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पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण - आठवीं विज्ञान

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सारांश


संरक्षण [कंजर्वेशन (Conservation)]

किसी भी वस्तु को बर्बाद होने से बचाने को संरक्षण कहा जाता है। परंतु इस अध्याय में संरक्षण का पर्याय वनों एवं जंतुओं के संरक्षण से है। जंतुओं के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए उनके प्राकृतिक बास स्थान, पारितंत्र और पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक हो जाता है।

वनोन्मूलन और इसके कारण [डिफॉरेस्टेशन एंड इट्स कॉजेज (Deforestation and Its Causes)]

बड़े क्षेत्र में बृक्षों की बृहत पैमाने पर कटाई कर जमीन को विभिन्न उपयोग हेतु साफ किया जाना वनोन्मूलन [डिफॉरेस्टेशन (Deforestation)] कहलाता है।

वनोन्मूलन के कारण

वनोन्मूलन (डिफौरेस्टेशन) कारणों को मुख्य रूप से दो भागों विभक्त किया जा सकाता है, पहला मानव निर्मित कारण और दूसरा प्राकृतिक कारण।

वनोन्मूलन के मानव निर्मित कारण

(a) कृषि के लिए भूमि प्राप्त करना

(b) घरों एवं कारखानों का निर्माण

(c) फर्नीचर बनाने अथवा लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग

वनोन्मूलन के प्राकृतिक कारण

(a) भूकम्प (अर्थ क्वेक)

(b) बाढ़ (फ्लड)

(c) सूखा

भूकम्प, बाढ़ तथा सूखा वनोन्मूलन के कुछ मुख्य कारण है।

वनोन्मूलन के परिणाम

(a) पृथ्वी के ताप स्तर में बृद्धि

वनोन्मूलन होने से बृक्षों की संख्या कम हो रही है। इस कारण से विभिन्न संसाधनों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साड का अवशोषण नहीं हो पाता है और कार्बन डायऑक्साइड वायुमंडल में बने रहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड ताप को बाहर नहीं जाने देता है जिससे पृथ्वी के ताप के स्तर में बृद्धि हो रही है।

अत: वनोन्मूलन पृथ्वी के ताप स्तर में बृद्दि का एक प्रमुख कारण है। पृथ्वी के ताप स्तर में बृद्दि को वैश्विक तापन [ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)] कहा जाता है।

(b) प्रदूषण में बृद्धि

हमारे वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने में पेड़ पौधों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

वनोन्मूलन के कारण पेड़ पौधे कम हो रहे हैं जिससे प्रदूषण में लगातार बृद्धि हो रही है।

(c) भूगर्भीय जलस्तर का निम्नीकरण

पौधे जल के प्रवाह को कम कर देते हैं, तथा जल को सीधा नदियों तथा समुद्र में जाने से संरक्षित रखते हैं। जल के एक जगह जमा होने से यह धीरे धीरे भूमि में अंत:स्त्रावित हो जाते हैं। जल का भूमि में अंत:स्त्रावण भूगर्भीय जल के स्तर को बढ़ाता है।

वनोन्मूलन के कारण पेड़ पौधों की संख्या के कम होने के कारण वर्षा आदि से मिलने वाला जल अधिक तेजी से नदियों और समुद्रों में प्रवाहित हो जाता है, जिससे इस जल का भूमि में अंत:स्त्रवण कम होता है। इससे भूगर्भीय जल की मात्रा लगातार कम होती जा रही है।

आज भूगर्भीय जल का गिरता हुआ स्तर विश्व के लिए चिंता का विषय बन गया है।

संदर्भ: Pushkarv / CC BY-SA

(d) सूखा

वन वाले क्षेत्रों में उपलब्ध पेड़ पौधों की अधिक संख्या उस क्षेत्र में बादल के घनत्व को बढ़ाने में सहायक होते हैं जिससे वनों के क्षेत्रों तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में बर्षा अधिक होती है। वनोन्मूलन से बर्षा में कमी हो जाती है जिससे जल-चक्रण बाधित हो जाता है। कम बर्षा सूखा के रूप में परिलक्षित होता है।

कम बर्षा होने के कारण सूखा पड़ जाता है जो अनाज के कम पैदावर के रूप में सामने आता है और अनाज की कमी होने की संभावना अधिक हो जाती है।

(e) मरूस्थलीकरण (डिजर्टीफिकेशन)

पेड़ों की कम संख्या होने के कारण जल तेजी से बहकर नदियों और समुद्रों में जाता है। जल के साथ साथ मिट्टी भी बह जाती है जिससे मिट्टी का अपवर्दन हो जाता है।

मिट्टी के उपरी परत के जल के साथ बह जाने के कारण मिट्टी की निचली सतह उपर आ जाती है, जो कि प्राय: कठोर चट्टानों की होती है। यह की इन निचली परतों में ह्यूमस की मात्रा नहीं के बराबर होती है तथा बंजर होती है।

अत: वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) मरूस्थलीकरण (डिसर्टीफिकेशन) का एक प्रमुख कारण है।

(f) मिट्टी की ऊपजाउ क्षमता का ह्रास

वनोन्मूलन (डिफॉरेस्टेशन) के कारण मिट्टी के जल धारण की क्षमता कम हो जाती है।

इसके साथ ही पेड़ों की कम संख्या के कारण जल के तेज बहाव के साथ मिट्टी की ऊपरी सतह भी बह जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।

इस तरह वनोन्मूलन, मिट्टी की उर्वरा शक्ति का ह्रास होने का एक प्रमुख कारण है।

(g) जंगल से मिलने वाले उत्पादों का ह्रास

हम बहुत सारी सामग्रियाँ वनों से प्राप्त करते हैं जैसे कि लकड़ी, रेसिन इत्यादि। वनोन्मूलन के कारण जंगलों से मिलने वाले उत्पादों की कमी हो जाती है।

पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण

पौधे एवं जंतुओं को बचाये रखने के लिए किये गये उपाय पौधे एवं जंतुओं का संरक्षण कहलाता है।

पौधे एवं जंतुओं के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा कई नियम और नीतियां बनायी गयी हैं। जैसे कि वन्यजीव अभयारण्य, नेशनल पार्क, जैवमंडल संरक्षित क्षेत्र, आदि चिन्हित किये गये हैं और बनाये गये हैं।

जैवमंडल [बायोस्फेयर (Biosphere)]

"बायोस्फेयर (Biosphere)" शब्द ग्रीस के दो शब्दों "बायोस (Bios) + स्फेरिया (spharia)" से मिलकर बना है। जिसमें "बायोस (bios)" का अर्थ है "जीवन (life)" तथा "स्फेरिया (spharia)" का अर्थ है " ग्लोब या बॉल या मंडल (Globe or ball or sphere)".

अत: पृथ्वी का वह भाग जिसमें सजीव पाये जाते हैं या जो जीवनयापन के योग्य है "बायोस्फेयर (Bioshpere)" कहलाता है। बायोस्फेयर (Bioshpere) में जल और थल के साथ साथ सभी प्रकार के जीवन पाये जाने के सभी स्थान सम्मिलित होते हैं। "बायोस्फेयर (Bioshpere)" को कभी कभी "पारितंत्र [इकोसिस्टम (Ecosystem)]" भी कहा जाता है।

जैवविविधता [बायोडायवरसिटी (Biodiversity)]

पृथ्वी पर जाने वाले विभिन्न जीवों की प्रजातियाँ, उनके पारस्परिक संबंध एवं पर्यावरण से उनके संबंध को बायोडायवर्सिटी या बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (Biodiversity or Biological diversity) कहा जाता है।

जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व)

वन्य जीवन, पौधों और जंतु संसाधनों और उस क्षेत्र के आदिवासियों के पारंपरिक ढ़ंग से जीवनयापन हेतु विशाल संरक्षित क्षेत्र को जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) कहा जाता है।

जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) किसी खास क्षेत्र के जैवमंडल की विविधताओं और उसके परंपराओं को बनाये रखने के लिए सरकार द्वारा चिन्हित किया गया स्थान है।

एक जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) में कई अन्य संरक्षित क्षेत्र हो सकते हैं, जैसे वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, आदि। उदाहरण के लिए पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र , जो कि भारत के राज्य मध्यप्रदेश में अवस्थित है, में एक नेशनल पार्क, जिसका नाम सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और दो वन्यजीव अभयारण्य है जिनके नाम बोरी वन्यजीव अभयारण्य और पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य हैं।

पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व)

पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (पचमढ़ी बायोडायवरसिटी रिजर्व) भारत देश के मध्यप्रदेश राज्य में अवस्थित है। यह मध्यप्रदेश के होशंगाबाद, बेतु और छिन्दवाड़ा जिलों में फैला हुआ है।

संदर्भ : Suvro Banerjee / CC BY-SA

वनस्पतिजात एवं प्राणिजात [फ्लोरा एंड फौना (Flora and Fauna)]

किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले वनस्पतियों को उस क्षेत्र का वनस्पतिजात (फ्लोरा) कहा जाता है। तथा किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवों को उस विशेष क्षेत्र का प्राणिजात (फौना) कहा जाता है।

विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज)

पौधों और जंतुओं की वह स्पीशीज जो किसी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट रूप से पायी जाती है, उसे विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) कहा जाता है।

उदाहरण: साल के बृक्ष, जंगली आम, फर्न आदि पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) है।

और सुनहरे पूँछों वाली विशाल गिलहरी, जंगली कुत्ता, चीअल, भेड़िया, तेंदुआ आदि पचमढ़ी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की विशेष क्षेत्री प्रजाति (एंडेमिक स्पीशीज) है।

स्पीशीज (Species)

स्पीशीज सजीवों की समष्टि का वह समूह है जो एक दूसरे से अंतर्जनन करने में सक्षम होते हैं। इसका अर्थ है कि एक जाति के सदस्य केवल उनकी जाति के सदस्यों के साथ, अन्य जाति के सदस्यों को छोड़कर, जननक्षम संतान उत्पन्न कर सकते हैं, स्पीशीज कहलाते हैं। एक जाति के सदस्यों में समान लक्षण पाये जाते हैं।

वन्यजीव अभयारण्य

एक बड़ा क्षेत्र जहाँ जंतु और उसके आवास किसी भी प्रकार के विक्षोभ से सुरक्षित रहते हैं, को वन्यजीव अभयारण्य कहा जाता है। एक वन्यजीव अभयारण्य में किसी भी जानवरों का शिकार, कृषि, चारागाह, बृक्षों की कटाई, खाल प्राप्त करने हेतु शिकार (पोचिंग) निषिद्ध रहते हैं।

राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क)

राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) वन्य जंतुओं के लिए आरक्षित वैसा क्षेत्र है जहाँ वे स्वतंत्र रूप से आवास एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।

सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित है तथा यह भारत का पहला अभयारण्य है। इस राष्ट्रीय उद्यान में सगौन (टीक) सर्वोत्तम किस्म पाये जाते हैं।

बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर)

बाघ की प्रजाति को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार ने अप्रैल 1973 में एक प्रोग्राम शुरू किया जो बाघ परियोजना या ब्याघ्र परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) के नाम से जाना जाता है।

इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य देश में बाघ की प्रजातियों को संरक्षित एवं संवर्धन किया जाना है।

सतपुरा बाघ आरक्षित क्षेत्र भारत के मध्यप्रदेश राज्य में अवस्थित है।

संकटापन्न जंतु (इनडेंजर्ड एनिमल्स)

वे जंतु जिनकी संख्या एक निर्धारित स्तर से कम होती जा रही है और वे विलुप्त हो सकते हैं, को संकटापन्न जंतु (इनडेंजर्ड एनिमल) कहा जाता है।

उदाहरण

बाघ, गैंडा, शेर, जंगली भैंसा, बरासिंगा, समुद्री कछुआ, बनमानुष (आरंगुटान), सुमात्रा के हाथी, गंजा ईगल, आदि भारत में पाये जाने वाले कुछ ऐसे जंतु हैं जिनकी प्रजातियाँ आज संकट में हैं अर्थात ये संकटापन्न जीव हैं। यदि इनकी प्रजातियों का संरक्षण एवं संवर्धन नहीं किया गया तो ये विलुप्त हो सकते हैं।

पारितंत्र (इकोसिस्टम)

किसी क्षेत्र के सभी पौधे, प्राणि एवं सूक्ष्मजीव और अजैव घटकों जैसे जलवायु, भूमि, नदी, डेल्टा, इत्यादि संयुक्त रूप से किसी पारितंत्र का निर्माण करते हैं।

रेड डाटा पुस्तक (रेड डाटा बुक)

वह पुस्तक जिसमें सभी संकटापन्न स्पीशीज का रिकार्ड रखा जाता है, रेड डाटा पुस्तक (रेड डाटा बुक) कहा जाता है। पौधे, जंतुओं और अन्य स्पीशीज के लिए अलग अलग रेड डाटा पुस्तकें हैं।

वर्ष 1964 में संकटापन्न स्पीशीज का अभिलेख रखने के लिए आइoयूoसीoएनo [इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) (International Union for Conservation of Nature)] की स्थापना की गयी। आइoयूoसीoएनo द्वारा बनाये जाने वाले लिस्ट को (आइoयूoसीoएनo) रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज या (आइoयूoसीoएनo) रेड लिस्ट या रेड डाटा लिस्ट कहा जाता है। आइoयूoसीoएनo द्वारा बनाये जाने वाले इस लिस्ट में सभी संकटापन्न स्पीशीज को रखा जाता है ताकि उनका संरक्षण किया जाता है।

संदर्भ: Mdk572 / CC BY-SA

प्रवास (माइग्रेशन)

किसी स्थान विशेष पर बहुत अधिक समय तक अधिक शीत ऋतु रहता है जिसके कारण वह समय पक्षियों के जीवनयापन हेतु अनुकूल नहीं रह जाता है। इस कारण से बहुत सारे पक्षी सुदूर क्षेत्रों तक उड़ कर आते है। ये सुदूरवर्ती जगहों पर जीवनयापन करने लिए खास समय तक के लिए आने वाले पक्षियों को प्रवासी पक्षी कहलाते हैं।

कागज का पुन: चक्रण (रिसाइकलिंग ऑफ पेपर)

कागज को बृक्षों से बनाया जाता है। एक टन कागज के उत्पादन में लगभग 17 विकसित बृक्षों को काटा जाता है। कागज की बढ़ती माँग को पूरा करने के भारी मात्रा में बृक्षों का काटा जाना भी वनोन्मूलन के मुख्य कारणों में से एक है। अत: वनोन्मूलन को रोकने के लिए हमें कागज को बचाना चाहिये। साथ ही कागज का पुन: चक्रण किया जाना चाहिए।

कागज के न्यायसंगत उपयोग के साथ कागज का पुन: चक्रण भी किया जाना चाहिए। कागज के पुन: चक्रण के लिए थ्री "आर" सिद्धांत का उपयोग किया जा सकता है। थ्री "आर" के सिद्धांत में तीनों "आर" रिड्यूस (Reduce), रीयूज (Reuse), और रीसायकल (Recycle) है। यहाँ रिड्यूस (Reduce) का अर्थ है कागज का न्यायसंगत उपयोग कर उसकी खपत को कम करना। रीयूज (Reuse) का अर्थ है एक बार उपयोग किये गये कागजों का पुन: उपयोग किया जाना, और रीसायकल (Recycle) का अर्थ है उपयोग किये गये कागज का पु: चक्रण किया जाना।

अत: थ्री "आर" सिद्धांत का उपयोग कर हम कागज को बचा सकते हैं जिसे वनोन्मूलन को कम किया जा सकता है या रोका जा सकता है।

पुनर्वनरोपण (रीफॉरेस्टेशन)

काटे गये बृक्षों के स्थान पर उसी प्रजाति के नये बृक्षों का लगाये जाने की प्रक्रिया या नये वनों के विकसित करने को पुनर्वनरोपण कहा जाता है।

पुनर्वनरोपण वनोन्मूलन को कम करने या वनो को बचाने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है।

वन (संरक्षण) अधिनियम

पूरे विश्व में वनों के संरक्षण हेतु वन संरक्षण अधिनियम बनाये गये हैं। भारत में वनों को संरक्षित करने के लिए बनाये गये नियम को भारत वन (संरक्षण) अधिनियम कहा जाता है। इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में वनों को संरक्षित एवं संवर्धित करना है।




Reference: