सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु
आठवीं विज्ञान
पाठ का सारांश
(1) सूक्ष्मजीव: वैसे छोटे जीव जो बिना सूक्ष्मदर्शी के दिखाई नहीं देते हैं, सूक्ष्मजीव कहलाते हैं। सूक्ष्मजीव प्राय: प्रत्येक जगह पर तथा सभी परिस्थितियों में पाये जाते हैं। बर्फ जमे पहाड़ से लेकर समुद्र के तल तक सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं। सूक्ष्मजीव सभी परिस्थितियों जैसे बहुत गर्म जगह पर तथा बहुत ठंढ़े जगह पर पाये जाते हैं। जीवाणु, रोगाणु, कवक आदि सूक्ष्मजीव के उदाहरण हैं।
(2) सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण : सूक्ष्मजीव को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है। सूक्ष्मजीव के ये पाँच वर्ग जीवाणु (बैक्टीरीया), कवक (फंजाई), प्रोटोजोआ, शैवाल (एल्गा) तथा वायरस (विषाणु) हैं।
(3) जीवाणु (बैक्टीरीया): बैक्टीरीया (जीवाणु) एक कोशिकीय जीव होए हैं। कुछ जीवाणु (बैक्टीरीया) हमारे लिए अच्छे हैं तथा कुछ हमारे लिए हानिकारक हैं। राइजोबियम, बैसाइलस, आदि बैक्टीरीया के कुछ उदाहरण हैं।
(4) कवक (फंजाई): कवक (फंजाई) एक प्रकार का सूक्ष्मजीव है जो एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दोनों होता है। कवक (फंजाई) एक परजीवी होता है जो मृत तथा सड़ रहे जैविक पदार्थों पर अंकुरित होते हैं तथा उनसे पोषण प्राप्त करते हैं। मशरूम, राइजोप्स (ब्रेड मोल्ड), पेनिसीलिएम, आदि कवक (फंजाई) के कुछ उदाहरण हैं।
(5) प्रोटोजोआ: प्रोटोजोआ एक प्रकार का सूक्ष्मजीव है तथा एककोशिकीय होते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि प्रोटोजोआ के कुछ उदाहरण हैं। अतिसार, मलेरिया आदि रोग प्रोटोजोआ के कारण होते हैं।
(6) शैवाल (एल्गा): शैवाल (एल्गा) हरे रंग का एक प्रकार का सूक्ष्मजीव है जो पानी गिरने के स्थान, रूके हुए पानी आदि में पाये जाते हैं। क्लेमाइडोमोनास, स्पाइरोगाइरा आदि कवक (फंजाई) के कुछ उदाहरण हैं।
(7) विषाणु (वायरस): विषाणु (वायरस) अन्य सूक्ष्मजीवों से थोड़ा अलग होते हैं। विषाणु (वायरस) परजीवी होते हैं। ये केवल दूसरे जैव पदार्थों में ही गुणन करते हैं। विषाणु (वायरस) अधिकांशतया रोग के कारण होते हैं। जुकाम, इंफ्लुएंजा (फ्लू), पोलियो, खसरा आदि रोग विषाणु (वायरस) के कारण होते हैं।
(8) मित्रवत सूक्ष्मजीव: बहुत सारे सूक्ष्मजीव हमारे लिए लाभदायक हैं अत: वे मित्रवत सूक्ष्मजीव कहे जाते हैं। जैसे यीस्ट एक प्रकार का सूक्ष्मजीव है जिसका उपयोग ब्रेड, केक, अल्कोहॉल आदि बनाने में किया जाता है।
(9) सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग: बहुत सारे सूक्ष्मजीवों का उपयोग औषधी बनाने में किया जाता है। ये सूक्ष्मजीव बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर बीमार व्यक्ति को स्वस्थ बनाते हैं। सूक्ष्मजीवों से बने इन औषधियों को प्रतिजैविक या एंटीबॉयोटिक कहा जाता है।
(10) वैक्सीन (टीका) कुछ सूक्ष्मजीवों का उपयोग कर एक प्रकार की औषधी तैयार की जाती है जिनके हमारे शरीर में प्रवेश से हमारा शरीर बीमारी से लड़ने के लिए प्रतिरक्षी तैयार करते हैं, इन औषधी को वैक्सीन या टीका कहा जाता है। वायरस से होने वाली बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन (टीका) का उपयोग किया जाता है।
हैजा, चेचक, हेपेटाइटिस ए तथा बी आदि नाम की बीमारियाँ, जो वायरस के कारण होती है से वैक्सीन (टीका) द्वारा बचाव किया जाता है।
(11) सूक्ष्मजीवों द्वारा मिट्टी की उर्वरकता में बृद्धि: बहुत सारे सूक्ष्मजीव, जैसे राइजोबियम मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर मिट्टी का उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
