फसल उत्पादन एवं प्रबंध - आठवीं विज्ञान
कृषि पद्धतियाँ
पृथ्वी पर एक विशाल जनसंख्या रहती है, जिसको भोजन प्रदान करने के लिए भोज्य पदार्थों का नियमित उत्पादन, उचित प्रबंधन एवं वितरण आवश्यक है।
फसल क्या है?
किसी स्थान पर जब बड़े पैमाने एक ही किस्म के पौधे उगाये जाते हैं, तो उसे फसल कहते हैं, जैसे गेहूँ का फसल, धान का फसल, आलू की फसल, गोभी का फसल इत्यादि।
Figure: Women Planting rice in Nepal
Figure Reference: By Skrissh2013 - Own work, CC BY-SA 3.0, Link
फसलों का वर्गीकरण
भारत एक बहुत विशाल तथा विविधताओं वाला देश है। भारत का एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र से बिल्कुल भिन्न है। कहीं की जलवायु काफी ठंढ़ी है, तो कहीं काफी गर्मी होती है। भारत के चेरापूँजी में विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है। राजस्थान राज्य का अधिकांश भाग रेगिस्तान है, तो भारत के कुछ स्थान पठारी हैं। अत: देश के विभिन्न भागों में विविध प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
परंतु इन विविधता के बाबजूद फसलों को उनके उगाने के मौसम के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है: खरीफ फसल तथा रब्बी फसल।
(i) खरीफ फसल
वर्षा ऋतु में लगाये जाने वाले फसलों को खरीफ फसल कहा जाता है। दूसरे शब्दों खरीफ फसल को वर्षा ऋतु में बोया जाता है। जैसे धान, मक्का, सोयाबीन, कपास आदि खरीफ फसलें हैं।
भारत में वर्षा ऋतु सामान्यत: जून से सितम्बर तक होती है। अत: खरीफ के अंतर्गत वे फसलें आती हैं जिन्हें पानी की काफी आवश्यकता होती है।
(ii) रबी फसल
फसलें जिन्हें शीत ऋतु (जाड़ा) में उगाई जाती हैं, रबी फसल कहलाती है। शीत ऋतु में वे हीं फसलें उगाई जाती हैं जिन्हें कम तापमान तथा काम पानी की आवश्यकता होती है। जैसे गेहूँ, चना, मटर, सरसों, आदि रबी फसल का कुछ उदाहरण हैं।
आधारिक फसल पद्धतियाँ
फसल को उगाने से लेकर तैयार करने और भंडारण तक किये जाने वाले कार्यों को फसल पद्धतियां या कृषि पद्धतियां कहलाती हैं।
चूँकि ये कार्य सभी प्रकार के फसलों के लिए किए जाते हैं, अत: इन्हें आधारिक कृषि पद्धतियाँ या आधारिक फसल पद्धतियाँ कहलाती हैं।
आधारिक कृषि पद्धतियाँ या आधारिक फसल पद्धतियाँ मुख्य रूप से निम्नांकित हैं
(1) मिट्टी तैयार करना
(2) बुवाई
(3) खाद एवं उर्वरक देना
(4) सिंचाई
(5) खरपतवार से सुरक्षा
(6) कटाई
(7) भण्डारण
(1) मिट्टी तैयार करना
खेती के लिए सबसे पहले मिट्टी को तैयार करना होता है।
मिट्टी की तैयारी को खेत की जुताई कहते हैं।
जुताई में खेत की मिट्टी को खोदकर ढ़ीला अर्थात पोला या भुरभुरा करना होता है तथा जुताई के बाद मिट्टी को बराबर भी करना होता है।
खेत को जोतने से मिट्टी ढ़ीली तथा भुरभुरी हो जाती है। जुताई में अवांछनीय पौधे जैसे कि खर पतवार आदि जड़ से उखड़ जाते हैं। जड़ से उखड़ जाने के कारण ये पौधे धूप में सूख जाते हैं।
मिट्टी को ढ़ीला या पोला करने का कारण
मिट्टी को पोला करने से फसल के पौधों की जड़ें आसानी से गहराई तक जा सकती हैं।
पोली मिट्टी में गहराई में धँसी जड़ें भी सरलता से श्वसन कर सकती है।
मिट्टी में रहने वाले केंचुए और सूक्ष्मजीवी किसानों के मित्र हैं। ये मिट्टी को पलटकर पोला तथा ह्युमस बनाते हैं। पोली मिट्टी इन केंचुए और सूक्ष्मजीवी की बृद्धि में सहायक होती है।
मिट्टी में पाये जाने वाले मृत पौधे एवं मृत जीवों के अपघटन के क्रम में मुक्त होने वाले पोषक तत्व मिट्टी में रहते हैं। चूँकि मिट्टी उपरी परत के कुछ सेंटीमीटर तक ही पौधों की बृद्धि में सहायक होते हैं, अत: मिट्टी को उलटने पलटने तथा पोला करने ने ये पोषक तत्व उपर आ जाते हैं। पोषक तत्वों के उपर आ जाने से पौधे उन पोषक तत्वों का उपयोग आसानी से कर पाते हैं।
मिट्टी की जुताई तथा पोला करने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले कृषि औजार
मिट्टी जुताई तथा उसे पोला करने के लिए परम्परागत तथा आधुनिक दोनों प्रकार के उपकरण का उपयोग प्रचलित है। इन उपकरणों में हल, कुदाली, कल्टीवेटर आदि प्रमुख हैं।
(क) हल
हल जुताई का एक परम्परागत उपकरण है। हल का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है।
हल का मुख्य रूप से लकड़ी का बना होता है। हल के निचले सिरे पर लोहे का एक तिकोना ब्लेड लगा होता है, जिसे फाल कहते है। तथा एक लम्बा लकड़ी का सिरा, जिसे हल शाफ्ट कहते हैं, लगा होता है।
हल को दो बैलों तक एक आदमी की मदद से चलाया जाता है।
हल के साफ्ट को बैलों के कंधों से बांध दिया जाता है, तथा फाल उससे लगे लकड़ी के हैंडल से पकड़कर जमीन में गड़ाकर रखा जाता है। बैलों के द्वारा खींचे जाने पर फाल (लोहे का ब्लेड) मिट्टी को खुरचकर पलटने लगता है। तथा इस तरह धीरे धीरे पूरे खेत की जुताई की जाती है।
(ख) कुदाली
कुदाली हल की तरह ही लोहे का एक उपकरण है, जिसमें फाल (लोहे का ब्लेड) तथा एक हैंडल लगा होता है। हैंडल लोहे या लकड़ी की होती है।
कुदाली का उपयोग भी खेत को जोतने खुरचने तथा खरपतवार निकालने के लिए किया जाता है।
लोहे की बड़ी कुदाली को हल की तरह उपयोग कर खेत की जुताई की जाती है। तथा लकड़ी के हैंडल वाली अपेक्षाकृत छोटे कुदाली का उपयोग एक व्यक्ति करता है।
(ग) कल्टीवेटर
कल्टीवेटर, लोहे का एक उपकरण है। इसमें हल के फाल की तरह का कई ब्लेड लगा है। कल्टीवेटर को ट्रैक्टर से जोड़कर खेते की जुताई की जाती है। चूँकि कल्टीवेटर में कई ब्लेड होता है, तथा ट्रैक्टर की मदद से यह तेजी से चल सकता है, अत: कल्टीवेटर तथा ट्रैक्टर से कम समय में अधिक खेत की जुताई की जाती है।
आजकल प्राय: खेतों की जुताई ट्रैक्टर की मदद से ही की जाती है।
कल्टीवेटर पारंपरिक हल का ही के परिवर्धित मशीनी रूप है।
(2) बुआई
बीजों को मिट्टी में डालकर मिट्टी की एक परत से ढ़कना बुआई कहलाती है। या दूसरे शब्दों में फसल के बीजों को मिट्टी में प्रत्यारोपित करना बुआई कहलाती है।
बुआई में महत्वपूर्ण बातें
अच्छे बीजों का चयन
अच्छे बीजों का चयन फसल के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बिना अच्छे बीजों के सभी पौधे अंकुरित नहीं होने और फसल अच्छी नहीं होगी। अत: हमेशा अच्छे तथा स्वस्थ्य बीजों का चयन कर उसकी बुआई की जाती है।
बीजों को मिट्टी से ढ़का जाना
बीजों को मिट्टी में थोड़ी सी गहराई तक डाला जाता है। बीजों को मिट्टी में डालने के बाद उसे मिट्टी की एक परत से ढ़कना अनिवार्य होता है।
बीजों को थोड़ी गहराई पर डालने से बीजों को मिट्टी के अंकुरण के लिए आवश्यक नमी आसानी से मिल पाती है। दूसरा बीज के थोड़ी गहराई पर होने से चिड़ियों आदि से बीज की सुरक्षा हो पाती है। बीज के मिट्टी की सतह पर होने के कारण चिड़िया आदि उसे आसानी से खा सकती है जिससे बीजों की संख्या कम हो जायेगी और फसल अच्छी नहीं होगी।
बीजों को मिट्टी में समान तथा पर्याप्त दूरी पर बोया जाना
फसल के बीजों मिट्टी में समान किंतु पर्याप्त दूरी पर बोया जाना आवश्यक है। बीजों के बीच पर्याप्त दूरी होने पर सभी बीजों तथा उगने वाले पौधों को मिट्टी से आवश्यक पोषण मिल पाता है। बीजों की दूरी कम होने से पौधों की दूरी कम हो जाती है, अर्थात पौधे घने हो जाने हैं। पौधों के सघन हो जाने के कारण सभी पौधों को आवश्यक पोषण, जैसे कि सूर्य का प्रकाश, जल आदि पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है और फसल अच्छा नहीं होता है, फलत: पैदावार भी कम हो जाता है।
अत: फसल के बीजों को समान तथा पर्याप्त दूरी पर बोना आवश्यक है।
बुआई के तरीके
हाथ से बुआई
कुछ बीजों, जैसे गेहूँ, धान, बाजरा आदि के बीजों हाथ से छींटा मारकर बुआई की जाती है।
बुआई के परंपरागत औजार
कीप के आकार का औजार: परंपरागत रूप से बीजों को कीप के आकार के औजार की सहायता बुआई की जाती है। इस यंत्र में एक लम्बी नली जिसका दो या तीन नलियों में बंटा होता है तथा उपर में कीप लगा होता है।
इस यंत्र को हल के साथ जोड़ दिया जाता है। कीप में बीज डाला जाता है तथा उसे हल के साथ बैलों की सहायता से चलाया जाता है। बीज कीप से होकर नीचे लगी नलियों की सहायता से दो से तीन भागों में बंटकर जमीन में थोड़ी गहराई तका चली जाती है, तथा मिट्टी से ढ़क जाती है। इस तरह बीज जमीन की एक परत के अंदर प्रत्यारोपित हो जाती है। इस यंत्र के उपयोग से बीजों आवश्यक समान दूरियों पर बोया जाता है।
बुआई के आधुनिक औजार
सीड ड्रिल: सीड ड्रिल बुआई का एक आधुनिक औजार है। यह यंत्र ट्रैक्टर के हल के साथ ही जुड़ा होता है। इसमें उपर एक मोटा बैरल लगा होता है जो नीचे जाकर प्रत्येक हल के साथ नलियों की सहायता से जुड़ा होता है। उपर बैरल में बीज डाल दिया जाता है। ट्रैक्टर से साथ जोड़ने पर बीज नलियों की सहायता से प्रत्येक हल के साथ समान तथा पर्याप्त दूरी पर जमीन में प्रत्यारोपित हो जाता है।
सीड ड्रिल की सहायता से कम समय में अधिक खेतों में बुआई की जाती है। इस यंत्र की सहायता से श्रम तथा समय दोनों की बचत होती है।
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