हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के कार्य करता है, जैसे चलना, दौड़ना, बोलना, पढ़ना, आदि। शरीर को सभी प्रकार के कार्य करने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि सोने की स्थिति में भी हमारे शरीर को उर्जा की आवश्यकता होती है।
यह उर्जा हम भोजन से प्राप्त करते हैं। पाचन के बाद भोजन ग्लूकोज में परिणत हो जाता है जो रूधिर (खून) के साथ मिलकर सभी कोषिकाओं (सेल) में पहुँचता है। कोषिकाओं में यह ग्लूकोज ऑक्सीजन की उपस्थिति में विघटित होकर उर्जा मुक्त करता है। हमारा शरीर इस तरह से प्राप्त उर्जा का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए करता है।
शरीर की कोषिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज के विघटन से उर्जा प्राप्त होने की प्रक्रिया श्वसन कहलाती है।
हमारे शरीर में ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से उर्जा के प्राप्त होने की प्रक्रिया श्वसन कहलाती है।
चूँकि श्वसन की प्रक्रिया कोषिकाओं में सम्पन्न होता है, अत: इसे कोषिकीय श्वसन भी कहा जाता है।
भोजन शरीर में पाचन के बाद ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है। यह ग्लूकोज रूधिर में मिलकर शरीर की कोषिकाओं में पहुँचता है। कोषिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में यह ग्लूकोज; कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है तथा उर्जा मुक्त होती है।
श्वसन की प्रक्रिया में होने वाली प्रतिक्रिया निम्नांकित रूप से दर्शायी जा सकती है:
ग्लूकोज + ऑक्सीजन ⇒ कार्बन डाइऑक्साइड + जल + उर्जा
C6H12O6 (ग्लूकोज) + 6O2 (ऑक्सीजन) ⇒ + 6CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) + 6H2O (जल) + उर्जा
अधिकांश सजीवों में श्वसन की प्रक्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। लेकिन सूक्ष्मजीवों में श्वसन की प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सम्पन्न होती है।
अत: ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर श्वसन की प्रक्रिया को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
(a) वायवीय श्वसन (एरोविक रेसपिरेशन)
(b) अवायवीय श्वसन (एनारोविक रेसपिरेशन)
शरीर की कोषिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज का विघटन वायवीय श्वसन (एरोविक रेसपिरेशन) कहलाता है।
वायवीय श्वसन में ग्लूकोज का विघटन होता है, जिसमें उर्जा मुक्त होने के साथ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। इस कार्बन डाइऑक्साड को हम श्वास द्वारा बाहर छोड़ देते हैं।
वायवीय श्वसन में ग्लूकोज का पूर्ण विखंडन होता है तथा अधिक मात्रा में उर्जा प्राप्त होती है। वायवीय श्वसन उर्जा निर्मुक्ति की दृष्टिकोण से एक कुशल तथा दक्ष प्रक्रिया है।
वायवीय श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन हम श्वास लेकर प्राप्त करते हैं। वायवीय श्वसन में बनने वाला कार्बन डाइऑक्साइड और जल श्वास द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। चूँकि वायवीय श्वसन में ऑक्सीजन के निर्बाध तथा सतत आपूर्ति की आवश्यकता होती है, अत: हम जीवन पर्यंत श्वास लेते रहते हैं।
साँस लेने तथा छोड़ने की प्रक्रिया को श्वसन भी कहा जाता है।
यही कारण है कि सभी जीवों को जीवित रहने के लिए श्वसन की आवश्यकता होती है। श्वसन की प्रक्रिया को गैसों का आदान प्रदान भी कहा जा सकता है।
शरीर की कोषिकाओं में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज का विघटन अवायवीय श्वसन कहलाता है।
"अ + वायवीय" में "अ" एक नकारात्मक उपसर्ग है, जिसका अर्थ है "नहीं" अत: "अ-वायवीय" का अर्थ होता है बिना वायु के या वायु की अनुपस्थिति में। यहाँ वायु से तात्पर्य है, ऑक्सीजन।
अवायवीय श्वसन में ग्लूकोज का आंशिक विघटन ही होता है फलत: इसमें उर्जा की अपेक्षाकृत कम मात्रा निर्मुक्त होती है। मानव शरीर में आवायवीय श्वसन में उर्जा निर्मुक्त होने के साथ साथ लैक्टिक अम्ल उपोत्पाद [उप-उत्पाद (बाइ प्रोडक्ट)] के रूप में प्राप्त होता है।
जबकि सूक्ष्मजीवों में आवयवीय श्वसन में उर्जा मुक्त होने के साथ साथ एल्कोहॉल तथा तथा कार्बन डाइऑक्साइड उपोत्पाद [उप-उत्पाद (बाइ-प्रोडक्ट)] के रूप में प्राप्त होता है।
अवायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया को निम्नांकित रूप से दर्शाया जा सकता है:
मानव शरीर में अवायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया:
ग्लूकोज (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में) → लैक्टिक अम्ल + उर्जा
सूक्षजीवों में अवायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया
ग्लूकोज (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में) → एल्कोहॉल + कार्बन डाइऑक्साइड + उर्जा
कभी कभी सामान्य से अधिक शारीरिक कार्य करने, यथा अधिक दौड़ने, तेजी से देर तक चलने, अधिक व्यायाम करने, तेजी से साइकल चलाने, आदि में हमारे शरीर को सामान्य से अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है। इस अधिक उर्जा प्राप्ति के लिए हमारे शरीर को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जिसके कारण हम तेजी से साँस लेने लगते हैं, परंतु हमारे शरीर के ऑक्सीजन आपूर्ति की क्षमता सीमित है। इस स्थिति में माँसपेशियों की कोषिकाएँ कुछ समय के लिए बिना ऑक्सीजन के ही श्वसन करने लगती है तथा इस अतिरिक्त आवश्यक ऑक्सीजन की पूर्ति करती है।
अवायवीय श्वसन की प्रक्रिया में उर्जा निर्मुक्त होने के साथ ही साथ लैक्टिक अम्ल उप-उत्पाद के रूप में बनता है। लैक्टिक अम्ल के माँसपेशियों की कोषिकाओं में जमा हो जाने के कारण माँसपेशियों में ऐंठन तथा दर्द होने लगती है।
अवायवीय श्वसन के क्रम में लैक्टिक अम्ल के जमा हो जाने के कारण माँसपेशियों में होने वाली ऐंठन, आराम करने, गर्म पानी से स्नान करने तथा मालिश करने से दूर हो जाती है। आराम करने, गर्म पानी से स्नान करने, तथा मालिश करने से माँसपेशियों में रक्त का संचार बढ़ जाता है। रक्त के संचार बढ़ने से ऑक्सीजन की अधिक मात्रा माँसपेशियों की कोषिकाओं में पहुँचने लगती है जिससे उसमें जमा लैक्टिक अम्ल का पूर्ण विधटन होता है फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड और जल बन जाता है। लैक्टिक अम्ल के विघटित हो जाने से माँसपेशियों में होने वाली ऐंठन दूर हो जाती है।
माँशपेशियों में होने वाले अवायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया को निम्नांकित रूप से दर्शाया जा सकता है:
ग्लूकोज (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विघटन) → लैक्टिक अम्ल + उर्जा
अधिकांश सूक्ष्मजीवों, विशेषकर कीटों में अवायवीय श्वसन होता है।
चूँकि कीटों में अवायवीय श्वसन होता है, अत: इन्हें अवायवीय जीव (एनारोव) भी कहा जाता है।
सूक्ष्मजीवों में होने वाले अवायवीय श्वसन में उर्जा के साथ साथ एल्कोहॉल (इथाइल एलोहॉल) तथा कार्बन डाइऑक्साइड उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।
उदाहरण के लिए यीस्ट, जो एक सूक्ष्मजीव है, वायवीय श्वसन के द्वारा ही उर्जा प्राप्त करता है। सूक्ष्मजीवों का यह गुण उन्हें बिना हवा के भी जीवित रहने में सक्षम बनाता है।
सूक्ष्मजीवों में अवायवीय श्वसन की प्रक्रिया में होने वाले रासायनिक प्रतिक्रिया को निम्नांकित रूप से दर्शाया जा सकता है:
ग्लूकोज (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विखंडन) → एक्लोहॉल (इथाइल एल्कोहॉल) + कार्बन डाइऑक्साइड + उर्जा
सूक्ष्मजीवों में होने वाले अवायवीय श्वसन के क्रम में बनने वाले एल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कई कार्यों में होता है।
जलेबी, इडली-बड़े, पकौड़ा, ब्रेड, आदि किण्वित (फर्मेंटेड) मैदा या आटे से बनाया जाता है। मैदा को गूँथने के बाद गर्म जगह पर कुछ घंटे के लिए छोड़ देने से सूक्ष्मजीव श्वसन के क्रम में एल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनाने लगते हैं, इसके लिए मैदा में यीस्ट, जो कि एक सूक्षमजीव है, मिलाया जाता है। सूक्षमजीव द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड बनाने के कारण मैदा स्पॉंजी हो जाता है जिससे इससे बनाने वाले ब्यंजन पकाने के क्रम में फूल जाते हैं तथा मुलायम हो जाते हैं।
भोजन सामग्री में सूक्ष्मजीवों दारा एल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनाये जाने की प्रक्रिया किणवन (फर्मेंटेशन) कहलाता है।
फल, यथा सेब, अंगूर, आदि के रस को कुछ दिनों तक छोड़ देने पर इसमें सूक्ष्मजीव पनप जाते हैं तथा इन सूक्ष्मजीवों के द्वारा श्वसन के क्रम में एल्कोहॉल बनाने से फल का रस शराब में परिणत हो जाता है। शराब में एक्लोहॉल मुख्य घटक है, जो सूक्ष्मजीवों के श्वसन की प्रक्रिया के क्रम में बनता है।
गन्ने के रस के किण्वन से सिरका तैयार होता है। गन्ने के रस को गर्म जगह कुछ दिनों के लिए छोड़ देने पर इसमें सूक्ष्मजीव पनप जाते हैं, जिनके श्वसन के क्रम में एल्कोहॉल बनता है, जो हवा से सम्पर्क में आकर सिरका में परिवर्तित हो जाते हैं।
दूध से दही और चीज बनाने में भी सूक्ष्मजीवों के अवायवीय श्वसन का उपयोग होता है। दही बनाने के लिए हल्के गर्म दूध में थोड़ी दही की मात्रा डालना पड़ता है। दही में लैक्टोबेसाइलस नामक सूक्ष्मजीव पाये जाते हैं। गर्मी पाकर इन सूक्ष्मजीव की संख्या में तेजी से बृद्धि होने लगती है, तथा कुछ ही घंटों में पूरा दूध दही में परिणत हो जाता है। ये सूक्ष्मजीव हवा की अनुपस्थिति में श्वसन अर्थात अवायवीय श्वसन करते हैं।
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