पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण - आठवीं विज्ञान
संरक्षण क्या है?
किसी भी वस्तु को बर्बाद होने से बचाये रखने को संरक्षण (कंजर्वेशन) कहा जाता है। जैसे खाद्य पदार्थ को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने को खाद्य संरक्षण कहते हैं।
उसी तरह वनों को बर्बाद होने से बचाये रखने को वनों का संरक्षण (कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट) कहा जाता है।
वनों का संरक्षण
सभी जानवर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधो पर निर्भर करते हैं। क्योंकि केवल पौधे ही अपना भोजन स्वयं बनाते हैं तथा अन्य जंतु मानव सहित उन बनाये हुए भोजन पर निर्भर होते हैं। इसके साथ ही पौधे ही प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के क्रम में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का अवशोषण करते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़ते हैं। यह ऑक्सीजन सभी जंतु श्वास के रूप में लेते हैं। अत: यदि वन अर्थात पौधे खत्म हो जायेंगे तो जंतुओं का भी अस्तित्व खत्म हो जायेगा। अत: वनों का संरक्षण अत्यावश्यक है। वनों को खत्म होने से बचाये रखना वनों का संरक्षण (कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट) कहलाता है। जंतुओं के प्राकृतिक वास के स्थान, पारितंत्र तथा जैव विविधता बनाये रखने के लिए वनों का संरक्षण आवश्यक है। वनों के संरक्षण के लिए बहुत सारे जैवमंडल आरक्षण क्षेत्र, अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान आदि बनाये गये हैं; जैसे कि काजीरंगा नेशनल पार्क, ग्रेट निकोबार जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र, सतपुरा राष्ट्रीय उद्यान आदि।वनोन्मूलन एवं इसके कारण
बड़े पैमाने पर वनों की कटाई करना वनोन्मूलन (डिफौरेस्टेशन) कहलाता है। इस काटे गये वनों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
वनोन्मूलन के कारण
वनोन्मूलन (डिफौरेस्टेशन) कारणों को मुख्य रूप से दो भागों विभक्त किया जा सकाता है, पहला मानव निर्मित कारण और दूसरा प्राकृतिक कारण।
वनोन्मूलन के मानव निर्मित कारण
(a) कृषि के लिए भूमि प्राप्त करना
जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ उनके भोजन के प्रबंध के लिए कृषि भूमि की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है। इस बढ़ती हुयी कृषि भूमि की माँग को पूरा करने के लिए अधिक क्षेत्रों में वनों की कटाई की जाती है जिससे वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) होता है।
(b) घरों एवं कारखानों का निर्माण
तेजी से बढ़ती हुयी जनसंख्या के आवास और अधिक कल कारखानों के निर्माण की आवश्यकता हो रही है जिसके लिए भूमि की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। इस माँग की पूर्ति वनों की कटाई कर की जाती है। इस अधिक घरों और कारखानों का निर्माण वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) के रूप में परिलक्षित हो रहा है।
(c) फर्नीचर बनाने अथवा लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग
बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए फर्नीचर बनाने के लिए तथा ईंधन के लिए लकड़ी की माँग बढ़ती जा रही है। इस बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) किया जाता है।
वनोन्मूलन के प्राकृतिक कारण
(a) भूकम्प (अर्थ क्वेक)
(b) बाढ़ (फ्लड)
(c) सूखा
भूकम्प, बाढ़ तथा सूखा वनोन्मूलन के कुछ मुख्य कारण है।
संदर्भ: Kumarrakajee / CC BY-SA
वनोन्मूलन के परिणाम
(a) पृथ्वी के ताप स्तर में बृद्धि
पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया में पौधे वातावरण से कार्बन डॉयऑक्साइड की अवशोषण करते हैं। वनोन्मूलन के कारण वायुमंडल में लगातार बढ़ते हुए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए पेड़ पौधों की उपलब्धता कम हो रही। इस कारण से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का घनत्व बढ़ता जा रहा है।
कार्बन डाइऑक्साइड ताप को अवशोषित कर लेता है। बढ़ता हुआ कार्बन डायऑक्साइड का घनत्व भूमंडलीय ताप के स्तर को लगातार बढ़ा रहा है। आज भूमंडलीय तापन (ग्लोबल वार्मिंग) पूरे विश्व के लिए एक मुख्य खतरा बन गया है।
(b) प्रदूषण में बृद्धि
हमारे वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने में पेड़ पौधों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
कई साधन जैसे वाहन, कारखाने आदि में ईंधन के दहन के कारण कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य कई हानिकारक गैस उत्सर्जित होते हैं। वनोन्मूलन के कारण बड़ी मात्रा पर उत्सर्जित हो रहे इस कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए पेड़ पौधों की उपलब्धता कम हो रही है। इस कारण से वायुमंडल में बढ़ते हुए कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
(c) भूगर्भीय जलस्तर का निम्नीकरण
पौधे जल के प्रवाह को कम कर देते हैं, तथा जल को सीधा नदियों तथा समुद्र में जाने से संरक्षित रखते हैं। जल के एक जगह जमा होने से यह धीरे धीरे भूमि में अंत:स्त्रावित हो जाते हैं। जल का भूमि में अंत:स्त्रावण भूगर्भीय जल के स्तर को बढ़ाता है।
वनोन्मूलन के कारण पेड़ पौधों की संख्या के कम होने के कारण वर्षा आदि से मिलने वाला जल अधिक तेजी से नदियों और समुद्रों में प्रवाहित हो जाता है, जिससे इस जल का भूमि में अंत:स्त्रवण कम होता है। इससे भूगर्भीय जल की मात्रा लगातार कम होती जा रही है।
आज भूगर्भीय जल का गिरता हुआ स्तर विश्व के लिए चिंता का विषय बन गया है।
(d) सूखा
वन वाले क्षेत्रों में उपलब्ध पेड़ पौधों की अधिक संख्या उस क्षेत्र में बादल के घनत्व को बढ़ाने में सहायक होते हैं जिससे वनों के क्षेत्रों तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में बर्षा अधिक होती है। वनोन्मूलन से बर्षा में कमी हो जाती है जिससे जल-चक्रण बाधित हो जाता है। कम बर्षा सूखा के रूप में परिलक्षित होता है।
विशेषकर भारत जैसे देश, जहाँ कृषि मुख्यत: वर्षा पर निर्भर होती है, में सूखा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। कम बर्षा होने के कारण सूखा पड़ जाता है जो अनाज के कम पैदावर के रूप में सामने आता है और अनाज की कमी होने की संभावना अधिक हो जाती है।
(e) मरूस्थलीकरण (डिजर्टीफिकेशन)
पेड़ पौधे जल के बहाव को कम कर देते हैं, जिससे मिट्टी का जल के साथ मिलकर कटाव रूक जाता है। पेड़ों की कम संख्या होने के कारण जल तेजी से बहकर नदियों और समुद्रों में जाता है। जल के साथ साथ मिट्टी भी बह जाती है जिससे मिट्टी का अपवर्दन हो जाता है।
मिट्टी के उपरी परत के जल के साथ बह जाने के कारण मिट्टी की निचली सतह उपर आ जाती है, जो कि प्राय: कठोर चट्टानों की होती है। यह की इन निचली परतों में ह्यूमस की मात्रा नहीं के बराबर होती है तथा बंजर होती है।
वनोन्मूलन से पेड़ों की संख्या कम हो जाने के कारण मिट्टी का अपवर्दन बढ़ने लगता है तथा भूमि उत्तरोत्तर मरूस्थल में बदल जाता है। यह प्रक्रिया मरूस्थलीकरण (डिसर्टीफिकेशन) कहलाती है।
वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) मरूस्थलीकरण (डिसर्टीफिकेशन) का एक प्रमुख कारण है।
(f) मिट्टी की ऊपजाउ क्षमता का ह्रास
वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) के कारण मिट्टी के जल धारण की क्षमता कम हो जाती है।
इसके साथ ही पेड़ों की कम संख्या के कारण जल के तेज बहाव के साथ मिट्टी की ऊपरी सतह भी बह जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
इस तरह वनोन्मूलन, मिट्टी की उर्वरा शक्ति का ह्रास होने का एक प्रमुख कारण है।
(g) जंगल से मिलने वाले उत्पादों का ह्रास
हम बहुत सारी सामग्रियाँ वनों से प्राप्त करते हैं जैसे कि लकड़ी, रेसिन इत्यादि। वनोन्मूलन के कारण जंगलों से मिलने वाले उत्पादों की कमी हो जाती है।
वनों एवं जंतुओं का संरक्षण (कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट एंड वाइल्डलाइफ)
वनों और जंतुओं को बर्बाद होने से रोकना वनों एवं जंतुओं का संरक्षण (कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट एंड वाइल्डलाइफ) कहलाता है।
वनों के उन्मूलन से होने वाले भयानक परिणामों को जानने के बाद वनों और जंतुओं का संरक्षण आवश्यक हो जाता है।
पिछले चार से पाँच दशकों से जनसंख्या में लगातार बृद्धि होने के कारण इस बड़ी जनसंख्या के के लिये भोजन, घरों आदि की माँग भी प्रचण्ड रूप से बढ़ी है। इन माँगों को पूरा करने के लिए वनों को खतरनाक रूप से तेजी के काटा जा रहा है जिससे वनों और जंतुओं के अस्तित्व को खतरा होने लगा है। और चूँकि मनुष्य पूरी तरह से पौधों पर निर्भर हैं अत: वनों का तेजी से उन्मूलन मनुष्य जाति के लिए खतरा बन गया है। अत: वनों और जंतुओं का संरक्षण आवश्यक हो गया है।
वनों और जंतुओं के संरक्षण के लिए सरकार ने बहुत सारी नीतियाँ और नियम बनाये हैं। वनों और जंतुओं के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा बहुत सारे वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जैवमंडल संरक्षण आदि चिन्हित तथा स्थापित किये गये हैं।
जैवमंडल (बायोस्फेयर)
"बायोस्फेयर (Biosphere)" शब्द ग्रीस के दो शब्दों "बायोस (Bios) + स्फेरिया (spharia)" से मिलकर बना है। जिसमें "बायोस (bios)" का अर्थ है "जीवन (life)" तथा "स्फेरिया (spharia)" का अर्थ है " ग्लोब या बॉल या मंडल (Globe or ball or sphere)".
अत: पृथ्वी का वह भाग जिसमें सजीव पाये जाते हैं या जो जीवनयापन के योग्य है "बायोस्फेयर (Bioshpere)" कहलाता है। बायोस्फेयर (Bioshpere) में जल और थल के साथ साथ सभी प्रकार के जीवन पाये जाने के सभी स्थान सम्मिलित होते हैं। "बायोस्फेयर (Bioshpere)" को कभी कभी "पारितंत्र [इकोसिस्टम (Ecosystem)]" भी कहा जाता है।
जैवविविधता [बायोडायवरसिटी (Biodiversity)]
पृथ्वी पर जाने वाले विभिन्न जीवों की प्रजातियाँ, उनके पारस्परिक संबंध एवं पर्यावरण से उनके संबंध को बायोडायवर्सिटी या बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (Biodiversity or Biological diversity) कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में अनेक प्रकार के पौधे, जीव और सूक्ष्मजीव जो जैवमंडल संरक्षित क्षेत्रों में पाये जाते हैं को बायोडायवर्सिटी (Biodiversity) को कहा जाता है।
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व)
वन्य जीवन, पौधों और जंतु संसाधनों और उस क्षेत्र के आदिवासियों के पारंपरिक ढ़ंग से जीवनयापन हेतु विशाल संरक्षित क्षेत्र को जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में वैसा क्षेत्र जिसमें जैवमंडल की विविधताओं को संरक्षित किया जाता है, जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) कहलाता है।
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) किसी खास क्षेत्र के जैवमंडल की विविधताओं और उसके परंपराओं को बनाये रखने के लिए सरकार द्वारा चिन्हित किया गया स्थान है।
एक जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) में कई अन्य संरक्षित क्षेत्र हो सकते हैं, जैसे वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, आदि। उदाहरण के लिए पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र , जो कि भारत के राज्य मध्यप्रदेश में अवस्थित है, में एक नेशनल पार्क, जिसका नाम सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और दो वन्यजीव अभयारण्य है जिनके नाम बोरी वन्यजीव अभयारण्य और पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य हैं।
पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व)
पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व) भारत देश के मध्यप्रदेश राज्य में अवस्थित है। यह मध्यप्रदेश के होशंगाबाद, बेतु और छिन्दवाड़ा जिलों में फैला हुआ है।
पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व) का कुल क्षेत्रफल 4926.28 वर्ग किलोमीटर है जो कि 12,17,310 एकड़ क्षेत्रफल के बराबर है।
पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व) में अवस्थित सबसे ऊँची शिखर का नाम धूपगढ़ है।
पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व) में दो अभयारण्य हैं जिनके नाम बोरी अभयारण्य और पचमढ़ी अभयारण्य हैं। इसके अलावे इस क्षेत्र में एक राष्ट्रीय उद्यान भी है जिसका नाम सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।
बोरी अभयारण्य कुल 518 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
और पचमढ़ी अभयारण्य का क्षेत्रफल 461.37 वर्ग किलोमीटर है।
सतपुड़ा नेशनल पार्क कुल 524.37 वर्ग किलोमीटर में फैला है।
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