(12) जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकारक: सूक्ष्मजीव, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाते हैं, जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकारक कहा जाता है।
(13) सूक्ष्मजीवों द्वारा पर्यावरण का शुद्धिकरण: कुछ सूक्ष्मजीव मृत तथा सड़नेवाले जीवों को अपघटित कर साधारण पदार्थ में बदल कर मिट्टी में मिला देते हैं तथा इस तरह पर्यावरण की शुद्धिकरण करने में सहायक होते हैं।
(14) हानिकारक सूक्ष्मजीव : बहुत सारे सूक्ष्मजीव हानिकारक होते हैं। ये हानिकारक सूक्ष्मजीव मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों में अनेक तरह के रोग उत्पन्न करते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़े तथा चमड़ों से बनी वस्तुओं को भी खराब कर देते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले इन सूक्ष्मजीवों को रोगाणु या रोगजनक कहते हैं।
(15) जंतुओं में रोगकारक सूक्ष्मजीव : बहुत सारे सूक्ष्मजीव मनुष्य के अलावे दूसरे जीवों में भी बीमारी के कारण होते हैं। जैसे एंथ्रेक्स एक भयानक रोग है जो मनुष्य तथा पशुओं दोनों में होता है। एंथ्रेक्स रोग बेसीलस एंथ्रेसिस नाम के जीवाणु के कारण होता है।
(16) पौधे में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव : बहुत सारे सूक्ष्मजीव पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। गेहूँ, धान, आलू, गन्ने, संतरा, सेब आदि के फसल सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले रोगों के कारण प्राय: खराब तथा नष्ट हो जाते हैं। पौधों में रोग हो जाने के कारण या तो उत्पादन कम हो जाता है या फसल के नष्ट हो जाने के कारण उत्पादन बिल्कुल ही नहीं हो पाता है।
(17) खाद्य विषाक्तन (फुड प्वायजनिंग): हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले कई सूक्ष्मजीव कई बार विषैले पदार्थ उत्पन्न कर खाद्य को विषाक्त कर देते हैं। इस विषाक्त भोजन को करने वाला व्यक्ति बीमार पड़ जाता है। ऐसे विषाक्त भोजन के कारण होने वाले रोग को खाद्य विषाक्तन कहते हैं। खाद्य विषाक्तन को अंग्रेजी में फुड प्वायजनिंग (food poisioning) कहा जाता है। कभी कभी सही समय पर उपचार नहीं होने पर खाद्य विषाक्तन के कारण लोगों की मृत्यु तक हो जाया करती है।
(18) खाद्य परिरक्षण : खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने को खाद्य परिरक्षण कहा जाता है। खाद्य परिरक्षण के लिए नमक, चीनी, खाद्य तेल, खाद्य अम्ल तथा कुछ रसायन आदि का प्रयोग किया जाता है।
(19) पाश्चुराइजेशन : दूध को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने का एक तरीका पाश्चुराइजेशन है। पाश्चुराइजेशन की प्रक्रिया में दूध को पहले 70o C के तापमान पर गर्म किया जाता है फिर उसे एकाएक ठंढ़ा कर दिया जाता है तथा उसका भंडारण कर दिया जाता है। ऐसा करने पर सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है तथा दूध लम्बे समय तक खराब नहीं होता है।
(20) भण्डारण एवं पैकिंग: खाद्य पदार्थों को वायुरहित डिब्बों तथा पैकेटों में बंद कर देने से उसमें सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है तथा इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक बिना खराब हुए भंडारित किया जा सकता है।
(21) नाइट्रोजन चक्र : वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन है जो कि हमेशा स्थिर रहता है। जीव, जंतुओं तथा पौधों द्वारा वायुमंडल में वर्तमान नाइट्रोजन को विभिन्न प्रकार से अवशोषण तथा वापस छोड़ कर स्थिर रखा जाता है। यह प्रक्रिया चूँकि निरंतर चलती रहती है अत: इसे नाइट्रोजन चक्र कहा जाता है।
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