प्रश्न संख्या (1) आपने नर्सरी कक्षा में निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़ी होंगी:
(i) 'बा बा ब्लेक शीप हैव यू एनी ऊल'
(ii) 'मेरी हैड ए लिटल लैब्म, हूज फ्लीस वास व्हाइट एज स्नो'
ऊपर लिखी पंक्तियों के आधार पर यह बताइए कि:
(a) ब्लैक शीप (काली भेड़) के किन भागों में ऊन होती है?
उत्तर : भेड़ के शरीर के त्वचा के निकट ऊल (ऊन) होता है।
(b) मेमने (लैम्ब) के सफेद रोमों का क्या तात्पर्य है?
उत्तर: मेमने के सफेद रोमों का तात्पर्य उसके शरीर के ऊपर पाये जाने वाले ऊन के रेशों से है।
प्रश्न संख्या (2) रेशम कीट (अ) कैटरपिलर, (ब) लार्वा है। सही विकल्प चुनिए।
(क) केवल (अ)
(ख) केवल (ब)
(ग) (अ) और (ब)
(घ) न ही (अ) और न (ब)
उत्तर (ख) (अ) और (ब)
ब्यख्या
रेशम के कीट के लार्वा को कैटरपिलर कहा जाता है। कैटरपिलर विशेषकर उस लार्वा को कहा जाता है जो रेंग सकता हो, चूँकि रेशम कीट का लार्वा रेंग सकता है, अत: रेशम कीट के लार्वा को कैटरपिलर तथा लार्वा दोनों कहा जाता है। मच्छर आदि का लार्वा जो रेंग नहीं सकता है, केवल लार्वा कहा जाता है।
प्रश्न संख्या (3) निम्नलिखित में से किससे ऊन प्राप्त नहीं होता?
(क) याक
(ख) ऊँट
(ग) बकरी
(घ) घने वालों वाला कुत्ता
उत्तर (घ) घने वालों वाला कुत्ता
ब्याख्या
कुत्तों की एक प्रजाति जिसे घने वालों वाला कुत्ता (Wooly dog) कहा जाता है के शरीर पर भी भेड़ों की तरह ही बाल होते थे, तथा इस बाल का उपयोग कम्बल बनाने में किया जाता था।
अब चूँकि इस प्रकार का घने बालों वाले कुत्तों की नस्ल जिससे ऊन प्राप्त किया जाता था विलुप्त हो गया है, अत: प्रश्न में दिया गया यह विकल्प सही नहीं है। ऐसा घने बालों वाला कुत्ता सैलिश तटों पर पाया जाता था। चूँकि उस जगह पर भेड़ नहीं पाये जाते थे अत: वहाँ रहने वाले लोग उन कुत्तों से प्राप्त रेशे से ही कम्बल आदि बनाया करते थे।
प्रश्न संख्या (4) निम्नलिखित शब्दों के क्या अर्थ हैं?
(i) पालन (ii) ऊन की कटाई (iii) रेशम कीट पालन
उत्तर
(i) पालन
पशुओं का विशेष उद्देश्य के लिए पालन, पालन कहलाता है। पालन के अंतर्गत पशुओं का देखभाग, उसका प्रजनन, आदि सभी सम्मिलित होता है। पालन को पशुपालन कहना अधिक उपयुक्त होगा।
(ii) ऊन की कटाई
भेड़ों तथा ऊन देने वाले अन्य पशुओं के शरीर से ऊन के रेशे काटने की प्रकिया ऊन की कटाई कहलाती है।
(iii) रेशम कीट पालन
रेशम कीट को पालना, उसका प्रजनन और उचित देखभाल को रेशन कीट पालन कहलाता है। रेशम कीट पालन रेशम के रेशे प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न संख्या (5) ऊन के संसाधन के विभिन्न चरणों के क्रम में कुछ चरण नीचे दिये गये हैं। शेष चरणों को उनके सही क्रम में लिखिए।
ऊन कटाई, ______, छँटाई, _____, ______, _______.
