सभी जीव जंतुओं को जीवित रहने के लिए पोषण की आवश्यकता होती है, जो उन्हें भोजन से प्राप्त होता है। जंतुओं द्वारा भोजन प्राप्त करना, उसका पाचन तथा उससे उर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया पोषण (Nutrition) कहलाती है।
विभिन्न प्रकार के जंतुओं में भोजन को खाने या अंतर्ग्रहण करने का तरीका अलग अलग है। कुछ जानवर केवल पौधे खाते है, कुछ जानवर दूसरे जीवों को खाते हैं, पक्षी दाना चुगती है, तथा फल खाती है जबकि छोटे जीव जैसे अमीबा, पैरामिशियम इत्यादी अपना भोजन सिडोपोडिया के मदद से निगल जाते है। मधुमक्खी, तितली इत्यादी अपना भोजन फूलों के पराग कणों को चूसकर प्राप्त करती हैं। जोंक तथा मच्छड़ आदि मनुष्य या अन्य जानवरों का रक्त चूसकर पोषण प्राप्त करता है। मानव तथा कुछ अन्य जंतु, जो कि स्तनपायी होते हैं, में शिशु माँ का दूध पीते हैं जबकि अजगर जैसे सर्प अपने शिकार को समूचा ही निगल जाते हैं। इसी तरह कुछ जलीय प्राणि अपने आस पास पानी में तैरते हुए खाद्य कणों को छान कर उसका भक्षण करते हैं। मनुष्य भोजन पहले मुँह में डाल कर दाँतों से चबाता है, फिर उसे निगलता है।
प्रत्येक प्राणी के भोजन ग्रहण करने के तरीक के अनुसार उसके अंग [ऑर्गन (organ)] विकसित हुए हैं।
मनुष्य भोजन को मुँह से ग्रहण करते हैं जहाँ कि अमीबा में भोजन करने की प्रक्रिया अलग है। मुँह में डालने के बाद मनुष्य भोजन को दाँतों की सहायता से टुकड़े टुकड़े कर चबाता है फिर उसे निगलता है। निगलने के बाद भोजन मनुष्य में उपस्थित पाचन तंत्र के विभिन्न भागों से गुजरता है जहाँ उसका क्रमवार पाचन होता है तथा भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों का विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं के लिए अवशोषण होता है। तथा अंत में बिना पचा हुआ तथा बेकार पदार्थ मलद्वार से होकर बाहर निकल जाता है।
मनुष्यों में भोजन करने से लेकर पाचन तक की प्रक्रिया मुख्य रूप से पाँच चरणों में सम्पन्न होती है। प्रक्रियाओं के ये पाँच चरण हैं: अंतर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण, स्वांगीकरण तथा उत्सर्जन।
मनुष्य तथा अन्य अधिकांश जानवर भोजन को सर्वप्रथम मुँह में रखते हैं। भोजन प्राप्त तथा ग्रहण करने के प्रक्रिया को अंतर्ग्रहण (Ingestion) कहते हैं। अंतर्ग्रहण को अंग्रेजी में इजेशन (Ingestion) कहते हैं।
मनुष्य के भोजन में पोषक तत्व जटिल रूप में उपस्थित होते हैं। पाचन तंत्र में उपस्थित विभिन्न अंगों के द्वारा विभिन्न चरणों में भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों के जटिल रूप को साधारण पदार्थों में विघटित करने की प्रक्रिया को पाचन कहा जाता है। पाचन की प्रक्रिया मुँह से आरम्भ होकर आँतों में समाप्त होती है।
पाचन को अंग्रेजी में डाइजेशन (Digestion) कहा जाता है।
भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों का पाचन के बाद रक्त में मिलाने की प्रक्रिया को अवशोषण कहा जाता है। अवशोषण की प्रक्रिया पूर्ण रूप से क्षुद्रांत्र तथा आंशिक रूप में बृहद्रांत्र में पूरी होती है। अवशोषण को अंग्रेजी में एबशॉर्प्शन (Absorption) कहा जाता है।
भोजन के पाचन तथा उसमें उपस्थित पोषक तत्वों के अवशोषण के बाद उन पोषक तत्वों का शरीर की बृद्धि तथा विकास के लिए उपयोग होने वाली प्रक्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं। स्वांगीकरण को अंग्रेजी में एशीमिलेशन (Assimilation) कहा जाता है।
पाचन के क्रम में भोजन का बहुत सारा भाग तथा बेकार भाग बिना पचा हुआ रह जाता है, इस बिना पचे हुए भाग को शरीर से बाहर निकालना आवश्यक हो जाता है। भोजन के पाचन के बाद बिना पचे हुए भोजन को शरीर द्वारा बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाती है।
उत्सर्जन को अंग्रेजी में इजेशन (Egestion) कहते हैं।
मनुष्यों तथा अधिकांश जानवरों भोजन का पाचन आहार नाल के द्वारा होता है। आहार नाल को अंग्रेजी में एलिमेंटरी कनाल (Alimentary Canal) कहते हैं। एलिमेंटरी कनाल (Alimentary Canal) एक लम्बी नली होती है जो मुँह से शुरू होकर मलाशय पर खत्म होती है।
एलिमेंटरी कनाल (Alimentary Canal) को कार्य के अनुसार मुख्य रूप से छ: भागों में बाँटा गया है जो हैं, मुख गुहिका (Buccal Cavity), ग्रासनली या ग्रसिका (Oesophagus), आमाशय (Stomach), क्षुद्रांत्र (छोटी आँत) [Small Intestine], बृहदांत्र (बड़ी आँत) [Large Intestine], मलाशय (Rectum) तथा मल द्वार या गुदा (Anus)।
मुख गुहिका एलिमेंटरी कनाल (Alimentary Canal) का प्रथम भाग है। मनुष्य तथा अन्य अधिकांश जंतु भोजन को मुख गुहिका द्वारा ही अंतर्ग्रहण करते हैं। मुख गुहिका को अंग्रेजी में Buccal Cavity कहा जाता है।
मुख गुहिका में दाँत तथा जीभ होते हैं। भोजन को मुँह में रखने के बाद उसे दाँतों तथा जीभ की मदद से चबाकर निगला जाता है। भोजन को चबाने की प्रक्रिया को Mastication (मस्टिकेशन) कहा जाता है।
लाला–ग्रंथी मुँह में एक प्रकार की ग्रंथी पायी जाती है जिसे लाला–ग्रंथी कहते हैं। लाला–ग्रंथी से एक प्रकार के रस का स्त्राव होता है जिसे लाला रस कहा जाता है। लाला रस चबाने के क्रम में भोजन को लसलसा बना देता है जिससे भोजन को निगलने में आसानी होती है। लाला–रस में एक तरह का एंजाइम (Enzyme) होता है जिसे एमाइलेज (Amylaze) कहते हैं। एमाइलेज भोजन में उपस्थित स्टार्च को शुगर में बदल देता है जिसके कारण चबाए हुए भोजन का स्वाद मीठा लगता है।
लाला–ग्रंथी को अंग्रेजी में स्लाइवरी ग्लैंड (Slivary Gland) कहते हैं तथा इससे स्त्रावित होने वाले लाला–रस को स्लाइवा (Sliva) कहते हैं।
इस तरह भोजन का पाचन मुँख गुहिका में ही शुरू हो जाता है।
मुख गुहिका में कई दाँत होते हैं जो भोजन को काटने, चीरने, चबाने और पीसने में मदद करता है। कार्य के अनुसार दाँतों के चार प्रकार होते हैं, कृंतक, रदनक, अग्रचर्वणक तथा चर्वणक।
कृंतक को छेदक (incisor) भी कहा जाता है। कृंतक या भेदक भोजन को काटने का कार्य करते हैं।
रदनक को भेदक भी कहा जाता है। रदनक भोजन को फाड़ने तथा चीरने का कार्य करते हैं।
अग्रचर्वणक भोजन को चबाने का कार्य करते हैं।
चर्वणक भोजन को चबाने तथा पीसने का कार्य करते हैं।
जीभ पत्ते के आकार का एक माँसल रचना होती है। जीभ भोजन में स्लाइवा मिलाकर भोजन को लसलसा बना देता है तथा भोजन को चबाने तथा निगलने में मदद करता है। जीभ भोजन के स्वाद को भी बतलाता है। जीभ हमें स्पष्ट रूप से बोलेने के काबिल बनाता है।
ग्रासनली या ग्रसिका (Esophagus) एक पतली, लम्बी तथा लचीली नली होती है जो मुँह को आमाशय से जोड़ती है। मुँह से चबाया हुआ भोजन ग्रासनली या ग्रसिका (Esophagus) द्वारा ही आमाशय में पहुँचता है। एक सामान्य वयस्क मनुष्य में ग्रासनली या ग्रसिका (Esophagus) की लम्बाई लगभग 30 सेंटीमीटर की होती है।
ग्रासनली या ग्रसिका (Esophagus) को कोई पाचन नहीं होता है।
आमाशय (Stomach) एक थैलीनुमा यू (U) आकार की रचना होती है। यह आहार नाल का सबसे चौड़ा भाग होता है। आमाशय की दीवार से श्लेष्मा (Mucus), हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (Hydrochloric acid) तथा पाचक रस (Digestive Juice) का स्त्राव होता है।
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (Hydrochloric acid) भोजन में यदि कोई जीवाणु उपस्थित हो, तो उसे मार देता है। श्लेष्मा (mucus) आमाशय तथा आँतों की दीवार की हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से रक्षा करता है। तथा पाचक रस भोजन के पाचन में मदद करता है।
आमाशय में एक तरह की गति होती है जिसे चाइम कहते हैं। भोजन के आमाशय में पहुँचने के बाद पहुँचने के बाद भोजन भोजन में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पाचक रस मिलाकर आमाशय भोजन की चाइम द्वारा पिसाई करता है। यहाँ भोजन का आंशिक पाचन होता है। आमाशय का उपरी सिरा ग्रसिका से तथा निचला सिरा क्षुद्रांत्र से जुड़ा होता है।
आमाशय (Stomach) के बाद भोजन क्षुद्रांत्र (Small Intestine) में पहुँचता है। क्षुद्रांत्र (Small Intestine) एक पतली नली नुमा कुंडलित रचना होती है जिसकी लम्बाई सामान्य वयस्क मनुष्य में 7.5 मीटर या 20 फीट होती है। क्षुद्रांत्र (Small Intestine) में यकृत (Liver) से स्त्रावित होकर पित्त तथा अग्नाशय (Pancreas) से स्त्रावित होकर अग्नाशयिक रस प्राप्त होता है। अग्नाशयिक रस [पैनक्रियाटिक जूस (Pancreatic Juice)] कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन पर क्रिया कर उसे सरल रूप में परिवर्तित कर देता है। यहाँ भोजन में उपस्थित वसा, वसा अम्ल में तथा प्रोटीन एमीनो अम्ल में परिवर्तित हो जाता है।
भोजन का पूर्ण पाचन आमाशय में सम्पन्न होता है।
आमाशय की भीतरी दीवार पर अंगुली जैसी रचनाएँ उभरी होती हैं, जिन्हें दीर्घरोम या रसांकुर (Villi) कहते हैं। प्रत्येक दीर्घरोम या रसांकुर (Villi) में रूधिर वाहिकाओं का जाल फैला होता है जो भोजन के पाचन के बाद उसमें उपस्थित पोषक तत्वों का अवशोषण कर उसे रक्त में भेज देते हैं।
पोषक तत्वों का क्षुद्रांत्र की भीतरी दीवार पर उपस्थित दीर्घरोम या रसांकुर द्वारा रक्त में भेजे जाने की प्रक्रिया अवशोषण (Absorption) कहलाती है।
पोषक तत्वों के क्षुद्रांत्र में अवशोषण के बाद उसका रूधिर में मिलकर शरीर की बृद्धि के लिए किया जाने वाला अन्य आवश्यक कार्य स्वांगीकरण (Assimilation) कहलता है।
यकृत (Liver) एक भूरे–लाल रंग की ग्रंथी होती है। यकृत (Liver) शरीर में पाया जाने वाला सबसे बड़ी ग्रंथी है। यकृत (Liver) आमाशय के ऊपर दाहिने भाग में स्थित होता है तथा पित्त रस का निर्माण करता है। पित्तरस पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पित्ताशय (Gall Bladder) आमाशय के ऊपरी भाग में होता है जिसमें यकृत से स्त्रावित होने वाला पित्त रस जमा होता है।
अग्न्याशय (Pancreas) से स्त्रावित होने वाला रस अग्नाशयिक रस (Pancreatic Juice) कहलाता है। अग्नाशयिक रस (Pancreatic Juice) भोजन के पाचन में मदद करता है।
क्षुद्रांत्र के बाद भोजन का बिना पचा हुआ तथा बेकार भाग बृद्रांत्र (Large Intestine) में पहुँचता है। बृद्रांत्र (Large Intestine) छोटी आँत से छोटी तथा चौड़ी पाइप के आकार की रचना होती है। एक सामान्य वयस्क मनुष्य में बृद्रांत्र (Large Intestine) की लम्बाई 1.5 मीटर होती है।
बृद्रांत्र (Large Intestine) में भोजन में उपस्थित जल तथा बचे हुए पोषक तत्वों का अवशोषण होता है।
मलाशय (Rectum) आहार नाल के अंत में एक छोटी थैलीनुमा संरचना होती है जिसमें भोजन के पाचन के बाद अवशेष पदार्थ तथा बिना पचा हुआ बेकार भोजन मल के रूप में जमा हो जाता है।
मलाशय (Rectum) से मल के रूप में जमा पचे हुए भोजन का अवशेष पदार्थ समय समय पर मलद्वार (Anus) द्वारा बाहर निकल जाता है।
उत्सर्जन (Egestion)
पाचन के बाद भोजन का अवशेष भाग का मल के रूप में शरीर से बाहर निकलना उत्सर्जन (Egestion) कहलाता है।
घास खाने वाले जानवरों में पाचन की प्रक्रिया एक अतिरिक्त चरण द्वारा सम्पन्न होती है।
घास खाने वाले जानवरों के पाचन तंत्र में एक विशेष प्रकार की बड़ी थैलीनुमा संरचना होती है जिसे रूमेन (प्रथम आमाशय) कहा जाता है। चूँकि घास खाने वाले जानवरों में रूमेन (प्रथम आमाशय) उपस्थित होता है, इसलिए इन्हें रूमिनैंट कहा जाता है।
घास खाने वाले जानवर भोजन को पहले थोड़ा सा चबाकर जल्दी जल्दी निगल लेते हैं तथा उसे रूमेन में भण्डारित कर लेते हैं। फिर उसे वापस मुँह में लाकर चबाते हैं तथा फिर से पूर्ण पाचन के लिए निगलते हैं। भोजन को रूमेन से वापस मुँह में लाकर चबाने की प्रक्रिया को जुगाली करना कहते हैं। ये जानवर जुगाली करने वाले जानवर या रूमिनेटं अथवा रोमंथी कहे जाते हैं।
घास में सेलुलोज की मात्रा अत्यधिक होती है। सेलुलोज एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट होता है। मनुष्य सेलुलोज को नहीं पचा पाते हैं।
अमीबा एक एककोशिकीय जीव होता है। अमीबा में पोषण भिन्न प्रकार से होता है। अमीबा की कोशिका में एक कोशिका झिल्ली होती है, एक गोल सघन केन्द्रक तथा कोशिका द्रव में बुलबुले के समान अनेक धानियाँ होती है। इन धानियों को खाद्य धानियाँ कहते हैं।
अमीबा में एक अथवा अधिक अँगुली के समान प्रवर्ध निकलता रहता है जिसकी सहायता से अमीबा गति करता है तथा भोजन को पकड़ता है एवं उसका पाचन करता है। अमीबा का यह अँगुली के समान प्रवर्ध पादाभ (Pseudopodia)
भोजन को अमीबा अपने पादाभ के द्वारा घेर लेता है जिससे खाद्य पदार्थ उसकी खाद्य धानी में फँस जाता है जहाँ उसका पाचन तथा भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों का अवशोषण होता है।
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