दहन और ज्वाला
आठवीं विज्ञान
दहन के प्रकार
दहन की अभिक्रिया के दर के आधार पर दहन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। दहन के ये तीन प्रकार हैं तीव्र दहन, स्वत: दहन तथा विस्फोट।
(a) तीव्र दहन (रैपिड कम्बसन)
जब दाह्य तेजी से जलकर उष्मा और प्रकाश उत्पन्न करता है, तो इस प्रकार के दहन को तीव्र दहन (रैपिड कम्बसन) कहा जाता है।
उदाहरण: एलपीजी, सीएनजी, पेट्रोल आदि तीव्रता से दहन करते हैं। अर्थात एलपीजी, सीएनजी, पेट्रोल आदि का जलना तीव्र दहन के कुछ उदाहरण हैं।
ज्वलनशील पदार्थ तीव्र दहन करते हैं।
(b) स्वत: दहन (स्पौनटेनियश दहन)
वैसा दहन जिसमें पदार्थ बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के, अचानक लपटों के साथ जल उठता है, स्वत: दहन कहलाता है।
उदाहरण
(i) फॉस्फोरस द्वारा बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के अचानक आग पकड़ लेना स्वत: दहन का उदाहरण है। फॉस्फोरस का जवलन ताप काफी कम होता है। इस कारण से फॉस्फोरस कमरे के ताप पर ही आग पकड़ लेता है।
(ii) कोयले की खानों में कोयले की धूल स्वत: आग पकड़ लेते हैं। खानों में कोयले की धूल सूर्य की गर्मी तथा अन्य गर्मी के कारण स्वत आग पकड़ लेते हैं तथा जलने लगती है।
(iii) अधिक गर्मी के कारण तथा कभी कभी बिजली गिरने के कारण जंगलों में स्वत: आग लग जाया करती है। जंगलों में लगने वाला इस तरह का आग भी स्वत: दहन का उदाहरण है। हालाँकि कभी कभी लोगों की लापरवाही जैसे कि पिकनिक या शिविरों से लौटने के बाद कैम्पफायर के पूर्ण रूप से नहीं बुझाने पर भी जंगलों में आग लग जाती है।
(c) विस्फोट (एक्सप्लोजन)
पटाखों के जलने के क्रम में आकस्मिक अभिक्रिया होती है जिससे उष्मा, प्रकाश के साथ ध्वनि उत्पन्न होती है। इस प्रकार की अभिक्रिया में काफी मात्रा में गैस निकलती है, तथा पटाखे तेज आवाज के साथ जल उठते हैं। ऐसे दहन को विस्फोट कहा जाता है।
कुछ पटाखों पर दाब डालने पर भी विस्फोट हो जाता है।
ज्वाला तथा इसकी संरचना
दाह्य पदार्थों के दहन के समय दिखाई देने वाले भाग को ज्वाला कहा जाता है।
कुछ पदार्थ ज्वाला के साथ जलते हैं जबकि कुछ पदार्थ बिना ज्वाला के साथ जलते हैं तथा उनमें केवल एक प्रकार की चमक दिखाई देती है।
वैसे पदार्थ जो दहन के समय वाष्पित होते हैं, ज्वाला उत्पन्न करते हैं। तथा वैसे पदार्थ जो दहन के समय वाष्पित नहीं होते हैं, ज्वाला उत्पन्न नहीं करते।
उदाहरण: किरासन तेल, मोम, प्राकृतिक गैस, एलपीजी आदि दहन के समय ज्वाला उत्पन्न करते हैं। वहीं दूसरी ओर लकड़ी का कोयला जलने के समय ज्वाला उत्पन्न नहीं करता है।
किरासन तेल तथा पिघला हुआ मोम उसमें लगे बाती के साथ उपर उठते हैं तथा वाष्पित होकर ज्वाला उत्पन्न करते हैं। प्राकृतिक गैस तथा एलपीजी चूँकि गैसीय अवस्था में ही होते हैं अत: दहन के क्रम में ज्वाला उत्पन्न करते हैं। लकड़ी का कोयला दहन के क्रम में वाष्पीकृत नहीं होता है और ज्वाला उत्पन्न नहीं करता है।
ज्वाला की संरचना: ज्वाला के विभिन्न क्षेत्र
पदार्थ जो जलने के क्रम में वाष्पीकृत होते हैं ज्वाला उत्पन्न करते हैं तथा पदार्थ जो वाष्पीकृत नहीं होते हैं ज्वाला उत्पन्न नहीं करते हैं।
ज्वाला को विभिन्न क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। एक मोमबती के ज्वाला के तीन क्षेत्र होते हैं आंतरिक क्षेत्र, मध्य क्षेत्र तथा बाह्य क्षेत्र।
(i) आंतरिक क्षेत्र
ज्वाला में बिना जली हुई मोमबती के क्षेत्र को आंतरिक क्षेत्र कहा जाता है। यह आंतरिक क्षेत्र मोमबती के बाती के पास वाला क्षेत्र होता है। ज्वाला के इस आंतरिक क्षेत्र का रंग काला होता है तथा यह सबसे कम गर्म क्षेत्र होता है।
(ii) मध्य क्षेत्र
मोमबती के ज्वाला के मध्य में पीले रंग वाले भाग को मध्य क्षेत्र कहा जाता है। यह भाग आंशिक दहन वाला भाग होता है तथा मध्यम गर्म होता है।
(iii) बाह्य क्षेत्र
मोमबती के ज्वाला के बाहरी अदीप्त क्षेत्र को बाह्य क्षेत्र कहा जाता है। इस बाह्य क्षेत्र का रंग नीला होता है तथा यह ज्वाला का सबसे अधिक गर्म भाग होता है। ज्वाला का बाह्य क्षेत्र पूर्ण दहन का क्षेत्र होता है।
ज्वाला में बिना जले हुए कार्बन का क्षेत्र
मोमबत्ती की ज्वाला से धुँआ भी निकलता है। यह धुँआ बिना जले हुए कार्बन के कणों के कारण उत्पन्न होता है। जब एक सीसे के छोटा टुकड़े या मेटक के किसी टुकड़े या वाच ग्लास को मोमबत्ती की ज्वाला के ऊपर कुछ देर के लिए रखा जाता है, तो यह बिना जले हुए कार्बन के कण उसपर कालिख के रूप में जमा हो जाता है।
सुनार द्वारा ज्वाला का सोना या चाँदी को पिघलाने के लिए उपयोग
एक सुनार सोने और चाँदी को पिघलाने के लिए धातु की फुकनी से ज्वाला के सबसे बाहरी भाग को उस पर फूँकता है। चूँकि ज्वाला का सबसे बाहरी भाग सबसे अधिक गर्म होता है, अत: इसे सोने तथा चाँदी पर फूँकने पर वह पिघल जाता है जिसका उपयोग जेवर आदि बनाने में किया जाता है।
ईंधन क्या है?
वैसे पदार्थ जिनका दहन होता है, ईंधन कहलाते हैं। परंतु सभी दाह्य पदार्थ ईंधन ईंधन नहीं होते हैं बल्कि केवल वैसे दाह्य पदार्थ जिनका उपयोग घरों तथा फैक्ट्रियों में उष्मा के श्रोत के रूप में उपयोग किये जाते हैं ईंधन कहलाते हैं। उदाहरण के लिए किरासन तेल, पेट्रोल, डीजल, कोयला, लकड़ी, एलपीजी आदि।
एक अच्छा या आदर्श ईंधन
एक आदर्श ईंधन वह होता है जो आसानी से उपलब्ध हो, सस्ता हो, वायु में सामान्य रूप से तथा सुगमता से जल सकता हो और जलने के के उपरांत कोई अवांछनीय पदार्थ नहीं छोड़ता हो।
अर्थात एक आदर्श ईंधन के निम्नलिखित गुण होने चाहिए
(i) आसानी से उपलब्ध हो
(ii) सस्ता हो
(iii) वायु में सामान्य रूप में तथा सुगमता से जल सके
(iv) अधिक मात्रा में उष्मा उत्पन्न करे तथा
(v) जलने के उपरांत कोई अवांछनीय पदार्थ नहीं छोड़े।
सामान्यत: उपरोक्त गुणों के आधार पर कोई भी ईंधन आदर्श ईंधन नहीं है क्योंकि किसी भी ईंधन में ये सभी गुण नहीं होते हैं। लेकिन वैसे ईंधन जो किसी विशिष्ट उपयोग की अधिकांश आवश्यकताएँ पूर्ण करते हैं, को एक आदर्श ईंधन कहा जा सकता है।
ईंधन दक्षता (फ्यूल एफिसिएंसी) और उष्मीय मान (कैलोरिफिक वैल्यू)
ईंधन जो कम मात्रा में अधिक उष्मा उत्पन्न करे अधिक दक्षता वाले ईंधन कहलाते हैं। ईंधन की दक्षता को उसके उष्मीय मान द्वारा आँका है। ईंधन के उष्मीय मान को किलोजूल प्रतिकिलोग्राम (kJ/kg) मात्रक मे व्यक्त किया जाता है।
किसी ईंधन के 1 किलोग्राम के पूर्ण दहन से प्राप्त उष्मा उर्जा की मात्रा उसका उष्मीय मान कहलाती है। अर्थात किसी ईंधन के 1 किलोग्राम के पूर्ण दहन से प्राप्त उष्मा उर्जा की मात्रा 1 किलोजूल के बराबर होती है।
इसका अर्थ यह है कि जिस ईंधन का उष्मीय अधिक होता है उस ईंधन की दक्षता अधिक होती है।
कुछ ईंधनों का उष्मीय मान | |
---|---|
ईंधन | उष्मीय मान (kJ/kg) |
गोबर के उपले | 6000-8000 |
लकड़ी | 17000-22000 |
कोयला | 25000-33000 |
पेट्रोल | 45000 |
मिट्टी का तेल | 45000 |
डीजल | 45000 |
मेथेन | 50000 |
सीएनजी | 50000 |
एलपीजी | 55000 |
जैव गैस (बायो गैस) | 35000-40000 |
हाइड्रोजन | 150000 |
ईंधन के दहन से हानिकारक उत्पाद प्राप्त होते हैं
जनसंख्या बढ़ने के साथ ही साथ लगातार ईंधन की माँग बढ़ती जा रही है। ईंधन की बढ़ती खपत पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह भी साबित हो रहा है।
ईंधन के जलने के कुछ हानिकारक प्रभाव
(a) कार्बन वाले ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला और पेट्रोलियम के जलने के क्रम में कार्बन के कुछ कण पूरी तरह जल नहीं पाते हैं। ये बिना जले हुए कार्बन के कण वातावरण में चले जाते हैं। ये सूक्ष्म कण खतरनाक तथा प्रदूषक होते हैं। ये खतरनाक तथा प्रदूषक कण स्वास्थ्य संबंधी समस्या जैसे दमा जैसे श्वास रोग उत्पन्न करते हैं।
(b) ईंधन के आंशिक दहन के कारण कार्बन मोनोक्साइड नामक गैस निकलती है। कार्बन मोनोक्साइड एक जहरीली गैस है जो स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। कार्बन मोनोक्साइड की थोड़ी मात्रा भी सूँघने से किसी की मृत्यु तक हो सकती है।
(c) अधिकांश जीवाश्म ईंधन के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है। ऐसा माना जाता है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण है। आज ग्लोबल वार्मिंग विश्व के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
(d) डीजल तथा कोयले के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलती है। दूसरी ओर पेट्रोल के जलने से नाइट्रोजन गैस निकलती है। ये गैसें जल के साथ मिलकर अम्ल बनाती है। ये गैस वर्षा के जल के साथ मिलकर वापस पृथ्वी गिरती है, जिसे अम्ल वर्षा भी कहते हैं। अम्ल वर्षा फसलों, भवनों, मिट्टी, जलाशय और नदी के जल आदि के लिए काफी हानिकारक होती है।
ये गैस अत्यंत ही दमघोंटू और संक्षारक गैसे हैं, जो सभी प्रकार से नुकसानदेह हैं।
(e) मोटर वाहनों में पेट्रोल तथा डीजल की जगह सीएनजी का उपयोग पर्यावरण के लिए काफी अच्छा है। उसी प्रकार कोयले, लकडी तथा मिट्टी के तेल के स्थान पर खाना बनाने के लिए एलपीजी का उपयोग भी काफी अच्छा है। सीएनजी, पीएनजी, और एलपीजी दहन के क्रम में बहुत ही कम प्रदूषण फैलाती है। इन गैसों को स्वच्छ ईंधन कहा जाता है।
भारत में अब धीरे धीरे गाड़ियों में सीएनजी का उपयोग बढ़ रहा है जो पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए एक सार्थक प्रयास है।
Reference: