बल तथा गति के नियम

नवमी विज्ञान

बल की परिभाषा

एक धक्का या खिंचाव बल कहलाता है।

या, किसी वस्तु पर लगने वाले धक्के या खिंचाव को बल कहते हैं।

या, आकर्षण या अभिकर्षण (खींचना) या अपकर्षण (धक्का देना) बल कहलाता है।

बल की ब्याख्या

एक वस्तु जो यदि विराम अवस्था में है तो उसे गतिशील बनाने के लिये या कोई वस्तु जो गति की अवस्था में है को विराम अवस्था में लाने के लिये या तो उसे धक्का दिया जाता है या उसे खींचा जाता है।

इसी तरह यदि एक स्प्रिंग या रबर बैंड को खींचा जाता है तो उसका आकार बदल जाता है। या यदि एक बैलून को दबाया जाता है, अर्थात धक्का दिया जाता है, तो उसका आकार बदल जाता है।

स्पष्ट है कि किसी वस्तु की स्थित्ति परिवर्तन या आकार परिवर्तन के लिये या तो उसे धक्का दिया जाता है या खींचा जाता है, अर्थात बल लगाया जाता है। अर्थात यह धक्का देना या खींचना ही बल है।

बल एक भाव वाचक संज्ञा है। अर्थात बल को देखा या सूँघा या स्पर्श नहीं किया जा सकता है, बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है।

बल के लिये आवश्यक घटक

बल के लिये निम्नांकित घटक आवश्यक हैं:

दो वस्तुएँ – एक जिसपर बल लगाया जाता है, तथा दूसरी जिसके द्वारा बल लगाया जाता है।

तथा दोनों वस्तुओं में अन्योन्यक्रिया [इंट्रैक्शन (Interaction) ]।

अत: बल के लिये तीन घटक आवश्यक हैं दो वस्तुएं तथा उनमें सम्पर्क। किसी एक की अनुपस्थिति में बल नहीं लगेगा।

बल के प्रकार

बल को दो प्रकार में विभक्त किया जा सकता है: संतुलित बल तथा असंतुलित बल

संतुलित बल

वैसा बल जो किसी पिंड पर विपरीत दिशाओं में समान रूप से लग रहा हो, संतुलित बल कहलाता है। संतुलित बल किसी पिंड, जो विराम अवस्था में है, को गतिमान नहीं करता वस्तु की अवस्था में परिवर्तन नहीं करता है।

असंतुलित बल

बल जो किसी वस्तु पर विपरीत दिशाओं में असमान रूप से लग रहा हो, वह असंतुलित बल कहलाता है। असंतुलित बल की स्थिति में वस्तु अधिक बल वाली दिशा में गतिमान होने लगता है।

उदाहरण:

मान लिया कि फर्श या जमीन पर रखे एक लकड़ी के बक्से को कुछ लोग धकेलते हैं, अर्थात खिसकाने के लिये बल लगाते हैं।

इस स्थिति में बक्से पर दो बल लगता है: एक वह बल जो लोग उसे खिसकाने के लिये लगाते हैं तथा दूसरा वह जो फर्श तथा बक्से के बीच बक्से को खिसकाने के विपरीत दिशा में लग रहा है।

यदि खिसकाने की दिशा में लगाया जाने वाला बल उसकी विपरीत दिशा में लगने वाले बल से ज्यादा है, तो बक्सा खिसकता है या खिसकने लगता है। अर्थात यह असंतुलित बल है।

और यदि बक्से को खिसकाने की दिशा में लगाया जाने वाला बल उसकी विपरीत दिशा में लगने वाले बल से कम है, तो बक्सा नहीं खिसकता है। यहाँ भी यह असंतुलित बल है।

अर्थात किसी भी वस्तु पर असंतुलित बल लगाने की स्थित्ति में, वस्तु उस तरफ गतिमान हो जाती है जिस दिशा में बल अधिक है।

गैलीलियो तथा गति का नियम

वस्तुओं की किसी आनत तल पर गति को देखकर गैलीलियो ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक कोई बह्य बल कार्य नहीं करता, वस्तुएँ एक निश्चित गति से चलती है।

अत: असंतुलित बल के शून्य होने की स्थिति में एक गतिशील वस्तु निरंतर गतिमान रहेगी। परंतु वास्तविक अवस्था में शून्य असंतुलित बाह्य बल प्राप्त करना कठिन है। ऐसा गति की विपरीत दिशा में लगने वाले घर्षण बल के कारण होता है। इस प्रकार व्यवहार में गोली कुछ दूर चलने के बाद रूक जाती है।

न्यूनटन के गति के नियम

न्यूनटन ने बल एवं गति के बारे मे गैलीलियो के विचारों से प्रभावित होकर, गति के तीन मौलिक नियमों को प्रस्तुत किया। ये नियम किसी वस्तु की गति को वर्णित करते हैं। इन नियमों को न्यूटन के गति के नियमों के नाम से जाना जाता है।

न्यूटन का गति का प्रथम नियम

प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिर अवस्था या सरल रेखा में एकससमान गति की अवस्था में बनी रहती है जब तक कि उस पर कोई बाहरी बल कार्यरत न हो। इसे गति का प्रथम नियम या न्यूटन के गति का प्रथम नियम कहा जाता है।

अर्थात सभी वस्तुएँ अपनी अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है।

इसका अर्थ है, यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में ही रहना चाहती है, तथा अपनी विराम अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है।

उसी तरह यदि कोई वस्तु गति की अवस्था में है, तो वह गति अवस्था में ही रहना चाहती है।

गुणात्मक रूप में किसी वस्तु के विरामावस्था मे रहने या समान वेग से गतिशील रहने की प्रवृति को जड़त्व कहते हैं। इसी कारण से गति के पहले नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

बस कार आदि में सीट सुरक्षा बेल्ट का उपयोग

किसी चलती हुई गाड़ी में सीट तथा उसपर बैठे लोग सभी गति की अवस्था में होते हैं। परंतु सीट के सापेक्ष हम विरामावस्था में रहते हैं। सीट के सापेक्ष हम तब तक विरामावस्था में रहते हैं जब तक कि मोटरगाड़ी को रोकने के लिये ब्रेक न लगाई जाए। ब्रेक लगाये जाने पर गाड़ी के साथ सीट भी विरामावस्था में आ जाती है, परंतु हमारा शरीर जड़त्व के कारण गतिज अवस्था में ही बने रहने की प्रवृति रखता है। अचानक ब्रेक लगने पर हम सीट के आगे लगे पैनल से टकराकर हम घायल भी हो सकते हैं।

इस तरह की दुर्घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा बेल्ट का उपयोग किया जाता है। ये सुरक्षा बेल्ट हमारे आगे बढ़ने की गति को धीमा करती है, तथा घायल होने से बचाती है।

बस के अचानक चल पड़ने से हम पीछे की ओर क्यों गिर जाते हैं?

एक स्थिर बस में बस की फर्श के साथ हमारा पूरा शरीर भी विरामावस्था में रहता है। बस के अचानक चल पड़ने अर्थात गति में आ जाने से हमारा पैर, जो बस के फर्श के सम्पर्क में रहता है गति में आ जाता है, परंतु शरीर का ऊपरी भाग जड़त्व के कारण इस गति का विरोध करता है तथा स्थिर ही रहना चाहता है।

यही कारण है कि बस के अचानक चल पड़ने सतर्क नहीं रहने की स्थिति में हम पीछे की ओर गिर जाते हैं या झुक जाते हैं।

मोटरकार के तीव्र गति के साथ तीक्ष्ण मोड़ पर मुड़ने पर हम एक ओर झुक जाते हैं

जब एक मोटरकार या कोई गाड़ी एक सरल रेखीय गति में होती है, तो उसमें सवार व्यक्ति के शरीर भी एक सरल रेखीय गति में होती है। इस स्थिति में, जड़त्व के नियम के अनुसार, गाड़ी में सवार तथा गाड़ी दोनों एक सरल रेखीय गति को बनाये रखना चाहता है।

किसी तीक्ष्ण मोड़ मोटरकार की दिशा को बदलने के लिये ईंजन द्वारा एक असंतुलित बल लगाया जाता है, जिसके कारण दिशा बदलने के क्रम में संतुलन बनाये रखने हेतु मोटरगाड़ी केन्द्र की ओर झुक जाती है, परंतु मोटरगाड़ी में सवार व्यक्ति का शरीर एक सरल रेखीय गति को बनाये रखना चाहता है। अत: तीक्ष्ण मोड़ पर मोटरगाड़ी के तीव्र गति के साथ मुड़ने के समय उसपर सवार व्यक्ति का शरीर जड़त्व के कारण सीट पर एक ओर (केन्द्र के दूसरी ओर) झुक जाता है।

जड़त्व तथा द्रव्यमान

किसी भी वस्तु का एक प्राकृतिक गुण, जो उसकी (वस्तु की) विराम या गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करता है।

एक भारी वस्तु का जड़त्व अधिक होता है, अर्थात वस्तु का जड़त्व उसके भार का समानुपाती होता है। अर्थात भार बढ़ने के साथ जड़त्व बढ़ता है तथा भार घटने के साथ किसी वस्तु का जड़त्व कम होता है।

किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है।

अर्थात वस्तु का द्रव्यमान बढ़ने पर जड़त्व बढ़ता है तथा द्रव्यमान घटने पर जड़त्व कम होता है।

संवेग (Momentum)

किसी वस्तु के वेग तथा द्रव्यमान के गुणनफल को संवेग (Momentum) कहते हैं। संवेग नामक इस राशि को न्यूटन ने प्रस्तुत किया था। संवेग को प्राय: p से दर्शाया जाता है।

अर्थात, `p = mv`

जहाँ, p = संवेग, m = द्रव्यमान तथा v = वेग

संवेग में परिमाण और दिशा दोनों होते हैं। संवेग की दिशा वही होती है जो वेग की दिशा होती है।

संवेग का एस आई मात्रक

द्रव्यमान का एस आई मात्रक kg (किलोग्राम) होता है तथा वेग का एस आई मात्रक m/s (मीटर / सेकेंड) होता है।

अब चूँकि, p = mv

अत: p = kg . m s–1

अत: p (द्रव्यमान) का एस आई मात्रक = kg . m s–1 (किलोग्राम मीटर/सेकेंड) है।

चूँकि किसी असंतुलित बल के प्रयोग से उस वस्तु के वेग में परिवर्तन होता है, इसलिये यह कहा जा सकता है कि बल ही संवेग को परिवर्तित करता है।

गति का द्वितीय नियम

किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले असंतुलित बल की दिशा में बल के समानुपाती होती है। इसे गति का द्वितीय नियम कहा जाता है। चूँकि न्यूटन ने इस गति नियम को दिया था अत: इसे न्यूटन के गति का द्वितीय नियम भी कहा जाता है।

गति के द्वितीय नियम की गणितीय गणना

मान लिया कि एक वस्तु जिसका द्रव्यमान `m` है, प्रारंभिक वेग `u` से सीधी रेखा में चल रही है।

पुन: मान लिया कि `t` समय तक `F` बल लगाने पर उस वस्तु का वेग `v` हो जाता है।

चूँकि संवेग (Momentum) = द्रव्यमान × वेग,

अत: दिये गये वस्तु का प्रारंभिक संवेग (Initial momentum), `p_1 = mu`

[चूँकि प्रारंभिक वेग = u है।]

तथा दिये गये वस्तु का अंतिम संवेग (Final momentum), `p_2=mv`

[चूँकि अंतिम वेग = v है।]

अत: संवेग में परिवर्तन ` prop\ p_2-p_1`

` prop \ (mv-mu)`

` prop \ m(v-u)`

अत: संवेग में परिवर्तन की दर ` prop \ (m(v-u))/t` [जहाँ `t` = समय]

अब चूँकि न्यूटन की गति के द्वितीय नियम के अनुसार संवेग में परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले असंतुलित बल की दिशा में बल के समानुपाती होती है।

अब चूँकि लगाया जाने वाला असंतुलित बल `F` है,

अत: `F prop (m(v-u))/t`

`=>F prop m*a`

`=>F = k*m*a` ------------ (i)

जहाँ `a=(v-u)/t` वेग में परिवर्तन की दर अर्थात त्वरण है। तथा `k` एक अनुपातिक स्थिरांक है।

यह न्यूटन के गति के द्वितीय नियम का गणितीय सूत्र है।

द्रव्यमान (m) का एसआई (SI) मात्रक kg होता है।

तथा त्वरण (a) का एसआई (SI) मात्रक m s–2 होता है।

अब बल का मात्रक इस प्रकार लिया जाता है कि स्थिरांक k का मान एक हो जाता है।

अर्थात, इकाई बल को उस मात्रा के रूप में परिभाषित करते हैं, 1 kg द्रव्यमान वाली किसी वस्तु में 1 m s–2 का त्वरण उत्पन्न करती है।

अर्थात 1 इकाई बल = k (1 g) × (1 m s–2)

इस प्रकार k (स्थिरांक) का मान एक हो जाता है। अत: समीकरण (1) से

F = m a ------------------ (ii)

बल (F) क़ा एस आई (SI) मात्रक

यहाँ बल = द्रव्यमान × त्वरण

चूँकि द्रव्यमान (m) का एसआई (SI) मात्रक kg होता है। तथा त्वरण (a) का एसआई (SI) मात्रक m s–2 होता है।

अत: बल `(F) = kg * m\ s^(-2)`

अर्थात बल का एस आई मात्रक (SI Unit) `kg \ m\ s^(-2)` है। इसे न्यूटन भी कहते हैं तथा `N` द्वारा निरूपित किया जाता है।

न्यूटन की गति के द्वितीय नियम से हमें किसी वस्तु पर लगने वाले बल को मापने की विधि मिलती है। बल को उस वस्तु में उत्पन्न त्वरण तथा वस्तु के द्रव्यमान के गुणनफल से प्राप्त किया जाता है।

दैनिक जीवन में गति के द्वितीय नियम का प्रयोग

क्रिकेट मैच के दौरान एक क्षेत्ररक्षक तेजी से आती हुई बॉल को पकड़ते समय हाथ को पीछे क्यों खींचता है?

क्रिकेट मैच के दौरान तेजी से आती हुई बॉल का संवेग काफी अधिक होता है। हाथ से पकड़ कर बॉल को रोका जाता है अर्थात बॉल का संवेग शून्य किया जाता है।

तेजी से आती हुई बॉल को रोकते समय क्षेत्ररक्षक हाथ को पीछे खींचता है। हाथ को पीछे खींचकर क्षेत्ररक्षक गेंद के वेग को शून्य करने में अधिक समय लगाता है। इस प्रकार गेंद में संवेग परिवर्तन की दर कम हो जाती है और तेज गति से आ रही गेंद का प्रभाव हाथ पर कम पड़ता है।

अगर गेंद को अचानक रोका जाता है तो तीव्र गति से आ रही गेंद का वेग बहुत कम समय में शून्य हो जाता है अर्थात गेंद के संवेग में परिवर्तन की दर अधिक होगी जिसके कारण कैच को पकड़ने में क्षेत्ररक्षक को अधिक बल लगाना होगा जिससे हाथ में चोट लगने के कारण खिलाड़ी घायल हो सकता है।

ऊँची कूद वाले खिलाड़ियों को कुशन या बालू पर क्यों कूदना होता है

ऊँची कूद में जमीन से टकराते समय खिलाड़ी के छलांग लगाने के बाद गिरने के समय को बढ़ाने के लिये कुशन या बालू रखा होता है। कुशन या बालू पर कूदने या गिरने पर संवेग परिवर्तन की दर को शून्य होने में लगा समय बढ़ जाता है जिससे खिलाड़ी को कोई चोट नहीं लगती है तथा खिलाड़ी घायल नहीं होता है।

यदि ऊँची कूद में खिलाड़ी कड़े सतह पर कूदता है तो संवेग परिवर्तन की दर अचानक से शून्य हो जाती है, जिससे खिलाड़ी चोट लगने के कारण घायल हो सकता है।

अत: चोट लगने तथा घायल होने से बचाने के लिये ऊँची कूद में खिलाड़ियों को कुशन या बालू पर कूदना होता है।

कराटे का एक खिलाड़ी हाथ से मारकर एक ही झटके में बर्फ की एक सिल्ली को कैसे तोड़ देता है?

कराटे का एक खिलाड़ी हाथ को काफी गति से बर्फ की सिल्ली पर मारता है। बर्फ की सतह के कठोर होने के कारण हाथ के संवेग परिवर्तन की दर अचानक से शून्य हो जाती है।

चूँकि गति के द्वितीय नियम के अनुसार चूँकि किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उस पर लगने बाले असंतुलित बल की दिशा में बल के समानुपाती होती है, अत: कराटे खिलाड़ी के हाथ का बल संवेग परिवर्तन की दर अचानक शून्य होने के कारण से बर्फ की सिल्ली पर लगता है, जिससे बर्फ की सिल्ली टूट जाती है।

कराटे का खिलाड़ी हाथ के संवेग परिवर्तन की दर बर्फ की सिल्ली पर मारते समय बिना घायल हुए अचानक से शून्य करने में माहिर होता है। इसी कारण एक कराटे का निपुण खिलाड़ी हाथ के एक ही प्रहार से बर्फ की सिल्ली को आसानी बिना घायल हुए तोड़ देता है।

गति के द्वितीय नियम के गणितीय सूत्र से गति के प्रथम नियम को गणितीय रूप से प्राप्त किया जाना

गति के द्वितीय नियम से हम जानते हैं कि

F = m a -------------- (i)

जहाँ, F = बल, m = वस्तु का द्रव्यमान तथा a = वेग में परिवर्तन की दर है।

या, `F = (m(v-u) )/t`

[चूँकि `a=(v-u)/t` ]

या, F t = m v – mu --------- (ii)

[जहाँ u = प्रारंभिक वेग तथा v = अंतिम वेग है।]

अर्थात जब F = 0, हो तो किसी भी समय t पर, v = u होगा।

अर्थात वस्तु समान वेग u से चलती रहेगी। यदि `u` शून्य है तो `v` भी शून्य होगा। अर्थात वस्तु विरामावस्था में ही रहेगी।

समीकरण (i) गति के द्वितीय नियम तथा समीकरण (ii) गति के प्रथम नियम का गणितीय सूत्र है।

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