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कोयला और पेट्रोलियम - आठवीं विज्ञान

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प्राकृतिक सम्पदाओं के प्रकार


प्राकृतिक सम्पदाओं को उनकी उपलब्धता के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है। ये दो भाग हैं, अक्षय प्राकृतिक सम्पदाएँ तथा समाप्त होने वाली प्राकृतिक सम्पदाएँ

(a) अक्षय प्राकृतिक सम्पदाएँ

प्राकृतिक सम्पदाएँ जो असीमित रूप से उपलब्ध हैं तथा मानवीय उपयोग द्वारा खत्म नहीं हो सकते हैं, अक्षय प्राकृतिक सम्पदाएँ कहलाती हैं। जैसे सूर्य का प्रकाश, हवा, आदि।

(b) समाप्त होने वाली प्राकृतिक सम्पदाएँ

प्राकृतिक सम्पदाएँ जो सीमित रूप में उपलब्ध हैं तथा मानवीय उपयोग द्वारा समाप्त हो सकती हैं, समाप्त होने वाली प्राकृतिक सम्पदाएँ कहलाती हैं। जैसे वन, वन्यजीव, खनिज, कोलया, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

Reference: By Nandu Chitnis from Pune, India - ONGC Oil and Gas Processing Platform., CC BY 2.0, Link

जीवाश्म ईंधन

कुछ प्राकृतिक सम्पदाएँ, जिन्हें ईंधन की तरह उपयोग किया जाता है, का निर्माण सजीव प्राणियों के मृत अवशेषों से होता है, इसलिए इन्हें जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) कहा जाता है।

जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) को बनने में लाखों वर्ष लगते हैं तथा ये सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं इसके साथ ही ये मानव के क्रियाकलापों द्वारा समाप्त हो सकते हैं, इसलिए जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) को समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है।

कोयला (कोल)

कोयला (कोल) एक जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) हैं। कोयला (कोल) पत्थर के जैसा कठोर तथा काले रंग का होता है।

कोयला (कोल) का उपयोग खाना पकाने में किया जाता रहा है। कुछ समय पहले तक कोयला (कोल) का उपयोग रेल ईंजन में वाष्प बनाने के लिए होता है जिससे रेलगाड़ी चलती थी। कोयला (कोल) का उपयोग ताप विद्युत गृहों विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। इसके साथ ही कोयला (कोल) का उपयोग बहुत सारे कल कारखानों में भी किया जाता है।

कोयले की कहानी

पृथ्वी के निचले जलीय ग्रहण क्षेत्रों में घने जंगल हुआ करते थे। लगभग 300 लाख वर्षों से भी अधिक समय पहले विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रमों यथा भूकम्प, वर्षा, हवा, आदि के कारण ये जंगल पृथ्वी के नीचे दब गये। समय बीतने के साथ अंदर दबे इन जंगलों पर मिट्टी की परते चढ़ती गयीं। जैसे जैसे ये जंगल गहराई में जाते गये इनपर बढ़ने वाले दाब और उच्च तापमान के कारण ये मृत पेड़ पौधे धीरे धीरे कोयले में परिवर्तित हो गये।

चूँकि कोयला (कोल) मृत पेड़ पौधों के अवशेषों, जिन्हें जीवाश्म कहा जाता है, से निर्मित हुए हैं, अत: कोयले (कोल) को जीवाश्म ईंधन कहा जाता है।

कार्बनीकरण (कार्बोनाइजेशन)

मृत बनस्पति के धीमे प्रक्रम द्वारा कोयले में परिवर्तन को कार्बनीकरण (कार्बोनाइजेशन) कहा जाता है, क्योंकि कोयला (कोल) मुख्य रूप से कार्बन का एक रूप है।

कोयले का हवा में जलना

कोयला (कोल) को हवा में जलाने पर यह ताप के साथ साथ मुख्य रूप से कार्बन डॉयऑक्साइड बनाता है।

Reference: By TripodStories- AB - Own work, CC BY-SA 4.0, Link

कोयले के प्रक्रमण से कुछ जरूरी उत्पादों का प्राप्त किया जाना

कोयला का प्रक्रमण कर बहुत सारे आवश्यक उत्पाद प्रात किये जाते हैं जैसे कोक, कोलतार (अलकतरा), कोल गैस, इत्यादि।

कोक

कोक को कोयला के प्रक्रमण द्वारा प्राप्त किया जाता है। कोक एक कठोर, रंध्रयुक्त काला पदार्थ है। कोक कार्बन का लगभग सुद्ध रूप है। कोक का उपयोग इस्पात के औद्योगिक निर्माण में तथा बहुत से धातुओं के निष्कर्षण में किया जाता है।

कोलतार

कोलतार को कोयले के प्रक्रमण द्वारा प्राप्त किया जाता है। कोलतार एक गाढ़ा तथा तीव्र गंध वाला तरल पदार्थ है। कोलतार का गंध अप्रिय होता है।