उत्तर
ऊन कटाई, अभिमार्जन, छँटाई, रंगाई, कताई, बुनाई .
प्रश्न संख्या (6) रेशम कीट के जीवनचक्र की उन दो अवस्थाओं के चित्र बनाइए जो प्रत्यक्ष रूप से रेशम के उत्पादन से संबंधित है।
उत्तर
प्रश्न संख्या (7) निम्नलिखित में से कौन से दो शब्द रेशम उत्पादन से संबंधित हैं?
रेशम कीट पालन, पुष्प कृषि, शहतूत कृषि, मधुमक्खी पालन, वनवर्धन
संकेत: (i) रेशम उत्पादन में शहतूत की पत्तियों की खेती और रेशम कीटों को पालना सम्मिलित है।
(ii) शहतूत का वैज्ञानिक नाम मोरस एल्बा है।
उत्तर
रेशम कीट पालन एवं शहतूत कृषि
ब्याख्या
रेशम कीट पालन: रेशम कीट पालन का मुख्य उद्देश्य रेशम के रेशे प्राप्त करना है, इसलिए यह शब्द प्रत्यक्ष रूप से रेशम उत्पादन से जुड़ा है।
शहतूत कृषि: चूँकि रेशम कीट के लार्वा (कैटरपिलर) केवल शहतूत की पत्तियाँ खाकर ही विकसित होते हैं, अत: शहतूत कृषि प्रत्यक्ष रूप से रेशम कीट पालन से जुड़ा है। चूँकि शहतूत का वैज्ञानिक नाम मोरस एल्बा है, अत: शहतूत की वैज्ञानिक तरीके से की जाने वाली खेती को अंग्रेजी में मोरीकल्चर कहा जाता है।
पुष्प कृषि: फूलों की खेती को पुष्प कृषि कहा जाता है। धीरे धीरे शहरों में विभिन्न अवसरों पर उपयोग किये जाने के कारण बढ़ते हुए फूलों की माँग को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से पुष्प कृषि की जाती है। पुष्प कृषि को अंग्रेजी में हॉर्टिकल्चर कहा जाता है।
मधुमक्खी पालन: मधु प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक रूप से मधुमक्खी का पालन, उसका प्रजनन और उचित देखभाल को मधुमक्खी पालन कहा जाता है।
वनवर्धन: वनों का वैज्ञानिक रूप से विकास और उसकी गुणवत्ता को बनाये रखना वनवर्धन कहलाता है।
प्रश्न संख्या (8) कॉलम A में दिये गये शब्दों का कॉलम B में दिए गये वाक्यों से मिलाइए
प्रश्न का टेबल | |
---|---|
कॉलम A | कॉलम B |
(क) अभिमार्जन | (i) रेशम फाइबर उत्पन्न करना |
(ख) शहतूत की पत्तियाँ | (ii) ऊन देने वाला जंतु |
(ग) याक | (iii) रेशम कीट का भोजन |
(घ) कोकून | (iv) रीलिंग |
(v) काटे गये ऊन की सफाई |
उत्तर
उत्तर का टेबल | |
---|---|
कॉलम A | कॉलम B |
(क) अभिमार्जन | (v) काटे गये ऊन की सफाई |
(ख) शहतूत की पत्तियाँ | (iii) रेशम कीट का भोजन |
(ग) याक | (ii) ऊन देने वाला जंतु |
(घ) कोकून | (i) रेशम फाइबर उत्पन्न करता है |
(iv) रीलिंग |
प्रश्न संख्या (9) इस पाठ पर आधारित एक वर्ग पहेली दी गयी है। रिक्त स्थानों को उन अक्षरों से भरने के लिए संकेतों का उपयोग करिए, जो अक्षर को पूरा करते हैं।
(सीधे) 2. कार्तित ऊन को अच्छी तरह से धोने का प्रक्रम
3: एक प्रकार का जांतव रेशा
6: लंबी धागे जैसी संरचना जिससे बुनकर वस्त्र बनाते हैं।
ऊपर से नीचे
1: इससे बुने वस्त्र शरीर को गर्म रखते हैं।
4: इसकी पत्तियों को रेशम कीट खाते हैं।
5: रेशम कीट के अंडे से निकलते हैं।
उत्तर
प्रश्न संख्या (1) नीचे दिये गये प्रश्नों के लिए सही उत्तर चुनिए
(a) ऊन किसे पदार्थ से बना होता है?
(i) कार्बोहाइड्रेट
(ii) प्रोटीन
(iii) वसा
(iv) लिपिड
उत्तर (ii) प्रोटीन
ब्याख्या
ऊन भेड़ों के शरीर पर पाये जाने वाला रेशानुमा बाल होता है। चूँकि बाल प्रोटीन से बनते हैं, और ऊन के रेशे भेड़ के बाल हैं, अत: ऊन प्रोटीन से बने होते हैं।
(b) भेड़ पालन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(i) कपास प्राप्त करना
(ii) ऊन प्राप्त करना
(iii) रेशम प्राप्त करना
(iv) सींग प्राप्त करना
उत्तर (ii) ऊन प्राप्त करना
ब्याख्या
ऊन के रेशे भेड़ों ऊन देने वाले अन्य जानवरों के शरीर पर उगे बालों से प्राप्त किया जाता है। चूँकि भेड़ एक ऊन देने वाला जानवर है, अत: भेड़ पालन का मुख्य उद्देश्य ऊन प्राप्त करना है। हालाँकि भेड़ से दूध और माँस भी प्राप्त किया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से भेड़ पालन ऊन प्राप्त करने के लिए ही किया जाता है।
(c) भेड़ के शरीर से ऊन को काटने की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
(i) बाल काटना
(ii) चमड़ा काटना
(iii) ऊन की कटाई
(iv) ऊन की कताई
उत्तर (iii) ऊन की कटाई
ब्याख्या
भेड़ों के शरीर से ऊन के रेशे को काटन ऊन की कटाई कहलाती है। अंग्रेजी में इसे शियरिंग कहा जाता है।
(d) कोकून से रेशम के धागा निकालने की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
(i) अभिमार्जन
(ii) रेशम की रीलिंग
(iii) रेशम निकलाई
(iv) रेशम की कताई
उत्तर (ii) रेशम की रीलिंग
ब्याख्या
कोकून से रेशम के धागे को निकालने की प्रक्रिया रेशम की रीलिंग कहलाती है। यह प्राय: मशीनों द्वारा किया जाता है।
(e) हमें रेशम निम्नांकित किस से प्राप्त किया जाता है?
(i) गाय
(ii) भेड़
(iii) रेशम कीट
(iv) अंगोरा खरगोश
उत्तर (iii) रेशम कीट
ब्याख्या
रेशम कीट अंडे देती हैं। इन अंडों से लार्वा निकलते हैं जिसे कैटरपिलर कहलाता है। ये कैटरपिलर कोकून बनाते हैं तथा इन कोकून से हमें रेशम प्राप्त होती है। अत: रेशम कीट से हमें रेशम प्राप्त होता है।
प्रश्न संख्या (2) खाली स्थानों को भरें
(i) रेशम के रेशे प्राप्त करने के लिए रेशम कीट का __________ पालन किया जाता है।
उत्तर: रेशम के रेशे प्राप्त करने के लिए रेशम कीट का पालन किया जाता है।
(ii) रेशम कीट _________ को भोजन के रूप में लेते हैं।
उत्तर: रेश्म कीट शहतूत के पत्तों को भोजन के रूप में लेते हैं।
(iii) रेशम कीट को पालने की प्रक्रिया को अंग्रेजी में ________ कहा जाता है।
उत्तर: रेशम कीट को पालने की प्रक्रिया को अंग्रेजी में सेरीकल्चर कहा जाता है।
(iv) रेशम की खोज ____________ में की गयी थी।
उत्तर: रेशम की खोज चीन में की गयी थी।
प्रश्न संख्या (3) अति लघु उत्तरी प्रश्न
(i) रेशम कीट के लर्वा को क्या कहते हैं?
