं।

(l) कीटभक्षी पादप – कुछ पौधे छोटे छोटे कीटों को खाकर उनसे पोषण प्राप्त करते हैं। वैसे पादप जो कीटों का भक्षण कर पोषण प्राप्त करते हैं कीटभक्षी पादप कहलाते हैं। जैसे घटपर्णी, वीनस फ्लाई ट्रैप आदि।

(m) मृतजीवी – बहुत सारे बैक्टीरिया तथा फंजाई मृत तथा विघटित हो रहे जैव पदार्थों से पोषण प्राप्त करते हैं। अत: वैसे जीव जो मृत तथा विघटित हो रहे जैव पदार्थों से पोषण प्राप्त करते हैं मृतजीवी कहलाते हैं। मृतजीवी को अंग्रेजी में सैप्रोट्रॉप्स (Saprotrophs) कहते हैं।

(n) प्रकाश संश्लेषण – पौधों द्वारा सूर्य के प्रकाश से उर्जा प्राप्त कर भोजन का संश्लेषित करने की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण को अंग्रेजे में फोटोसिंथेसिस (photosynthesis) कहा जाता है।

(o) फोटोसिंथेसिस (photosynthesis) ग्रीक भाषा के दो शब्दों "फोटो" तथा "सिंथेसिस" के मेल से बना है, जिसमें "फोटो" का अर्थ "प्रकाश" तथा "सिंथेसिस" का अर्थ "साथ में जोड़ना या बनाना" होता है।

(p) जीव जो फोटोसिंथेसिस (photosynthesis) द्वारा भोजन बनाते हैं, प्रकाशस्वपोषी कहलाते हैं। प्रकाशस्वपोषी को अंग्रेजी में फोटोऑटोट्रॉप्स (Photoautotrophs) कहते हैं।

(q) प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक घटक: प्रकाश संश्लेषण के लिए सूर्य का प्रकाश, क्लोरोफिल, जल तथा कार्बन डायऑक्साइड का होना अति आवश्यक है। किसी एक के भी अनुपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है।

(r) प्रकाश संश्लेषण का महत्व: (a) प्रकाश संश्लेषण [फोटोसिंथेसिस (Photosynthesis)] सभी जीवों के लिए भोजन का मुख्य श्रोत है। सभी जीव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों द्वारा संश्लेषित भोजन पर निर्भर करते हैं।

(b) हम तथा अन्य जीव श्वास के क्रम में कार्बन डायऑक्साइड छोड़ते हैं जो कि एक हानिकारक गैस है। प्रकाश संश्लेषण के क्रम इस हानिकारक गैस कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण होता है तथा प्राण वायु ऑक्सीजन निकलती है।

(c) प्रकाश संश्लेषण के क्रम में ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है जो सभी जीवों के जीवित रहने के लिए आवश्यक है।

(d) प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण तथा ऑक्सीजन का उत्सर्जन वातावरण में दोनों गैस के आवश्यक स्तर को बनाये रखता है।

7-science-home(Hindi)

7-science-English


Reference: