सभी जीवों को जीवित रहने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक उर्जा जीव श्वसन द्वारा प्राप्त करते हैं।
भोजन का कोशिकाओं में बिखंडन जिसमें उर्जा निर्मुक्त होती है, को श्वसन कहा जाता है। श्वसन को अंग्रेजी में रेसपिरेशन (Respiration) कहते हैं।
चूँकि श्वसन की प्रक्रिया में भोजन से प्राप्त ग्लूकोस का बिखंडन कोशिकाओं में होता है जिसमें उर्जा निर्मुक्त होती है, अत: श्वसन को कोशिकीय श्वसन कहा जाता है।
उर्जा प्राप्ति के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, इस ऑक्सीजन को प्राप्त करने के लिए हम साँस लेते हैं। अत: भोजन के बिखंडन से उर्जा प्राप्ति के लिए आवश्यक ऑक्सीजन को नासिका के द्वारा अंदर लेना साँस लेना तथा श्वसन की प्रक्रिया में बने हुए उपोत्पाद को बाहर निकालना साँस छोड़ना कहलाता है।
दूसरे शब्दों में श्वसन की प्रक्रिया में ऑक्सीजन युक्त वायु अंदर लेना तथा कार्बन युक्त वायु बाहर छोड़ना साँस लेना तथा छोड़ना कहलाता है, इसे श्वसन भी कह जाता है।
हमारे शरीर की कोशिकाओं में भोजन का ऑक्सीजन की उपस्थिति में बिखंडन जिसमें उर्जा निर्मुक्त होता है, भोजन का ऑक्सीकरण कहा जाता है। शरीर की कोशिकाओं में भोजन के बिखंडन से उर्जा की निर्मुक्ति की प्रक्रिया श्वसन कहलाता है।
भोजन के ऑक्सीकरण से निर्मुक्त उर्जा शरीर के द्वारा किये जाने वाले विभिन्न जैविक प्रक्रम में उपयोग होती है।
भोजन पाचन के बाद ग्लूकोज में बदल जाता है। कोशिकाओं यह ग्लूकोज ऑक्सीजन की उपस्थिति में बिखंडित होकर उर्जा निर्मुक्त करता है तथा साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनाता है। ग्लूकोज के बिखंडन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन हम साँस द्वारा प्राप्त करते हैं, तथा ग्लूकोज के बिखंडन में बना हुआ कार्बन डाइऑक्साइड साँस द्वारा बाहर छोड़ देते हैं।
कोशिकाओं में ग्लूकोज का बिखंडन श्वसन कहलाता है।
ग्लूकोज + ऑक्सीजन ⇒ कार्बन डाइऑक्साइड + जल + उर्जा
C6H12O6 (ग्लूकोज) + 6O2 (ऑक्सीजन) ⇒ + 6CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) + 6H2O (जल) + उर्जा
श्वसन दो प्रकार के होते है, वायवीय श्वसन तथा अवायवीय श्वसन
ऑक्सीजन की उपस्थित में कोशिकाओं में होने वाले भोजन के बिखंडन, जिसमें उर्जा निर्मुक्त होती है, को वायवीय श्वसन कहते हैं।
दूसरे शब्दों में वायु की उपस्थिति में होने वाला श्वसन वायवीय श्वसन कहलाता है।
वायवीय श्वसन में उर्जा मुक्त होने के साथ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल उप-उत्पाद के रूप में बनता है।
यहाँ "वायवीय" का अर्थ है वायु से युक्त अथवा वायु की उपस्थित में।
वायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया को निम्नांकित रूप से दर्शाया जा सकता है:
ग्लूकोज + ऑक्सीजन ⇒ कार्बन डाइऑक्साइड + जल + उर्जा
वायवीय श्वसन केवल मानव तथा अन्य जटिल जीवों में होता है।
वायु की अनुपस्थिति में होने वाले श्वसन को अवायवीय श्वसन कहते हैं।
"अ + वायवीय" = अवायवीय। यहाँ "अ" एक नकारात्मक उपसर्ग है, जो "वायवीय" के साथ शुरू में लगकर "अवायवीय" हो जाता है। नकारात्मक उपसर्ग होने का अर्थ है, "बिना वायु के"।
अवायवीय श्वसन सूक्ष्म जीवों में होता है तथा कभी कभी मानव के माँसपेशियों में भी होता है।
सूक्ष्म जीवों में होने वाले अवायवीय श्वसन में उर्जा के साथ साथ एल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनता है।
मानव के माँसपेशियों होने वाले अवायवीय श्वसन में उर्जा के साथ साथ लैक्टिक अम्ल बनता है।
सूक्ष्मजीव जैसे यीस्ट, बैक्टीरिया आदि बिना वायु के जीवित रह सकते हैं। इन जीवों में अवायवीय श्वसन होता है, जिसमें उर्जा मुक्त होने के साथ एल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनता है।
सूक्ष्मजीवों में होने वाले अवायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया को निम्नांकित रूप से दर्शाया जा सकता है:
ग्लूकोज (वायु की अनुपस्थिति में विखंडन) ⇒ एल्कोहॉल + कार्बन डाइऑक्साइड + उर्जा
सूक्ष्म जीवों का श्वसन तंत्र इस तरह विकसित रहता है कि वे बिना ऑक्सीजन के श्वास ले सकें तथा बिना वायु के जीवित रह सकें।
अवायवीय जीव
चूँकि सूक्ष्म जीवों में अवायवीय श्वसन होता है, अत: उन्हें अवायवीय जीव भी कहा जाता है। अवायवीय जीव को अंग्रेजी में एनारोव्स (Anaerobes) कहा जाता है।
कभी कभी अधिक शारीरिक श्रम जैसे दौड़ना, तेजी से साइकल चलाना, अधिक व्यायाम करना, आदि की स्थिति में शरीर को अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है, इस अधिक उर्जा की पूर्ति के लिये तेजी से श्वसन की आवश्यकता होती है जिसमें अतिरिक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हम हम तेजी से साँस लेने लगते हैं। लेकिन हमारे शरीर के ऑक्सीजन आपूर्ति की क्षमता सीमित होती है, ऐसी स्थिति में हमारे माँसपेशियों की कोशिकाएँ बिना ऑक्सीजन के ही श्वसन कर अतिरिक्त उर्जा की आवयकता को पूरा करने लगती है, अर्थात अवायवीय श्वसन करने लगती है।
मानव शरीर के माँसपेशियों में होने वाले अवायवीय श्वसन में ग्लूकोज का पूर्ण विखंडन नहीं हो पाता है, जिससे उर्जा निर्मुक्ति के साथ ही साथ लैक्टिक अम्ल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनता है।
मानव शरीर में होने वाले अवायवीय श्वसन में होने वाली प्रतिक्रिया को निम्नांकित रूप से दर्शाया जा सकता है:
ग्लूकोज (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विखंडन) ⇒ लैक्टिक अम्ल + कार्बन डाइऑक्साइड + उर्जा
मानव शरीर में होने वाले अवायवीय श्वसन में लैक्टिक अम्ल बनता है, जो माँसपेशियों की कोशिकाओं में जमा हो जाता है। इस लैक्टिक अम्ल के माँसपेशियों की कोशिकाओं में जमा हो जाने के कारण ऐंठन तथा दर्द होने लगता है।
अवायवीय श्वसन के कारण माँसपेशियों में होने वाली ऐंठन गर्म जल से स्नान करने, आराम करने, या मालिश करने से दूर हो जाती है। गर्म जल से स्नान करने, मालिश करने या आराम करने से कोशिकाओं में रूधिर का प्रवाह बढ़ जाता है, जिससे वहाँ अधिक ऑक्सीजन पहुँचने है। अतिरिक्त ऑक्सीजन के कोशिकाओं में पहुँचने से वहाँ अवायवीय श्वसन के कारण जमा लैक्टिक अम्ल विखंडित होकर कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल में परिणत हो जाता है, और ऐंठन से मुक्ति मिल जाती है।
सूक्ष्म जीवों में होने वाले अवायवीय श्वसन में उर्जा के मुक्त होने के साथ साथ एल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड भी बनता है। इस तरह बनने वाले एल्कोहॉल तथा कारन डाइऑक्साइड का उपयोग विभिन्न कार्यों में होता है।
उदाहरण : जलेबी, पकौड़ा, ब्रेड, डोसा, इडली, आदि बनाने के लिए मैदा के कीण्वीकरण में, शराब बनाने में, सिरका बनाने में, दही जमाने में, चीज बनाने में, आदि में सूक्ष्मजीवों में होने वाले अवायवीय श्वसन का उपयोग होता है।
मानव में श्वसन कई चरणों में सम्पन्न होता है।
सर्वप्रथम हम ऑक्सीजन से युक्त वायु साँस द्वारा अंदर लेते हैं।
यह वायु नासिका गुहा से अंदर जाती है तथा श्वास नली होते हुए फेफड़ा में पहुँचती है।
फेफड़ा में जाकर वायु में विद्यमान ऑक्सीजन रक्त में मिलकर विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचती है।
भोजन पाचन के पश्चात ग्लूकोज में परिणत हो जाता है, जो रक्त में मिलकर कोशिकाओं में पहुँचता है।
कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज का विखंडन का विखंडन होता है, जिसमें उर्जा निकलती है, जिसका उपयोग हमारा शरीर विभिन्न कार्यों के लिए करता है।
कोशिकाओं में ग्लूकोज के विखंडन में उर्जा मुक्त होने के साथ साथ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल भी बनता है।
यह कार्बन डाइऑक्साइड रक्त के द्वारा मिलकर फेफड़े तक पहुँचता है, जहा से श्वास द्वारा बाहर छोड़ दिया जाता है।
साँस लेने, कोशिकाओं में ग्लूकोज के विखंडन से उर्जा की निर्मुक्ति, तथा उप-उत्पाद के रूप में बने कार्बन डाइऑक्साइड को साँस द्वारा बाहर छोड़ा जाना, इन सभी प्रक्रियाओं को सम्मिलित रूप से श्वसन कहते हैं।
परंतु तकनीकि रूप से कोशिकाओं में ग्लूकोज के विखंडन से उर्जा के निर्मुक्त होने को ही श्वसन कहा जाता है।
श्वसन में आवश्यक ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए हम ऑक्सीजन युक्त वायु साँस के द्वारा अंदर लेते हैं। साँस लेने के बाद कार्बन डाइऑक्साइड को साँस द्वारा छोड़ा जाता है। इन दोनों प्रक्रियाओं को भी सम्मिलित रूप से श्वसन के नाम से ही जाना जाता है।
ऑक्सीजन युक्त वायु को साँस द्वारा अंदर लेने की प्र्क्रिया को अंत:श्वसन कहते हैं। इसे अंग्रेजी में इनहेलेशन या इन्सपिरेशन (Inhalation or Inspiration) कहा जाता है।
हम साँस के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल्वाष्प बाहर छोड़ते हैं।
साँस द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर छोडना उच्छ्वसन कहलाता है। उच्छ्वसन को अंग्रेजी में एस्कहेलेशन (Exhalation) या एक्सपाइरेशन (Expiration) कहा जाता है।
एक स्वस्थ युवक के द्वारा प्रति मिनट लिये जाने वाले श्वास की संख्या को श्वसन दर कहा जाता है। एक श्वसन का अर्थ है एक बार साँस लेना तथा छोड़ना।
सामान्य से अधिक श्रम करने, जैसे दौड़ना, व्यायाम करना, तेजी से चलना, आदि में अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है, जिसे पूरा करने के लिए हमारे शरीर को तेजी से श्वसन करने की आवश्यकता होती है। तेजी से श्वसन करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए हमारा शरीर तेजी से साँस लेने तथा छोड़ने लगता है, अर्थात तेज तेज श्वसन करने लगता है।
On average, an adult human being at rest breathes in and out 15–18 times in a minute.
During heavy physical work, we breathe faster and the breathing rate can increase up to 25 times per minute.
जंतुओं में श्वसन के लिए एक विशेष श्वसन तंत्र होता है।
मानव के श्वसन तंत्र में नासिका गुहा, ग्रसनी, कंठ, श्वास नली, श्वसनी, तथा फेफड़ा होते हैं, जो सम्मिलित रूप से श्वसन का कार्य करते हैं।
साँस लेना नासिका से शुरू होता है। श्वास लेने में हम ऑक्सीजन युक्त वायु नासिका से ग्रहण करते हैं। यह वायु नासिका गुहा से ग्रसनी, कंठ, श्वास नली, श्वसनी से होते हुए फेफड़ा में पहुँचता है।
फेफड़ा में ऑक्सीजन रक्त के साथ मिलकर रक्त वाहिनी द्वारा पूरे शरीर में पहुँचता है।
श्वसन की प्रक्रिया में उपोत्पाद के रूप में बना कार्बन डाइऑक्साइड फिर रक्त के साथ मिलकर फेफड़े में पहुँचता है, जहाँ से श्वनिका, श्वसनी तथा श्वासनली से होकर नासिका द्वारा साँस द्वारा बाहर निकल जाता है।
डायफ्राम एक माँसल झिल्ली होता है जो वक्ष गुहा तथा उदर गुहा को अलग करता है। डायफ्राम ऊपर तथा नीचे की ओर गति कर श्वास लेने तथा छोड़ने में सहायता करता है।
श्वास लेने के क्रम में डायफ्राम नीचे की ओर चला जाता है जिससे फेफड़े फैलकर आसानी से हवा को के अंदर ले सकता है। तथा श्वास छोड़ने के क्रम में डायफ्राम ऊपर की जाता है जिससे फेफड़ा सिकुड़ जाता है तथा अधिक दबाब होने के कारण कारण कार्बन डायऑक्साइड श्वास द्वारा बाहर आ जाती है।
दूसरे छोटे जीवों में मानव से भिन्न श्वसन प्रणाली होती है। श्वसन एक कोशिकीय जीवों तथा अन्य सूक्ष्म जीवों में श्वसन परासरण तथा विसरण के द्वारा सम्पन्न होता है।
तिलचट्टे में श्वसन के लिए शरीर के अंदर वायु नाल का जाल होता है जिसे श्वास प्रणाल या वातक कहा जाता है। तिलचट्टे के सिर से पार्श्व में छोटे छोटे छिद्र होते हैं, जिसे श्वास रंध्र कहा जाता है। तिलचट्टा श्वास रंध्र से साँस लेते है। साँस के द्वारा लिया जाने वाली वायु श्वास प्रणाल के द्वारा पूरे शरीर में जाता है, जहाँ श्वसन के क्रम में उर्जा निर्मुक्त होती है तथा इसमें बना हुआ कार्बन डाइऑक्साइड श्वास प्रणाल से होते हुए श्वास रंध्रों द्वारा बाहर निकल जाता है।
इसी प्रकार की श्वसन प्रणाली अन्य कीटों में भी पायी जाती है।
केंचुए की त्वचा श्लेष्मी तथा आर्द्र होती है, जो अर्धपारगम्य झिल्ली की तरह कार्य करती है। वायु केंचुए के शरीर की त्वचा से परासरण (ऑसमोसिस) के द्वारा अंदर आ जाती है तथा श्वसन के पश्चात उपोत्पाद त्वचा के द्वारा बाहर निकल जाती है।
मेढ़क को उभयचर कहा जाता है, क्योंकि एक मेढ़क स्थल तथा जल दोनों में आसानी से श्वास ले सकता है।
मेढ़क की त्वचा श्लेष्मी तथा आर्द्र होती है। जल में मेढ़क त्वचा की सहायता से परासरण (ऑसमोसिस) की प्रक्रिया द्वारा श्वास लेता तथा छोड़ता है।
मेढ़क को फेफड़ा भी होता है, जिसकी सहायता से स्थल पर मेढ़क साँस लेता तथा छोड़ता है।
मछली के सिर के दोनों ओर गिल होता है जिसकी सहायता से यह जल के अंदर श्वास लेती है। गिल को क्लोम भी कहा जाता है। श्वास लेने के लिए मछली गिल से जल को अंदर लेती है, जल में घुली हुयी ऑक्सीजन गिल में बने केशीय रक्तवाहिनियों के द्वारा अवशोषित होकर शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचता है।
श्वसन में पादप हवा से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं। पादप के तनों और पत्तियों पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनकी सहायता से पादप ऑक्सीजन युक्त वायु अंदर लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं। पादप की पत्तियों पर अवस्थित सूक्ष्म छिद्र जिनकी सहायता से पादप श्वास लेते तथा छोड़ते हैं, को रंध्र कहा जाता है, इसे अंग्रेजी में स्टोमैटा या स्टोमाटा कहा जाता है।
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