प्राणियों में पोषण


ग्रासनली या ग्रसिका

ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) माँसपिशियों का बना हुआ एक लचीली तथा लम्बी नली होती है। ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) को फुडपाइप (Foodpipe) भी कहा जाता है। एक वयस्क मनुष्य में ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) की लम्बाई लगभग 30 सेंटीमीटर होती है।

ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) मुँह तथा अमाशय (stomach) को जोड़ती है तथा भोजन को मुँह से अमाशय में पहुँचाती है।

चबाने के बाद भोजन मुँह से ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) होकर माँसपेशियों में संकुचन के कारण धीरे धीरे सरकते हुए आमाशय (Stomach) में पहुँच जाता है। ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) में भोजन को नीचे ले जाने वाली गति क्रमाकुंचन कहलाती है। क्रमाकुंचन को अंग्रेजी में पेरिसटालसिस (Peristalsis) कहते हैं। ऐसी ही क्रमाकुंचन [पेरिस्टालसिस (Peristalsis)] वाली गति के द्वारा पाचन के क्रम में भोजन आँतों में भी आगे बढ़ती है।

ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) में एक वाल्व लगा होता है जो भोजन को वापस आमाशय (stomach) से मुँह में आने से रोकता है।

कभी कभी जब भोजन का पाचन सही से नहीं हो पाता है, अर्थात आमाशय भोजन को स्वीकार नहीं करता है, तब भोजन इसी ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) के द्वारा उल्टी दिशा में आकर बाहर निकल जाता है। भोजन के आमाशय से मुँह होकर बाहर निकलने की प्रक्रिया को उल्टी (Vomiting) कहा जाता है।

ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) मे कोई पाचन नहीं होता है।

ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus) तथा श्वास नली

हमारे श्वास लेने की प्रक्रिया में हवा नाक से होकर श्वसन नली से होकर फेफड़े में जाती है। ग्रासनली में वायु तथा भोजन एक ही मार्ग से जाती है जो आगे जाकर फेफड़े में तथा आमाशय में जाने वाली नलियों में बँट जाती है। लेकिन भोजन निगलते समय ग्रासनली में विद्यमान एक वॉल्व श्वास नली को ढ़क लेती है तथा भोजन को ग्रासनली होकर आमाश्य में भेज देती है तथा श्वास नली में जाने से रोक देती है। श्वासनली में लगा यह वाल्व एपिग्लोटिश (Epiglottis) कहलाता है। इसलिए अगर खाते समय बोलने के क्रम में कभी खाने का कुछ कण श्वासनली में चला जाता है तो घुटन होने लगती है और खाँसी या हिचकी या दोनों होने लगती है, जो पानी पीने से प्राय: ठीक हो जाता है। इसलिए खाते समय बोलना नहीं चाहिए।

आमाशय (Stomach)

आमाशय को अंग्रेजी में स्टॉमैक (Stomach) कहते हैं। आमाशय एक यू (U) के आकार वाली थैलीनुमा मांसल रचना होती है। यह आहारनाल (Alimentary Canala) का सबसे चौड़ा भाग है| आमाशय (stomach) में भोजन ग्रसिका (Oesophagus) से आता है। आमाशय (stomach) एक तरफ से ग्रसिका (Oesophagus) तथा दूसरी तरफ से छोटी आँत (Small intestine) से जुड़ा होता है।

आमाशय (Stomach) की भीतरी दीवार श्लेष्मा (Mucus), हाईड्रोक्लोरिक एसिड [Hydrochloric Acid (HCL)] तथा पाचक रस (Digestive Juice) स्त्रावित करता है ।

श्लेष्मा (Mucus), हाईड्रोक्लोरिक एसिड [Hydrochloric Acid (HCL)] से आमाशय के भितरी दीवार की रक्षा करता है। पाचक रस (Digestive Juice) भोजन को पचाने में मदद करता है। हाईड्रोक्लोरिक एसिड [Hydrochloric Acid (HCL)] भोजन को सड़ने तथा गलने से बचाने के साथ साथ भोजन के साथ आये हुए जीवाणुओ को मारता है। हाईड्रोक्लोरिक एसिड [Hydrochloric Acid (HCL)] आमाशय के माध्यम (Medium) को आम्लिक (Acidic) कर देता है।

पाचक रस (Digestive Juice) एक तरह का एंजाईम (Enzyme) होता है जो भोजन में उपस्थित प्रोटिन (Protein) को एमिनों एसिड (Amino Acid) में तोड़ देता है।

आमाशय में एक तरह का गति होती रहती है जो आमाशय में आये हुए भोजन को पीस कर पेस्ट की तरह बना देता है, आमाशय में होने वाले इस गति को चाईम (Chyme) कहते हैं।

भोजन का पाचन मुख्य रुप आमाशय में ही होता है। भोजन आमाश्य से क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] में चला जाता है।

क्षुद्रांत्र [(छोटी आँत) Small Intestine]

क्षुद्रांत्र को छोटी आँत भी कहा जाता है। क्षुद्रांत्र (छोटी आँत) को अंग्रेजी में Small Intestine कहते हैं।

क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] आहारनाल (Alimentary Canal) का सबसे बड़ा भाग होता है। एक सामान्य वयस्क मनुष्य में क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] की लम्बाई 7.5 मीटर या 20 फीट होती है। क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] एक पतली तथा कुण्डलित रचना होती है।

क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] यकृत (Liver) से पित्त रस [बाइल जूस (Bile Juice)], अग्नाशय [पैनक्रियाज (Pancreas)] से अग्नाशयिक रस [पैनक्रियाटिक जूस (Pancreatic Juice)] तथा इसकी भित्ति से पाचन रस प्राप्त करता है।

यकृत (Liver) से स्त्रावित पित्त रस [बाइल जूस (Bile Juice)] वसा (Fat) के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अग्नाशय [पैनक्रियाज (Pancreas)] से स्त्रावित अग्नाशयिक रस [पैनक्रियाटिक जूस (Pancreatic Juice)] कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन पर क्रिया कर उसे सरल रूप में परिवर्तित कर देता है।

क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] में भोजन में उपस्थित वसा (Fat), वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में और प्रोटीन ऐमीनो अम्ल में परिवर्तित हो जाता है।

क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] में भोजन के पाचन के बाद उसके पोषक़ तत्वों का अवशोषण होता है।

क्षुद्रांत्र में अवशोषण (Absorption)

भोजन के पाचन के बाद उसके पोषक तत्वों का अवशोषण क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] के आंतरिक भित्ति के द्वारा होता है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक भित्ति पर अंगुलीनुमा उभरी हुई संरचनाएँ होती हैं। अंगुलीनुमा उभरी हुई ये संरचनाएँ दीर्घरोम या रसांकुर कहलाती हैं। दीर्घरोम या रसांकुर को अंग्रेजी में विल्ली (Villi) कहा जाता है। दीर्घरोमों के लिए Villi तथा एक दीर्घरोम के लिए Villus शब्द का उपयोग होता है। अर्थात जहाँ Villi बहुवचन है वहीं Villus एकवचन है।

दीर्घरोम [रसांकुर (villi)] पचे हुए भोजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र को बढ़ा कर अधिक क्षेत्र प्रदान करता है। दीर्घरोम [रसांकुर (villi)] में विद्यमान रूधिर वाहिकाओं के द्वारा भोजन के पोषक तत्व अवशोषित होकर रक्त में मिल जाता है। जहाँ से ये पोषक तत्व रक्तवाहिकाओं द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचते हैं।

क्षुद्रांत्र में पचे हुए भोजन से पोषक तत्वों के अवशोषक की प्रक्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं। स्वांगीकरण को अंग्रेजी में Assimilation कहते हैं।

यकृत (Liver)

यकृत (Liver) एक भूरे–लाल रंग की ग्रंथी होती है। यकृत (Liver) शरीर में पायी जाने वाली ग्रंथियों में सबसे बड़ी ग्रंथी है। यकृत (Liver) आमाशय के उपर दाहिने भाग में स्थित होता है। यह पित्त का निमार्ण करता है, जो एक प्रकार का रस होता है। यकृत (Liver) से स्त्रावित होकर यह पित्त रस एक थैली में जमा होता है जिसे पित्ताशय (Gall Bladder) कहते हैं। पित्त रस (bile juice) भोजन के पाचन में मदद करता है। पित्त रस (bile juice) भोजन को क्षारीय बना देता है जो भोजन के पाचन के लिए आवश्यक है।

