दसवीं विज्ञान(Science Ten-Hindi Medium)

धातु एवं अधातु

पदार्थों को उनके कुछ सामान्य गुणों के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है – धातु तथा अधातु।

धातु (Metal) में एक विशेष प्रकार की चमक होती है, जिसे धात्विक चमक (Metallic Lusture) कहते हैं। धातुओं के इसी विशेष चमक के कारण Gold, silver, आदि धातुओं का उपयोग जेवर बनाने में होता है।

सभी धातु कमरे के तापमान पर ठोस होते हैं, परंतु पारा (मरकरी) एक अपवाद है। पारा (मरकरी) कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में होता है। सभी धातु काफी कठोर होते हैं, परंतु सोडियम एक ऐसा धातु है जो इतना मुलायम होता है कि उसे चाकू से भी आसानी से काटा जा सकता है।

वहीं अधातुओं में धातु के ठीक विपरीत गुण पाये जाते हैं कार्बन (Carbon), ऑक्सीजन (Oxygen), सल्फर (Sulphur), क्लोरीन (Chlorine), आदि अधातु के कुछ उदाहरण हैं . . .

Electricity

जब काँच की छड़ (glass rod) को बिल्ली की खाल (cat's fur) से रगड़ा जाता है, तो काँच की छ्ड़ (glass rod) में कागज के छोटे टुकड़ों को अपनी ओर खींचने का गुण आ जाता है। ऐसा काँच की छ्ड़ पर विद्युत आवेश (electric charge) आ जाने या काँच की छ्ड़ का विद्युत आवेशित हो जाने के कारण होता है। उसी तरह जब एक कंघी (comb) से सूखे बाल को झाड़ा जाता है तो कंघी में विद्युत आवेश (electric charge) आ जाता है तथा कंघी कागज के छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने लगता है।

ऐसा इसलिये होता है कि ग्लास रॉड (glass rod) को सिल्क (silk) के कपड़े या बिल्ली के खाल (cat's fur) से रगड़ने के क्रम में ग्लास रॉड से कुछ इलेक्ट्रॉन (electron) सिल्क के कपड़े या बिल्ली के खाल पर स्थानांतरित हो जाता है, जिससे ग्लास रॉड पर धन आवेश (positive charge) आ जाता है, वहीं दूसरी ओर जो कागज के छोटे टुकड़ों को उनकी ओर आकर्षित करने लगता है। वहीं ग्लास रॉड से इलेक्ट्रॉन (electron) स्थानांतरित होने के कारण सिल्क के कपड़े (silk's cloth) या बिल्ली के खाल पर ऋण आवेश (negative charge) आ जाता है . . .

प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

प्रकाश की किरणें सीधी रेखा में चलती हैं। जब एक अपारदर्शी वस्तु प्रकाश की किरणों के रास्ते में आ जाती है तो यह छाया बनाती है। प्रकाश की किरणों के द्वारा छाया बनाने की प्रक्रिया हमें यह बतलाता है कि प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है अर्थात चलती है।

जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आँखों पर पड़ती है, तो हम उस वस्तु को देखने में सक्षम हो पाते हैं। हम अंधेरे में रखी वस्तुओं को नहीं देख पाते हैं क्योंकि अंधेरे के कारण कोई भी प्रकाश की किरण उक्त वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आंखों पर नहीं पड़ती है।

प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light) प्रकाश की किरणों का किसी वस्तु से टकराकर लौटना प्रकाश की किरणों का परावर्तन या प्रकाश का परावर्तन (REFLECTION OF LIGHT) कहलाता है।

प्रकाश का अपवर्तन(Refraction of Light) प्रकाश के किरण की विरल माध्यम (rare medium) से सघन माध्यम (denser medium) में प्रवेश करने के बाद अभिलम्ब (normal) की ओर मुड़ने तथा सघन माध्यम (denser medium) से विरल माध्यम (rarer medium) में प्रवेश करने के बाद अभिलम्ब (normal) से दूर जाने की प्रक्रिया को प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light) कहते हैं . . .

कार्बन एवं उसके यौगिक

कार्बन प्रकृति में सबसे अधिक पाये जाने वाले तत्वों में 15वें स्थान पर आता है। हालाँकि कार्बन की मात्रा भूपर्पटी (Earth's crust) में मात्र 0.2% तथा वायुमंडल में मात्र 0.3% है, वावजूद इसके कार्बन का महत्व हमारे जीवन में काफी अधिक है।

कार्बन एक ऐसा तत्व है जो सभी जीवों में पाया जाता है यहाँतक कि जीवों के मरने के बाद भी कार्बन उसमें उपस्थित रहता है। कोयला, पेट्रोल तथा पेट्रोलियम उत्पाद कार्बन से बने हैं।

कार्बन का संकेत = C, कार्बन की परमाणु संख्या = 6, कार्बन का इलेक्ट्रोनिक विन्यास = 2, 4; कार्बन का संयोजी इलेक्ट्रॉन = 4, कार्बन की प्रकृति = अधातु है। कार्बन की संयोजकता 4 है अत: कार्बन को tetravalent कहा जाता है। . . .

मानव नेत्र तथा रंग विरंगा संसार

नेत्र एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्री है। यह हमारा नेत्र ही है जो हमें अपने चारों तरफ फैले रंग विरंगे संसार को देखने के योग्य बनाता है। नेत्र एक कैमरा की तरह कार्य करता है, बल्कि कैमरे का आविष्कार हमारी आँखों को देखकर ही किया गया है और यह कहना ज्यादा उचित होगा कि एक कैमरा हमारी आँखों की तरह ही कार्य करता है।

मानव नेत्र की संरचना (Structure of the human eye) नेत्र की संरचना एक गोले के आकार की होती है। किसी वस्तु से आती हुई प्रकाश की किरण हमारी आँखों में आँखों के लेंस के द्वारा प्रवेश करती है तथा रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनाती है। दृष्टि पटल (रेटिना (Retina)) एक तरह का प्रकाश संवेदी पर्दा होता है, जो कि आँखों के पृष्ट भाग में होता है। दृष्टि पटल (रेटिना (Retina)) प्रकाश सुग्राही कोशिकाओं द्वारा, प्रकाश तरंगो के संकेतों को मस्तिष्क को भेजता है, और हम संबंधित वस्तु को देखने में सक्षम हो पाते हैं। कुल मिलाकर आँखों द्वारा किसी भी वस्तु को देखा जाना एक जटिल प्रक्रिया है।

मोतियाबिन्द (Cataract) कभी कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिन्द (Cataract) कहते हैं। मोतियाबिन्द (Cataract) के कारण नेत्र की दृष्टि में कमी हो या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाता है। मोतियाबिन्द (Cataract) का संशोधन शल्य चिकित्सा के द्वारा किया जाता है . . .

तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

नये नये तत्वों के खोज के बाद तत्वों की संख्या बढ़ने लगी, जिससे उनके वर्गीकरण की आवश्यकता बढ़ती गयी। तत्वों के वर्गीकरण में डॉबेराइनर का त्रिक, न्यूलैंड का अष्टक सिद्धांत सराहनीय रहा।

डमित्री इवानोविच मेंडलीफ, जो एक रसियन रसायनशास्त्री थे ने तत्वों के वर्गीकरण के लिए एक सारणी तैयार की, जिसे मेंडलीफ का आवर्त सारणी कहते हैं। मेंडलीफ के आवर्त सारणी में तत्वों को उनके परमाणु भार के बढ़ते क्रम में सजाया गया। तथा यह तत्वों के वर्गीकरण में एक मील का पत्थर साबित हुआ।

मेंडलीफ का आवर्त सारणी का नियम कहता है, "तत्वों के रासायनिक तथा भौतिक गुण उनके परमाणु द्रव्यमान के आवर्त फलन होते हैं"।

बाद में चलकर आधुनिक आवर्त सारणी बनायी गयी। आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को उनके परमाणु संख्या के बढ़ते क्रम में सजाया गया।

आधुनिक आवर्त सारणी का नियम कहता है, "तत्वों के रासायनिक तथा भौतिक गुण उनके परमाणु संख्या के आवर्त फलन होते हैं" . . .

जैव प्रक्रम

कोशिकाएँ (Cell) जीवन का आधार है। सभी जीव कोशिकाओं (Cell) से बनी हैं। कई कोशिकाएँ (Cell) मिलकर उतक (Tissue) बनाती हैं। कई उतक (Tissue) मिलकर अंगों (Organs) का निर्माण करते हैं। प्रत्येक अंग जीवों के लिये विशेष कार्य करते हैं। जैसे दाँत का एक कार्य भोजन को चबाना है, आँख का कार्य देखना है, आदि। कुल मिलाकर जीव का शरीर एक सुव्यवस्थित तथा सुगठित संरचना है जो निरंतर गति में रहकर कार्य करती हैं एवं एक जीव को जीवित रखती हैं।

समय, वातावरण या पर्यावरण के प्रभाव के कारण यह संरचना विघटित होती रहती है जिसके मरम्मत तथा अनुरक्षण की आवश्यकता होती है। जीवों में कई प्रक्रम होते हैं जो शारीरिक संरचना का अनुरक्षण करते हैं।

जैव प्रक्रम की परिभाषा (Definition of Life Processes) वे सभी प्रक्रम (Processes) जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण (maintenance) का कार्य करते हैं जैव प्रक्रम (Life Processes) कहलाते हैं। ये प्रक्रम हैं पोषण (Nutrition), श्वसन (Respiration), वहन (Transportaion), उत्सर्जन (Excretion) आदि . . .

जीवों के भोजन ग्रहण करने तथा उसका उपयोग कर उर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया या प्रक्रम पोषण कहा जाता है . . .

विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव

विद्युत धारा प्रवाहित हो रहे चालक के पास चुम्बकीय सूई को लाया जाता है, तो चुम्बकीय सूई विक्षेपित हो जाती है, यह चालक से प्रवाहित हो रहे विद्युत धारा द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के कारण होता है। इसे विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहा जाता है।

चुम्बक एक विशेष गुण वाला पदार्थ होता है जो लोहे तथा निकेल को आकर्षित करता है। जब किसी छड़ चुम्बक को हवा में किसी धागे के सहारे लटकाया जाता है, तो उसका एक सिरा उतर दिशा को तथा दूसरा सिरा दक्षिण दिशा को दर्शाता है। चुम्बक का जो सिरा उत्तर दिशा को दर्शाता है उसे चुम्बक का उत्तरी ध्रुव तथा जो सिरा दक्षिण दिशा को दर्शाता है, चुम्बक के उस सिरे को दक्षिण ध्रुव कहते हैं।

विद्युत तथा चुम्बकत्व एक दूसरे से संबंधित होते हैं। चुम्बकत्व तथा विद्युत धारा के बीच के संबंध को सर्वप्रथम हैंस क्रिश्चियन ऑर्स्टेड, जो डेनमार्क के एक वैज्ञानिक थे, ने 1920 में खोजा था। उनके सम्मान में चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक ऑर्स्टेड रखा गया है . . .