पदार्थों का पृथक्करण: छठवीं विज्ञान


मिश्रण से घटकों का पृथक्क़रण

पदार्थ जो मिश्रण के रूप में होता हैं, में प्राय: कई प्रकार की अशुद्धियाँ रहती हैं। उन्हें उपयोग में लाने से पूर्व उनमें से अशुद्धियों तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को हटाना अनिवार्य होता है। कभी कभी मिश्रण में उपस्थित उपयोगी पदार्थों को भी अलग अलग अर्थात पृथक करना होता है। पृथक किये जाने वाले पदार्थो के कण छोटे या बड़े किसी भी आकार के हो सकते हैं, इसके साथ ही ये पदार्थ किसी भी भौतिक अवस्था अर्थात ठोस, द्रव या गैसीय अवस्था में हो सकते हैं। मिश्रण में उपस्थित उपयोगी तथा हानिकारक पदार्थों को पृथक करने की कई विधियाँ हैं। पृथक्क़रण की विधि का चयन मिश्रण में उपस्थित घटकों की भौतिक अवस्था, उनके कणों के आकार, तथा रंग पर निर्भर करती है।

पृथक्क़रण की विधियाँ

मिश्रण में से हानिकारक पदार्थ या उपयोगी पदार्थों को पृथक करने की इन विधियों का उपयोग दैनिक जीवन में होता रहता है।

हस्त चयन

हस्त चयन को हाथ से चुनना या हाथ से चुनकर अलग करना भी कहा जाता है। पृथक्क़रण के लिए हस्त चयन का उपयोग का अर्थ है उपयोगी तथा अनुपयोगी पदार्थों को हाथ से चुन करा अलग करना। इस हस्त चयन विधि का उपयोग प्राय: ठोस पदार्थों में से ठोस अशुद्धियों या अन्य ठोस पदार्थो को अलग करने के लिए किया जाता है। वह भी उसे स्थिति में जब पृथक किये जाने वाले पदार्थ की मात्रा कम तथा आकार या रंग अलग हों। हस्त चयन का उपयोग दैनिक जीवन में दाल, चावल या अन्य खाद्य पदार्थों से अशुद्धियों को अलग करने, सब्जियों से खर पतवार या अन्य अशुद्धियों को अलग करने के लिये किया जाता है।

हस्त चयन विधि के उपयोग के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ:

(क) किसी ठोस पदार्थ में से दूसरे ठोस पदार्थ को अलग करने की आवश्यकता हो,

(ख) तथा ठोस पदार्थ से अलग किये जाने वाले दूसरे ठोस पदार्थ की मात्रा कम हो साथ ही

(ग) अलग किये जाने वाले ठोस पदार्थ का आकार, प्रकार तथा रंग अलग हो ताकि उसे देखने पर उनमें अंतर किया जा सके।

उदाहरण

चावल, दाल, गेहूँ या अन्य अनाज में से कंकड़-पत्थर आदि को अलग करने में, शाक सब्जियों में से खर पतवार को अलग करने में, दाल तथा चावल के मिश्रण में यदि अलग किये जाने वाले अनाज की मात्रा कम हो, दो सब्जियों को अलग अलग करने में, इत्यादि में हस्त चयन का उपयोग किया जाता है।

थ्रेसिंग

फसल काटने के बाद अनाज के पौधों से अनाज के दानों को अलग करने की प्रक्रिया को थ्रेसिंग कहा जाता है।

थ्रेशिंग के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं।

एक विधि में फसल के पौधों को लकड़ी के बड़े टुकड़े या पत्थर या किसी अन्य सख्त टुकड़े पार पटक पटक कर या पीट पीट कर दानों को अलग किया जाता है।

दूसरी विधि में फसल के पौधों को एक मैदाननुमा खेत, जिसे खलिहान कहा जाता है, में गोलाकार रूप में जमा कर दिया जाता है। उस गोलाकार भाग के बीच बाँस या किसी अन्य पेड़ की लम्बी लकड़ी को गाड़ दिया जाता है। फिर चार-पांच या इससे अधिक बैलों को एक लम्बी तथा मोटी रस्सी से उस बीच में लगे खूंटे से बाँध कर फसल के ऊपर गोल गोल कुछ घंटे तक घुमाया जाता है। बैलों के फसल पर लगातार घूमने से फसल के दाने अलग हो जाते हैं। यह प्रक्रिया थ्रेशिंग कहलाती है।

आज आधुनिक युग में, फसल से दानों को अलग करने के लिए मशीन का उपयोग किया जाता है। ऐसे मशीन को थ्रेशिंग मशीन या थ्रेशर कहा जाता है।

थ्रेशिंग मशीन के उपयोग से कम समय में अधिक से अधिक फसल के पौधों से दानों को अलग किया जा सकता है।

निष्पावन

निष्पावन की विधि का उपयोग मिश्रण में उपस्थित भारी तथा हल्के अवयवों को पृथक करने में किया जाता है। निष्पावन की विधि में मिश्रण में वर्तमान हल्के अवयवों को अलग करने के लिए वायु अथवा पवन के झोंको की सहायता ली जाती है। निष्पावन का उपयोग प्राय: किसान थ्रेशिंग के पश्चात अन्नकणों में मिश्रित भूसे को अलग करने के लिए करते हैं।

निष्पावन की प्रक्रिया

निष्पावन की प्रक्रिया में भूसा मिश्रित अनाज जो थ्रेसिंग के पश्चात प्राप्त होता है, को एक छिछले बर्तन जो की प्राय: बाँस का बना होता है, में डाला जाता है तथा थोड़ा ऊंचे स्थान पर खड़े होकर इसे धीरे धीरे नीचे गिराया जाता है। नीचे गिरने के क्रम में अनाज के दाने जो भारी होते हैं ठीक नीचे गिर जाते हैं तथा भूसे जो हल्के होते हैं हवा के झोकों से दूर जाकर गिरते हैं, यहाँ प्रक्रिया भूसा मिश्रत पूरे अनाज के साथ दुहराई जाती है। इस तरह अनाज और भूसा अलग हो जाता है। उसके बाद अनाज तथा भूसा को अलग अलग निकाल कर संरक्षित कर लिया जाता है। अनाज का उपयोग खाद्य सामग्री के रूप में तथा भूसे का उपयोग मवेशी के चारे के रूप में किया जाता है।

निष्पावन की प्रक्रिया के हवा का थोड़ा तेज बहाव आवश्यक होता है, इसलिए निष्पावन तभी किया जाता है जब हवा तेज चल रही हो।

आधुनिक युग अर्थात आज के समय में थ्रेसिंग मशीन में ही एक पंखा लगा होता है जिसके द्वारा थ्रेसिंग के दौरान ही निष्पावन की प्रक्रिया भी सम्पन्न हो जाती है।

चालन

ठोसों के वैसे मिश्रण जिनके अवयवों के आकार भिन्न भिन्न हों, को चालन की प्रक्रिया द्वारा अलग किये जाते हैं।

चालन की प्रक्रिया का उपयोग दैनिक जीवन में आटे से चोकर, दाल या चावल से छोटे छोटे कंकड़, सूजी से कीड़ों, आदि को अलग करने में किया जाता है।

चालन की प्रक्रिया के लिए उपयोग किये जाने वाली युक्ति को चलनी, छन्नी, छलनी, या चालनी आदि कहा जाता है।

चलनी या छन्नी एक बड़े प्लेट के आकार की बर्तननुमा युक्ति होती है जिसके आधार अर्थात नीचे वाले भाग में कई छोटे छोटे छिद्र बने होते हैं। चलनी या छन्नी विभिन्न आकर के छिद्र वाले होते हैं जिनका चयन मिश्रण के अवयव के आकार के अनुसार किया जाता है।

चालन की प्रक्रिया में मिश्रण को चलनी में रखकर हिलाया जाता है जिससे मिश्रण में उपस्थित छोटे आकार वाले घटक चलनी के छिद्र से होकर नीचे गिर जाते हैं तथा बड़ी आकार वाले घटक चलनी के ऊपरी भाग में बचे रह जाते हैं।

आज के आधुनिक समय में भी चालन की प्रक्रिया का उपयोग बड़े बड़े फैक्ट्रियों में ठोस पदार्थ के मिश्रण में उपस्थित विभिन्न आकार वाले घटकों को अलग करने के लिए किया जाता है।

चालन विधि के कुछ उपयोग निम्नांकित हैं:

(क) आटे चोकर को हटाने के लिए।

(ख) सूजी से कीड़े तथा अन्य अशुद्धियों को अलग करने में।

(ग) बालू (रेत) से कंकड़ पत्थर आदि के टुकड़ों को अलग करने में। मकान आदि बनाते समय ईटों को जोड़ने के लिए सीमेंट में रेत मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है, इसके लिए रेत को सीमेंट में मिलाने से पूर्व उसमें से ईट तथा पत्थरों को छोटे छोटे टुकड़ों को अलग करने के लिए चालन की प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है।

6th-science-home

6th-science-home(hindi)

Reference:

NCERT Solution and CBSE Notes for class twelve, eleventh, tenth, ninth, seventh, sixth, fifth, fourth and General Math for competitive Exams. ©