उत्तर रेशम कीट के लार्वा को कैटरपिलर कहा जाता है।
(ii) कोकून क्या होता है?
उत्तर : रेशम कीट के लार्वा, जिसे कैटरपिलर कहते हैं के द्वारा रेशम के कीट में विकसित होने के लिए रेशम के रेशे से एक आवरण बुनकर उसमें बंद हो जाते हैं, इस आवरण को कोकून कहा जाता है। इस कोकून से हमें रेशम प्राप्त होता है।
(iii) अभिमार्जन क्या होता है?
उत्तर : रेशम के रेशे की कटाई के बाद उसकी धुलाई की जाती है। इस धुलाई की प्रक्रिया को अभिमार्जन कहा जाता है।
(iv) अंडे से निकलने के कितने दिनों बाद कैटरपिलर कोकून को बुनना प्रारम्भ करते हैं?
उत्तर : कैटरपिलर के रेशम कीट के अंडों से निकलने के लगभग 25 से 30 दिनों बाद कोकून बनाना शुरू करते हैं।
(v) रेशम के रेशे किस पदार्थ से बने होते हैं?
उत्तर : रेशम के रेशे प्रोटीन से बने होते हैं।
प्रश्न संख्या (4) लघु उत्तरीय प्रश्न
(i) प्राकृतिक रूप से रेशे कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर रेशे प्राकृतिक रूप से दो प्रकार के होते हैं, पादप रेशे और जांतव रेशे। उदाहरण के लिए कपास, जूट, इत्यादि पादप रेशे हैं तथा रेशम और ऊन जांतव रेशे हैं।
(ii) जांतव रेशे और पादप रेशे में क्या अंतर है?
उत्तर: रेशे जो जंतुओं से प्राप्त होते हैं, जांतव रेशे कहलाते हैं जैसे रेशम और ऊन। तथा पौधों से मिलने वाले रेशे को पादप रेशे कहते हैं जैसे कपास, जूट आदि।
(iii) ऊन का उपयोग क्या है?
उत्तर: ऊन का उपयोग ऊन के धागे, कालीन, कम्बल, और विभिन्न प्रकार के वस्त्र और पोशाक बनाने में किया जाता है।
(iv) रेशम का क्या उपयोग है?
उत्तर : रेशम का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्रों जैसे साड़ी, सलवार सूट, कमीज, कुर्ता, टाई, आदि बनाने में किया जाता है।
(v) ऊन के रेशों का अभिमार्जन क्यों किया जाता है?
उत्तर: ऊन की कटाई के बाद उसमें वर्तमान विभिन्न प्रकार की गंदगी को साफ करने के लिए उसकी गर्म पानी और कुछ रसायनों के साथ धुलाई की जाती है। इसे प्रक्रिया को अभिमार्जन कहा जाता है।
प्रश्न संख्या (5) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(i) रेशम कीट के जीवन चक्र को समझाएँ।
उत्तर
रेशम के कीट अंडे देती हैं। इन अंडों से 10 से 14 दिनों के भीतर लार्वा जिसे कैटरपिलर कहा जाता है, निकलते हैं। कैटरपिलर शहतूत के पत्तों को लगभग 20 से 25 दिनों तक खाने के बाद कोकून बनाते हैं। इस प्रक्रिया में कैटरपिलर प्रोटीन का एक तार स्त्रावित कर एक जाल बना कर उसमें बंद हो जाते हैं। कैटरपिलर को इस अवस्था को प्यूपा कहा जाता है। इस कोकून से प्यूपा पुन: रेशम के कीट में विकसित हो जाते हैं।
रेशम कीट ⇒ अंडे ⇒ कैटरपिलर ⇒ कोकून ⇒ रेशम कीट
(ii) भेड़ से ऊन प्राप्त करने के प्रक्रम को समझाइए।
उत्तर :
(a) भेड़ के शरीर से ऊन की कटाई की जाती है। इस प्रक्रिया को ऊन की कटाई कहा जाता है। ऊन की कटाई प्राय: गर्मियों की जाती है।
