जीवों में श्वसन


मानव में श्वसन

श्वसन जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। बिना श्वसन के कोई भी जीवित नहीं रह सकता।

मानव में श्वसन के लिए एक विशेष तथा कुशल रचनातंत्र है जिसे श्वसन प्रणाली कहा जाता है।

मानव में श्वसन दो चरणों सम्पन्न होता है। पहले चरण में कोषिकाओं में ग्लूकोज का विघटन होता है जिसमें उर्जा निमुक्त होती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड और जल उपोत्पाद के रूप में बनता है। दूसरे चरण में श्वसन में बनने वाले उपोत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड गैस रक्त के माध्यम से फेफड़े में पहुँचती है जहाँ से यह साँस द्वारा बाहर छोड़ दिया जाता है तथा यही रक्त ऑक्सीजन ग्रहण कर उसे पुन: कोषिकाओं तक पहुँचाता है।

हमारे शरीर के पास गैसों (ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड) के आदान प्रदान के लिए एक कुशल रचनातंत्र है जिसे श्वसन प्रणाली कहा जाता है।

श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन हम साँस द्वारा ग्रहण करते हैं तथा श्वसन के बाद बनने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को साँस द्वारा बाहर छोड़ देते हैं। ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर छोड़ने की प्रक्रिया को गैसों का आदान प्रदान भी कहा जा सकता है।

कोषीकीय श्वसन को सम्पन्न करने के लिए हम साँस लेते तथा छोड़ते हैं अर्थात साँस लेना तथा छोड़ना कोषीकीय श्वसन का एक भाग है।

साँस लेना तथा छोड़ना (श्वसन)

श्वसन की प्रक्रिया साँस लेने से शुरू होती है तथा साँस छोड़ने पर खत्म होती है, अर्थात साँस लेना तथा छोड़ना श्वसन प्रक्रम का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

हम ऑक्सीजन युक्त वायु साँस लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड साँस द्वारा बाहर छोड़ते हैं। बिना ऑक्सीजन के कोई भी जीव थोड़ी देर भी जीवित नहीं रह सकता है, यही कारण है कि प्रत्येक जीव निर्बाध रूप से सतत साँस लेता रहता है।

साँस लेने के बाद ऑक्सीजन से समृद्ध वायु श्वास नली से होकर फेफड़े में पहुँचती है। फेफड़े में ऑक्सीजन रक्त के साथ मिलकर कोशिकाओं में जाती है। कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में भोजन का विखंडन होता है जिसमें उर्जा निमुक्त होती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड और जल बनता है। वहाँ से कार्बन डाइऑक्साइड पुन: रक्त के साथ मिलकर फेफड़े में पहुँचती है तथा साँस द्वारा बाहर छोड़ दिया जाता है।

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चित्र1 : मानव फेफड़े में गैसों का विनिमयन (कृपया संदर्भ के लिए नीचे देखें)

अंत:श्वसन और उच्छ्वसन

ऑक्सीजन से समृद्ध वायु को साँस द्वारा लेने की प्रक्रिया अंत:श्वसन कहलाती है। तथा साँस द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर छोड़ना उच्छ्वसन कहलाता है।

एक अंत:श्वसन और उच्छ्वसन एक श्वसन कहलाता है।

अंत:श्वसन को अंग्रेजी में इनहेलेशन या इंस्पिरेशन कहते हैं तथा उच्छ्वसन को एक्सेलेशन या एस्पाइरेशन कहते हैं।

श्वसन एक सतत और निर्बाध रूप से चलने वाली प्रक्रिया है। प्रत्येक जीवन पर्यंत लगातात निर्बाध रूप साँस लेता रहता है।

श्वसन दर

एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में जितनी बार साँस लेता तथा छोड़ता है, उसे श्वसन दर कहा जाता है।

अधिक शारीरिक श्रम करने यथा दौड़ने, तेजी से चलने, व्यायाम करने, आदि में अतिरिक्त उर्जा की आवश्यकता होती है तदनुसार श्वसन के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसे पूरा करने के लिए सामान्य से अधिक शारीरिक श्रम करने पर हम तेजी से साँस लेने लगते हैं। अर्थात इस स्थिति में श्वसन दर बढ़ जाता है।

उसी प्रकार सोने की स्थिति में हमें कम उर्जा की आवश्यकता होती है और इस स्थिति में श्वसन दर कम हो जाता है।

सामान्य श्वसन दर

एक स्वस्थ युवक सामान्य रूप से एक मिनट में On an average, an adult human being at rest breathes 15 से 18 बार साँस लेता है। अर्थात एक स्वस्थ युवक में श्वसन दर 15 से 18 होती है।

सामान्य से अधिक शारीरिक श्रम करने की स्थिति में एक स्वस्थ युवक की श्वसन दर 25 बार प्रति मिनट तक हो जाती है। श्वसन दर बढ़ने की स्थिति में न केवल हम जल्दी जल्दी तथा गहरी साँस लेने लगते हैं।

हम श्वसन कैसे करते हैं?

मानव श्वसन तंत्र

हम फेफड़े के द्वारा श्वसन करते हैं। श्वसन की प्रक्रिया में फेफड़े के साथ साथ अन्य कई अंग मदद करते हैं। वे सारे अंग जिनके उपयोग से हम श्वसन करते हैं श्वसन तंत्र कहलाता है। हमारे श्वसन तंत्र के मुख्य अंग हैं नासिका गुहा, ग्रसनी, श्वास नली, श्वसनी, फेफड़ा, तथा डायफ्राम।

नासिका गुहा

श्वसन हमारे नाक से शुरू होता है। हम नाक से द्वारा ही साँस लेते हैं। हमारी नाक के भीतरी भाग में दोनों ओर गुफा के आकार का खाली स्थान होता है, जिसे नासिका गुहा कहा जाता है।

नासिका गुहा में छोटे छोटे बालों का जाल होता है। तथा नासिका गुहा के भीतरी सतह से श्लेष्मा (म्यूकस) स्त्रावित होता है। नासिका गुहा में अवस्थिति बालों का जाल तथा भीतरी सतह से स्त्रावित होने वाला श्लेष्मा वायु में उपस्थित धूल कणों को अंदर जाने से रोक देती है ताकि स्वच्छ वायु ही अंदर जा सके।

सातवीं विज्ञान जीवों में श्वसन मानव श्वसन तंत्र

चित्र2 : मानव श्वसन तंत्र (चित्र के संदर्भ के लिए कृपया नीचे देखें)

ग्रसनी

ग्रसनी नासिका गुहा के ठीक बाद अवस्थित होता है। मुख गुहा और नासिका गुहा दोनों ही ग्रसनी में खुलते हैं तथा यहाँ से श्वास नली तथा ग्रास नली अलग अलग होती है। मुख गुहा और नासिका गुहा दोनों का ग्रसनी में खुलने का लाभ यह है कि यदि किसी कारण से नासिका गुहा में कोई अवरोध हो तो मनुष्य मुख से साँस ले सके।

कंठ (लैरिंस)

ग्रसनी के बाद कंठ स्थित होता है। यहाँ से श्वास नली आरंभ होती है।

श्वास नली (ट्रैकिया)

श्वास नली एक लचीली नली होती है। श्वास नली कंठ से शुरू होकर फेफड़े तक जाती है। श्वास नली में वलय के आकार की कई उपास्थि होती है, जो श्वास नली को सिकुड़ने से बचाये रखती है जिससे वायु को फेफड़े तक पहुँचने में कोई अवरोध न हो।

श्वसनी

श्वास नली आगे छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाती है जिसे श्वसनी कहा जाता है। साँस द्वारा लिया गया वायु श्वसनिकाओं से होकर फेफड़े में पहुँचती है। तथा कार्बन डाइऑक्साइड इनहीं श्वसनिकाओं का उपयोग कर बाहर निकलती है जिसे हम साँस छोड़ने के क्रम में बाहर निकालते हैं।

फेफड़ा

मनुष्य का फेफड़ा दो भागों में विभक्त रहता है, एक बायाँ फेफड़ा तथा दूसरा दायाँ फेफड़ा। फेफड़े की संरचना एक थैली की तरह होती है जो पसलियों से धिरी होती है। पसलियाँ फेफड़े के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है।

साँस के द्वारा ऑक्सीजन समृद्ध वायु में से ऑक्सीजन फेफड़े में जाकर रक्त में मिल जाता है जहाँ से यह शरीर के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है। तथा विभिन्न हिस्सों से रक्त के द्वारा लाया गया कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़े में आकर श्वास नली द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

डायफ्राम

डायफ्राम एक बड़ी सी माँसल झिल्ली होती है जो वक्ष गुहिका को उदर गुहा (पेट) से अलग करती तथा रखती है। वक्ष गुहिका में हृदय तथा फेफड़ा होता है जबकि उदर गुहा में पाचन तंत्र अवस्थित होता है। अर्थात जहाँ फेफड़ा तथा हृदय अवस्थित होता है उसे वक्ष गुहिका कहते हैं तथा जहाँ पाचन तंत्र अवस्थिति होता है उसे उदर गुहिका कहा जाता है।

श्वास लेने की प्रक्रिया

श्वास लेने के क्रम में ऑक्सीजन से समृद्ध वायु नासिका गुहा, ग्रसनी, श्वास नली होते हुए फेफड़े में पहुँचती है।

फेफड़ों के नीचे अवस्थित डायफ्राम ऊपर तथा नीचे गति कर श्वास लेने तथा छोड़ने में मदद करता है।

जब हम श्वास अंदर लेते हैं तो डायफ्राम नीचे की ओर जाता है जिससे फेफड़ों का आयतन बढ़ जाता है तथा वायु आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है।

श्वास छोड़ने के क्रम में डायफ्राम ऊपर की ओर गति करता है जिससे फेफड़ों का आयतन कम होने के कारण दबाव बढ़ जाता है और श्वास छोड़ने में आसानी होती है।

सातवीं विज्ञान जीवों में श्वसन मानव में श्वसन की प्रक्रिया

चित्र3 : मानव में श्वसन की प्रक्रिया (चित्र के संदर्भ के लिए कृपया नीचे देखें)

श्वास लेने के क्रम में हम ऑक्सीजन से समृद्ध वायु अंदर लेते हैं तथा श्वास छोड़ने के क्रम में हम कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वायु बाहर की ओर छोड़ते हैं।

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Reference:

चित्र1 : Exchange of gases in human lungs By domdomegg - Own work, CC BY 4.0, Link

चित्र2 : Respiratory System Human Reference: By Lord Akryl, Jmarchn - Vectorized version of File:Illu conducting passages.jpg, which was in the public domain as a work of the US Government, Public Domain, Link

चित्र3 : Breathing in Human By John Pierce - Own work, CC0, Link