पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण - आठवीं विज्ञान
वनस्पतिजात और प्राणिजात
किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले वनस्पतियों को उस क्षेत्र का वनस्पतिजात (फ्लोरा) कहा जाता है। तथा किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवों को उस विशेष क्षेत्र का प्राणिजात (फौना) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए साल के बृक्ष, टीक, जंगली आम, जामुन, फर्न आदि पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र के वनस्पतिजात हैं।
तथा चिंकारा, नील गाय, बार्किंग हिरण, चीतल, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भेड़िया, इत्यादि पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र में पाये जाने वाले प्राणिजात (फौना) हैं।
विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज)
पौधों और जंतुओं की वह स्पीशीज जो किसी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट रूप से पायी जाती है, उसे विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में वैसे पौधों और जीवों की प्रजातियाँ जो केवल किसी खास क्षेत्र में ही पायी जाती हैं और दूसरे क्षेत्रों में नहीं, उस क्षेत्र की विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) कही जाती हैं।
उदाहरण: साल के बृक्ष, जंगली आम, फर्न आदि पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) है।
और सुनहरे पूँछों वाली विशाल गिलहरी, जंगली कुत्ता, चीअल, भेड़िया, तेंदुआ आदि पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) है।
बढ़ती हुयी जनसंख्या और नयी स्पीशीज के प्रवेश से विशेष क्षेत्री स्पीशीज के प्राकृतिक आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है तथा इनके अस्तित्व को भी खतरा हो सकता है।
स्पीशीज (Species)
स्पीशीज सजीवों की समष्टि का वह समूह है जो एक दूसरे से अंतर्जनन करने में सक्षम होते हैं। इसका अर्थ है कि एक जाति के सदस्य केवल उनकी जाति के सदस्यों के साथ, अन्य जाति के सदस्यों को छोड़कर, जननक्षम संतान उत्पन्न कर सकते हैं, स्पीशीज कहलाते हैं। एक जाति के सदस्यों में समान लक्षण पाये जाते हैं।
वन्यजीव अभयारण्य
एक बड़ा क्षेत्र जहाँ जंतु और उसके आवास किसी भी प्रकार के विक्षोभ से सुरक्षित रहते हैं, को वन्यजीव अभयारण्य कहा जाता है। एक वन्यजीव अभयारण्य में किसी भी जानवरों का शिकार, कृषि, चारागाह, बृक्षों की कटाई, खाल प्राप्त करने हेतु शिकार (पोचिंग) निषिद्ध रहते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण संकटापन्न वन्य जंतु जैसे काले हिरण, श्वेत आँखों वाले हिरण, हाथी, सुनहरी बिल्ली, गुलाबी सिर वाली बतख, घड़ियाल, अजगर, गेंडा, इत्यादि इन वन्यप्राणी अभयारण्यों में सुरक्षित रहते हैं।
लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है वहाँ आसपास रहने वाले कुछ लोगों द्वारा अभयारण्यों में जाकर अवैध रूप से जानवरों का शिकार तथा बृक्षों की कटाई करते हैं, जो कि काफि दुर्भाग्यपूर्ण हैं। लोगों द्वारा अभयारण्यों का भी अतिक्रमण कर उएं नष्ट कर देते हैं जिससे वहाँ रहने वाले जीव जंतु सुरक्षित नहीं पाते हैं।
भारतीय अभयारण्यों में अनूठे दृश्यभूमि, बड़े समतल वन, पहाड़ी वन तथा बड़ी नदियों के डेल्टा की झाडियाँ हैं।
राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क)
राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) वन्य जंतुओं के लिए आरक्षित वैसा क्षेत्र है जहाँ वे स्वतंत्र रूप से आवास एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित है तथा यह भारत का पहला अभयारण्य है। इस राष्ट्रीय उद्यान में सगौन (टीक) सर्वोत्तम किस्म पाये जाते हैं।
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान में अवस्थित चट्टानों में मनुष्य की गतिविधियों के प्रागैतिहासिक प्रमाण भी मिलते हैं। इन चट्टानों के आवासों में कुछ पेंटिंग कलाकृतियाँ भी मिलती हैं। ये प्रमाण बतलाते हैं कि यह जगह प्रागैतिहासिक मानवों के आवास रहे थे। इस शरणस्थल में मिले प्रमाणों से हमें प्रागैतिहासिक आदिमानव के जीवनयापन बारे में पता चलता है। पचमढ़ी जैव मंडल संरक्षित क्षेत्र में अबतक 55 चट्टान आवासों की पहचान की जा चुकी है।
