सरल रेखा में गति - ग्यारहवीं भौतिकी
गति क्या है?
जब कोई वस्तु एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है, तो कहा जाता है कि वह वस्तु गति में है या गति की अवस्था में है। उदाहरण के लिए बृक्ष से पत्तों का गिरना, किसी जानवर का चलना, किसी जानवर का दौड़ना, मनुष्य का चलना, मधुमक्खी का उड़ना, किसी वाहन चलना आदि। श्वास को लेना और छोड़ना भी गति है, खून का पूरे शरीर के नसों में दौड़ना भी गति है।
ब्रह्मांड में सभी वस्तुएँ गति की अवस्था में हैं, चाहे वह एक तारा हो या चन्द्रमा या पृथ्वी। हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर तथा अपनी धूरी पर गति करती है, चन्द्रमा सूर्य के चारों ओर गति करता है, अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यहाँ तक कि सूर्य भी गति की अवस्था में है।
गति की परिभाषा: किसी वस्तु का समय के साथ स्थान परिवर्तन को गति कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई वस्तु समय बीतने के साथ साथ अपने स्थान में परिवर्तन करता है या उसके स्थान में परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु को गतिमान या गति की अवस्था में कहा जाता है।
एकरैखीय गति (रेक्टिलियर मोशन)
किसी वस्तु की एक सरल रेखा के अनुदिश गति को एक रेखीय गति या सरल रेखीय गति कहते हैं। जैसे कि एक साइकल सवार का एक सीधी सड़क पर गति।
गति के अध्ययन करते समय वस्तु जो गति की अवस्था में है के आकार को एक सूक्ष्मबिन्दु मान लिया जाता है ताकि गति के अध्ययन और गणना में आसानी हो।
शुद्धगतिकी (काइनमैटिक्स)
शुद्धगतिकी (काइनमैटिक्स) भौतिकी की एक शाखा है जिसमें वस्तु की गति के कारणों पर ध्यान दिये बिना ही केवल उसकी गति का अध्ययन किया जाता है।
स्थिति, पथ लम्बाई एवं विस्थापन (पोजिशन, पाथ लेंथ और डिस्प्लेसमेंट)
किसी भी वस्तु की गति का अध्ययन करने के लिए चार प्रकार के कारकों का होना आवश्यक है। य हैं वस्तु की स्थिति, पथ की लम्बाई, वस्तु का विस्थापन और समय।
इन चार कारकों के अलावे एक संदर्भ बिन्दु की भी आवश्यकता होती है जिसके सापेक्ष वस्तु की गति का अध्ययन किया जाता है।
वस्तु की स्थिति (पोजिशन ऑफ ऑब्जेक्ट)
गतिमान वस्तु की स्थिति का आकलन करने के लिए एक संदर्भ बिन्दु और अक्षों के एक सेट की आवश्यकता होती है।
तदनुसार, गतिमान वस्तु की स्थिति का आकलन करने और उसकी स्थिति का निर्धारण करने के लिए एक समकोणीय निर्देशांक का चुनाव किया जाता है। इसमें परस्पर लम्बबत तीन अक्ष होते हैं जिन्हें x-अक्ष, y-अक्ष और z-अक्ष कहा जाता है।
Origin of the movement of the object
ये तीन अक्ष, जो परस्पर लम्बबत होते हैं के प्रतिच्छेद बिन्दु (intersection point) को मूल बिन्दु (ओरिजिन) कहा जाता है और इसे प्राय: "O" से संसूचित किया जाता है। इस मूल बिन्दु (O) को संदर्भ बिन्दु कहा जाता है।
निर्देश तंत्र (फ्रेम ऑफ रेफरेंश)
परस्पर लम्बबत इन अक्षों से बने हुए निर्देशांक निकाय के साथ समय को मापने के लिए एक घड़ी रखा जाता है। घड़ी के साथ इस निर्देशांक निकाय को निर्देश तंत्र (फ्रेम ऑफ रेफरेंश) कहा जाता है।
एक वीमा (डाइमेंशन) में गति के निरूपण के लिए केवल एक अक्ष की आवश्यकता होती है। जैसे सरल रेखीय गति के आकलन में केवल एक ही अक्ष की आवश्यकता होती है। प्राय: सरल रेखीय गति के लिए x-अक्ष को निदेश में लिया जाता है।
गति तथा विराम अवस्था
जब कोई वस्तु समय के साथ किसी एक या अधिक अक्ष के अनुदिश स्थान परिवर्तित करता है, तो उस वस्तु को गति की अवस्था में कहा जाता है। और जब कोई वस्तु समय के साथ किसी एक या एक से अधिक अक्ष के साथ स्थान परिवर्तित नहीं करता है, तो उस वस्तु को विराम अवस्था में कहा जाता है।
पथ लम्बाई:– दूरी
किसी वस्तु द्वारा गति के क्रम में तय की गई कुल पथ की लम्बाई को पथ की लम्बाई या दूरी कहा जाता है।
उदाहरण
केस – (i)
मान लिया कि एक कार बिन्दु O से चलना शुरू करती है। यह कार बिन्दु O से चलकर बिन्दु A और B होते हुए बिन्दु C तक जाती है।
अत: कार द्वारा तय की गई पथ की लम्बाई (OC) = OA + AB + BC
मान लिया कि OA = 10 m, AB = BC = 15 m
अत: पथ की कुल लम्बाई (OC) = 10m + 15m + 15m
⇒ OC = 40m
केस – (ii)
मान लिया कि एक कार बिन्दु O से चलना शुरू करती है तथा बिन्दु C पर पहुँचने के बाद बिन्दु A पर वापस आती है।
अत: यहाँ पथ की लम्बाई = OC + CA
मान लिया कि OA = 10 m, AB = BC = 15 m
अत:, OC = 40 m और CA = 30 m
अत:, OC + CA = 40m + 30m
⇒ OC + CA = 70m
अत: पथ की कुल लम्बाई = 70m
पथ की धनात्मक तथा ऋणात्मक लम्बाई
परम्परा के अनुसार मूल बिन्दु O को शून्य (0) माना जाता है।
मूल बिन्दु, O से दाहिनी ओर की माप को धनात्मक और मूल बिन्दु, O से बायीं ओर की माप को ऋणात्मक माना जाता है।
विस्थापन (डिस्प्लेसमेंट)
किसी वस्तु की स्थिति में परिवर्तन को विस्थापन कहा जाता है।
मान लिया कि t1 समय में वस्तु की स्थिति x1 है।
और t1 समय में वस्तु की स्थिति x2 हो जाती है।
अत: समय में परिवर्तन `Delta = t_2-t_1`
परिवर्तन को ग्रीक के अक्षर Δ से निरूपित किया जाता है।
अत: समय में परिवर्तन को Δt से निरूपित किया जाता है।
अत: वस्तु का विस्थापन उसके प्रारंभिक और अंतिम स्थितियों में अंतर `= x_1-x_1` द्वारा व्यक्त किया जाता है।
चूँकि स्थिति में परिवर्तन को Δx द्वारा व्यक्त किया जाता
अत: `Deltax=x_2-x_1`
अत: समय में परिवर्तन (Δt) में विस्थापन (Δx) = x2 – x1
उदाहरण
केस – (i)
मान लिया कि एक कार बिन्दु O से चलना शुरू करती है और बिन्दु C तक जाती है।
अत: पथ लम्बाई = OC
मान लिया कि OA = 10 m, AB = BC = 15 m
अत:, OC = 40 m
अत: पथ की लम्बाई = 40 m
तथा विस्थापन = स्थिति में परिवर्तन = OC
यहाँ चूँकि, OC = 40m
अत:, विस्थापन = 40m
केस – (ii)
मान लिया कि एक कार बिन्दु O से चलना शुरू करती है और बिन्दु C तक जाती है तथा C से वापस होकर बिन्दु A तक आती है।
अत: पथ लम्बाई = OC + CA
मान लिया कि OA = 10 m, AB = BC = 15 m
अत:, OC = 40 m और CA = 30 m
अत:, OC + CA = 40m + 30m
⇒ OC + CA = 70m
अत: पथ की लम्बाई = 70m
और विस्थापन = स्थिति में परिवर्तन = OA
यहाँ चूँकि, OA = 10m
अत:, विस्थापन = 10m
दिश और अदिश राशि (वेक्टर और स्केलर क्वांटिटी)
वैसी राशियाँ जिनमें परिमाण और दिशा दोनों होती हैं, दिश राशियाँ कहलाती हैं। और राशियाँ जिनमें केवल परिमाण होते हैं तथा दिशा नहीं, अदिश राशियाँ कहलाती हैं।
विस्थापन में परिमाण और दिशा दोनों होती हैं, अत: विस्थापन एक दिश राशि (वेक्टर क्वांटिटी) है। जबकि पथ लम्बाई में केवल परिमाण होता है, अत: पथ लम्बाई अदिश (स्केलर क्वांटिटी) राशि है।
धनात्मक और ऋणात्मक विस्थापन
यदि x1 छोटा है और x2 बड़ा तो विस्थापन धनात्मक होता है। वहीं यदि x1 का परिमाण बड़ा है और x2 का परिमाण छोटा, तो विस्थापन ऋणात्मक होता है।
शून्य विस्थापन (जीरो डिस्प्लेसमेंट)
केस – (iii)
मान लिया कि एक कार बिन्दु O से चलकर बिन्दु C पर पहुँचती है तथा फिर B और A होते हुए वापस बिन्दु O पर आ जाती है।
अत: पथ की लम्बाई = OC + OC
मान लिया कि OA = 10 m, AB = BC = 15 m
अत:, OC = 40 m
अत:, OC + OC = 40m + 40m
⇒ OC + OC = 80m
अत: पथ की लम्बाई = 80m
लेकिन यहाँ चूँकि कार लौटकर प्रारंभिक बिन्दु O पर आ जाती है, अत: कार का विस्थापन = 0
अत: विस्थापन का परिमाण गतिमान वस्तु द्वारा चली गयी पथ लम्बाई के बराबर हो भी सकता है और नहीं भी।
विस्थापन का परिमाण शून्य भी हो सकता है जबकि पथ लम्बाई शून्य नहीं हो सकता है।
विस्थापन का परिमाण प्रत्येक स्थिति में पथ लम्बाई के बराबर या पथ लम्बाई से कम हो सकता है। विस्थापन का परिमाण पथ लम्बाई से अधिक किसी भी स्थिति में नहीं हो सकता है।
स्थिति–समय ग्राफ
एक गति की अवस्था वाले वस्तु की गति को स्थिति–समय ग्राफ से दर्शाया जा सकता है। ऐसा स्थिति–समय ग्राफ किसी वस्तु की गति के विभिन्न पहलुओं का आकलन के लिए काफी प्रभावशाली साधन है।
सरल रेखा में किसी वस्तु की गति केवल X-अक्ष पर समय के साथ बदलता है। ऐसे ग्राफ को x-t ग्राफ भी कहा जाता है।
स्थिति–समय ग्राफ (a) कहता है कि वस्तु 40m की दूरी पर स्थिर है अर्थात वस्तु रूकी हुयी है। क्योंकि स्थिति–समय ग्राफ समय अक्ष के साथ समांतर सरल रेखा है।
Reference: