चुम्बकों द्वारा मनोरंजन: छठवीं विज्ञान


चुम्बक क्या होता है

मैग्नेट शब्द जिसे हिन्दी में चुम्बक कहते हैं, ग्रीस के एक नाम "मैग्नस" से आया है।

एक पदार्थ जिसमें लोहा (iron) की मात्रा रहती है, या लोहे (आयरन) का बना होता है, तथा उसमें लोहे को या लोहा से बने पदार्थों को आकर्षित करने की क्षमता होती है, चुम्बक [मैग्नेट (Magnet)] कहलाता है।

हमारे प्रतिदिन के जीवन में चुम्बक का काफी उपयोग होता है। वास्तव में हम चुम्बक से घिरे हुए हैं। बहुत सारे यंत्र, जिसका उपयोग दैनिक जीवन में होता है, वह चुम्बक पर आधारित है, जैसे कि बिजली से चलने वाला पंखा, विद्युत जेनरेटर, मिक्सर ग्राइंडर, कपड़ा धोने की मशीन, हेयर ड्रायर, आदि।

यहाँ तक कि पृथ्वी, जिसपर हम रहते हैं, एक बहुत बड़ा चुम्बक है।

मैग्लेव ट्रेन (Maglev Train) चुम्बक पर चलने वाला एक अनूठी खोज है। चीन के शंघाई में चलने वाली मैग्लेव ट्रेन (Maglev Train) की अधिकतम गति 470 किलोमीटर प्रतिघंटा है। और जापान में चलने वाली मैग्लेव ट्रेन (Maglev Train) अधिकतम 603 किलोमीटर प्रति घंटा तक की गति से दौड़ सकती है।

मैग्लेव ट्रेन
चित्र1: मैग्लेव ट्रेन

क्रेन का उपयोग कूड़े के ढ़ेर से लोहे के टुकड़े या लोहे की बनी हुई टूटी फूटी वस्तुओं को अलग करने में किया जाता है, इस क्रेन में एक शक्तिशाली चुम्बक लगा होता है। जब क्रेन के सिरे, जिसमें चुम्बक लगा होता है, को कूड़े की ढ़ेर के ऊपर लाया जाता है, तो लोहे के टुकड़े इसमें चिपक जाते हैं, जिसे बाद में अलग कर लिया जाता है और पुनर्चक्रण के लिए भेज दिया जाता है।

पिन होल्डर के ऊपरी सिरे पर चुम्बक लगा होता है, जिसमें पिन चिपक जाते हैं, जिससे पिन को निकालने में आसानी होती है। रेफ्रिजरेटर, आलमीरा आदि के दरवाजे पर भी चुम्बक का प्रयोग किया जाता है, जिससे दरबाजा बंद होने पर आपस में चिपक जाता है।

चुम्बक की खोज

कई सारे खोज अचानक हुये हैं। चुम्बक के खोज की कहानी भी इसी प्रकार की है।

ऐसा कहा जाता है कि, बहुत समय पहले प्राचीन ग्रीस में एक चरवाहा रहता था, जिसका नाम मैग्नस (Manges) था। Manges भेड़ों को चराने के लिए हमेशा एक छ्ड़ी रखता था।

एक बार भेड़ों को चराते हुए वह आश्चर्यचकित रह गया जबकि उसके छड़ी का एक सिरा एक पत्थर से चिपक गया, तथा जोर से खींचने के बाद ही वह अलग हो पाया। बाद में उसने महसूस किया कि जब भी वह उस चट्टान के पास छड़ी को ले जाता, वह चट्टान उसकी छड़ी को अपनी ओर खींचने लगता था।

वास्तव में उसकी छड़ी के एक सिरे पर एक लोहे का टुकड़ा लगा हुआ था जो कि उस चट्टान से चिपक जाता था।

कहा जाता है कि वह चट्टान कुछ और नहीं बल्कि एक प्राकृतिक चुम्बक था। और इस तरह चुम्बक की खोज हुयी।

वह चट्टान, जो लोहा या लोहे से बनी वस्तुओं को आकर्षित करता था, को "मैग्नेटाइट (Magnetite)" के नाम से बुलाया जाने लगा। संभवत: इस चट्टान का नाम उस चरवाहे "मैग्नस" के नाम पर पड़ा।.

