वन एवं वन्य जीव संसाधन : भूगोल क्लास दसवां (समाजिक विज्ञान)


वन एवं वन्य जीवों की उपयोगिता

अभी तक की जानकारी के अनुसार, पूरे ब्रह्मांड में केवल पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जिसपर वन पाये जाते हैं। और इस वन के कारण ही जीव और जीवन है।

पृथ्वी पर वन एवं जीवों की संख्या करोड़ों में है जिसमें अधिकांश के बारे में अभी तक हमें जानकारी भी नहीं है। कुल मिलाकर पृथ्वी, जो हमारा घर है, अत्यधिक जैव विविधताओं से भरा हुआ है। यहाँ मानव और दूसरे जीवधारी मिलकर एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र [इको सिस्टम (Ecosystem)] का निर्माण करते हैं, जिसके हम मात्र हिस्सा भर हैं, और अपने अस्तित्व के लिए इसी पारिस्थितिकी तंत्र [इको सिस्टम (Ecosystem)] के विभिन्न तत्वों पर निर्भर हैं। जैसे कि वायु जिसे हम श्वास के रूप में लेते हैं, जल जिसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता है, भोजन जो जीवन का आधार है, आदि। किसी एक के भी आभाव में जीवन समाप्त हो जायेगा।

क्लास दशवीं भूगोल वन एवं वन्य जीव संसाधन-जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

ReferenceBy Bendale.kaustubh - Own work, CC BY-SA 3.0, Link

वनों का इस पारिस्थितिकी तंत्र [इको सिस्टम (Ecosystem)] में महत्वपूर्ण भूमिका हैं क्योंकि ये वन ही प्राथमिक उत्पादक हैं जिनपर दूसरे सभी जीव निर्भर हैं।

भारत में वनस्पतिजात और प्राणिजात

भारत, जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है।

भारत में विश्व की सारी जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या पायी जाती है, जो लगभग 16 लाख है।

भारत में लगभग 81,000 (एक्यासी हजार) वन्य जीवन उपजातियाँ और लगभग 47,000 (सैतालीस हजार) वनस्पति उपजातियाँ पायी जाती हैं। वनस्पति उपजातियों में लगभग 15,000 (पंद्रह हजार) उपजातियाँ भारतीय मूल की हैं।

लुप्त होते वनस्पतिजात एवं प्राणिजात

पूरे विश्व में वनस्पतिजात एवं प्राणीजात तेजी से लुप्त हो रहे हैं।

वास्तव में ये विविध वनस्पतिजात [फ्लोरा (Flora)] एवं प्राणिजात [फौना (Fauna)] हमारे पर्यावरण के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं, तथा इन्हें बचाये रखना पृथ्वी पर जीवन के लिये अनिवार्य है।

अनुमान है कि केवल भारत में ही 10 प्रतिशत वन्य वनस्पतिजात [वाइल्ड फ्लोरा (Wild Flora)] और लगभग 20 प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है।

इनमें से कई उपजातियाँ नाजुक अवस्था में हैं तथा लुप्त होने के कगार पर हैं। जैसे कि चीता, गुलाबी सिर वाली बतख, पहाड़ी कोयल और जंगली चित्तीदार उल्लू और मधुका इनसिगनिस (महुआ की एक जंगली किस्म) और हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन (घास की एक प्रजाति), आदि शामिल हैं।

लुप्त होने वाली प्रजातियों में छोटे प्राणी जैसे कीट और पौधों पर खतरा अधिक हैं, परंतु अभी तक मनुष्य का ध्यान केवल बड़े और दिखाई देने वाले प्राणियों और पौधों पर ही केंद्रित है।

क्लास दशवीं भूगोल वन एवं वन्य जीव संसाधन-गुलाबी सिर वाली बतख

गुलाबी सिर वाली बतख, जो अब लुप्त हो गयी है।

संदर्भ By Henrik Grönvold (1858–1940) - Journal of the Bombay Natural History Society Volume 18, Public Domain, Link

भारत में लुप्त होते वनस्पतिजात एवं प्राणिजात का एक आँकड़ा

भारत में बड़े प्राणियों की 79 जातियों पर लुप्त होने का खतरा बना हुआ है।

भारत में पक्षियों की 44 जातियों, सरीसृप की 15 जातियों और जलस्थलचरों की 3 जातियों के लुप्त होने का खतरा बना हुआ है।

इसी तरह भारत के वनस्पतिजात [फ्लोरा (Flora)] में लगभग 1500 पादप जातियों के लुप्त होने का खतरा है।

यहाँ, भारत में, फूलदार वनस्पति और रीढ़धारी प्राणियों के लुप्त होने की दर लुप्त होने की प्राकृतिक दर से लगभग 50 से 100 गुणा अधिक है, जो कि एक चिंता का विषय है।

भारत में वनों का क्षेत्रफल और लुप्त होते वन

भारत देश में वन आवरण (Forest and Tree cover) के अंतर्गत अनुमानित 789.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.01 प्रतिशत है, जिसमें 12.24 प्रतिशत सघन वन हैं, 8.99 प्रतिशत खुला वन है और 0.14 प्रतिशत मैंग्रोव हैं।

हालाँकि स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (2013) के अनुसार विभिन्न संगठनों द्वारा बृक्षारोपण से, वर्ष 1997 से सघन वनों के क्षेत्र में 10,098 वर्ग किलोमीटर की बृद्धि हुयी है, परन्तु यह बृद्धि बहुत ही कम है।

वनस्पतिजात और प्राणिजात का संरक्षण

अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ [International Union of Conservation of Nature and Natural Resources (IUCN)] के द्वारा विभिन्न प्रकार के पौधे और प्राणियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है:

सामान्य जातियाँ [नॉर्मल स्पीशीज (Normal Species)]

सामान्य जातियों [नॉर्मल स्पीशीज (Normal Species)] के अंतर्गत उन जातियों को रखा गया है जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, जैसे पशु, साल, चीड़ और कृन्तक [रोडेंट्स (Rodents)], आदि।

संकटग्रस्त जातियाँ [इंडेंजर स्पीशीज (Endangered Species)]

वैसी जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, को संकटग्रस्त जातियाँ [इंडेंजर स्पीशीज (Endangered Species)] के अंतर्गत रखा गया है, जैसे कि काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा, शेर-पूँछ वाला बंदर, संगाई (मणिपुरी हिरण) आदि।

सुभेद्य [वलनरेवल (Vulnerable)]

वैसी जातियाँ जिनकी संख्या घट रही है, को सुभेद्य [वलनरेवल (Vulnerable)] श्रेणी में रखा गया है। जैसे नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा नदी की डॉल्फिन आदि।

दुर्लभ जातियाँ [रेयर स्पीशीज (Rare Species)]

वैसी जातियाँ जिनकी संख्या बहुत ही कम है, या सुभेद्य [वलनरेवल (Vulnerable)] हैं, को दुर्लभ जातियाँ [रेयर स्पीशीज (Rare Species)] के अंतर्गत रखा गया है।

जैसे कि हिमालयन भूरे भालू, जंगली एशियाई भैंस, मरूस्थलीय लोमड़ी, धनेश [हॉर्नबिल (Hornbill)] आदि दुर्लभ जातियाँ [रेयर स्पीशीज (Rare Species)] हैं।

स्थानिक जातियाँ [एंडेमिक स्पीशीज (Endemic Species)]

वैसी जातियाँ, जो प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पायी जाती हैं, को स्थानिक जातियाँ [एंडेमिक स्पीशीज (Endemic Species)] कहा जाता है। जैसे कि अंडमानी टील (Andaman Teal), निकोबारी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर और अरूणाचल के मिथुन आदि।

लुप्त जातियाँ [एक्सटिंक्ट स्पीशीज (Extinct Species)]

वैसी जातियाँ, जो उनके रहने के प्राकृतिक आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पायी गयीं, को लुप्त जातियाँ [एक्सटिंक्ट स्पीशीज (Extinct Species)] कहा जाता है। ये उपजातियाँ स्थानीय क्षेत्र, प्रदेश, देश, महाद्वीप या पूरी पृथ्वी से ही लुप्त हो गयी हैं।

जैसे एशियाई चीता, गुलाबी सिरवाली बतख, इत्यादि।

एशियाई चीता [Asiatic Cheetah]

चीता भूमि पर रहने वाला दुनिया का सबसे तेज स्तनधारी प्राणी है, जो 112 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकता है। चीता बिल्ली परिवार का एक विशिष्ट सदस्य है।

20 वीं शताब्दी से पहले तक चीता अफ्रिका और एशिया में दूर दूर तक फैले हुए थे, परंतु इनके आवासीय क्षेत्र और भोजन के लिए शिकार की उपलब्धता कम होने से ये लगभग लुप्त हो चुके हैं। भारत में 1952 में ही चीतों को लुप्त घोषित कर दिया गया था।