वन एवं वन्य जीव संसाधन : भूगोल क्लास दसवां (समाजिक विज्ञान)


भारत में वनों और वन्यजीवों के निम्नीकरण के कुछ प्रमुख कारण

(1) उपनिवेशिक काल

भारत में वनों और वन्य जीवों का सबसे अधिक नुकसान उपनिवेश काल में रेललाइन, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य वानिकी और खनन क्रियाओं में बृद्धि से हुआ।

(2) कृषि का फैलाव

कृषि का फैलाव वनो और वन्यजीवों के ह्रास का एक प्रमुख कारण रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी कृषि के लिए वनों की कटाई होती रही।

वन सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 1951 से वर्ष 1980 के बीच लगभग 26,200 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र को कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया। इस तरह कृषि के फैलाव के कारण वनों का निम्नीकरण हुआ है।

क्लास दशवीं भूगोल वन एवं वन्य जीव संसाधन-स्लैश एवं बर्न कृषि

संदर्भ: By Autom12 - Own work, CC BY-SA 4.0, Link

(3) स्लैश और बर्न खेती / झूम खेती /स्थानांतरी खेती (Shifting Cultivation)

अधिकतर जनजातिय क्षेत्रों, विशेषकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत में स्थानांतरी (झूम) खेती अथवा स्लैश और बर्न खेती के कारण वनों की कटाई या निम्नीकरण होता रहा है।

(a) झूम खेती

झूम खेती एक प्रकार की स्थानांतरी खेती है। जिसमें जंगलों को साफ कर खेती की जाती है, तथा खेतों की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाने पर उसे छोड़ दिया जाता है।

(b) स्लैश और बर्न खेती

स्लैश और बर्न खेती में पेड़ पौधों को काटकर जला दिया जाता है, तथा उसपर खेती की जाती है। खेतों की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाने पर खेतों को छोड़ दिया जाता है। यह एक प्रकार की स्थानांतरी खेती है।

हालाँकि झूम खेती और स्लैश एवं बर्न खेती एक ही प्रकार की खेती का नाम है। इन्हें सम्मिलित रूप से स्थानांतरी खेती ही कहा जाता है। परंतु झूम खेती में जमीन का उपयोग कुछ समय तक के लिए ही किया जाता है तथा बाद में उसे छोड़ दिया जाता है, जबकि स्लैश एवं बर्न खेती में जमीन को प्राय: स्थायी तौर पर अधिक समय के लिए उपयोग किया जाता है।

वैसे भारत में स्लैश एवं बर्न खेती अर्थात स्थानांतरी खेती को ही झूम खेती के नाम से जाना जाता है। चूँकि झूम खेती में भी खेतों के पेड़ पौधों को साफ कर जलाया भी जाता है, अत: इसे भी स्लैश एवं बर्न खेती का नाम दिया गया है।

झूम खेती या स्लैश एवं बर्न खेती या स्थानांतरी खेती प्राय: पहाड़ी इलाकों में प्रचलित हैं।

अधिकतर जनजातीय क्षेत्रों, विशेषकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत में स्थानांतरी खेती (झूम खेती) अथवा स्लैश एवं बर्न खेती के कारण वनों की कटाई या निम्नीकरण हुआ है।

स्थानांतरी खेती के विभिन्न नाम

स्थानांतरी खेती को विभिन्न देशों में विभिन्न नाम से जाना जाता है। जैसे कि भारत में स्थानांतरी खेती को "झूम खेती", अफ्रिका में "स्विड्डेन (Swidden)", फिलिपिंस में "केंजिन (Caingin)", सेन्ट्रल अमरीका में "मिल्पा (Milpa)" के नाम से जाना जाता है।

(4) उपनिवेशी वन नीति तथा संवर्द्धन बृक्षारोपण के कारण वनों का निम्नीकरण

कुछ पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार भारत के कई क्षेत्रों में संवर्द्धन बृक्षारोपण [इनरिचमेंट प्लांटेशन (Enrichment Plantation)] के कारण वनों को काफी नुकसान हुआ है। संवर्द्धन बृक्षारोपण [इनरिचमेंट प्लांटेशन (Enrichment Plantation)] का अर्थ है वाणिज्य की दृष्टि से कुछ या एकल जातियों के बृक्षों का बड़े पौमाने पर रोपण।

किसी खास प्रकार या किसी एक प्रकार की जातियों के बृक्षों के बड़े पैमाने पर रोपण से उस स्थान पर होने वाले प्राकृतिक रूप से विभिन्न जातियों के पेड़ों को नुकसान होता है, तथा वे बर्बाद हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए सागवान के एकल रोपण से दक्षिण भारत में अन्य प्राकृतिक वन बर्बाद हो गये और हिमालय में चीड़ (पाईन) के रोपण से हिमालयन ओक और रोडोडेंड्रोन (Rhododendron) वनों का काफी नुकसान हुआ।

(5) बड़ी विकास परियोजनाओं के कारण वनों का निम्नीकरण

बड़ी विकास परियोजनाओं के कारण भी वनों को काफी नुकसान होता रहा है। इसमें नदी घाटी परियोजनाएँ और खनन परियोजनाएँ प्रमुख हैं।

क्लास दशवीं भूगोल वन एवं वन्य जीव संसाधन-सरदार सरोवर बाँध

सरदार सरोवर बाँध

संदर्भ: By Rupeshsarkar - Own work, CC BY-SA 4.0, Link

(क) नदी घाटी परियोजनाएँ

भारत में वर्ष 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक वन क्षेत्रों को साफ किया गया, तथा यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। नर्मदा सागर परियोजना के कारण मध्य प्रदेश में 4,00,000 हेक्टेयर (4000 वर्ग किलोमीटर) से भी अधिक वन क्षेत्र जलमग्न हो गये हैं।

(ख) खनन परियोजनाएँ

खनन परियोजनाओं के कारण भी वनों को भारी नुकसान हुआ है, अर्थात वनों का निम्नीकरण हुआ है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में डोलोमाइट के खनन के कारण बक्सा टाईगर रिजर्व गंभीर खतरे में है।

(6) ईंधन के लिए लकड़ी कटाई और पशुचारण के कारण वनों का निम्नीकरण

पशुचारण और ईंधन के लिए लकड़ी की कटाई भी वन संसाधनों का निम्नीकरण हुआ है।

वन पारिस्थिकी तंत्र [फॉरेस्ट इकोसिस्टम (Forest Ecosystem)] देश के मूल्यवान वन पदार्थों, खनिजों और अन्य संसाधनों के संचय कोष हैं, जो तेजी से विकसित होती औद्योगिक शहरी अर्थव्यवस्था की माँग की पूर्ति के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। अत: इनका अर्थात वन पारिस्थिकी तंत्र [फॉरेस्ट इकोसिस्टम (Forest Ecosystem)] संरक्षण अतिआवश्यक है।

भारत में जैव-विविधता कम करने वाले कारक

वन्य जीव के आवास का विनाश, जंगली जानवरों को मारना और उनका शिकार, पर्यावरण का प्रदूषण, पर्यावरण का विषाक्तिकरण और दावानल (जंगलों में लगने वाले आग), आदि भारत में जैव विविधता को कम करने वाले प्रमुख कारण हैं।

संसाधनों का असमान बँटवारा: जैव विविधतता कम करने का प्रमुख कारण

विभिन्न वर्गों के बीच संसाधनों का असमान बंटवारा और उसका उपभोग, विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों में, जैव विविधतता को कम करने का एक प्रमुख कारण है। संसाधनों का असमान बंटवारा होने के कारण जहाँ एक ओर अधिक सम्पन्न वर्ग बहुत अधिक संसाधनों का उपभोग करता है वहीं दूसरी ओर अन्य वर्ग बहुत कम संसाधनों का उपभोग कर पाते हैं।

अत्यधिक जनसंख्यां: जैव विविधतता कम करने का प्रमुख कारण

विकासशील देशों में अधिक जनसंख्यां को जैव विविधतता कम करने के प्रमुख कारणों में गिना जाता है। हालाँकि अधिक सम्पन्न वर्ग, शायद भारत में 5 प्रतिशत धनी लोग 25 प्रतिशत गरीब लोगों की तुलना में अपने संसाधन उपभोग द्वारा पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं, जबकि इन 5 प्रतिशत लोगों की पर्यावरण के रखरखाव में प्रत्यक्ष रूप से कोई जिम्मेवारी नहीं होती है।