अग्न्याशय (Pancreas)

अग्न्याशय (Pancreas) एक हल्के पीले रंग की ग्रंथी होती है। अग्न्याशय (Pancreas) आमाशय के ठीक नीचे होता है। अग्न्याशय (Pancreas) भोजन के पाचन के लिए अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juice) स्त्रावित करता है, जो कर्बोहाईड्रेड तथा प्रोटीन का पाचन करता है।

बृहदांत्र या बड़ी आँत (Large Intestine)

बृहद्रांत्र को बड़ी आँत भी कहा जाता है। बृहद्रांत्र को अंग्रेजी में Large Intestine कहते हैं।

बड़ी आँत (Large Intestine) आकार में क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] से छोटी तथा चौड़ी होती है। एक सामान्य वयस्क मनुष्य के बड़ी आँत Large Intestine की लम्बाई 1.5 मीटर होती है। भोजन क्षुद्रांत्र [छोटी आँत (Small Intestine)] के बाद बड़ी आँत (Large Intestine) में पहुँचता है। भोजन का वह भाग जिसका पाचन छोटी आँत में नहीं हो पाता है का कुछ पाचन बृहद्राँत्र [बड़ी आँत (Large Intestine)] में भी होता है।

बड़ी आँत Large Intestine में जीवाणु मौजुद होते हैं, जोकिण्वन (fermentation) के द्वारा बिना पचे हुए भोजन को विघटित कर देते हैं।

बृहद्राँत्र [बड़ी आँत (Large Intestine)] में मुख्य रूप से बिना पचे हुए भोजन में से अतिरिक्त जल तथा कुछ लवणों का अवशोषण होता है। उसके बाद बिना पचा हुआ भोजन अर्धठोस मल के रूप में मलाशय (Rectum) में जमा हो जाता है।

उत्सर्जन (Egestion)

मलाशय से समय समय पर आवश्यकता के अनुसार मल के रूप में जमा बिना पचे हुए भोजन का निष्कासन गुदा (Anus) के द्वारा होता है। बिना पचे हुए भोजन का मलद्वार [गुदाद्वार (Anus)] के द्वारा निष्कासन की प्रक्रिया को उत्सर्जन (Egestion) कहते हैं।

घास खाने वाले जंतुओं में पाचन

सभी चौपाया जानवरों में पाचन की प्रक्रिया लगभग एक ही तरह से होती है। लेकिन घास खानेवाले जानवरों जैसे गाय, भैस, बकड़ी, बैल इत्यादि जानवरों मे पाचन की प्रक्रिया अलग तरह से होती है। घास खानेवाले जानवरों को रुमिनेंट (Ruminent) अथवा रोमंथी कहते हैं। रुमिनेंट (Ruminent) का अर्थ होता है दुबारा चबाना

घास खानेवाले जानवर खाते समय घास को बिना चबाये या थोड़ा चबाकर जल्दी जल्दी निगल लेते हैं। फिर उसे वापस मुँह में लाकर दुबारा चबाते है। घास को पेट से दुबारा मुँह में लाकर चबाने को पागुड़ करना या जुगाली करना कहते हैं।

मनुष्यों द्वारा खाये जाने वाले भोजन में सेलुलोज की मात्रा बहुत कम होती है जिसको हम रेशा (roughage) या रेशेदार खाना कहते हैं। भोजन में उपस्थित रेशों (Roughage) को मनुष्य आसानी पचा नहीं पाते हैं और वह मल के द्वारा बाहर निकल जाता है। लेकिन घास में सेलुलोज की मात्रा बहुत अधिक होती है। सेलुलोज एक तरह का कार्बोहाईड्रेड होता है। इसलिए घास खानेवाले जानवरों के आहारनाल की बनावट अन्य जानवरों से अलग तरह की होती है।

