सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु - आठवीं विज्ञान
पाठ से संबंधित प्रमुख शब्द
(1) शैवाल
शैवाल की परिभाषा: शैवाल को अंग्रेजी में एल्गा (Algae) कहा जाता है। शैवाल हरे रंग का एक प्रकार का पौधा होता है जो ठहरे हुए जल तथा वैसी जगहों जहाँ पर हर समय पानी गिरता रहता है। शैवाल का हरा रंग उसमें पाये जाने वाले क्लोरोफिल के कारण होता है। क्लोरोफिल उपस्थित होने के कारण शैवाल प्रकाश संश्लेषण कर सकता है।
चित्र: ताइवान में समुद्र के किनारे शैवाल का जमाव1
चित्र संदर्भ: By Fred Hsu (Wikipedia:User:Fred Hsu on en.wikipedia) - Photo taken and uploaded by user, CC BY-SA 3.0, Link
(2) प्रतिजैविक
प्रतिजैविक की परिभाषा: प्रतिजैविक को अंग्रेजी में एंटीबायोटिक (Antibiotic) कहा जाता है। सूक्ष्मजीवी द्वारा तैयार औषधी जो इन सूक्ष्मजीवी के कारण बीमार व्यक्ति को स्वस्थ होने के लिए दिया जाता है, को प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कहते हैं। ये प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवी को नष्ट कर देते हैं। प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कैप्सूल, गोली तथा इंजेक्शन के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं। स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन, एरिथ्रोमाइसिन आदि प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक के कुछ उदाहरण हैं।
(3) प्रतिरक्षी
प्रतिरक्षी की परिभाषा: हमारा शरीर उसमें बाहर से आये सूक्ष्मजीवी से लड़ने के लिए शरीर के अंदर विशेष प्रकार की सूक्ष्मजीवी को उत्पन्न करते हैं जो बीमारियों से हमारी रक्षा करते हैं। शरीर के अंदर बीमारियों से लड़ने वाले उत्पन्न विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीवी प्रतिरक्षी कहलाते हैं। प्रतिरक्षी को अंग्रेजी में एंटीबॉडीज कहते हैं।
यदि मृत अथवा निष्क्रिय सूक्ष्मजीवों को स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है तो शरीर की कोशिकाएँ उसी के अनुसार लड़ने के लिए प्रतिरक्षी (एंटीबॉडीज) उत्पन्न कर रोगकारक सूक्ष्मजीवी को नष्ट कर देती है। ये प्रतिरक्षी (एंटीबॉडीज) हमारे शरीर में सदा के लिए बने रहते हैं तथा उस रोगकारक सूक्ष्मजीवी से हमारी रक्षा करते हैं।
(4) जीवाणु
जीवाणु की परिभाषा : जीवाणु को अंग्रेजी में बैक्टीरीया कहा जाता है। जीवाणु (बैक्टीरीया) एक एककोशिकीय जीव होते हैं। कुछ जीवाणु (बैक्टीरीया) हमारे लिए अच्छे हैं तथा कुछ खराब। बैक्टीरीया का आकार छड़नुमा, स्पाइरल, गोल आदि अनेक तरह का हो सकता है। बैक्टीरीया धरती पर जीव का प्रथम रूप था। राइजोबियम, बैसाइलस, क्लोरोफ्लेक्सी आदि बैक्टीरीया के कुछ उदाहरण हैं।
टायफाइड, क्षयरोग (टीoबीo) आदि रोग जीवाणुओं (बैक्टीरीया) के कारण होते हैं।
(5) वाहक
वाहक की परिभाषा: वैसे जीव जो दूसरे सूक्ष्मजीवों को एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाते हैं अर्थात वहन करते हैं वाहक कहलाते हैं।
बहुत सारे कीट एवं जंतु रोगकारक सूक्ष्मजीवों के रोगवाहक का कार्य करते हैं। जैसे मक्खी, मच्छर, तिलचट्टा, चूहे, कुत्ते, बिल्ली आदि।
मक्खियाँ कूड़े एवं अन्य गंदे जगहों पर बैठती हैं इसमें रोगकारक सूक्ष्मजीव उनके शरीर से चिपक जाती हैं। जब ये मक्खियाँ बिना ढ़के हुए भोजन पर बैठती हैं तो शरीर से चिपके हुए रोगकारक सूक्ष्मजीवों को स्थानांतरित कर भोजन को संदूषित कर देती है। इस संदूषित भोजन को खाने से व्यक्ति में रोगकारक सूक्ष्मजीवों के स्थानांतर हो जाने से वह बीमार पड़ जाता है।
ऐसे जीव जो रोगाणुओं का वहन करते हैं रोगवाहक कहलाते हैं।
(6) संक्रामक रोग
संक्रामक रोग की परिभाषा: रोग जिनके रोगाणु हवा, पेय जल, तथा भोजन के द्वारा स्वस्थ व्यक्तियों के शरीर में प्रवेश कर उन्हें बीमार कर देते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। जैसे सर्दी जुकाम, क्षय रोग, आदि फैलने वाले रोग हैं तथा ये संक्रामक रोग के कुछ उदाहरण हैं।
(7) किण्वन
किण्वन की परिभाषा: फलों के रसों आदि का जीवाणु द्वारा एल्कोहॉल में बदला जाना किण्वन कहलाता है।
चित्र: कोकोआ बींस में किण्वन2
चित्र संदर्भ: By Irene Scott/AusAID, CC BY 2.0, Link
जौ, गेहूँ, चावल एवं फलों के रस में प्राकृतिक रूप से शर्करा पाया जाता है। इन रसों को जब कुछ दिनों के लिए थोड़ा गर्म स्थान में छोड़ दिया जाता है तो इनमें यीस्ट नाम का सूक्ष्मजीव का अंकुरण हो जाता है जो इन्हें एल्कोहॉल में बदल देता है। यह प्रक्रिया किण्वन कहलाती है।
किण्वन की खोज लुई पाश्चर, जो एक फ्रांसिसि वैज्ञानिक थे, ने 1857 में की थी।
(8) कवक
कवक की परिभाषा : कवक को अंग्रेजी में फंजाई कहते हैं। कवक एक प्रकार का सूक्ष्म जीव है। कवक (फंजाई) एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दोनों तरह के होते हैं। कवक (फंजाई) को पौधे से अधिक जीव माना जाता है। मशरूम, राइजोप्स (ब्रेड मोल्ड), पेनिसीलिएम, आदि कवक (फंजाई) के कुछ उदाहरण हैं।
कवक (फंजाई) एक प्रकार का परजीवी होता है, जो मरे हुए तथा विघटित हो रहे जैव पदार्थों पर अंकुरित होते तथा पलते हैं। कवक (फंजाई) को प्राकृतिक विघटनकारी कहा जाता है। ये जैव पदार्थों को विघटित करते हैं। कवक (फंजाई) मरे हुए जीवों पर अंकुरित होकर उसपर एक प्रकार का पाचन रस छोड़ते हैं, जिसके कारण जैविक पदार्थ द्रव में बदलने लगते हैं उस द्रव का अवशोषण कर कवक (फंजाई) पोषण प्राप्त करते हैं।
(9) लैक्टोबैसिलस
लैक्टोबैसिलस की परिभाषा : लैक्टोबैसिलस एक प्रकार का जीवाणु होता है, जो दूध को दही में परिवर्तित कर देता है।
(10) सूक्ष्मजीव
सूक्ष्मजीव की परिभाषा: वैसे जीव जिन्हें बिना नंगी आँखो से तथा बिना सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखना संभव नहीं होता है, सूक्ष्मजीव कहलाते हैं। सूक्ष्मजीव सभी जगह उपस्थित होते हैं। सूक्ष्मजीव हवा में पानी में पेड़ों पर जंतुओं पर तथा उनके अंदर प्राय: सभी जगहों पर पाये जाते हैं। जैसे जीवाणु, रोगाणु, कवक, आदि। सूक्ष्मजीव सभी परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं जैसे बहुत अधिक तथा बहुत कम तापमान दोनों में।
बैक्टीरीया, कवक, रोगाणु आदि सूक्ष्मजीव के उदाहरण हैं।
(11) नाइट्रोजन चक्र
नाइट्रोजन चक्र की परिभाषा: वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन है जो कि हमेशा स्थिर रहता है। जीव, जंतुओं तथा पौधों द्वारा वायुमंडल में वर्तमान नाइट्रोजन को विभिन्न प्रकार से अवशोषण तथा वापस छोड़ कर स्थिर रखा जाता है। यह प्रक्रिया चूँकि निरंतर चलती रहती है अत: इसे नाइट्रोजन चक्र कहा जाता है।
(12) नाइट्रोजन स्थिरीकरण
नाइट्रोजन स्थिरीकरण की परिभाषा: जीव, जंतु तथा पौधों द्वारा नाइट्रोजन चक्र के द्वारा वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा को स्थिर रखने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहा जाता है।
पौधे नाइट्रोजन को हवा से अवशोषित नहीं कर पाते हैं बल्कि वे मिट्टी से इसका अवशोषण करते हैं। राइजोबियम नाम का एक जीवाणु फलीदार तथा दलहन फलों की जड़ों में रहते हैं। ये जीवाणु हवा से नाइट्रोजन को लेकर उसे घुलनशील रूप प्रदान कर मिट्टी में उपलब्ध करा देते हैं। पौधे जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित इस नाइट्रोजन का अवशोषण कर लेते हैं तथा पोषक तत्व के रूप में संश्लेषित करते हैं।
कभी कभी तड़ित विद्युत भी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण के द्वारा वायुमंड का नाइट्रोजन स्थिर रहता है।
(13) पाश्चरीकरण
पाश्चरीकरण की परिभाषा: दूध को पहले 70o C के तापमान तक गर्म कर उसे एकाएक ठंढ़ा कर अधिक समय तक संरक्षित करने की प्रक्रिया पाश्चरीकरण या पाश्चुराइजेशन कहलाता है।
लुई पाश्चर, जो एक फ्रेंच वैज्ञानिक थे, ने पाश्चुराइजेशन (पॉश्चरीकरण) की खोज की थी। उनकी प्रतिष्ठा में दूध के परिरक्षण की इस विधि को पाश्चुराइजेशन (पॉश्चरीकरण) कहा जाता है।
(14) रोगजनक
रोगजनक की परिभाषा: हानिकारक सूक्ष्मजीव जो रोग उत्पन्न करते हैं रोगजनक या रोगाणु कहलाते हैं। बहुत सारे जीवाणु, वायरस, प्रोटोजोआ, आदि रोगजनक होते हैं।
क्षयरोग, खसरा, पोलियो, हैजा आदि रोग रोगजनक सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं।
(15) परिरक्षण
परिरक्षण की परिभाषा : खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक बिना खराब हुए सुरक्षित रखने को परिरक्षण कहा जाता है।
नमक एवं खाद्य तेल सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रोकने में सक्षम होते हैं अत: इन्हें परिरक्षक कहा जाता है। नमक तथा खाद्य तेलों का उपयोग खाद्य पदार्थों के परिरक्षण हेतु किया जाता है।
अचार बनाने में नमक, खाद्य तेल तथा खाद्य अम्ल का उपयोग किया जाता है। इनके उपयोग से खाद्य पदार्थों में सूक्ष्मजीवों की बृद्धि नहीं होती है।
सोडियम बेंजोएड तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट भी सामान्य परिरक्षक हैं। जैम, जेली एवं स्क्वैश बनाने में इन रसायन का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों का प्रयोग जैम, जेली एवं स्क्वैश को लम्बे समय तक खराब होने से बचाये रखता है।
(16) प्रोटोजोआ
प्रोटोजोआ की परिभाषा: प्रोटोजोआ एक कोशिकीय जीव होते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि प्रोटोजोआ के कुछ उदाहरण हैं। अतिसार, मलेरिया आदि रोग प्रोटोजोआ के कारण होते हैं।
(17) राइजोबियम
राइजोबियम की परिभाषा: राइजोबियम एक प्रकार का जीवाणु होता है जो फलीदार तथा दलहन फसलों की जड़ों में रहकर
(18) टीका (वैक्सीन)
टीका (वैक्सीन) की परिभाषा: वैक्सीन (टीका) एक प्रकार की दवा है जिसके द्वारा विशेष रोगकारक मृत अथवा निष्क्रिय सूक्ष्मजीवों को हमारे शरीर में प्रवेश कराकर हमारे शरीर को उस खास प्रकार की बीमारी से सुरक्षित रखने में हमारे शरीर को सक्षम बनाता है।
(19) विषाणु
विषाणु की परिभाषा: विषाणु को अंग्रेजी में वायरस कहा जाता है। विषाणु (वायरस) अन्य सूक्ष्मजीवों से थोड़ा अलग होते हैं। विषाणु (वायरस) परजीवी होते हैं। ये केवल दूसरे जैव पदार्थों में ही गुणन करते हैं। विषाणु (वायरस) अधिकांशतया रोग के कारण होते हैं। जुकाम, इंफ्लुएंजा (फ्लू), पोलियो, खसरा आदि रोग विषाणु (वायरस) के कारण होते हैं।
(20) यीस्ट
यीस्ट की परिभाषा: एक प्रकार का जीवाणु जो तेजी से प्रजनन करते हैं तथा श्वसन के क्रम में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करते हैं, यीस्ट कहलाते हैं।
प्राचीन काल से यीस्ट का उपयोग एल्कोहॉल बनाने में किया जाता है। यीस्ट डालने से फलों के रस, ब्रेड तथा केक बनाने के लिये गूँथा गया मैदा में किण्वण (फर्मंटेशन) होता है। यीस्ट द्वारा श्वसन के दौरान छोड़े गये कार्बन डायऑक्साइड के गैस के बुलबुले खमीर वाले मैदे का आयतन बढ़ा देते हैं जिसके कारण केक तथा ब्रेड सॉफ्ट हो जाता है।
Reference:
(1) चित्र संदर्भ: By Fred Hsu (Wikipedia:User:Fred Hsu on en.wikipedia) - Photo taken and uploaded by user, CC BY-SA 3.0, Link