आज भी अनेक आदिवासी इन जंगलों में रहते हैं।
संदर्भ: BSSKrishnaS / CC BY-SA
बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर)
बाघ की प्रजाति को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार ने अप्रैल 1973 में एक प्रोग्राम शुरू किया जो बाघ परियोजना या ब्याघ्र परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) के नाम से जाना जाता है।
इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य देश में बाघ की प्रजातियों को संरक्षित एवं संवर्धन किया जाना है।
बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) के शुरू किये जाने के वर्ष में इसकी संख्या जहाँ 9 (नौ) थी अब यह बढ़कर 50 (पचास) गयी है। बाघ परियोजना के लिए चिन्हित किये गये वनों को बाघ आरक्षित क्षेत्र कहा जाता है। भारत में बाघ परियोजना के लिए चिन्हित या संरक्षित किये गये वनों का क्षेत्रफल कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 2.21% है।
सतपुरा बाघ आरक्षित क्षेत्र भारत के मध्यप्रदेश राज्य में अवस्थित है।
संकटापन्न जंतु (इनडेंजर्ड एनिमल्स)
वे जंतु जिनकी संख्या एक निर्धारित स्तर से कम होती जा रही है और वे विलुप्त हो सकते हैं, को संकटापन्न जंतु (इनडेंजर्ड एनिमल) कहा जाता है।
उदाहरण
बाघ, गैंडा, शेर, जंगली भैंसा, बरासिंगा, समुद्री कछुआ, बनमानुष (आरंगुटान), सुमात्रा के हाथी, गंजा ईगल, आदि भारत में पाये जाने वाले कुछ ऐसे जंतु हैं जिनकी प्रजातियाँ आज संकट में हैं अर्थात ये संकटापन्न जीव हैं। यदि इनकी प्रजातियों का संरक्षण एवं संवर्धन नहीं किया गया तो ये विलुप्त हो सकते हैं।
डायनोसोर आज विश्व से विलुप्त हो गये हैं।
कुछ जानवरों की प्रजातियाँ इसलिये संकट में आ गयी हैं क्योंकि इनके प्राकृतिक आवास में व्यवधान उत्पन्न किया जा रहा है जिससे इनके विलुप्त होने का खतरा अधिक हो गया है।
बड़े जंतुओं की अपेक्षा छोटे जीव जंतु की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा अधिक है। क्योंकि छोटे जंतुओं यथा साँप, बिच्छू, चूहे, छिपकिली, कॉकरोच, मेढ़क इत्यादि को बेरहमी से मार दिया जाता है।
छोटे जीव जंतुओं का आकार छोटा होने के बाबजूद भी पारितंत्र में उनके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
वास्तव में छोटे बड़े सभी जीव जंतु आहार जाल एवं आहार श्रृंखला के भाग हैं। उनमें से किसी खास के खत्म हो जाने से आहार जाल और आहार श्रृंखला बाधित हो सकता है जो सभी जंतुओं के अस्तित्व लिए खतरनाक होगा।
उदाहरण के लिए 1958 ईo के अंतिम महीने से चीन में सरकार ने चिड़ियों को विशेषकर गोरैया को मारना शुरू किया। चीन की सरकार का मानना था कि गोरैया उनके देश में होने वाले अनाज का एक बड़ा भाग खा जाती है; और यदि गोरैया को मार दिया जाय तो उसके द्वारा खा जाने वाले अनाज की मात्रा को बचाकर उससे बहुत सारे मनुष्यों का पेट भरा जा सकता है। लेकिन चीन की सरकार और लोग यह भूल गये कि गोरैया और अन्य चिड़िया कीटों को भी खाती है।
गोरैया को मारने के प्रोग्राम को शुरू किये जाने के दो वर्ष के भीतर ही गोरैया की बड़ी संख्या को मार दिया गया। गोरैया के खत्म हो जाने के दो वर्ष के अंदर ही चीन में कीट की संख्या में अप्रत्याशित बृद्धि हो गयी जिसके कारण चीन में भारी आकाल पड़ गया। चीन के इस भयानक आकाल के कारण लगभग डेढ़ से साढ़े चार करोड़ लोग अनाज कमी से भूख के कारण मारे गये। इस आकाल से सरकार की नींद खुली, उसे गोरैया को मारने की गलती का अहसास हुआ और गोरैया की संख्या बढ़ाने के लिए लगगभ 250000 गोरैये को आयात किया गया।
इस घटना से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन के लिए पारितंत्र को बनाये और बचाये रखने के लिए सभी जीव जंतुओं के अस्तित्व को बचाये रखना आवश्यक है।
संदर्भ: Utkarsh22december / CC BY-SA
पारितंत्र (इकोसिस्टम)
किसी क्षेत्र के सभी पौधे, प्राणि एवं सूक्ष्मजीव और अजैव घटकों जैसे जलवायु, भूमि, नदी, डेल्टा, इत्यादि संयुक्त रूप से किसी पारितंत्र का निर्माण करते हैं।
रेड डाटा पुस्तक (रेड डाटा बुक)
वह पुस्तक जिसमें सभी संकटापन्न स्पीशीज का रिकार्ड रखा जाता है, रेड डाटा पुस्तक (रेड डाटा बुक) कहा जाता है। पौधे, जंतुओं और अन्य स्पीशीज के लिए अलग अलग रेड डाटा पुस्तकें हैं।
वर्ष 1964 में संकटापन्न स्पीशीज का अभिलेख रखने के लिए आइoयूoसीoएनo [इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) (International Union for Conservation of Nature)] की स्थापना की गयी। आइoयूoसीoएनo द्वारा बनाये जाने वाले लिस्ट को (आइoयूoसीoएनo) रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज या (आइoयूoसीoएनo) रेड लिस्ट या रेड डाटा लिस्ट कहा जाता है। आइoयूoसीoएनo द्वारा बनाये जाने वाले इस लिस्ट में सभी संकटापन्न स्पीशीज को रखा जाता है ताकि उनका संरक्षण किया जाता है।
प्रवास (माइग्रेशन)
किसी स्थान विशेष पर बहुत अधिक समय तक अधिक शीत ऋतु रहता है जिसके कारण वह समय पक्षियों के जीवनयापन हेतु अनुकूल नहीं रह जाता है। इस कारण से बहुत सारे पक्षी सुदूर क्षेत्रों तक उड़ कर आते है। ये सुदूरवर्ती जगहों पर जीवनयापन करने लिए खास समय तक के लिए आने वाले पक्षियों को प्रवासी पक्षी कहलाते हैं।
भारत में बहुत सारे पक्षी अभयारण्य (बर्ड सैंचुअरीज) हैं, जिसमें शीत ऋतु में आने वाले बहुत सारे प्रवासी पक्षियों को देखे जा सकते हैं।
कागज का पुन: चक्रण (रिसाइकलिंग ऑफ पेपर)
कागज को बृक्षों से बनाया जाता है। एक टन कागज के उत्पादन में लगभग 17 विकसित बृक्षों को काटा जाता है। कागज की बढ़ती माँग को पूरा करने के भारी मात्रा में बृक्षों का काटा जाना भी वनोन्मूलन के मुख्य कारणों में से एक है। अत: वनोन्मूलन को रोकने के लिए हमें कागज को बचाना चाहिये। साथ ही कागज का पुन: चक्रण किया जाना चाहिए।
हमें कागज का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। कागज का न्यायसंगत उपयोग कर हम कागज को बचा सकते हैं तथा वनोन्मूलन को रोक सकते हैं।
कागज के न्यायसंगत उपयोग के साथ कागज का पुन: चक्रण भी किया जाना चाहिए। कागज के पुन: चक्रण के लिए थ्री "आर" सिद्धांत का उपयोग किया जा सकता है। थ्री "आर" के सिद्धांत में तीनों "आर" रिड्यूस (Reduce), रीयूज (Reuse), और रीसायकल (Recycle) है। यहाँ रिड्यूस (Reduce) का अर्थ है कागज का न्यायसंगत उपयोग कर उसकी खपत को कम करना। रीयूज (Reuse) का अर्थ है एक बार उपयोग किये गये कागजों का पुन: उपयोग किया जाना, और रीसायकल (Recycle) का अर्थ है उपयोग किये गये कागज का पु: चक्रण किया जाना।
अत: थ्री "आर" सिद्धांत का उपयोग कर हम कागज को बचा सकते हैं जिसे वनोन्मूलन को कम किया जा सकता है या रोका जा सकता है।
एक कागज को कम से कम पाँच से छ: बार पुन: चक्रित किया जा सकता है। यदि हममें से प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन एक कागज को बचाएँ तो एक वर्ष में हम कई बृक्षों को बचा सकते हैं।
इसके साथ ही कागज को बचा कर हम उसे बनाने में होने वाले हानिकारक रसायनों के उपयोग से होनेवाले हानिकारक प्रभावों से भी बचा जा सकता है।
पुनर्वनरोपण (रीफॉरेस्टेशन)
काटे गये बृक्षों के स्थान पर उसी प्रजाति के नये बृक्षों का लगाये जाने की प्रक्रिया या नये वनों के विकसित करने को पुनर्वनरोपण कहा जाता है।
हमें कम से कम उतने बृक्ष तो लगाने ही चाहिए जितने हम काटते हैं। पुनर्वनरोपण के प्राकृतिक तरीके भी हो सकते हैं। इसके लिए यदि वनोन्मूलित क्षेत्र को अबाधित छोड़ दिया जाय तो यह स्वत: पुनर्स्थापित हो जाता है।
पुनर्वनरोपण वनोन्मूलन को कम करने या वनो को बचाने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है।
आगे आनेवाली पीढ़ी के लिए यदि हमें वन सम्पदा को बनाये रखना है तो वनोन्मूलन को रोकना होगा और पुनर्वनरोपण पर बल देने की आवश्यकता है। यदि वन सम्पदा को संरक्षित नहीं किया गया तो पृथ्वी पर रहने वाले जीवन को बचाना असम्भव हो जायेगा।
वन (संरक्षण) अधिनियम
पूरे विश्व में वनों के संरक्षण हेतु वन संरक्षण अधिनियम बनाये गये हैं। भारत में वनों को संरक्षित करने के लिए बनाये गये नियम को भारत वन (संरक्षण) अधिनियम कहा जाता है। इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में वनों को संरक्षित एवं संवर्धित करना है।
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