गति एवं दूरियों का मापन: छठवीं विज्ञान


यातायात की कहानी

प्राचीन काल से ही लोग एक जगह से दूसरी जगह भोजन की तालाश में आते जाते रहे हैं। यहाँ तक कि आज भी लोग एक जगह से दूसरी जगह जीविकोपार्जन तथा बेहतर जीवन की तालाश में जाते रहते हैं। अर्थात एक जगह से दूसरी जगह जाना लोगों की मुख्य आवश्यकताओं में से एक है।

प्राचीन काल में यातायात के कोई भी साधन उपलब्ध नहीं थे। उस समय लोग पैरों पर चलकर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे तथा अपने सामानों को या तो हाथों में लेकर या पीठ पर या सिर पर रखकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया करते थे।

धीरे धीरे लोगों ने आने जाने के लिए तथा सामानों को ढ़ोने के लिए जानवरों का उपयोग शुरू किया।

प्राचीन काल से ही लोग नदियों के किनारे रहते आ रहे हैं, क्योंकि जल जीवन के लिए अतिमहत्वपूर्ण है। इसके साथ ही लोगों ने जलमार्ग का उपयोग यातायात के लिए शुरू किया। आज भी विश्व के प्रमुख बड़े शहर नदियों तथा जलमार्ग के किनारे बसे हैं।

प्रारम्भ में लोगों ने लकड़ी के लट्ठे जो पानी में आसानी से तैर सकते थे, का उपयोग करना शुरू किया होगा जिसमें बाद में चलकर खोखली गुहा बनायी गयी होगी। इसके पश्चात लोगों ने लकड़ी के कई लट्ठों को आपस में जोड़कर उसे नदियों के जल में तैराकर यातायात के साधन के रूप में उपयोग करना शुरू किया, जिसे धीरे धीरे नाव की शक्ल में बनाया गया। नाव की आकृति मछली के आकृति की तरह होती है। ऐसा लगता है लोगों ने मछली, जो जल में ही रहती है, को देखकर ऐसी आकृति बनायी होगी। इस तरह से बनाये गये नाव से लोग आसानी से एक जगह से दूसरे जगह जाने लगे।

यहाँ तक कि आज के आधुनिक नावों तथा जहाजों की आकृतियाँ भी मछली के सदृश ही होती हैं।

बाद में चलकर पहिये का आविष्कार हुआ। पहिये का आविष्कार यातायात के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम था।

पहिये की बनाबट तथा रूप रेखा में हजारों वर्षों में उत्तरोत्तर सुधार होता हुआ। आज आधुनिक समय में भी बिना पहिए के किसी भी वाहन की कल्पना मुश्किल है। हम देख सकते हैं कि वायुयान को भी उड़ान भरने के लिए रनवे पर दौड़ना होता है जिसके लिए पहिए की आवश्यकता होती है।

उन्नीसवीं सदी के आसपास वाष्प ईंजन के आविष्कार से यायायात के क्षेत्र में फिर से एक नयी क्रांति आ गयी। फिर लोहे की पटरियाँ बनायी गयीं जिसपर यानों तथा गाड़ियों को वाष्प ईंजन द्वारा खींचा जाने लगा। वाष्प ईंजन के आविष्कार से पहले तक लोग गाड़ियों को खींचने के लिए पशुओं यथा घोड़े, बैल, खच्चर, ऊँट, हाथी पर निर्भर थे अर्थात वाष्प ईंजन के आविष्कार से पहले यातायात के लोग पशु शक्ति पर निर्भर थे।

इसके बाद पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाली गाड़ियाँ आ गयी। नावों तथा जहाजों में भी पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाले ईंजन लगाये गये। 1900 के शुरू में वायुयान के आविष्कार ने फिर से यातायात के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ गया। वायुयान की गति अधिक होने से लोग कम समय में अधिक दूरी तय करने लगे।

यातायात के साधन को आज के आधुनिक युग में आने में बहुत सारे बदलाव तथा अग्निपरीक्षाओं से गुजरना पड़ा है।

लेकिन आधुनिकतम यातायात के साधनों के साथ साथ हमें तय की गयी दूरी को मापने की आवश्यकता होती है। बिना दूरी का मापन किये यह अंदाजा लगाना संभव नहीं है कि दो जगहों की दूरी कितनी है या कोई भी बस्तु कितनी लम्बी या चौड़ी है। नाव या किसी गाड़ी की लम्बाई कितनी होनी चाहिए।

मापन

मापन क्या है?

किसी अज्ञात राशि की निश्चित ज्ञात राशि से तुलना मापन है। इस ज्ञात निश्चित राशि को मात्रक कहा जाता है।

प्राचीन समय से ही लोग वस्तुओं के वजन, लम्बाई, तथा दूरी का मापन करते थे। प्राचीन समय में लम्बाई को गिल्ली डंडे, डंडा, बालिश्त, हाथ की लम्बाई, पैर की लम्बाई, डग की लम्बाई आदि से मापन किया करते थे।

कोहनी से लेकर हाथ की लम्बी उंगली के छोर तक की लम्बाई को प्राय: एक हाथ कहा जाता है। इस तरह की माप का उपयोग मिश्र में काफी प्रचलित थी। यहाँ तक कि भारत के गाँवों में आज भी इस तरह का मापन प्रचलित है।

फैली हुयी हाथ की लम्बी उंगली से सिरे से ठोढ़ी तक की लम्बाई का उपयोग मात्रक के रूप में कपड़ा व्यापारी किया करते थे। एक कदम की लम्बाई को मात्रक मानकर मापन रोम में प्रचलित थी, यहाँ तक कि भारत तथा कई अन्य देशों में भी।

भारत तथा अन्य कई देशों में एक अंगुली, दो अंगुली, तीन अंगुली तथा चार अंगुलियों की मोटाई तथा मुट्ठी की लम्बाई को मानक मानकर भी वस्तुओं के लम्बाई का मापन किया जाता था।

अंगुली की चौड़ाई को अंगुल तथा मुट्ठी की लम्बाई को मुट्ठी कहा जाता था। किसी वस्तु की लम्बाई या चौड़ाई के मापन में एक अंगुल, दो अंगुल, एक मुट्ठी, दो मुट्ठी, आदि का प्रयोग किया जाता था।

इस प्रकार लोग विभिन्न प्रकार के मानकों यथा एक कदम की लम्बाई, एक हाथ की लम्बाई, अंगुली की चौड़ाई, मुट्ठी की लम्बाई, गिल्ली डंडे की लम्बाई, आदि का उपयोग मापन के लिए किया करते थे।

यहाँ तक कि आज आधुनिक युग में भी गाँवों में खेतों के क्षेत्रफल को मापने के लिए हाथ की लम्बाई, कदम की लम्बाई, बाँस या अन्य डंडे की लम्बाई को मानक मानकर उपयोग किया जाता है। एक बाँस के डंडे को पाँच हाथ या छ: हाथ या सात हाथ, या एक कदम के गुणक की लम्बाई के बराबर काटकर मानक बना लिया जाता था तथा उससे खेतों के क्षेत्रफल तथा मकान आदि बनाते समय कमरे की लम्बाई चौड़ाई के मापन में उपयोग किया जाता था जो कि आज भी कई गाँवों प्रचलित है।

आपने कट्ठा, बिघा, आदि का नाम सुना होगा। यह खेतों के मापन से संबंधित मात्रक हैं जिनका उपयोग आज भी कई जगहों पर खेतों के क्षेत्रफल को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।

गाँवों में दो गाँवों की दूरी के मापन के लिए "कोश या कोस" शब्द का उपयोग किया जाता है जिसे अधिक दूरी के मापन में उपयोग किया जाता था।

लेकिन चूँकि विभिन्न व्यक्तियों हाथ की लम्बाई, बालिश्त की लम्बाई, एक कदम की लम्बाई, आदि समान नहीं होते हैं अत: सही सही मापन के लिए लोग विशेष प्रकार के मानक की आवश्यकता महसूस करते थे।

विभिन्न देशों तथा क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के मापन से भी समस्या बनी रहती थी। इसे दूर करने के लिए सर्वप्रथम फ्रांस में मिट्रिक प्रणाली शुरू की गयी जिसे मापन के लिए मानक के रूप में लिया गया।

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Reference:

NCERT Solution and CBSE Notes for class twelve, eleventh, tenth, ninth, seventh, sixth, fifth, fourth and General Math for competitive Exams. ©