पदार्थों के पृथक्करण का सारांश: भाग– 3
पदार्थों के पृथक्करण की विधियाँ भाग 3
(8) वाष्पीकरण
जल या किसी अन्य तरल पदार्थ का गर्मी पाकर वाष्प में परिणत होकर उड़ जाना वाष्पीकरण कहलाता है।
वाष्पीकरण की प्रक्रिया द्वारा किसी तरल में घुलनशील ठोस पदार्थ के मिश्रण से ठोस पदार्थ को पृथक किया जाता है।
उदाहरण
(1) समुद्री जल से साधारण नमक को वाष्पीकरण की प्रक्रिया द्वारा पृथक किया जाता है।
समुद्र के जल में नमक तथा कई और अशुद्धियाँ घुली होती हैं।
समुद्री जल को छोटी छोटी क्यारियों में जमा कर छोड़ दिया जाता है। कुछ दिनों में सूर्य की गर्मी से समुद्र का जल वाष्प में परिणत होकर हवा में उड़ जाता है तथा उसमें घुला हुआ नमक क्यारियों में बच जाता है। इस नमक को शुद्ध करने के पश्चात इसे खाने के काम में लाया जाता है।
(9) संघनन
वाष्प का ठंढ़ा होकर पुन: तरल में परिवर्तन संघनन कहलाता है।
जल तीन भौतिक अवस्थाओं में पाया जाता है, बर्फ (ठोस), जल (तरल) तथा जलवाष्प (गैस)। बर्फ को गर्म करने पर वह जल में परिणत हो जाता है। जल को को गर्म करने पर वह जलवाष्प में परिणत हो जाता है तथा जलवाष्प को ठंढ़ा करने पर वह पुन: जल में बदल जाता है। जलवाष्प को ठंढ़ा कर जल में परिवर्तन की प्रक्रिया संघनन है।
वाष्पीकरण तथा संघनन द्वारा जल या किसी अन्य तरल पदार्थ से घुलनशील ठोस अशुद्धियों को पृथक किया जाता है।
उदाहरण
जल तथा नमक के मिश्रण से जल तथा नमक का पृथक्करण
जल तथा नमक के मिश्रण को गर्म करने पर जल गर्म होकर जलवाष्प में बदल जाता है तथा नमक गर्म किये जाने वाले पात्र में बच जाता है। इस तरह से बने जलवाष्प को ठंढ़ा कर जल को पुन: प्राप्त कर लिया जाता है।
इस प्रकार वाष्पीकरण तथा संघनन की प्रक्रिया द्वारा जल तथा नमक के मिश्रण से जल तथा नमक को पृथक किया जाता है।
बर्षा या बारिश कैसे होती है?
एक साथ बहुत सारी जल की बूँदों का पृथ्वी पर गिरना बर्षा या बारिश कहलाती है। बर्षा या बारिश का होना वाष्पीकरण तथा संघनन का एक प्रचलित उदाहरण है।
समुद्र, नदियों तथा जलाशयों का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प में परिणत हो जाता है।
बहुत सारे जलवाष्प जब हवा में एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं, तो उसे बादल कहा जाता है।
चूँकि ऊँचाई बढ़ने पर तापमान कम होता जाता है, अत: बादल, जो जलवाष्प होता है, के हवा में ऊपर उठने के कारण धीरे धीरे वह ठंढ़ा हो जाता है, और वह संघनित होकर जल में बदल जाता है। जल का हवा से भारी होने के कारण वह बूँदों के रूप में पृथ्वी पर गिरने लगता है, जिसे बर्षा कहा जाता है।
पृथक्क़रण की एक से अधिक विधियों का उपयोग
प्रायोगिक रूप में अधिकांश मिश्रण के घटकों को पृथक करने के लिए एक से अधिक पृथक्करण विधियों का उपयोग किया जाता है, चूँकि कई मिश्रण के घटकों को पृथक करने के लिए पृथक्करण की एक ही विधि पर्याप्त नहीं होती है।
उदाहरण
(1) नमक तथा जल के मिश्रण से नमक तथा जल को अलग करने के लिए वाष्पीकरण तथा संघनन दोनों प्रक्रियाओं का उपयोग करना पड़ता है।
वाष्पीकरण विधि से नमक तथा जल के मिश्रण से नमक को पृथक किया जाता है, फिर जलवाष्प से जल को वापस प्राप्त करने के लिए जलवाष्प को संघनित कर जल प्राप्त किया जाता है।
(2) चीनी तथा जल के मिश्रण से चीनी तथा जल को पृथक करने के लिए वाष्पीकरण तथा संघनन दोनों प्रक्रियाओं का उपयोग करना पड़ता है।
(3) मिट्टी तथा जल के मिश्रण से मिट्टी तथा जल को पृथक करने के लिए अवसादन तथा निस्तारण दोनों विधियों का उपयोग करना होता है।
(4) तेल तथा जल के मिश्रण से तेल तथा जल दोनों को पृथक करने के लिए अवसादन तथा निस्तारण दोनों विधियों का उपयोग किया जाना आवश्यक है।
क्या जल किसी पदार्थ की कितनी भी मात्रा घोल सकता है?
नहीं। एक निश्चित मात्रा का जल जल में घुलनशील पदार्थ की एक निश्चित मात्रा ही घोल सकता है। उस निश्चित मात्रा से अधिक पदार्थ को जल में घोलने का प्रयास करने पर, वह घुलनशील पदार्थ जल में नहीं घुलेगा बल्कि जल के तल में बैठ जायेगा।
विलयन या घोल
तरल मिश्रण को घोल या विलयन कहा जाता है, जैसे नमक तथा जल का घोल, नमक तथा चीनी का घोल, सिरका तथा जल का घोल, दूध तथा जल का घोल, आदि।
घोल किसी तरल तथा ठोस, दो तरल पदार्थ का मिश्रण दोनों हो सकता है।
विलयन के घटक
विलयन के मुख्यत: दो घटक होते हैं, जिन्हें विलायक तथा विलेय कहा जाता है।
विलायक तथा विलेय
विलयन में जिस पदार्थ की मात्रा अधिक होती है उसे विलायक कहा जाता है। तथा विलयन में जिस पदार्थ की मात्रा कम होती है उसे विलेय कहा जाता है।
विलायक को घोलक तथा विलेय को घुल्य भी कहा जाता है।
विलयन के प्रकार
विलेय या घुल्य की मात्रा के अनुसार विलयन दो प्रकार के होते हैं, पहला असंतृप्त विलयन तथा दूसरा संतृप्त विलयन।
असंतृप्त विलयन
यदि किसी विलयन में विलेय की और अधिक मात्रा घोली जा सके तो ऐसे विलयन को असंतृप्त विलयन कहा जाता है।
संतृप्त विलयन
यदि किसी विलयन में विलेय की और अधिक मात्रा नहीं घोली जा सके या विलेय की और अधिक मात्रा नहीं घुल सके तो ऐसे विलयन को संतृप्त विलयन कहा जाता है।