घास खाने वाले जानवरों का आमाशय चार भाग मे बँटा होता है। सबसे पहला भाग सबसे बड़ा होता है जिसे प्रथम अमाशय या रूमेन कहते हैं। घास खानेवाले जानवरों द्वारा आधा चबाया हुआ भोजन प्रथम अमाशय या रूमेन में जमा किया जाता है। यहाँ भोजन के कुछ हिस्से का पाचन अर्थात आंशिक पाचन होता है। ये घास खाने वाले जानवर आधे चबाये हुए भोजन, जिसे जुगाल या कड कहते हैं, को वापस मुँह में लाकर उसे पुन: चबाते हैं। जुगाल या कड को मुँह में लाकर दुबारा चबाने की प्रक्रिया को जुगाली करना या रोमंथन कहते हैं। हम अक्सर गाय बैल देखते हैं कि जब वे खा नहीं रहे होते हैं उस समय भी अपना मुँह चलाते रहते हैं वास्तव में उस समय वे जुगाली करते होते हैं। जुगाली करने के बाद अर्थात भोजन को रूमेन से मुँह में लाकर पुन: चबाने के बाद भोजन को पाचन के लिए आमाशय मे भेजा जाता है। उसके बाद आमाशय में पाचन की सारी प्रक्रियाओं के बाद भोजन को छोटी आँत तथा बड़ी आँत मे भेजा जाता है। जहाँ भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों के अवशोषण के बाद बिना पचे हुए भोजन का उत्सर्जन मल के रूप में हो जाता है।

रुमिनेंट में छोटी आँत तथा बड़ी आँत के बीच एक थैलीनुमा आकृति होती है जिसे अंधनाल (caecum) कहते है। अंधनाल (caecum) मे कुछ जीवाणु पाये जाते है जो मुख्य रुप से सेलूलोज का पाचन करते है। मनुष्यों में अंधनाल (caecum) बहुत छोटा होता है जिसके कारण वे सेलूलोज को नहीं पचा पाते हैं।

अमीबा मे संभरण एवं पाचन (अमीबा में फीडिंग एवं डाइजेशन)

बहुत से जीव एक कोशिकीय होते हैं। एककोशिकीय जीव का अर्थ है ऐसे जीव जिनका शरीर एक ही कोशिका का बना होता है और उनके कोई अंग (organ) नहीं होते हैं, फिर भी उनमें पाचन, श्वसन, प्रजनन इत्यादी सारी क्रियायें होती हैं।

अमीबा भी एक एककोशिकीय जीव है। अमीबा नदी, नाला, तालाब, मिट्टी आदी में पाया जाता है।

अमीबा एक सूक्ष्मजीवि एककोशिकीय जीव है, जिसमें एक गोल सघन केन्द्रक एवं कोशिका क्षिल्ली होती है जो कोशिका को चारों ओर से धेरती है जिसके अन्दर एक द्रव्य भरा होता है। इस द्रव्य को जीवद्रव्य (cytoplasm) कहते हैं। इस जीवद्रव्य में बुलबुले के समान अनेक धानिआँ होती हैं।

अमीबा का आकार निश्चित नही होता है और इसका आकार हमेशा बदलता रहता है। अमीबा के शरीर से एक उभार निकलता है जिससे वह पैर की तरह का आकृति बना लेता है। इस पैर वाली आकृति को श्युडोपोडिया (pseudopodia) या नकली पैर कहते हैं। pseudopodia या नकली पैर अमीबा को गति करने तथा भोजन पकड़ने में मदद करता है।

अमीबा जब अपने भोजन के नजदीक आता है तो इसकी कोशिका झिल्ली pseudopodia या नकली पैर बना कर भोजन को चारो ओर से घेर लेते हैं और भोजन को (vacuoles) धानिया के अन्दर कर लेते है। अमीबा में भोजन पकडने और ग्रहण करने के क्रिया को फैगोसाईटोसिस (phagocytosis) कहते है। भोजन को (vacuoles) धानिया के अन्दर रखने के बाद अमीबा पाचक रस स्त्रावित करता है जिससे भोजन का पाचन होने लगता है। पाचन होने के बाद भोजन तरल बन जाता है उसके बाद अमीबा के पचे हुए भोजन के पोषक तत्वों का अवशोषण कर लेता है और बेकार पदार्थ बाहर निकाल देता है।

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