सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु
आठवीं विज्ञान
हानिकारक सूक्ष्मजीव
बहुत सारे सूक्ष्मजीव हानिकारक होते हैं। ये हानिकारक सूक्ष्मजीव मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों में अनेक तरह के रोग उत्पन्न करते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़े तथा चमड़ों से बनी वस्तुओं को भी खराब कर देते हैं
रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों को रोगाणु या रोगजनक कहलाते हैं।
मनुष्य में रोगकारक सूक्ष्मजीव
रोगाणु हवा, पेय जल, तथा भोजन के द्वारा शरीर में प्रवेश कर लोगों को बीमार कर देते हैं।
सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा कायिक सम्पर्क द्वारा फैलते हैं, संचरणीय रोग कहलाते हैं। हैजा, सर्दी जुकाम, चिकनपॉक्स, क्षय रोग आदि संचरणीय रोग के कुछ उदाहरण हैं।
जैसे जुकाम से पीड़ित किसी व्यक्ति के छींकने से बहुत सारे रोगकारक वायरस भी वायु में आ जाते हैं। ये वायरस किसी दूसरे स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में श्वास के साथ प्रवेश कर उसे भी बीमार कर सकता है। इसलिए सर्दी जुकाम होने पर छींकने के समय हमेशा नाक तथा मुँह को रूमाल से ढ़क लेना चाहिए ताकि मुँह तथा नाक से निकलने वाले वायरस (रोगाणु) दूसरे व्यक्ति को बीमार नहीं कर सकें।
रोगवाहक कीट एवं जंतु
बहुत सारे कीट एवं जंतु रोगकारक सूक्ष्मजीवों के रोगवाहक का कार्य करते हैं। जैसे मक्खी, मच्छर, तिलचट्टा, चूहे, कुत्ते, बिल्ली आदि।
मक्खियाँ कूड़े एवं अन्य गंदे जगहों पर बैठती हैं इसमें रोगकारक सूक्ष्मजीव उनके शरीर से चिपक जाती हैं। जब ये मक्खियाँ बिना ढ़के हुए भोजन पर बैठती हैं तो शरीर से चिपके हुए रोगकारक सूक्ष्मजीवों को स्थानांतरित कर भोजन को संदूषित कर देती है। इस संदूषित भोजन को खाने से व्यक्ति में रोगकारक सूक्ष्मजीवों के स्थानांतर हो जाने से वह बीमार पड़ जाता है। इसलिए भोजन को हमेशा ढ़ककर रखना चाहिए।
मादा एनॉफ्लीज मच्छर मलेरिया परजीवी (प्लैज्मोडियम) का वाहक होता है। उसी प्रकार मादा एसीस मच्छर डेंगू के रोगाणु (वायरक) का वाहक है। जब भी ये रोगाणुओं के वाहक मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है, तो संबंधित रोगाणुओं के स्थारांतरण हो जाने के कारण स्वस्थ व्यक्ति को बीमार कर देता है।
मच्छर से बचाव
मच्छर रूके हुए जल में अंडे देती है। अत: मच्छर के प्रजनन को रोकने के लिए घर के आसपास जल को जमा नहीं होने देना चाहिए। घरों में मच्छर को भगाने तथा मारने वाले पदार्थों का नियमित उपयोग करना चाहिए। सोते समय हमेशा मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। इस तरह मच्छर के कारण होने वाले बीमारियों से बचा जा सकता है।
मनुष्यों में सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले सामान्य रोग | |||
---|---|---|---|
मानव रोग | रोगकारक सूक्ष्मजीव | संचरण का तरीका | बचाव के सामान्य उपाय |
क्षय रोग | जीवाणु | वायु | रोगी व्यक्ति तथा को दूसरे व्यक्तियों से अलग रखना। रोगी के व्यक्तिगत वस्तुओं को अलग रखना। समय पर टीकारकरण। |
खसरा (मिजिल्स) | वायरस | वायु | |
चिकनपॉक्स | वायरस | वायु/सीधे सम्पर्क | |
हैजा | जीवाणु | जल/भोजन | व्यक्तिगत स्वच्छता। भलीभाँति पके भोजन, उबला पेयजल एवं टीकारण |
टाइफायड | जीवाणु | जल | |
हेपेटाइटिस–A | वायरस | जल | उबले हुए पेय जल का प्रयोग, टीकाकरण |
मलेरिया | प्रोटोजोआ | मच्छर | आस पड़ोस में जल जमाव नहीं होने देकर मच्छर के प्रजनन को रोकना। कीटनाशक का छिड़काव, मच्छर भगाने वाले रसायन का प्रयोग, मच्छरदानी का प्रयोग। |
जंतुओं में रोगकारक जीवाणु
बहुत सारे सूक्ष्मजीव मनुष्य के अलावे दूसरे जीवों में भी बीमारी के कारण होते हैं। जैसे एंथ्रेक्स एक भयानक रोग है जो मनुष्य तथा पशुओं दोनों में होता है। एंथ्रेक्स रोग बेसीलस एंथ्रेसिस नाम के जीवाणु के कारण होता है।
गाय के खुर एवं मुँह में होने वाला रोग वायरस के कारण होता है।
पौधे में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव
बहुत सारे सूक्ष्मजीव पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। गेहूँ, धान, आलू, गन्ने, संतरा, सेब आदि के फसल सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले रोगों के कारण प्राय: खराब तथा नष्ट हो जाते हैं। पौधों में रोग हो जाने के कारण या तो उत्पादन कम हो जाता है या फसल के नष्ट हो जाने के कारण उत्पादन बिल्कुल ही नहीं हो पाता है।
नींबू में होने वाला नींबू कैंकर नाम का रोग जीवाणु के कारण होता है तथा वायु द्वारा फैलता है।
गेहूँ की फसल में गेहूँ की रस्ट नाम का रोग कवक (फंजाई) के कारण होता है। यह रोग वायु तथा संक्रमित बीजों के द्वारा फैलता है।
भिंडी के पौधों में भिंडी की पीत नाम का रोग वायरस के कारण होता है तथा कीटों के कारण फैलता है।
खाद्य विषाक्तन (फुड प्वायजनिंग)
हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले कई सूक्ष्मजीव कई बार विषैले पदार्थ उत्पन्न कर खाद्य को विषाक्त कर देते हैं। इस विषाक्त भोजन को करने वाला व्यक्ति बीमार पड़ जाता है।
ऐसे विषाक्त भोजन के कारण होने वाले रोग को खाद्य विषाक्तन कहते हैं। खाद्य विषाक्तन को अंग्रेजी में फुड प्वायजनिंग (food poisioning) कहा जाता है।
कभी कभी सही समय पर उपचार नहीं होने पर खाद्य विषाक्तन के कारण लोगों की मृत्यु तक हो जाया करती है।
खाद्य परिरक्षण
प्राचीन काल से खाद्य सामग्रियों को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए उसका परिरक्षण किया जाता है। खाद्य पदार्थों का कई तरीकों से परीक्षण किया जाता है। खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने को खाद्य परिरक्षण कहा जाता है।
रसायनिक उपाय द्वारा खाद्य का परिरक्षण
नमक एवं खाद्य तेल सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रोकने में सक्षम होते हैं अत: इन्हें परिरक्षक कहा जाता है। नमक तथा खाद्य तेलों का उपयोग खाद्य पदार्थों के परिरक्षण हेतु किया जाता है।
अचार बनाने में नमक, खाद्य तेल तथा खाद्य अम्ल का उपयोग किया जाता है। इनके उपयोग से खाद्य पदार्थों में सूक्ष्मजीवों की बृद्धि नहीं होती है।
सोडियम बेंजोएड तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट भी सामान्य परिरक्षक हैं। जैम, जेली एवं स्क्वैश बनाने में इन रसायन का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों का प्रयोग जैम, जेली एवं स्क्वैश को लम्बे समय तक खराब होने से बचाये रखता है।
साधारण नमक द्वारा परिरक्षण
साधारण नमक एक प्राकृतिक परिरक्षक है। नमक से ढ़क देने से खाद्य पदार्थों पर सूक्ष्मजीवों की बृद्धि नहीं होती है, जिससे वे लम्बे समय तक उपयोग में लाये जा सकते हैं। नमक का उपयोग खाद्य पदार्थों से नमी को सोख लेता है नमी की अनुपस्थिति में उनमें सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है।
नमक का उपयोग मांस, मछली, आम, आँवला, नींबू, इमली आदि के परिरक्षण के लिए किया जाता है।
चीनी द्वारा परिरक्षण
चीनी भी नमक की तरह ही नमी को सोख लेता है तथा सूक्ष्मजीवों को उत्पन्न होने से रोकता है। चीनी का उपयोग जैम, जेली, स्क्वैश आदि बनाने में किया जाता है, जिससे लम्बे समय तक इन खाद्य पदार्थों को उपयोग में लाया जा सकता है।
तेल एवं सिरके द्वारा परिरक्षण
तेल एवं सिरके सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं, इसलिए तेल एवं सिरके का उपयोग खाद्य पदार्थों के परिरक्षण के लिए किया जाता है। सब्जियाँ, फल, मछली तथा मांस का परिरक्षण तेल एवं सिरके को मिलाकर किया जाता है।
गर्म एवं ठंढ़ा कर परिरक्षण करना
अधिक गर्मी सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है तथा अधिक ठंढ़क सूक्ष्मजीवों की बृद्धि को रोकता है।
दूध को उबाल देने पर उसके सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं तथा दूध अधिक समय तक खराब नहीं होता है। खाद्य पदार्थों को रेफ्रिजरेटर में कम तापमान पर रखने पर उसमें सूक्ष्मजीवों की बृद्धि नहीं होती है। इसलिए घरों में दूध को उबाल कर तथा खाद्य पदार्थों को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए रेफ्रिजरेटर में रख जाता है।
पाश्चुराइजेशन
दूध को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने का एक तरीका पाश्चुराइजेशन है। पाश्चुराइजेशन की प्रक्रिया में दूध को पहले 70o C के तापमान पर गर्म किया जाता है फिर उसे एकाएक ठंढ़ा कर दिया जाता है तथा उसका भंडारण कर दिया जाता है। ऐसा करने पर सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है तथा दूध लम्बे समय तक खराब नहीं होता है।
लुई पाश्चर, जो एक फ्रेंच वैज्ञानिक थे, ने पाश्चुराइजेशन (पॉश्चरीकरण) की खोज की थी। उनकी प्रतिष्ठा में दूध के परिरक्षण की इस विधि को पाश्चुराइजेशन (पॉश्चरीकरण) कहा जाता है।
आजकल पॉश्चरीकृत (pasturized) दूध बाजार में प्लास्टिक की थैलियों में आसानी से उपलब्ध होता है। पॉश्चरीकृत (pasturized) दूध में सूक्ष्मजीव नहीं होने के कारण उसे बिना उबाले ही पिया जा सकता है।
भण्डारण एवं पैकिंग
खाद्य पदार्थों को वायुरहित डिब्बों तथा पैकेटों में बंद कर देने से उसमें सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है तथा इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक बिना खराब हुए भंडारित किया जा सकता है।
आजकल सब्जियाँ, मेवे, चिप्स, मिठाइयाँ तथा अन्य कई खाद्य पदार्थो वायुरहित डिब्बों में बाजार में उपलब्ध होते हैं। डिब्बों में बंद ये खाद्य पदार्थ लम्बे समय तक खराब नहीं होते हैं तथा उपयोग में लाये जाते हैं।
बिस्कुटों तथा चिप्स आदि के पैकेटों में वायु निकाल कर नाइट्रोजन भर दिया जाता है। वायुरहित होने तथा नाइट्रोजन गैस की उपस्थिति सूक्ष्मजीवों की बृद्धि को रोक देता है।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण
कुछ सूक्ष्मजीवों नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। पौधे नाइट्रोजन को हवा से अवशोषित नहीं कर पाते हैं बल्कि वे मिट्टी से इसका अवशोषण करते हैं। राइजोबियम नाम का एक जीवाणु फलीदार तथा दलहन फलों की जड़ों में रहते हैं। ये जीवाणु हवा से नाइट्रोजन को लेकर उसे घुलनशील रूप प्रदान कर मिट्टी में उपलब्ध करा देते हैं। पौधे जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित इस नाइट्रोजन का अवशोषण कर लेते हैं तथा पोषक तत्व के रूप में संश्लेषित करते हैं।
कभी कभी तड़ित विद्युत भी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण के द्वारा वायुमंड का नाइट्रोजन स्थिर रहता है।
नाइट्रोजन चक्र
नाइट्रोजन सभी जीव जंतुओं के लिए एक आवश्यक घटक है। पौधे नाइट्रोजन का उपयोग कर प्रोटीन बनाते हैं। यही प्रोटीन जीव जंतुओं द्वारा खाद्य पदार्थ के द्वारा ग्रहण करते हैं।
वायुमंडल में लगभग 78% नाइट्रोजन है।
सभी जीव जंतु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर हैं। पौधे तथा जंतु वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग सीधे नहीं करते हैं।
मिट्टी में पाये जाने वाले कुछ जीवाणु तथा शैवाल वायुमंडल में वर्तमान नाइट्रोजन को अवशोषित कर उसे घुलनशील रूप में मिट्टी में उपलब्ध कराते हैं। पौधे मिट्टी में उपलब्ध इस नाइट्रोजन को जड़ों द्वारा अवशोषित कर प्रोटीन तथा पोषक तत्वों में संश्लेषित कर खाद्य के रूप में संरक्षित कर लेते हैं। जीव जंतु पौधे द्वारा संश्लेषित भोजन को करने के पर इस नाइट्रोजन को प्राप्त करते हैं। पौधों तथा जंतुओं की मृत्यु के बाद विघटित करने वाले जीवाणु तथा कवक इनका विघटन कर नाइट्रोजनी अपशिष्ट को नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर मिट्टी में मिला देते हैं जिसका अवशोषण पुन: पौधों द्वारा कर भोजन का संश्लेषण किया जाता है।
इस तरह वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा स्थिर रहती है। इस चक्र को नाइट्रोजन चक्र कहा जाता है।
Reference: