उष्मा


उष्मा का स्थानांतरण

उष्मा का स्थानांतरण गर्म स्थान से ठंढ़े स्थान की ओर और गर्म वस्तुओं से ठंढ़े वस्तुओं की ओर होता है।

सुचालक और कुचालक

सुचालक

वैसी वस्तुएँ जिनके द्वारा उष्मा और विद्युत का चालन हो सकता है, को सुचालक या चालक कहा जाता है।

सभी धातुएँ उष्मा और विद्युत के सुचालक हैं। जैसे लोहा, सोना, ताम्बा, चाँदी, एल्युमिनियम, आदि।

यही कारण है कि खाना बनाने के बर्तन और विद्युत की तार धातु की बनी होती हैं।

कुचालक

वस्तुएँ जिस होकर उष्मा और विद्युत का चालन नहीं होता है, को कुचालक कहा जाता है।

सभी अधातुएँ विद्युत और उष्मा का कुचालक होते हैं। जैसे कि लकड़ी, रबर, प्लास्टिक, आदि।

यही कारण है कि खाना बनाने के बर्तनों में लकड़ी या प्लास्टिक के हैंडल लगे होते हैं। तथा बिजली के तारों के ऊपर रबर या प्लास्टिक के कवर चढ़े होते हैं ताकि उस होकर बिजली का करंट या उष्मा प्रवाहित नहीं हो सके।

उष्मा के स्थानांतरण की प्रक्रियाएँ

उष्मा का स्थानांतरण तीन प्रक्रियाओं द्वारा होता है। ये प्रक्रियाएँ हैं चालन, संवहन, तथा विकिरण

चालन

ठोस पदार्थों में एक सिरे से दूसरे सिरे तक उष्मा का स्थानांतरण चालन प्रक्रिया के द्वारा होता है।

दूसरे शब्दों में चालन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी ठोस में उष्मा का स्थानांतरण एक सिरे से दूसरे सिरे तक होता है।

किसी ठोस में उष्मा का स्थानांतरण एक सिरे से दूसरे सिरे तक अचानक से एकाएक नहीं हो जाता है। बल्कि उष्मा पहले उस सिरे को गर्म करती है जो उष्मा के श्रोत से सटा हुआ हो या जहाँ से उष्मा प्रवाहित हो रही है। उसके बाद उष्मा धीरे धीरे दूसरे छोर तक पहुँचती है।

ठोस का वह सिरा या भाग जो उष्मा के श्रोत के सबसे निकट है सबसे पहले गर्म होती है, फिर उष्मा उस सिरे या भाग से ठीक बाद वाले भाग में पहुँचती है। इस प्रकार यह प्रक्रम चलते हुए उष्मा एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँच जाती है।

उदाहरण:

(1) गैस स्टोव के लौ के ऊपर रखे हुए खाना पकाने के बर्तन का नीचे वाला भाग, अर्थात पेंदी सबसे पहले उष्मा ग्रहण करता है। उसके बाद यह उष्मा धीरे धीरे बर्तन के निचले भाग से अंदर वाले भाग में पहुँचता है। वहाँ से खाना पकाने के लिए रखे हुए पदार्थ, जैसे कि चावल, दाल आदि तक पहुँचता है। उष्मा का यह स्थानांतरण चालन की प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होती है।

(2) जब एक लोहे की छड़ के एक सिरे को गैस फ्लेम या किसी अंगीठी या मोमबत्ती की लौ के ऊपर रखा जाता है, तो सबसे पहले छड़ का वह सिरा जो लौ के ऊपर रखा है गर्म होता है। उसके बाद उसके उष्मा का स्थानांतरण उसके ठीक बाद वाले भाग में होता है। यह प्रक्रम चलते हुए उष्मा लोहे की छड़ के दूसरे सिरे तक पहुँचती है। उष्मा का यह स्थानांतरण लोहे की छड़ में चालन की प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है।

चेतावनी: लोहे की छड़ या किसी पदार्थ को बिना बड़ों की उपस्थिति के गर्म न करें।

पदार्थ

कोई भी वस्तु जो स्थान घेरती हो, को पदार्थ कहा जाता है।

उदाहरण: हवा, पानी, मग, मोबाइल फोन, टेबल लैम्प, कम्यूटर, मिट्टी, बालू, ईंट,आदि सभी वस्तुएँ। अर्थात ब्रह्मांड में व्याप्त सभी वस्तुएँ पदार्थ कहलाती है।

सभी पदार्थ छोटे छोटे कणों से मिलकर बना होता है। ऐ कण इतने छोटे होते हैं कि उन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है।

संवहन

तरल पदार्थों में उष्मा के स्थानांतरण की प्रक्रिया संवहन कहलाती है।

जब पानी को गर्म किया जाता है, तो पानी का वह भाग जो उष्मा के श्रोत के सबसे निकट है, सबसे पहले उष्मा ग्रहण करता है और गर्म होने लगता है। गर्म होने के बाद हल्का हो जाने के कारण पानी का वह भाग ऊपर की ओर जाने लगता है, जिससे एक खाली स्थान बन जाता है, इस बने हुए खाली स्थान को भरने के लिए पास के ठंढ़े पानी वाला भाग उस स्थान पर आ जाता है। यह प्रक्रिया चलती रहती है तथा धीरे धीरे पूरा पानी गर्म हो जाता है।

गर्म पानी का उष्मा प्राप्त करने के बाद ऊपर उठना तथा इससे बने हुए खाली स्थान को भरने के लिए पानी के ठंढ़े भाग का उस स्थान पर पहुँच जाने की क्रमश: चलने वाली प्रक्रिया के द्वारा तरल पदार्थों में उष्मा के स्थानांतर की प्रक्रिया को संवहन कहा जाता है।

हवा में भी उष्मा का स्थानांतरण संवहन की प्रक्रिया के द्वारा ही होता है।

आँधी

हवा के अचानक से काफी तेज चलने की घटना या प्रक्रिया आँधी कहलाती है।

जब किसी स्थान पर अधिक गर्मी पड़ती है, या कोई स्थान अधिक गर्म हो जाता है, तो उस स्थान की हवा गर्म होकर ऊपर उठने लगने लगती है जिससे खाली स्थान बन जाता है, उस खाली स्थान को भरने के लिए पास की ठंढ़ी हवा या कम गर्म हवा उस ओर तेजी से चलने लगती है। यह प्रक्रिया के लगातार होने के कारण हवा काफी तेज चलने लगती है। यह स्थिति आँधी कहलाती है। इस तरह आँधी का आना उष्मा के स्थानांतरण के कारण होती है, जो संवहन की प्रक्रिया द्वारा होती है।

हवा का एक जगह से दूसरी जगह चलना अर्थात हवा का प्रवाह असमान गर्मी के कारण होता है। अर्थात किसी स्थान पर कम गर्मी पड़ती है, तो किसी स्थान पर अधिक गर्मी पड़ती है, जिसके कारण हवा लगातार चलती रहती है।

विकिरण

हम अंगीठी या रूम हीटर के पास बैठकर दूर से ही उसकी गर्मी को महसूस करते हैं। अंगीठी या रूम हीटर की गर्मी को महसूस करने के लिए हमें उसे छूने की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि उसकी गर्मी दूर तक जाती है। यदि रूम हीटर को रूम के किसी एक कोने में ही जला कर रखने पर पूरा कमरा गर्म हो जाता है।

ऐसा इसलिए होता है कि एक गर्म वस्तु उष्मा को स्थानांतरित करती है। किसी गर्म वस्तु के द्वारा उष्मा के स्थानांतरण की प्रक्रिया को विकिरण कहते हैं। अर्थात किसी गर्म वस्तु या आग की लपटों से उष्मा दूसरी जगह तक विकिरण की प्रक्रिया के द्वारा उत्सर्जित होती है।

सूर्य से गर्मी धरती तक बिना किसी माध्यम के द्वारा ही पहुँच जाती है। सूर्य से पृथ्वी के बीच के स्थान को शून्य अर्थात निर्वात कहा जाता है। इस बीच किसी प्रकार की हवा या कोई अन्य माध्यम नहीं होता है। फिर भी सूर्य की उष्मा धरती तक पहुँच जाती है। सूर्य से उष्मा का धरती तक स्थानांतरण विकिरण की प्रक्रिया के द्वारा होता है।

जब खाना बनाने का कोई गर्म बर्तन या कोई गर्म पदार्थ कुछ देर तक उष्मा के श्रोत से हटाकर छोड़ दिया जाता है, तो वह कुछ समय के बाद ठंढ़ी हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि एक गर्म वस्तु उष्मा को उत्सर्जित करती है। किसी गर्म वस्तु द्वारा इस प्रकार उष्मा का उत्सर्जन विकिरण की प्रक्रिया के कारण होता है।

समुद्र समीर और थल समीर

पृथ्वी का थलीय भाग जलीय भाग की तुलना में तेजी से गर्म तथा ठंढ़ा होता है। समुद्र तटीय इलाके में रहने वाले लोग गर्मियों के दिनों में समुद्र से आने वाली ठंढ़ी हवा का आनंद लेते हैं। इस कारण से समुद्र तटीय इलाकों में घरों की खिड़कियाँ समुद्र की ओर खुलने वाली बनाई जाती है ताकि समुद्र से आने वाली ठंढ़ी हवा का आनंद लिया जा सके।

समुद्र समीर

गर्मियों के दिनों में समुद्री सतह से स्थल की ओर चलने वाली हवा के प्रवाह को समुद्र समीर कहते हैं।

समुद्र तटीय इलाकों में, गर्मियों के दिनों में में स्थलीय भाग समुद्र के जलीय सतह की तुलना में अधिक तेजी से गर्म होता है। स्थलीय भाग के गर्म होने के कारण उसके ऊपर की हवा भी गर्म हो जाती है। गर्म होकर हवा ऊपर की ओर उठती है, जिससे एक खाली स्थान बन जाता है। इस खाली स्थान को भरने के लिए समुद्र के जलीय सतह की ठंढ़ी हवा स्थल की ओर चलकर उस खाली स्थान को भरती है। यह प्रक्रम लगातार चलता रहता है, तथा समुद्र की जलीय सतह से स्थल की ओर ठंढ़ी हवा एक प्रवाह बन जाता है। समुद्र की ओर से स्थल की ओर आने वाली ठंढ़ी हवा का प्रवाह समुद्र समीर कहलाता है।

इस तरह समुद्र तटीय इलाके में रहने वाले लोग गर्मिर्यों में ठंढ़ी हवा को प्राप्त करते हैं।

थल समीर

रात्रि समय में स्थलीय भाग जलीय भाग की तुलना में तेजी से ठंढ़ा होती है। तथा समुद्री सतह की हवा धीरे धीरे ठंढ़ा होती है। समुद्र के सतह की हवा के स्थलीय हवा की तुलना में गर्म होने के कारण वह ऊपर उठ जाती है, जिससे वहाँ का स्थान खाली हो जाता है। इस खाली हवा को भरने के लिए स्थलीय भाग के ऊपर की हवा समुद्री सतह की ओर जाती है। इस प्रक्रम के लगातार चलने के कारण स्थलीय भाग से हवा का प्रवाह समुद्री सतह की ओर होने लगती है।

स्थलीय भाग से समुद्री सतह की ओर हवा के इस प्रवाह को थल समीर कहा जाता है।

काली सतहों या काले रंग की वस्तुओं द्वारा हल्के रंग की सतह या वस्तुओं की अपेक्षा अधिक उष्मा का अवशोषण

जब किसी भी वस्तु पर उष्मा पड़ती है, तो उष्मा का कुछ भाग उस वस्तु के द्वारा अवशोषित कर ली जाती है, तथा उष्मा का कुछ भाग परावर्तित हो जाती है।

काले रंग की वस्तुएँ या सतह हल्के रंग की सतह या वस्तुओं की तुलना में अधिक उष्मा का अवशोषण करती है।

इसी कारण से आजकल खाना बनाने के बर्तन काले रंग के बनाये जाते हैं। खाना बनाने के बर्तन के काले रंग के होने के कारण यह अधिक उष्मा का अवशोषण करते हैं, जिससे खाना जल्दी पकता है।

गर्मियों और सरियों में पहनने वाले वस्त्रों के प्रकार

काले रंग के वस्त्र हल्के रंगों के वस्त्रों की अपेक्षा अधिक उष्मा का अवशोषण करते हैं।

गर्मी के दिनों लोग प्राय: हल्के रंग के वस्त्रों को पहनना उपयुक्त होता है। क्योंकि हल्के रंग के वस्त्र उष्मा के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देते हैं, जिससे व्यक्ति को गर्मियों कम गर्मी लगती है। गर्मियों में हल्के रंग का वस्त्र पहनना आरामदायक होता है।

जबकि जाड़े के मौसम में गहरे रंग के वस्त्र अधिक आरामदायक होते हैं। क्योंकि गहरे रंग के वस्त्र अधिक उष्मा का अवशोषण करते हैं, जो शरीर को गर्म रखने में मदद करता है।

इसलिए गर्मियों में हल्के रंग के तथा सर्दियों में गहरे रंग के वस्त्र पहनना अधिक उपयुक्त होता है।

ऊनी कपड़े सर्दियों में हमें गर्म रखते हैं

ऊनी कपड़े मोटे तथा काफी रेशेदार होते हैं। अधिक रेशेदार तथा मोटे होने के कारण रेशों के बीच जगह बच जाती है जिसमें हवा के बुलबुले फंस जाते हैं। ऊनी कपड़ों के रेशों के बीच फंसे हुए हवा के बुलबुले कुचालक की तरह कार्य करते हैं। ये बाहर की ठंढ़क को अंदर आने से तथा शरीर की गर्मी को बाहर जाने से रोकते हैं। इस कारण ऊनी कपड़े हमें सर्दियों के मौसम में गर्म रखते हैं।

इसी कारण से सर्दियों में लोग ऊनी कपड़े पहनते हैं ताकि उनका शरीर गर्म रह सके।

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