अम्ल, क्षारक और लवण


सारांश: त्वरित अवलोकन के लिए

(1) कुछ पदार्थों का स्वाद खट्टा होता है। पदार्थों में अम्ल के होने के कारण उनका स्वाद खट्टा होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अम्ल होने के कारण ही किसी भी पदार्थ का स्वाद खट्टा होता है।

(2) पदार्थ जिनमें अम्ल पाया जाता है के रासायनिक गुण को अम्लीय गुण कहा जाता है। उदाहरण: नींबू, इमली, संतरा, दही, सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, इत्यादि।

(3) वैसे पदार्थ जिनका स्वाद कड़वा होता है और उसे ऊँगलियों के बीच रगड़ने पर साबुन की तरह महसूस होता है, में क्षारक पाया जाता है। क्षारक का स्वाद कड़वा होता है तथा उन्हें छूने पर अर्थात ऊँगलियों के बीच रगड़ने पर साबुन की तरह अनुभव होता है।

(4) क्षारक या वैसे पदार्थ जिनमें क्षारक होता है, के रासायनिक गुण को क्षारीय गुण कहा जाता है।

(5) सभी खट्टे फलों में अम्ल होता है। दूसरे शब्दों में, सभी खट्टे फल अम्लीय होते हैं।

(6) खट्टे खाद्य पदार्थों में पाये जाने वाले अम्ल प्राकृतिक होते हैं। इन्हें प्राकृतिक अम्ल कहा जाता है।

(7) सिरका में पाये जाने वाले अम्ल को एसिटिक अम्ल कहा जाता है। चींटी के डंक में फॉर्मिक अम्ल पाया जाता है। खट्टे फलों में साइट्रिक अम्ल पाया जाता है, जैसे नींबू, संतरा आदि। दही तथा दूध में लैक्टिक अम्ल पाया जाता है। आँवला में एसकॉर्बिक अम्ल पाया जाता है। ईमली, और कच्चे आम आदि में टारटरिक अम्ल पाया जाता है।

(8) चूना के जल में कैल्शियम हाइड्रोक्साइड नाम का क्षारक होता जाता है। खिड़कियों के सीसे साफ करने वाले द्रव मे अमोनियम हाइड्रोक्साइड नाम का क्षारक पाया जाता है। साबुन में सोडियम हाइड्रोक्साइड या पोटाशियम हाइड्रोक्साइड पाया जाता है। मिल्क ऑफ मैग्नीशिया में मैग्नेशियम हाइड्रोक्साइड पाया जाता है।

(9) "एसिड" एक अंग्रेजी शब्द है, जिसे हिंदी में "अम्ल" कहा जाता है, यह लैटिन भाषा के "एसियर" शब्द से आया है।

(10) अम्ल का स्वाद खट्टा होता है, लेकिन सभी पदार्थों को चख कर उसके अम्लीय या क्षारीय गुण का पता नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि सभी पदार्थों को चखना खतरनाक हो सकता है। इसलिए किसी पदार्थ के अम्लीय या क्षारीय गुण का पता लगाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें सूचक कहा जाता है। चूँकि यह पदार्थ किसी भी पदार्थ के अम्लीय या क्षारीय प्रकृति की सूचना देते हैं, अत: इन्हें सूचक के नाम से जाना जाता है। सूचक को "अम्ल-क्षारक सूचक" भी कहा जाता है। जैसे कि लिटमस पत्र, चाइना रोज (गुड़हल), हल्दी, फेनॉल्फथैलीन, इत्यादि। जो सूचक प्राकृतिक रूप में पाये जाते हैं उन्हें प्राकृतिक सूचक कहा जाता है।

(11) किसी पदार्थ के साथ मिलाने पर सूचक अपने रंग में परिवर्तन कर पदार्थ के अम्लीय या क्षारीय होने की सूचना देते हैं।

(12) लिटमस सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला सूचक है। लिटमस को लाइकेन नामक एक पौधे के अर्क (सत) से तैयार किया जाता है।

(13) लिटमस विलयन का मौलिक रंग हल्का बैगनी होता है।

(14) लिटमस विलयन लाल रंग में बदल जाता है जब इसमें या इसे अम्ल में मिलाया जाता है। अर्थात यदि किसी विलयन को लिटमस में मिलाने पर इसका रंग लाल हो जाये, तो वह विलयन अम्लीय होगा।

(15) लिटमस विलयन नीले रंग में बदल जाता है जब इसमें या इसे क्षारक में मिलाया जाता है। अर्थात यदि किसी विलयन को लिटमस में मिलाने पर इसका रंग नीला हो जाये, तो वह विलयन क्षारकीय होगा।

(16) विलयन के अलावे लिटमस पेपर स्ट्रिप के रूप में उपलब्ध होता है। लिटमस पत्र दो रंगों में उपलब्ध होता है, लाल और नीला।

(17) जब नीले लिटमस पत्र को अम्लीय विलयन में डाला जाता है तो यह लाल रंग में बदल जाता है। परंतु लाल रंग के लिटसम पत्र को अम्लीय विलयन में डालने पर इसके रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

(18) लाल रंग के लिटमस पत्र को क्षारीय घोल में डालने पर यह नीले रंग में बदल जाता है। वहीं नीले रंग के लिटमस पत्र को क्षारीय घोल में डालने पर उसके रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

(19) वैसे घोल जो न तो अम्लीय होते हैं और न ही क्षारीय, को उदासीन विलयन कहा जाता है।

(20) उदासीन विलयन में डालने पर लिटमस पत्र के रंगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(21) हल्दी, जो खाने में मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है, एक सूचक का कार्य करता है। अर्थात हल्दी एक प्राकृतिक सूचक है।

(22) हल्दी का पीला रंग क्षारक के साथ मिलकर लाल भूरे रंग में बदल जाता है। यही कारण है कि कपड़ों पर लगे हल्दी के दाग पर जब साबुन या सर्फ लगाया जाता है तो यह लाल भूरे रंग में बदल जाता है।

(23) हल्दी के पीले रंग पर अम्ल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(24) गुड़हल का फूल भी एक प्राकृतिक सूचक है। गुड़हल के फूलों की पंखुड़ियों को कुछ देर तक गर्म पानी में रखकर छनित कर लेने पर गुड़लहल के फूल का विलयन तैयार हो जाता है, जिसका उपयोग सूचक के रूप में किया जाता है।

(25) गुड़हल के फूल की पंखुड़ियों का विलयन मूल रूप से हल्के गुलाबी रंग का होता है।

(26) गुड़हल के फूल का विलयन अम्ल के साथ मिलकर गहरे गुलाबी रंग (मैजनेटा) में बदल जाता है तथा यह क्षार के साथ मिलकर हल्के हरे रंग में बदल जाता है।

(27) फेनॉल्फथैलीन भी एक महत्वपूर्ण और प्रचलित सूचक है, जिसका उपयोग अम्ल तथा क्षारक का पता करने के लिए प्रयोगशालाओं में होता है।

(28) फेनॉल्फथैलीन मूल रूप में एक रंगहीन तरल पदार्थ है।

(29) फेनॉल्फथैलीन क्षारक के साथ गुलाबी रंग में बदल जाता है लेकिन अम्ल के साथ रंगहीन ही रहता है।

(30) उदासीनीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें अम्ल तथा क्षारक को एक उचित अनुपात में मिलाने पर दोनों एक दूसरे को उदासीन बना देते हैं। इस प्रतिक्रया में लवण तथा जल बनता है और उष्मा उत्सर्जित होती है।

उदासीनीकरण का उदाहरण जब हाइड्रोक्लोरिक अम्ल को सोडियम हाइड्रोक्साइड के साथ उचित मात्रा में मिलाया जाता है, तो सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) और जल बनता है साथ ही इस प्रतिक्रिया में उष्मा उत्सर्जित होती है।

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) + सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) ⇒ सोडियम क्लोराइड (NaCl) + जल (H2O) + उष्मा

(31) चूँकि उदासीनीकरण की प्रतिक्रिया में लवण और जल बनने के साथ साथ उष्मा भी उत्सर्जित होती है, अत: इसे उष्माक्षेपी प्रतिक्रिया भी कहा जाता है।

(32) वैसी प्रतिक्रिया जिसमें उष्मा का उत्सर्जन होता है अर्थात उष्मा निकलती है, को उष्माक्षेपी प्रतिक्रिया कहा जाता है। उष्माक्षेपी प्रतिक्रिया को अंग्रेजी में एक्सोथर्मिक प्रतिक्रिया कहते हैं।

(33) उदासीनीकरण की प्रक्रिया को उदासीनीकरण प्रतिक्रिया कहा जाता है।

(34) अपाचन: जब कोई व्यक्ति जरूरत से अधिक; या वैसा पदार्थ खा लेता है, जिसका पाचन आसानी से नहीं होता है, तो इस स्थिति में अमाशय अधिक अम्ल स्त्रावित करने लगता है जिससे अमाशय में अम्ल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है। इसमें व्यक्ति; गले में जलन, पेट में गैस तथा बेचैनी महसूस करने लगता है। इस स्थिति को एसिडिटी (अतिअम्लता) तथा अपाचन कहा जाता है। कभी कभी यह अपाचन तथा एसिडिटी (अतिअम्लता) की स्थिति में व्यक्ति पेट में काफी दर्द भी महसूस करता है। ऐसे में डॉक्टर प्रतिअम्लक लेने की सलाह देते हैं।

प्रतिअम्लक एक प्रकार का क्षारक होता है, जिसे खाने से यह पेट में वर्तमान अम्ल की मात्रा को उदासीन बना देता है, तथा पीड़ित व्यक्ति को अपाचन से छुटकारा मिल जाती है।

प्रतिअम्लक दवा के रूप में डाइजीन, मिल्क ऑफ मैग्नीशिया, इनो, इत्यादि नाम से दवा की दुकान से खरीदा जा सकता है। ये दवाएँ क्षारक से निर्मित होती हैं। ये प्रतिअम्लक दवाएँ सिरप तथा टैबलेट के रूप में बाजार में उपलब्ध होता है।

(35) चींटी का काटना: काटने के क्रम में चींटी त्वचा में फॉर्मिक अम्ल छोड़ देती है। इस अम्ल के त्वचा के अंदर चले जाने के कारण पीड़ित व्यक्ति चींटी द्वारा काटे गये स्थान पर दर्द एवं जलन महसूस करता है।

इस स्थिति में चींटी द्वारा काटे गये स्थान (त्वचा के निकट) पर खाने वाला सोडा या कैलामाइन का घोल लगाया जाता है। खाने वाला सोडा एक क्षारक होता है। कैलामाइन का घोल जिंक कार्बोनेट का बना होता है। जिंक कार्बोनेट भी एक क्षारक है। क्षारक को काटे गये स्थान (त्वचा) पर रगड़ने से यह चींटी द्वारा छोड़े गये अम्ल को उदासीन बना देता है जिससे पीड़ित व्यक्ति को दर्द से राहत मिल जाती है।

(36) मृदा उपचार : कई बार अधिक उर्वरक के उपयोग के कारण खेतों की मिट्टी में अम्ल या क्षारक की मात्रा बढ़ जाती है, जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को कम कर देती है जिससे उपज में कमी आ जाती है।

मिट्टी के अम्लीय हो जाने की स्थिति में इसमें कली चूना या बुझा हुआ चूना मिलाया जाता है। कली चूना या बुझा हुआ चूना एक प्रकार का क्षारक होता है जो मिट्टी में वर्तमान अम्ल की मात्रा को उदासीन बना देता है तथा खेतों की उर्वरा शक्ति पुन: वापस आ जाती है।

इसी तरह मिट्टी में क्षारक की मात्रा बढ़ जाने की स्थिति में इसमें जैविक पदार्थ मिलाया जाता है। जैविक पदार्थ अम्ल उत्सर्जित करते हैं जो मृदा की क्षारकता को उदासीन बना देता है तथा ऐसी मिट्टी खेती के लिए पुन: उपयुक्त हो जाती है।

(37) कारखानों का अपशिष्ट: कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट में अम्लीय पदार्थ मिले होते हैं। यदि ऐसे अपशिष्ट को सीधे जलाशयों या नदियों में बहा दिये जायें तो इससे जलीय जीव तथा पौधों मर जायेंगे। जिससे पर्यावरण को काफी हानि हो सकती है।

अत: कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट को जल में बहाने से पहले उसे क्षारक से उपचारित किया जाता है, ताकि अपशिष्ट की अम्लीयता को उदासीन बनाया जा सके।

(38) अम्ल बर्षा : वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएँ में कार्बन डायऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, आदि हानिकारक गैसे होती हैं। कार्बन डाइऑक्साइड गैस जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल, सल्फर डाइऑक्साइड गैसे जल में घुअलकर सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस जल में घुलकर नाइट्रिक अम्ल बनाती है। हवा में वर्तमान ऐसी हानिकारक गैस बर्षा के जल में घुल जाती है तथा अम्ल के रूप में बर्षा की बूँदों के साथ पृथ्वी पर गिरती है। ऐसी बर्षा को अम्ल बर्षा कहा जाता है। अम्ल बर्षा पौधों, जैव पदार्थों, पुरानी इमारतों और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचाती है।

(39) चूना जल तैयार किया जाना: कली चूना को जल में मिलाने पर कैलिशियम हाइड्रोक्साइड बनता है तथा काफी उष्मा निकलती है। इसे ठंढ़ा होने के बाद छान लेने पर, यह चूना जल कहलाता है।

(40) हल्दी पत्र बनाना : छन्ना पत्र या ब्लॉटिन पेपर को हल्दी पाउडर के गाढ़े घोल में डुबाकर या इसपर हल्दी का पेस्ट लगाने के बाद सुखाकर हल्दी पत्र तैयार किया जा सकता है। हल्दी पेपर का सूचक से रूप में उपयोग करने में आसानी होती है।

(41) डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल का संक्षित रूप डीएनए है। डीएन सभी जीवों के शरीर में पाया जाता है, जो उस जीव के रूप, रंग, विशेषता आदि को सुनिश्चित करता है। प्रत्येक व्यक्ति का डीएनए अद्वितीय होता है अर्थात किसी भी दो व्यक्ति का डीएनए एक जैसा नहीं हो सकता है।

(42) प्रोटीन जो हमारे शरीर की कोशिकाओं का निर्माण करता है, एमीनो अम्ल का बना होता है।

(43) वसा जो खाद्य तेल अन्य कयी खाद्य सामग्रियों में पाया जाता है, वास्तव में यह वसा अम्ल का बना होता है।

7-science-home(Hindi)

7-science-English


Reference: