उष्मा


उष्मा क्या है?

उष्मा एक प्रकार की उर्जा होती है। उष्मा अर्थात गर्मी एक ओर जहाँ हमें जाड़े के मौसम में आराम देता है वहीं गर्मी के मौसम में हमें कष्ट देता है। हम काफी गर्मियों के मौसम में अत्यधिक गर्मी वाले दिनों और ठंढ़ के मौसम में काफी सर्द दिन और रात के बारे में समाचारों में सुना करते हैं और महसूस भी करते हैं।

एक वस्तु गर्मी अवशोषित कर गर्म हो जाती है। वहीं दूसरी ओर एक गर्म वस्तु उष्मा उत्सर्जित कर धीरे धीरे ठंढ़ी हो जाती है। किसी गर्म वस्तु को हम छूकर अनुभव कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखना है कि कभी भी किसी गर्म वस्तु को छूना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे हाथ जल सकते हैं।

बर्फ काभी ठंढ़ी होती है जबकि उबलता हुआ पानी काफी गर्म। गर्मियों में दिन और रातें काफी गर्म होती हैं जबकि सर्दियों में काफी ठंढ़ी।

अब एक प्रश्न उठता है कि कोई भी वस्तु कितनी गर्म या ठंढ़ी है। क्यों केवल छूकर या दूर से देखकर इसका अनुमान लगाना काफी कठिन है।

तापमान

जिस तरह लम्बाई को ईंच, फुट, मिलीमीटर, सेंटीमीटर, किलोमीटर आदि में मापा जाता है। वजन को ग्राम, किलोग्राम, टन आदि में मापा जाता है। उसी तरह गर्मी की तीव्रता को उसके तापमान के आधार पर जाना जा सकता है। अर्थात कोई भी वस्तु कितना गर्म है यह उसके तापमान को ज्ञात कर जाना जा सकता है। तापमान को डिग्री सेल्सियस या सेंटीग्रेड, डिग्री फारेनहाइट, केल्विन, आदि में मापा जाता है।

लम्बाई, वजन, आदि के जैसे ही तापमान या तापक्रम एक राशि है, जो हमें यह बतलाती है कि कोई भी वस्तु कितना गर्म या ठंढ़ा है। दूसरे शब्दों में तापमान किसी वस्तु के गर्म होने की तीव्रता के बारे में बतलाता है।

तापमान या ताप या तापक्रम को मापने की इकाई सेल्सियस या सेंटीग्रेड, फारेनहाइट, तथा केल्विन आदि है।

थर्मामीटर : तापमापी या तापमापक

थर्मामीटर एक प्रकार का यंत्र होता है जिससे तापमान अर्थात ताप के मान को मापा जाता है।

"थर्मामीटर" शब्द ग्रीस के दो शब्दों "थर्मोस + मेट्रॉन" से मिलकर बना है। यहाँ "थर्मोस" का अर्थ "गर्म या गर्मी" तथा "मेट्रॉन" का अर्थ "मापन या मापना" है। अर्थात यंत्र जिससे "गर्मी या ताप का मापन" किया जा सके उसे थर्मामीटर कहते हैं।

थर्मामीटर का अविष्कार

थर्मामीटर का आविष्कार किसी एक वैज्ञानिक द्वारा नहीं किया गया। बल्कि आधुनिक थर्मामीटर का विकास क्रमवार हुआ तथा इसमें कई वैज्ञानिकों का योगदान रहा।

शुरूआत में ताप को मापने के लिए हवा का प्रयोग किया गया, बाद के दिनों में पानी, अल्कोहल आदि का उपयोग किया जाने लगा। इस तरह धीरे धीरे थर्मामीटर के विकास का चरण चलता रहा।

वर्ष 1714 में एक अंग्रेज वैज्ञानिक डैनियल गैबरियल फारेनहाइट द्वारा थर्मामीटर में पारे (मरकरी) का उपयोग किया है।

इस वैज्ञानिक के सम्मान में तापमान की इकाई का नाम "फारेनहाइट" रखा गया।

वर्ष 1742 में स्वीडेन के एक खगोलशास्त्री एंडर्स सेल्सियस ने ताप को मापने के लिए इकाई के रूप में "सेंटीग्रेड" के नाम का प्रस्ताव दिया।

बाद में इस वैज्ञानिक एंडर्स सेल्सियम के सम्मान में तापमान की इकाई को "सेल्सियस" कहा जाने लगा।

आज तापमान को फारेहाइट, सेंटीग्रेड या सेल्सियस में मापा जाता है।

थर्मामीटर की संरचना

साधारण थर्मामीटर सीसे की एक लम्बी पतली नली का बना होता है जिसके एक सिरे एक बल्ब लगा होता है जिसमें पारा भरा होता है। सीसे की नली पर ताम के मापन की इकाई अंशाकित की रहती है। यह इकाई डिग्री सेल्सियस में अंशाकित रहती है। कुछ थर्मामीटर पर अंशाकन फारेनहाइट में रहता है जबकि कई थर्मामीटर पर सेलिसयस और फारेनहाइट दोनों में। नली पारे के बल्ब वाले सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक एक काफी पतली केशनली (कैपिलरी) लगी होती है।

थर्मामीटर की कार्य प्रणाली

थर्मामीटर के एक सिरे में भरा हुआ पारा जब ताप ग्रहण करता है तो यह थर्मामीटर के नली के मध्य में अवस्थित केशनली में फैल कर ऊपर की ओर पहुँच जाता है जो कि चमकीला दिखाई देता है। पारे की केशनली में ऊँचाई तापमान की तीव्रता को बतलाता है। पारा केशनली में जिस ऊँचाई तक पहुँचता है, उसपर दिये गये इकाई के अंशाकन के अनुसार उसे पढ़ा या लिख लिया जाता है। यह तापमान की तीव्रता को बतलाता है। पारे की केशनुमा चमक दिखाई नहीं देने की स्थित में थर्मामीटर को थोड़ा सा घुमाया जाता है जिससे यह चमक आसानी से दीखाई देती है।

थर्मामीटर के प्रकार

थर्मामीटर कई प्रकार के होते हैं। विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के थर्मामीटर का उपयोग किया जाता है।

डॉक्टरी थर्मामीटर

डॉक्टरी थर्मामीटर का उपयोग मानव शरीर के तापमान को मापने के लिए किया जाता है। डॉक्टरी थर्मामीटर सेल्सियस या फारेनहाइट इकाई में अंशाकित रहता है। सुविधा को ध्यान में रखते हुए कई थर्मामीटर दोनों इकाइयों में अंशाकित किया जाता है। डॉक्टरी थर्मामीटर 35o सेल्सियस से 42o सेल्सियस तक अंशाकित रहता है, तथा फारेनहाइट इकाई में 94o फारेनहाइट से 108o फारेनहाइट तक अंशाकित किया जाता है।

सेल्सियम को अंग्रेजी के अक्षर "C" से तथा फारेनहाइट को अंग्रेजी के अक्षर "F" से सूचित किया जाता है। डिग्री सेल्सियस को संक्षिप्त में oC तथा फारेनहाइट को संक्षिप्त में oF लिखा जाता है।

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डॉक्टरी थर्मामीटर से मानव शरीर के ताप का मापन

सर्वप्रथम थर्मामीटर के अंशाकन पर पारे के स्तर को देखा जाता है। थर्मामीटर की नली में पारे का स्तर चमकीला धागे के समान दिखाई देता है। यदि पारे का स्तर 36oC या उसके ऊपर है, तो थर्मामीटर को बिना पारे वाले सिरे को या बीच में पकड़कर हल्के से दो तीन बार झटका दिया जाता है। इससे पारे का स्तर नीचे अर्थात 35o के पास आ जाता है।

इसके बाद थर्मामीटर के पारे वाले सिरे को या तो बाहु कक्ष (काँख) में दबा कर रखा जाता है या तो मुँह में सावधानी पूर्वक रखा जाता है। लगभग एक मिनट तक मुँह में रखने के बाद उसे बाहर निकाल लिया जाता है, तथा थर्मामीटर में पारे के स्तर को अंशाकित इकाई के अनुसार पढ़ा जाता है। इस तरह डॉक्टरी थर्मामीटर से किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान ज्ञात किया जाता है।

एक स्वस्थ्य व्यक्ति के शरीर का सामान्य तापमान लगभग 370 C या 97o F होता है। एक स्वस्थ्य व्यकित का तापमान दूसरे स्वस्थ्य व्यक्ति के तापमान से कुछ भिन्न भी हो सकता है।

प्रयोगशाला तापमापी या प्रयोगशाला थर्मामीटर

प्रयोगशाला में उपयोग में लाया जाने वाला थर्मामीटर डॉक्टरी थर्मामीटर से भिन्न होता है। इसे प्रयोगशाला तापमापी कहा जाता है।

प्रयोगशाला तापमापी में ताप के इकाई का अंशाकन प्राय: -100C से लेकर 1100C तक किया जाता है। कुछ थर्मामीटर में यह कम या ज्यादा भी हो सकता है।

प्रयोगशाला तापमापी या प्रयोगशाला थर्मामीटर से ताप का मापन

प्रयोगशाला तापमापी का उपयोग प्रयोगशालाओं में तरल पदार्थ, पानी, आदि के ताप को मापने में किया जाता है।

जिस द्रव का तापमान नापना होता है उसमें प्रयोगशाला तापमापी को सीधा पकड़कर उसके पारे वाले सिरे को डुबाया जाता है। जब पारे का चढ़ना रूक जाये तो पारे के स्तर के अनुसार तापमान को पढ़ा जाता है तथा नोट कर लिखा जाता है।

प्रयोगशाला तापमापी के पारे का स्तर, जिस द्रव का तापमान ज्ञात करना हो, उससे निकालते ही नीचे आने लगता है। इसलिए प्रयोगशाला तापमापी के उपयोग के क्रम में तापमान ज्ञात किये जाने वाले द्रव में डुबोये रखते हुए ही तापमान पढ़ा जाता है।

डॉक्टरी थ्रमामीटर और प्रयोगशाला थर्मामीटर में अंतर

डॉक्टरी थर्मामीटर में पारे के बल्ब के ठीक ऊपर एक विभंग (किंक) बना होता है। यह विभंग (किंक) पारे के स्तर को अपने आप नीचे आने से रोके रखता है। इसी कारण डॉक्टरी थर्मामीटर को व्यक्ति के मुँह से निकालने के बाद भी पारे के स्तर के पाठ्यांक को पढ़ा जा सकता है।

डॉक्टरी थर्मामीटर में विभंग (किंक) के बने होने के कारण ही पारे के स्तर को नीचे लाने के लिए उसे हाथों में पकड़ कर झटका देने की आवश्यकता होती है।

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जबकि प्रयोगशाला तापमापी (प्रयोगशाला थर्मामीटर) में कोई विभंग (किंक) नहीं बना होता है। जिसके कारण उष्मा के श्रोत से अलग करते ही प्रयोगशाला तापमापी के पारे का स्तर नीचे गिरने लगता है।

प्रयोगशाला तापमापी का उपयोग प्रयोगशालाओं तरल पदार्थ, पानी, आदि के ताप के मापन में किया जाता है।

जबकि डॉक्टरी थर्मामीटर का उपयोग केवल मानव शरीर के ताप को मापने में किया जाता है।

डॉक्टरी थर्मामीटर 35oC से 42oC तक अंशाकित रहता है। जबकि प्रयोगशाला तापमापी (प्रयोगशाला थर्मामीटर) प्राय: –10oC से 110oC तक अंशाकित रहता है।

क्लास सातवीं विज्ञान उष्मा सेल्सियस तथा फारेनहाइट की तुलना

डिग्री सेल्सियस तथा डिग्री फारेनहाइट की तुलना

चित्र संदर्भ : By Gringer - n /a, Public Domain, Link

डिजिटल थर्मामीटर (अंकीय थर्मामीटर)

आजकल कई आधुनिक थर्मामीटर का उपयोग होने लगा है। जैसे कि अंकीय थर्मामीटर, इंफ्रारेड थर्मामीटर, आदि।

अंकीय थर्मामीटर (डिजिटल थर्मामीटर) में पारे का उपयोग नहीं होता है। इस प्रकार के थर्मामीटर में तापमान को पढ़ने के लिए एक अंक पट्टी लगी होती है, जिसपर तापमान अंकों प्रदर्शित होता है।

क्लास सातवीं विज्ञान उष्मा अंकीय थर्मामीटर

अंकीय थर्मामीटर

इंफ्रारेड अंकीय थर्मामीटर

इंफ्रारेड थर्मामीटर मानव शरीर के तापमान को मापने के लिए एक आधुनिकतम थर्मामीटर है।

इंफ्रारेड थर्मामीटर से किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान थोड़ी दूरी से ही बिना शरीर में सटाये ही ज्ञात किया जाता है। तथा तापमान को अंकीय पट्टी पर पढ़ा जाता है।

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इंफ्रारेड थर्मामीटर

अधिकतम न्यूनतम तापमापी

दिनों का तापमान मापने के लिए उपयोग किये जाने वाले थर्मामीटर को अधिकतम न्यूनतम तापमापी कहा जाता है।

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Reference: