क्या हमारे आसपास के पदार्थ शुद्ध हैं

नवमी विज्ञान

क्रोमैटोग्राफी

क्रोमैटोग्राफी एक ऐसी तकनीक है जिसका प्रयोग उन विलेय पदार्थों को पृथक करने में होता है जो एक ही प्रकार के विलायक में घुले हों।

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इस तकनीकि का नाम ग्रीक शब्द क्रोमा, जिसका अर्थ रंग होता है, के नाम पर पड़ा है, चूँकि इस विधि को सबसे पहले रंगों को पृथक करने में प्रयोग किया गया था, अत: इसका नाम क्रोमैटोग्राफी पड़ा।

क्या काली स्याही में डाई एक ही रंग है?

क्रोमैटोग्राफी द्वारा स्याही से रंगों का पृथक्करण

विधि:

फिल्टर पेपर का एक चौकोड़ टुकड़ा लेकर उसके एक सिरे से थोड़ा ऊपर एक निशान लगा दिया जाता है।

फिर इस निशान पर स्याही एक बूंद डाली जाती है।

एक बीकर या परखनली में थोड़ा सा जल लेकर फिल्टर पेपर को सूखने के बाद निशान वाले सिरे की सतह को थोड़ा सा जल की सतह से बिल्कुल छूता हुआ रखा जाता है।

फिल्टर पेपर द्वारा जल के सोखने के साथ स्याही में वर्तमान विभिन्न रंग अलग अलग ऊँचाई तक फिल्टर पेपर में ऊपर तक अवशोषित हो जाता है।

स्याही में जल विलेयक के रूप में तथा रंग (डाइ) विलेय के रूप में रहता है। स्याही का एक बूंद फिल्टर पेपर पर डालकर जब उसके निचले सिरे को जल में डाला जाता है, तो जैसे ही जल फिल्टर पेपर पर ऊपर की दिशा की ओर अग्रसर होता है, यह डाई के कणों को भी अपने साथ ले लेता है। प्राय: डाई दो या दो से अधिक रंगों का मिश्रण होता है। रंग वाला घटक जो कि जल में अधिक घुलनशील है, तेजी से ऊपर उठता है और इस प्रकार रंगों का पृथक्करण संभव हो जाता है।

आसवन (Distillation)

आसवन (Distillation) विधि का उपयोग वैसे मिश्रण को पृथक करने में किया जाता है जो विघटित गुए बिना उबलते हैं तथा जिनके घटकों के क्वथनांकों (Boiling points) के बीच अधिक अंतराल होता है।

इस विधि में मिश्रण को एक आसवन फ्लास्क (Distillation Flask) में लिया जाता है। आसवन फ्लास्क में एक संघनक लगा रहता है, जो ठंढ़े जल के प्रवाह को बनाए रखने के लिए उपयोग में आता है। संघनक का एक सिरा आसवन फ्लास्क से तथा दूसरा सिरे पर प्राय: एक बीकर लगा दिया जाता है, जिसमें संघनित द्रव जमा हो सके। आसवन फ्लास्क में एक थर्मामीटर मिश्रण का तापमान मापने के लिए लगाया जाता है।

जब मिश्रण को फ्लास्क में रखकर गर्म किया जाता है, मिश्रण का वह घटक जो कम क्वथनांक पर उबलता है, वाष्पीकृत होने लगता है। मिश्रण के इस घटक का वाष्प संघनक में जाकर द्रव में परिवर्तित हो जाता है, तथा संघनक के दूसरे छोड़ पर लगे बर्तन यथा बीकर में जमा होने लगता है। जबकि अधिक क्वथनांक वाला घटक फ्लास्क में ही रहता है।

इस प्रकार आसवन की विधि से दो घुलनशील द्रव, जिसके क्वथनांक अलग अलग होते हैं, के मिश्रण को पृथक कर लिया जाता है।

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उदारण: एसीटोन तथा जल के मिश्रण को आसवन की विधि द्वारा आसानी से पृथक किया जा सकता है।

एसीटोन का क्वथनांक 56o C है जबकि जल का क्वथनांक 100oC है। अत: फ्लास्क में तापमान 56oC पहुँचते ही एसीटोन वाष्पीकृत होने लगता है, जिसे संघनक द्वारा पुन: ठंढ़ा कर द्रव में परिवर्तित कर अलग कर लिया जाता है।

प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation)

दो या दो से अधिक घुलनशील द्रवों, जिनके क्वथनांक का अंतर 25K से कम होता है, के मिश्रण को पृथक करने के लिए प्रभाजी आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है।

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प्रभाजी आसवन विधि का उपकरण भी साधारण आसवन विधि के उपकरण के जैसा ही होता है। परंतु इसमें केवल आसवन फ्लास्क और संघनक के बीच एक प्रभाजी स्तम्भ (Fractional column) लगा होता है।

एक साधारण प्रभाजी स्तम्भ (Fractional Column) एक नली होती है जो कि शीशे के गुटकों से भरी होती है। ये गुटके वाष्प को ठंढ़ा और संघनित होने के लिए सतह प्रदान करते हैं जिससे कि वाष्प बार बार तेजी से ठंढा होकर संघनित होता है।

प्रभाजी आसवन का उपयोग वायु से विभिन्न गैसों का पृथक्करण तथा पेट्रोलियम उत्पादों से उनके विभिन्न घटकों के पृथक्करण आदि में किया जाता है।

वायु से गैसों को कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?

वायु विभिन्न गैसों का एक समांगी मिश्रण है। वायु के घटकों को प्रभाजी आसवन (Fractional distillation) विधि द्वारा अलग किया जा सकता है।

वायु से विभिन्न गैसों को अलग करने के विभिन्न चरणों का प्रवाह चित्र

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ऑक्सीजन गैस का वायु से पृथक्करण (Separation of Oxygen from air)

वायु से ऑक्सीजन गैस को पृथक करने के लिये वायु में उपस्थित अन्य गैसों को अलग कर दिया जाता है। द्रव वायु प्राप्त करने के लिए पहले वायु पर दबाव बढ़ाया जाता है और फिर ताप घटाकर उसे ठंढ़ा कर संपीडित किया जाता है। उस द्र्वित गैस को प्रभाजी आसवन स्तम्भ में धीरे धीरे गर्म किया जाता है जहाँ सभी गैसें बिभिन्न ऊँचाइयों पर क्वथनांक के अनुसार पृथक हो जाती हैं।

वायु से ऑक्सीजन पृथक करने की विधि:

सर्वप्रथम वायु पर उच्च बनाया जाता है। इस उच्च दाब पर गर्म हवा के कारण हवा में उपस्थित जल के कण बाष्पीकृत होकर अलग हो जाते हैं।

अब इसके बाद वायु को बर्फीले ठंढ़े पानी से पास कराया जाता है, जहाँ वायु का तापमान कम हो जाता है।

इस चरण में ठंढी तथा संपीडित हवा इसमें छोड़ी जाती है।

इस ठंढ़े तथा संपीडित हवा वाले चरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस सूखे बर्फ के रूप में अलग हो जाती है।

इसके बाद हवा को एक प्रभाजी स्तंभ वाले कक्ष में प्रसारित (expanded) करवाया जाता है।

यहाँ पर तापमान को धीरे धीरे बढ़ाया जाता है।

तापमान धीरे धीरे बढ़ाने पर नाइट्रोजन तथा आर्गन गैसें द्र्वित ऑक्सीजन को छोड़कर पृथक हो जाती है।

इसके पश्चात द्र्वित ऑक्सीजन को संग्रहित कर लिया जाता है।

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क्रिस्टलीकरण (Crystallisation)

क्रिस्टलीकरण (Crystallisation) विधि का प्रयोग ठोस पदार्थों को शुद्ध करने में किया जाता है। इस क्रिस्टलीकरण की विधि द्वारा क्रिस्टल के रूप में शुद्ध ठोस को विलयन से पृथक किया जाता है

क्रिस्टलीकरण तकनीकि साधारण वाष्पीकरण विधि से अधिक उत्तम होती है क्योंकि

कुछ ठोस विघटित हो जाते हैं या कुछ चीनी के समान गर्म करने पर झुलस जाते हैं।

छानने के पश्चात भी अशुद्ध विलेय पदार्थ को विलायक में घोलने पर विलयन में कुछ अशुद्धियाँ बची रह सकती है, वाष्पीकरण होने पर ये अशुद्धियाँ ठोस को दूषित कर सकती हैं।

किसी अशुद्ध नमूने में से शुद्ध कॉपर सल्फेट कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?

किसी अशुद्ध नमूने से शुद्ध कॉपर सल्फेट क्रिस्टलीकरण विधि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

किसी अशुद्ध नमूने से शुद्ध कॉपर सल्फेट प्राप्त करने की विधि :

दिये गये अशुद्ध नमूने को जल की न्यूनतम मात्रा में घोल दिया जाता है तथा इसे द्वारा छानकर अशुद्धियाँ हटा ली जाती हैं।

इस घोल को गर्म कर कॉपर सल्फेट का संतृप्त विलयन प्राप्त कर लिया जाता है।

अब कॉपर सल्फेट के संतृप्त विलयन को कमरे के तापमान पर ठंढ़ा होने के लिए शांत छोड़ दिया जाता है।

कुछ घंटों के पश्चात कॉपर सल्फेट का क्रिस्टल प्राप्त हो जाता है, जो शुद्ध होता है।

क्रिस्टलीकरण के उपयोग (Applications of Crystallisation)

समुद्र से प्राप्त नमक को शुद्ध करने में।

फिटकिरी (Alum) के अशुद्ध नमूने से शुद्ध फिटकिरी प्राप्त करने आदि में।

शहरो में पेय जल की आपूर्ति (Supply of drinking water in cities)

शहरों में प्राय: नदियों से जल प्राप्त कर उसे शुद्ध करने के उपरांत पेय जल के रूप में पाइप लाइन द्वारा आपूर्ति की जाती है।

नदियों से प्राप्त जल को शुद्ध करने के चरण

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Step: 1. नदियों से जल प्राप्त कर उसे भंडारित किया जाता है।

Step: 2. अवसादन (Sedimentation) : जल भंडार से जल को अवसादन टैंक में भेजा जाता है, जहाँ ठोस अशुद्धियाँ तल में बैठ जाती हैं।

Step: 3. भारण (Loading): अवसादन टैंक से जल को भारण टैंक में भेजा जाता है, जहाँ जल में निलंबित अशुद्धियाँ टैंक के तल में बैठ जाती हैं।

Step: 4. फिल्टरेशन (Filtration): लोडिंग टैंक जल को पाइप के द्वारा छानक टैंक में ले जाया जाता है, जहाँ जल में वर्तमान अशुद्धियाँ बालू तथा कंकड़ की परतों के द्वारा छान ली जाती हैं।

Step: 5. क्लोरीकरण (Chlorination) : फिल्टरेशन टैंक से जल को दूसरे टैंक में ले जाया जाता है, जहाँ क्लोरीकरण की प्रक्रिया द्वारा जल में उपस्थित बैक्टीरिया को मार दिया जाता है, तथा शुद्ध जल प्राप्त कर लिया जाता है।

Step: 5. इस शुद्ध जल को पाइप लाइन द्वारा पेय जल के रूप घरों आदि में पहुँचा दिया जाता है।

भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन (Physical And Chemical Changes)

भौतिक परिवर्तन (Physical Change):

पदार्थों के ऐसे गुण जिसका हम अवलोकन एवं वर्णन कर सकते हैं, भौतिक गुण कहलाते हैं। यथा रंग, कठोरता, दृढ़ता, बहाव, घनत्व, द्रवनांक, क्वथनांक, अवस्था आदि।

पदार्थों के केवल भौतिक गुण में परिवर्तन भौतिक परिवर्तन कहा जाता है क्योंकि ये परिवर्तन पदार्थों के संघटन में बिना परिवर्तन किए होते हैं। भौतिक परिवर्तन के बाद भी पदार्थ की रासायनिक प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

उदारण : बर्फ का पिघलना तथा जल का वाष्प में परिवर्तन।

यद्यपि बर्फ, जल और वाष्प अलग अलग दिखाई देते हैं, और ये भिन्न भिन्न भौतिक गुण दर्शाते हैं, लेकिन ये रासायनिक रूप से समान होते हैं। बर्फ, जल तथा जलवाष्प का रासायनिक सूत्र समान होता है, जो H2O है।

अर्थात भौतिक परिवर्तन में केवल पदार्थ का अंत:रूपांतरण होता है, तथा कोई नया पदार्थ नहीं प्राप्त होता है।

भौतिक परिवर्तन उत्क्रमणीय है, अर्थात उलट सकता है।

रासायनिक परिवर्तन (Chemical Change)

पदार्थों के रासायनिक गुण में परिवर्तन रासायनिक परिवर्तन कहलाता है। रासायनिक परिवर्तन के पश्चात नये तरह का पदार्थ प्राप्त होता है।

उदारण : कोयले, मोम, कागज या किसी भी पदार्थ का जलना रासायनिक परिवर्तन है। क्योंकि इन जलने के बाद पदार्थ का स्वरूप के साथ रासायनिक गुण बदल जाता है, तथा नया पदार्थ प्राप्त होता है।

रासायनिक परिवर्तन को उलटा नहीं किया जा सकता है।

रासायनिक परिवर्तन को रासायनिक अभिक्रिया भी कहा जाता है।

रासायनिक गुण में अंतर के कारण पदार्थों के गुणधर्म भी अलग अलग होते हैं। जैसे कि जल तथा खाना प्काने वाले तेल दोनों ही द्रव हैं, लेकिन दोनों के रासायनिक गुणधर्म अलग अलग हैं। इनकी गंघ और ज्वलनशीलता में अंतर है, जैसे कि तेल हवा में जलता है, जबकि जल आग को बुझा देता है।

शुद्ध पदार्थों के क्या प्रकार हैं ?

पदार्थों को उनके संघटन के आधार पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है: ये हैं तत्व, यौगिक तथा मिश्रण

तत्व (Element) :

राबर्ट बॉयल के अनुसार तत्व पदार्थ का वह मूल रूप है जिसे रासायनिक प्रतिक्रिया द्वार अन्य सरल पदार्थों में विभाजित नहीं किया जा सकता है।

तत्व पदार्थ का शुद्ध रूप है।

उदारण : हाइड्रोजन (H), हीलियम (He), लीथियम (Li), कार्बन (C), ऑक्सीजन (O), आदि

तत्वों को साधारणतया धातु, अधातु तथा उपधातु में वर्गीकृत किया जा सकता है।

धातु के सामान्य गुणधर्म (Common Properties of Metals)

धातुओं में एक विशेष चमक होती है, जिसे धात्विक चमक कहते हैं।

धातु चाँदी जैसी सफेद अर्थात ग्रे रंग या सोने की तरह पीले रंग की होती है।

धातुएँ ताप तथा विद्युत की सुचालक होती हैं।

धातु तन्य होती हैं अर्थात इन्हें खींचकर तार के रूप में बदला जा सकता है।

धातुएँ अघातवर्ध्य होती हैं। इन्हें पीटकर पतले चादर के रूप में बद्ला जा सकता है।

धातु को पीटने पर एक विशेष तरह की आवाज निकलती है। अर्थात धातुएँ प्रतिध्वनिपूर्ण होती हैं।

धातुएँ कमरे के तापमान पर ठोस होती हैं, परंतु मरकरी एक अपवाद वाली धातु है, जो कमरे के तापमान पर द्रव होता है।

सोना, चाँदी, लोहा, ताम्बा, ऐलुमिनियम आदि धातु के कुछ उदाहरण हैं।

अधातु के सामान्य गुणधर्म (Common properties of Non-metals)

अधातुएँ विभिन्न रंगों की होती हैं।

अधातुएँ ताप तथा विद्युत की कुचालक होती हैं। परंतु ग्रेफाइट, जो कि कार्बन का एक अपरूप है तथा अधातु है, विद्युत का सुचालक है।

अधातुएँ चमकीली, प्रतिध्वनिपूर्ण और अघातवर्ध्य नहीं होती हैं।

अधातुएँ भंगुर (Brittle) होती हैं, अर्थात पीटने पर यह टुकड़ों में टूट जाती हैं।

उदारण : हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, आयोडीन, कार्बन, इत्यादि।

उपधातु (Metalloids)

धातु तथा अधातुओं के बीच के गुणों वाले तत्व उपधातु कहलाते हैं। यथा बोरॉन, सिलिकन, जरमेनियम, इत्यादि।

यौगिक (Compounds)

पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्वों के नियत अनुपात में रासायनिक तौर पर मिलने से बनते हैं, यौगिक कहलाते हैं।

उदाहरण : जल (H2O), सोडियम क्लोराइड (sodium chloride (NaCl)), कैल्शियम कार्बोनेट [calcium carbonate (CaCO3)], आदि यौगिक के कुछ उदाहरण हैं।

पदार्थ का वर्गीकरण
शुद्ध पदार्थ अशुद्ध पदार्थ (मिश्रण)
तत्व यौगिक समांगी विषमांगी
सरल पदार्थों में विभक्त नहीं किये जा सकते। उदारण: कॉपर, ऑक्सीजन, लोहा, चाँदी, हाइड्रोजन, इत्यादि। नियत संघटन; रासायनिक या वैद्युत रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा घटक तत्वों में विघटित किया जा सकता है। उदाहरण: जल, मिथेन, चीनी, नमक, इत्यादि। समान संघटन, उदाहरण के लिये जल में चीनी, जल में नमक, इत्यादि। असमान संघटन, उदाहरण के लिए: बालू तथा नमक, चीनी तथा नमक, लकड़ी, रक्त, तेल में जल आदि।

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