कोलतार लगभग 200 पदार्थों का मिश्रण है। बहुत सारे उपयोगी पदार्थ कोलतार से प्राप्त किये जाते हैं जिनका उपयोग दैनिक उपयोग में आने वाले बहुत सारे पदार्थों के निर्माण में किया जाता है, जैसे सिंथेटिक रंग, दवाईयाँ, विस्फोटक, सुगंध, प्लास्टिक, पेंट, फोटोग्रैफिक सामग्री, छत निर्माण सामग्री, नैफ्थलीन बॉल, आदि।

नैफ्थलीन बॉल जिसे कोलतार से प्राप्त किया जाता है, का उपयोग कीटों को भगाने के लिए किया जाता है।

कोलतार का उपयोग पक्की सड़क बनाने में किया जाता है। परंतु आजकल कोलतार की जगह पर बिटुमिन का उपयोग सड़क निर्माण में किया जाने लगा है।

कोल-गैस या कोयला-गैस

कोयले के प्रक्रमण से कोल-गैस प्राप्त किया जाता है। कोल-गैस का उपयोग कोयला प्रक्रमण संयंत्रों के निकट स्थापित बहुत सारे उद्योगों में ईंधन के रूप में किया जाता है।

सड़कों पर रोशनी के लिए कोल गैस का उपयोग

कोल गैस का उपयोग सड़कों पर रोशनी के लिए प्रथम बार लंदन में 1810 में तथा न्यूयॉर्क में 1820 के आसपास किया गया था। आजकल कोलगैस का उपयोग रोशनी के बजाय उष्मा के श्रोत के रूप में अधिक किया जाता है।

पेट्रोलियम

पेट्रोलियम एक प्राकृतिक संसाधन है जो प्राकृतिक में कच्चे ईंधन के रूप में प्राप्त होता है। पेट्रोलियम बहुत सारे पदार्थों का एक मिश्रण है जैसे पेट्रोलियम गैस, पेट्रोल, डीजल, स्नेहक तेल, पैराफिन, मोम, आदि। अर्थात पेट्रोल तथा डीजल आदि पेट्रोलियम उत्पाद है।

पेट्रोलियम का का निर्माण

पेट्रोलियम का निर्माण समुद्र में रहने वाले जीवों से हुआ है। समुद्र में रहने वाले जीव जंतुओं के मरने के बाद उनके मृत शरीर के समुद्र तल में बैठ गये और फिर रेत तथा मिट्टी की तहों द्वारा ढ़्क गये। लाखों वर्षों में, वायु की अनुपस्थिति, उच्च ताप और उच्च दाब ने मृत जीवों को पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में परिवर्तित कर दिया।

पेट्रोलियम, के तेल होने के कारण गैस से भारी तथा जल से हल्का है। पृथ्वी के नीचे जहाँ पर पेट्रोलियम का भंडार होता है, प्राकृतिक गैस सबसे ऊपर, उसके बाद पेट्रोलियम तथा सबसे नीचे जल की परत बनती है।

ऑयल रिजर्वायर (तेल के भंडार)

क्षेत्र, जहाँ सतह के नीचे पेट्रोलियम के भंडार पाये जाते हैं, को ऑयल रिजर्वायर (तेल के भंडार का क्षेत्र) कहा जाता है।

ऑयल फिल्ड

क्षेत्र जहाँ से पेट्रोलियम को निकाला जा रहा होता है, ऑलय फिल्ड कहा जाता है।

तेल के कुँए (ऑयल वेल)

वह जगह जहाँ पर से पृथ्वी में छेद कर पेट्रोलियम को बड़े बड़े पाईप के द्वारा निकाला जाता है, तेल का कुँआ कहा जाता है।

पहला तेल का कुँआ

विश्व का सर्वप्रथम तेल का कुँआ यूoएसoएo के पेनिसिल्वेनिया में वर्ष 1859 में पाया गया था। उसके आठ वर्षों बाद वर्ष 1867 में भारत में असम के माकुम में तेल के कुँए का पता चला। इसके अलावा भारत में असम, गुजरात, बाम्बे हाई और गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के बेसीन में तेल पाया जाता है तथा तेल को निकाला जाता है।

पेट्रोलियम का परिष्करण (पेट्रोलियम का रिफाइनिंग)

पेट्रोलियम कई पदार्थों का मिश्रण होता है, जैसे पेट्रोल, डीजल, स्नेहक तेल, मोम आदि। अत: इन उपयोगी पदार्थों को पेट्रोलियम से अलग करना आवश्यक हो जाता है ताकि उनका जरूरत के अनुसार उपयोग किया जा सके।

पेट्रोलियम से उपयोगी पदार्थों को अलग किया जाना पेट्रोलियम का परिष्करण (रिफाइनिंग ऑफ पेट्रोलियम) कहते हैं। तथा कारखाना (संयंत्र) जहाँ पेट्रोलियम का परिष्करण किया जाता है, रिफाइनरी या पेट्रोलियम रिफाइनरी या पेट्रोलियम परिष्करण संयंत्र या पेट्रोलियम परिष्करणी कहा जाता है।

पेट्रोरसायन (पेट्रोकेमिकल्स)

उपयोगी पदार्थ जिन्हे पेट्रोलियम से प्राप्त किया जाता है, पेट्रोरसायन (पेट्रोकेमिकल्स) कहलाते हैं। पेट्रोरसायन (पेट्रोकेमिकल्स) का उपयोग डिटरजेंट, कृत्रिम रेशे, पॉलीथीन, आदि के निर्माण में होता है। पेट्रोलियम के परिष्करण के समय निकलने वाले हाइड्रोजन गैस का उपयोग उर्वरक जैसे कि यूरिया बनाने में किया जाता है।

चूँकि पेट्रोलियम से हमें बहुत सारे बहूमूल्य पदार्थ प्राप्त होते हैं अत: पेट्रोलियम को प्राय: काला सोना भी कहा जाता है।

प्राकृतिक गैस (नैचुरल गैस)

प्राकृतिक गैस को जमीन के नीचे अवस्थित उसके भंडार से प्राप्त किया जाता है। प्राकृतिक गैस को जमीन में ड्रिल कर पाइप के सहारे निकाला जाता है। प्राकृतिक गैस एक अति महत्वपूर्ण जीवाश्म ईंधन है। इस ईंधन के गैसीय अवस्था में होने के कारण प्राकृतिक गैस को पाईप लाईन के सहारे आसानी से परिवहन किया जा सकता है।

संपीडित प्राकृतिक गैस [कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस (CNG)]

प्राकृतिक गैस को उच्च दाब पर संपीडित प्राकृतिक गैस के रूप में भंडारित किया जाता है। संपीडित प्राकृतिक गैस को शॉर्ट में 'CNG (सीoएनoजीo)' कहा जाता है।

सीएनजी का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसे घरों तथा कारखानों में सीधा जलाया जा सकता है जहाँ इसकी आपूर्ति पाईप लाइन के माध्यम से किया जा सकता है। सीएनजी के पाईप लाइन दिल्ली के कुछ इलाकों, तथा बड़ोदरा आदि शहरों में बिछाया गया है तथा अन्य जगहों पर इसे बिछाने की कार्रवाई की जा रही है।

सीएनजी के उपयोग में काफी कम प्रदूषण होता है इसी कारण से प्राकृतिक गैस (सीएनजी) को स्वच्छ ईंधन कहा जाता है।

प्राकृतिक गैस का उपयोग वाहनों में हो रहा है। प्राकृतिक गैस का उपयोग कई रसायनों और उर्वरकों के औद्योगिक उत्पादन में प्रारम्भिक पदार्थ के रूप में किया जाता है।

भारत में प्राकृतिक गैस त्रिपुरा, राजस्थान, महाराष्ट्र और कृष्णा गोदावरी डेल्टा में पायी जाती है।

कुछ प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं

बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन सीमित तथा मानव द्वारा उपयोग करने से समाप्त होने वाले होते हैं जैसे जीवाश्म ईंधन, वन, खनिज आदि। ये सीमित संसाधन मानव उपयोग से खत्म हो सकते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों को सीमित तथा खत्म होने वाले इसलिए कहा जाता है कि प्राकृतिक द्वारा इनके पुनर्निमाण का प्रक्रम काफी धीमा होता है तथा इसमें लाखों वर्ष लग जाते हैं।

दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन के जलने से काफी प्रदूषण भी फैलता है। जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का भी एक प्रमुख कारणों में से एक है।

अत: यह आवश्यक हो जाता है कि इन ईंधनों का प्रयोग अति आवश्यक स्थिति में ही किया जाय। इन जीवाश्म ईंधनों का कम उपयोग का परिणाम बेहर पर्यावरण के रूप में आता है। साथ ही ग्लोबल वार्मिंग का भी कम खतरा होगा एवं ईंधन की उपलब्धता लम्बे समय तक बनी रहेगी।

भारत की एक प्रमुख संस्था पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ [पेट्रोकेमिकल कंसर्वेशन रिसर्च एशोसियेशन (PCRA)] द्वारा कुछ सलाह दी गयी है जिनका अनुपालन अतिआवश्यक है। पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ की सलाह इस प्रकार हैं:

(a) गाड़ियों को यथासंभव मध्यम तथा समान गति से चलाया जाना चाहिए।

(b) जहाँ प्रतीक्षा करनी है तथा यातायात लाईटों पर गाड़ियों के ईंधन बंद किया जाना चाहिए।

(c) गाड़ियों के टायरों का दबाब सही एवं उचित होना चाहिए।

(d) गाड़ियों की नियमित जाँच एवं अच्छा रखरखाव सुनिश्चित किया जाना चाहिए।




Reference:


(1) By Nandu Chitnis from Pune, India - ONGC Oil and Gas Processing Platform., CC BY 2.0, Link

(2) By TripodStories- AB - Own work, CC BY-SA 4.0, Link