(b) ऊन की कटाई के बाद उसे गर्म पानी और कुछ रसायनों के साथ साफ किया जाता है। ऊन की सफाई की इस प्रक्रिया को अभिमार्जन कहा जाता है।
(c) अभिमार्जन के बाद ऊन की उनके गठन और रंगों के अनुसार छँटाई की जाती है।
(d) ऊन की छँटाई के बाद पुन: उन की अच्छी तरह धुलाई की जाती है।
(e) ऊन की छँटाई और उसकी पुन: धुलाई के बाद उसे विशेष प्रकार के कंघों की मदद से सुलझाया तथा सीधा किया जाता है।
(d) उसके बाद ऊन के रेशों की वांछित रंगों में रंगा जाता है।
(e) ऊन के रेशों की रंगाई के बाद उसकी कताई कर धागे बनाये जाते हैं।
(f) ऊन के बड़े रेशों का उपयोग स्वेटर आदि बुनने में किया जाता है तथा छोटे रेशों को बुनकर विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनायें जाते हैं।
(iii) रेशम का परिचय विश्व से कैसे हुआ?
उत्तर: रेशम की खोज चीन में की गयी थी। सैकड़ों वर्षों तक चीनियों ने रेशम को दुनिया से छुपाये रखा। बाद में व्यापारियों और यात्रियों ने रेशम से विश्व का परिचय करवाया।
(iv) रेशम कीट पालन क्या है?
उत्तर: रेशम के कीटों रेशम के रेशे प्राप्त करने के लिए पालन, रेशम कीट पालन कहलाता है। रेशम कीट पालन को अंग्रेजी में सेरीकल्चर कहा जाता है।
रेशम कीट पालन के प्रक्रम:
रेशम कीट अंडे देती हैं।
लगभग 10 से 14 दिनों में लर्वा निकलते हैं, जिन्हें कैटरपिलर कहा जाता है। कैटरपिटलर शहतूत के नये पत्ते खाते हैं।
लगभग 20 से 25 दिनों तक खाने के बाद कैटरपिलर खाना बंद कर देते हैं तथा कोकून बनाने लगते हैं। तीन से चार दिनों में कैटरपिलर कोकून में पूरी तरह बंद हो जाते हैं।
रेशम के कीट से प्राप्त कोकून को गर्म पानी में, वाष्प पर या धूप में रखा जाता है।
गर्म पानी में कोकून मुलायम हो जाते हैं, तथा इससे रेशम के रेशों को अलग कर लिया जाता है।
कोकून से रेशम को अलग करने की प्रक्रिया रेशम की रीलिंग कहलाती है।
प्रश्न संख्या (6) कॉलम A में दिये गये शब्दों को कॉलम B के शब्दों से मिलाइए
प्रश्न टेबल | |
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कॉलम A | कॉलम B |
1. छँटाई | (a) जाड़े का मौसम |
2. कैटरपिलर | (b) पशमीना शॉल |
3. अंगोरा बकरी | (c) ऊन के रेशों को भेड़ के शरीर से काटा जाना |
4. ऊन की कटाई | (d) कोकून |
5. ऊन | (e) ऊन के रेशों को उनके गठन और रंगों के आधार पर अलग करना |
6. कोकून | (f) रेशम के रेशे |
उत्तर
उत्तर टेबल | |
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कॉलम A | कॉलम B |
1. छँटाई | (e) ऊन के रेशों को उनके गठन और रंगों के आधार पर अलग करना |
2. कैटरपिलर | (d) कोकून |
3. अंगोरा बकरी | (b) पशमीना शॉल |
4. ऊन की कटाई | (c) ऊन के रेशों को उनके गठन और रंगों के आधार पर अलग करना |
5. ऊन | (a) जाड़े का मौसम |
6. कोकून | (f) रेशम के रेशे |
Reference: