कीटों तथा सूक्ष्मजीवों में श्वसन तंत्र मानव से भिन्न होता है। मानव तथा अन्य कई जटिल जीव, जो बड़े होते हैं को अधिक उर्जा की आवश्यकता के अनुरूप श्वसन तंत्र काफी विकसित होता है।
लेकिन कई छोटे छोटे जीवों जैसे कि कीट आदि जिन्हें कम उर्जा की आवश्यकता होती है, का श्वसन तंत्र, बड़े जीवों से भिन्न होता है।
एक कोशिकीय जीव, कीट, तथा सूक्ष्मजीवों में श्वसन की प्रक्रिया विसरण (डिफ्यूजन) तथा परासरण (ऑसमोसिस) के माध्यम से सम्पन्न होती है।
तिलचट्टा, केंचुआ, मछली, मेंढ़क आदि इन जीवों के कुछ उदाहरण हैं।
तिलचट्टा (कॉकरोच) के शरीर में गैसों के आदान प्रदान के लिए वायु नाल का एक जाल होता है। वायु नाल के इस जाल को श्वास प्रणाल या वातक कहा जाता है, इसे अंग्रेजी में ट्रैकिया (Trachea) कहते हैं। तिलचट्टे के शरीर के पार्श्व में छोटे छोटे छेद होते हैं जिनके द्वारा ये साँस लेते हैं, इन छिद्रों को श्वास रंध्र कहते हैं जिन्हें अंग्रेजी में स्पाइरैकल (Spiracle) कहते हैं।
इस प्रकार के श्वास रंध्र तथा श्वास प्रणाली केवल कीटों में पायी है, अन्य जंतुओं में नहीं।
तिलचट्टे श्वास रंध्र से ऑक्सीजन युक्त वायु अंदर लेते हैं जो श्वास प्रणाली होकर उनके शरीर के सभी कोशिकाओं में पहुँचता है, तथा शरीर की कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड पुन: श्वास प्रणाली होते हुए श्वास रंध्रों से होकर बाहर निकल जाता है।
केंचुए की त्वचा आर्द्र तथा श्लेष्मी प्रतीत होती है। केंचुए उनकी इन्हीं आर्द्र तथा श्लेष्मी त्वचा के द्वारा साँस लेते हैं। इनकी त्वचा से होकर गैसों का विनिमय आसानी से हो जाता है। त्वचा द्वारा ली गयी ऑक्सीजन से युक्त वायु केंचुए के रूधिर में मिलकर कोशिकाओं तक पहुँचती है तथा कोशिकाओं से कार्बन डायऑक्साइड रूधिर में मिलकर त्वचा के द्वारा बाहर निकल जाता है। केचुँए में श्वसन की प्रक्रिया गैसों का विनिमय परासरण (ऑसमोसिस) के द्वारा सम्पन्न होती है।
वैसा जीव जो स्थल तथा जल दोनों में आसानी से श्वास ले सकता है तथा जीवित रह सकता है को उभयचर कहा जाता है।
मेढ़क एक उभयचर है। मेंढ़क स्थलीय क्षेत्र तथा जल दोनों में आसानी से श्वास ले सकता तथा जीवित रह सकता है।
मेढ़क की त्वचा श्लेष्मी होती है जिससे परासरण की प्रक्रिया द्वारा गैसों का विनिमय होता है, तथा मेढ़क के पास फेफड़ा भी होता है। इन गुणों के कारण मेढ़क थल तथा जल दोनों में आसानी से श्वास ले सकता है।
जब मेढ़क जल में रहता है, तो उनकी श्लेष्मी त्वचा से श्वास लेता है तथा जब स्थल पर होता है, तो फेफड़े से श्वास लेता है।
बहुत सारे जंतु जल में रहते हैं तथा जल में घुली हुयी ऑक्सीजन को श्वास द्वारा ग्रहण करते हैं, इस कार्य के लिए उनका श्वसन तंत्र स्थलीय जीवों से अलग प्रकार का होता है।
अन्य जलीय जीवों की तरह ही मछली जल में घुली हुयी ऑक्सीजन को श्वास द्वारा ग्रहण करती है। जल में श्वास लेने के लिए मछली के पास एक विशेष अंग होता है, जिसे गिल या क्लोम कहा जाता है। गिल मछली के सिर के दोनों ओर होता है। मछली श्वास लेने के लिए गिल के होकर जल को अंदर लेती है जिससे जल में घुली हुयी ऑक्सीजन गिल में वर्तमान रक्त वाहिनियों के द्वारा अवशोषित होकर उसके विभिन्न अंगों तक पहुँचती है, तथा कार्बन डाइऑक्साइड विभिन्न अंगों से रक्त में मिलकर पुन: गिल से होकर बाहर निकल जाता है। गिल में रक्त वाहिनियों की संख्या काफी अधिक होने के कार गिल का रंग लाल दीखता है।
चित्र1 : गिल या क्लोम (चित्र के संदर्भ के लिए कृपया नीचे देखें)
पौधे तथा पेड़ भी जीवित रहने के लिए श्वसन करते हैं। श्वसन के क्रम में पादप ऑक्सीजन अंदर लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। पौधों की कोशिकाओं में भी, अन्य जीवों की भाँति, ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोस के विखंडन से उर्जा निर्मुक्त होती है तथा उपोत्पाद के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनता है, जो श्वसन के क्रम में बाहर निकाल दिया जाता है।
पादपों के पास जंतुओं की तरह कोई श्वसन प्रणाली नहीं होती है, बल्कि पादपों के तने, टहनियों, पत्तों तथा जड़ों की बाहरी परत में कई सूक्षम छिद्र होते हैं, जिनकी सहायता से पादप श्वास लेते तथा छोड़ते हैं।
पापद की पत्तियों में पाये जाने वाले सूक्षम छिद्रों को स्टोमैटा या स्टोमाटा कहा जाता है जिनके द्वारा पौधे श्वास लेते तथा छोड़ते हैं। पादप के पत्तों पर वर्तमान सूक्ष्म रंन्धों से होकर विसरण की प्रक्रिया द्वारा वायु पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचती है, तथा इनहीं सूक्ष्म रंन्धों से होकर कार्बन डाइऑक्साइड वापस हवा में छोड़ दिया जाता है।
चित्र2 : रंध्र (स्टोमाटा) खुली हुयी (चित्र के संदर्भ के लिए कृपया नीचे देखें)
चित्र3 : रंध्र (स्टोमाटा) बंद स्थित में (चित्र के संदर्भ के लिए कृपया नीचे देखें)
इस अध्याय में हमने यह पढ़ा कि जीवों में श्वसन कैसे होता है। प्रत्येक जीव को जीवित रहने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है जो श्वसन के द्वारा प्राप्त होती है। बिना श्वसन के कोई जीवित नहीं रह सकता, इसलिए प्रयेक जीव जीवन पर्यंत लगातार निर्बाध रूप से श्वसन करता रहता है।
वायवीय श्वसन: ऑक्सीजन की उपस्थित में होने वाले श्वसन को वायवीय श्वसन कहा जाता है। वायवीय श्वसन में उर्जा निर्मुक्ति के साथ साथ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होता है जिसे साँस द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। वायवीय श्वसन को अंग्रेजी में एरोविक रेसपिरेशन (Aerobic Respiration) कहा जाता है।
अवायवीय श्वसन : ऑक्सीजन की अनुपस्थित में होने वाले श्वसन को अवायवीय श्वसन कहा जाता है। मानव शरीर में अवायवीय श्वसन में उर्जा निर्मुक्ति के साथ साथ लैक्टिक अम्ल बनता है। तथा अवायवीय जीवों में अवायवीय श्वसन में उर्जा निमुक्ति के साथ साथ एल्कोहॉल तथा जल उपोत्पाद के रूप में बनता है। अवायवीय श्वसन को अंग्रेजी में एनारोविक रेसपिरेशन (Anaerobic Respiration) कहा जाता है।
श्वसन दर: एक स्वस्थ युवक द्वारा प्रति मिनट लिये जाने वाली श्वास की संख्या श्वसन दर कहलाती है। एक श्वसन का अर्थ है एक बार साँस लेना तथा छोड़ना।
कोशीकीय श्वसन: चूँकि कोशिकाओं में ही श्वसन द्वारा भोजन के विखंडन से उर्जा निमुक्त होती है, अत: श्वसन को कोशिकीय श्वसन भी कहा जाता है।
डायफ्राम: वक्ष गुहा को आधार प्रदान करने वाली एक माँसीय परत जो वक्ष गुहा तथा उदर गुहा को अलग अलग रखती है तथा ऊपर नीचे गति कर श्वसन में सहायता करता है, डायफ्राम कहलाता है। श्वास लेने के क्रम में डायफ्राम ऊपर की ओर तथा श्वास छोड़ने के क्रम में नीचे की ओर गति कर श्वसन में सहायता प्रदान करता है।
उच्छ्वसन : साँस को बाहर छोड़ने की प्रक्रिया उच्छ्वसन कहलाती है। इसे अंग्रेजी में एक्सेलेशन या एक्सपाइरेशन (Exhalation या Expiration) कहते हैं।
क्लोम: मछली के सिर के दोनों भागों में स्थित अंग जिसकी सहायता से मछली पानी के अंदर श्वास लेने में सक्षम होती है को क्लोम कहा जाता है। क्लोम को गिल भी कहा जाता है।
फेफड़ा : मनुष्य के फेफड़े की संरचना एक थैली के आकार की होती है तथा साँस लेने तथा छोड़ने के क्रम में वायु के लिए फैल कर तथा सिकुड़ कर जगह उपलब्ध कराती है। फेफड़े पसलियों से धिरी होती हैं। पसलियाँ फेफड़े के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है।
फेफड़े में गैस का विनिमय होता है। साँस के द्वारा ऑक्सीजन समृद्ध वायु में से ऑक्सीजन फेफड़े में जाकर रक्त में मिल जाता है जहाँ से यह शरीर के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है। तथा विभिन्न हिस्सों से रक्त के द्वारा लाया गया कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़े में आकर श्वास नली द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
श्वास नली: श्वास नली एक लचीली माँसल नली होती है जो वायु को फेफड़े तक पहुँचाती है तथा इसी होकर कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकलती है। श्वास नली कंठ से शुरू होकर फेफड़े तक जाती है। श्वास नली में वलय के आकार की कई उपास्थि होती है, जो श्वास नली को सिकुड़ने से बचाये रखती है जिससे वायु को फेफड़े तक पहुँचने में कोई अवरोध न हो।
अंत:श्वसन : साँस द्वारा ऑक्सीजन युक्त वायु को अंदर लेने की प्रक्रिया अंत:श्वसन कहलाती है। इसे अंग्रेजी में इनहेलेशन या इंसपिरेशन (Inalation या Inspiration) कहते हैं।
श्वास रंध्र : पादप के तने टहनियों, पत्ते आदि पर गैसों के विनिमय के लिए सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिन्हें श्वास रंन्ध्र कहा जाता है। श्वास रंन्ध्र को अंग्रेजी में स्टोमाटा या स्टोमैटा (Stomata) कहा जाता है।
पत्तों पर वर्मान इन्हीं श्वास रंध्र के द्वारा पौधे ऑक्सीजन युक्त वायु अंदर लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं।
श्वासप्रणाल: कीटों के शरीर के अंदर वायु प्रणाल का एक जाल होता है जिसकी सहायता से कीट श्वसन करते हैं, वायु प्रणाल के इस जाल को श्वास प्रणाल कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे टैकिया (Trachea) कहा जाता है।
श्वसन (साँस लेना तथा छोड़ना): ऑक्सीजन युक्त वायु साँस के द्वारा अंदर लेना तथा कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वायु बाहर छोड़ना श्वसन (साँस लेना तथा छोड़ना) कहलाता है। एक बार साँस लेना तथा छोडना एक श्वसन कहलाता है। श्वसन को अंग्रेजी में ब्रीदिंग (Breathing) कहते हैं।
दूसरे शब्दों में नासिका द्वारा एक बार साँस लेना तथा छोड़ना श्वसन कहलाता है।
कोशिकीय श्वसन: कोशिकाओं में भोजन के विखंडन से उर्जा का निर्मुक्त होना कोशिकीय श्वसन कहलाता है। कोशिकीय श्वसन को अंग्रेजी में सेलुलर रेसपिरेशन (Cellular Respiration) कहते हैं।
अवायवीज जीव: जीव जो वायु की अनुपस्थित में ही श्वसन कर उर्जा प्राप्त करते हैं तथा वायु की अनुपस्थित में जीवित रहते हैं अवायवीज जीव कहलाते हैं। इन्हें अंग्रेजी में एनारोब (Anarobe) कहते हैं। जैसे यीस्ट, बैक्टीरिया आदि।
विसरण: विभिन्न गैसों का गुरूत्वाकर्षण के विरूद्ध आपस में मिलना विसरण कहलाता है। विसरण में अधिक सांद्रता वाले क्षेत्र से गैस कम सांद्रता वाले क्षेत्र की ओर गति करती है। विसरण को अंग्रेजी में डिफ्यूजन (Diffusion) कहते हैं।
परासरण: अर्ध पारगम्य झिल्ली से होकर द्रव के अणुओं का अधिक सांद्रता वाले द्रव से कम सांद्रता वाले द्रव की ओर जाना या बहना परासरण कहलाता है। परासरण को अंग्रेजी में ऑसमोसिस (Osmosis) कहते हैं।
Reference:
चित्र1 : Gills Fish By Guitardude012 - Own work, CC BY 3.0, Link
चित्र2 and 3 : Stomata Open By MS Sakib Original image: User:Ali Zifan - Own work, This file was derived from: Opening and Closing of Stoma.svg: , CC BY-SA 4.0, Link