चुम्बक की खोज
चित्र2: मैग्नस द्वारा चुम्बक की खोज, प्राकृतिक चुम्बक

प्राकृतिक तथा कृत्रिम चुम्बक

प्राकृतिक चुम्बक मैग्नेटाइड से बना होता है। मैग्नेटाइट एक चट्टानीय खनिज है। मैग्नेटाइट में लोहा होता है, तथा इसमें लोहा या लोहे से बनी वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण होता है। बाद में चलकर कृत्रिम चुम्बक बनाने के तकनीकि की खोज की गयी।

चुम्बकों का आकार

चुम्बक कई प्रकार के आकार के बनाये जाते हैं, जैसे नाल चुम्बक, बेलनाकार चुम्बक, छड़ चुम्बक, गोलांत चुम्बक आदि। चुम्बकों का आकार जरूरत के अनुसार बनाये जाते हैं।

विभिन्न आकार के चुम्बक
चित्र3 : विभिन्न आकार के चुम्बक

चुम्बकीय तथा अचुम्बकीय पदार्थ (मैग्नेटिक तथा नॉन मैग्नेटिक मैटेरियल)

पदार्थ जो चुम्बक की ओर आकर्षित होते हैं, चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे लोहा, निकेल और कोबाल्ट तथा इनसे बने पदार्थ।

अल्युमिनियम और प्लेटिनम चुम्बक की ओर बहुत ही कम आकर्षित होते हैं, अत: ये कमजोर चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं।

वैसे पदार्थ जो चुम्बक की ओर आकर्षित नहीं होते हैं, अचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं।

चुम्बक के ध्रुव (पोल्स ऑफ मैग्नेट)

किसी चुम्बक के दोनों छोर को चुम्बक का ध्रुव कहते हैं। किसी चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं, उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव।

एक चुम्बक ध्रुव पर सबसे अधिक शक्तिशाली होता है।

जब किसी चुम्बक को लोहे के चूर्ण में रखा जाता है, या किसी चुम्बक पर जब लोहे का चूर्ण या बुरादा छिड़का जाता है, तब चुम्बक के ध्रुवों पर अधिक बुरादा चिपक जाता है। यह बतलाता है कि चुम्बक ध्रुव पर अधिक शक्तिशाली होता है।

चुम्बक के गुण (प्रोपर्टीज ऑफ मैग्नेट)

(1) एक चुम्बक मैग्नेटिक पदार्थ को अपनी ओर आकर्षित करता है।

(2) एक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं, जिन्हें उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव कहा जाता है।

(3) जब एक छड़ चुम्बक को किसी धागे या किसी अन्य वस्तु के सहारे मुक्त रूप से लटकाया जाता है, तो उसका उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा की ओर तथा दक्षिणी ध्रुव दक्षिण दिशा की ओर स्थिर हो जाता है।

(4) एक चुम्बक ध्रुवों पर अधिक शक्तिशाली होता है।

(5) किसी दो चुम्बक का समान ध्रुव एक दूसरे को विकर्षित करता है तथा असमान ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करता है।

चुम्बक की सहायता से दिशा का पता लगाना

चुम्बक में एक विशेष गुण होता है कि जब भी उसे मुक्त रूप से लटकाया जाता है, तो उसका उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा को और दक्षिण ध्रुव दक्षिण दिशा को दर्शाता है। चुम्बक के इस विशेष गुण के ज्ञात होने के बाद, लोग चुम्बक का उपयोग दिशा जानने के लिए करने लगे।

चुम्बकीय कम्पास
Figure4 : चुम्बकीय कम्पास

शुरू में यात्री विशेषकर समुद्री यात्री, दिशा ज्ञात करने के लिए चुम्बक को किसी धागे से बांध कर लटका दिया करते थे। बाद चीन में चुम्बक के विशेष गुण के आधार पर एक युक्ति विकसित की गयी। इस युक्ति को कंपास (Compass) का नाम दिया गया। चूँकि कम्पास से दिशा को दिशा के ज्ञान के लिए प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे दिकसूचक भी कहा जाता है।

कंपास या दिकसूचक, एक छोटी डिब्बी के रूप में होती है जिसके ऊपर प्राय: एक काँच की ढ़क्कन लगी होती है। इसमें सूई के आकार की एक चुम्बक लगी होती है जो एक धूरी पर स्वतंत्र रूप से घूम सकती है। चुम्बकीय सूई के उत्तरी ध्रुव पर उ या N तथा दक्षिणी ध्रुव पर द या S लिखा होता है। तथा कम्पास के डायल पर भी सभी दिशाएँ अंकित होती है। चूँकि कम्पास में लगी चुम्बकीय सूई स्वतंत्र रूप से धूरी पर घूम सकती है, अत: इसका उत्तरी ध्रुव हमेशा उत्तर दिशा को तथा दक्षिणी ध्रुव दक्षिण दिशा को दर्शाता है।

कम्पास का उपयोग प्राय: दिशा ज्ञान के लिए किया जाता है।

यहाँ तक कि आज भी कम्पास का उपयोग दिशा ज्ञात करने के लिए किया जाता है। हालाँकि आज स्मार्ट फोन में भी कम्पास का सॉफ्टवेयर रहता है, जिसका उपयोग दिशा ज्ञान के लिए किया जाता है।

बिना चुम्बक के उपयोग के दिशा ज्ञात करना

लोग सूर्यउदय और सूर्यास्त को देखकर भी दिशा का ज्ञान करते हैं।

सूरज पूरब में उदित होता है तथा पश्चिम में डूबता है। अत: सूरज को देखकर दिन के समय कोई भी व्यक्ति दिशा को जान सकता है।

ध्रुव तारा हमेशा उत्तर दिशा में रहता है।

अत: रात्रि के समय ध्रुवतारा को देखकर दिशा का ज्ञान किया जा सकता है।

किसी एक दिशा का ज्ञान हो जाने पर अन्य दिशाओं को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है। जैसे कि कोई व्यक्ति यदि पूरब की ओर मुँह करके खड़ा हो जाता है, तो उसकी पीठ की ओर पश्चिम दिशा होगी, बायें कंधे की ओर उत्तर दिशा तथा दायें कंधे की ओर दक्षिण दिशा होगी।

दिशा ज्ञात करने वाले रथ की कहानी

प्राचीन चीन में एक बढ़ई रहता था। उस बढ़ई ने एक ऐसा जादुई रथ तैयार किया जो दिशा बतलाती थी। उस जादुई रथ पर एक एक महिला की मूर्ति लगी थी जिसका एक हाथ सीधा फैला हुआ था, जो हमेशा दक्षिण दिशा को दर्शाता था। वास्तव में रथ पर लगाये गये उस मूर्ति के हाथों में एक शक्तिशाली चुम्बक छिपाया गया था जिसका दक्षिण ध्रुव उसके फैले हुए हाथ की ओर था। उस मूर्ति को रथ पर इस प्रकार लगाया गया था कि वह एक धूरी पर स्वतंत्र रूप से घूम सकती थी।

दिशा दिखलाते हुए मूर्ति वाला रथ
Figure5: दिशा दिखलाने वाला मूर्ति लगी हुई जादुई रथ

इसी कारण से रथ को जहाँ भी ले जाया जाता था उस पर लगे मूर्ति का फैला हुआ हाथ दक्षिण दिशा को दिखलाता था मानो ऐसा कि वह मूर्ति रास्ता दिखला रही हो। लोग इस रथ को देखकर आश्चर्यचकित हो जाया करते थे।

राजा जिनके पास यह रथ था का नाम हुआंग टी था।

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Reference:

Figure1: By Saruno Hirobano - Own work, CC BY-SA 3.0, Link

Figure2: NCERT Book class 6 chapter 13 page number: 126

Figure3 : NCERT Book class 6 chapter 13 page number: 126

Figure4: By User:Bios~commonswiki - Own work, CC BY-SA 3.0, Link

Figure5: By Andy Dingley - Own work, CC BY 3.0, Link

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