रेखाएँ और कोण: क्लास नौवीं गणित
आधारभूत पद और परिभाषाएँ
रेखाखंड [लाइन सेगमेंट (Line Segment)]
किसी रेखा का एक भाग जिसके दो अंत बिन्दु हों एक रेखाखंड [लाइन सेगमेंट (Line Segment)] कहलाता है।
एक रेखाखंड को उसके दोनों अंत बिन्दुओं को साथ लिखकर उसके ऊपर एक क्षैतिज रेखा (बार) का चिन्ह लगाकर दर्शाया जाता है। जैसे कि `bar(AB)`
Ray
किसी रेखा का वह भाग जिसका एक अंत बिन्दु हो, एक किरण कहलाती है।
एक रेखा को `vec(AB)` लिखकर दर्शाया जाता है।
संरेख बिन्दु तथा असंरेख बिन्दु [कोलिनियर प्वांइट तथा नॉन कोलिनियर प्वांइट (Collinear Points and Non-collinear Points)]
यदि तीन या अधिक बिन्दु एक ही रेखा पर स्थित हों, तो उन्हें संरेख बिन्दु [कोलिनियर प्वांइट्स (Collinear Points)] कहा जाता है, अन्यथा उन्हें असंरेख बिन्दु [नॉन कोलिनियर प्वांइट्स (Non-Collinear Points)] कहा जाता है।
उदाहरण के लिए A, B, C तथा D संरेख बिन्दु हैं।
जबकि A, B तथा E असंरेख बिन्दुएँ [नॉन कोलिनियर प्वांइट्स (non collinear points)] हैं।
कोण [एंगल (Angle)]
जब दो किरणें किसी एक ही बिन्दु से निकलती हैं, तो एक कोण बनता है।
दूसरे शब्दों में जब दो किरणों का एक ही अंत बिन्दु होता है, तो एक कोण बनता है।
उदारण: `vecOA` और `vecOB` दो किरणें हैं जिनका अंत बिन्दु O है, तो इन किरणों के मिलन बिन्दु पर एक कोण बन रहा है, जिसे `/_BOA` लिखा जाता है तथा इसे कोण BOA पढ़ा जाता है।
कोण की भुजाएँ तथा शीर्ष
कोण बनाने वाली किरणों को कोण की भुजाएँ कहते हैं। तथा दोनों किरणों के अंत बिन्दु, जहाँ वे मिलती हैं, को कोण का शीर्ष कहते हैं।
यहाँ OB तथा OA कोण की भुजाएँ हैं तथा O कोण का शीर्ष है।
कोण के प्रकार
माप के आधार पर कोणों को मुख्य रूप से पाँच प्रकार में बाँटा जा सकता है। कोणों के ये प्रकार हैं: न्यून कोण [एक्यूट एंगल (Acute angle)], समकोण [राइट एंगल (Right angle)], अधिक कोण [ऑबट्यूज एंगल (Obtuse angle)], ऋजु कोण [स्ट्रेट एंगल (Straight angle)] और प्रतिवर्ती कोण [रिफ्लेक्स एंगल (Reflex angle)]
(i) न्यून कोण [एक्यूट एंगल (Acute angle)]
वैसा कोण जो 0o से बड़ा तथा 90o से छोटा हो, को न्यून कोण [एक्यूट एंगल (Acute angle)] कहा जाता है।
यहाँ बना हुआ कोण 60o का है। चूँकि यह 90o से छोटा तथा 0o से बड़ा है, अत: इसे न्यून कोण [एक्यूट एंगल (Acute angle)] कहा जाता है।
उसी प्रकार, 10o, 15o, 20o, 70o, आदि के कोण न्यून कोण [एक्यूट एंगल (Acute angle)] के कुछ उदाहरण हैं।
(ii) समकोण [राइट एंगल (Right Angle)]
कोण जो 90o के बराबर होता है, को समकोण [राइट एंगल (Right Angle)] कहते हैं।
चूँकि इस दिये गये कोण की माप 90o है, अत: यह समकोण [राइट एंगल (Right Angle)] है।
(iii) अधिक कोण [ऑबट्यूज एंगल (Obtuse Angle)]
वैसे कोण जो 90o से बड़े तथा 180o से छोटे हों, को अधिक कोण [ऑबट्यूज एंगल (Obtuse Angle)] कहते हैं।
यहाँ चूँकि दिये गये कोण की माप 120o है, जो कि 90o से बड़ा तथा 180o से छोटा है, अत: यह एक अधिक कोण [ऑबट्यूज एंगल (Obtuse Angle)] का उदाहरण है।
(iv) ऋजु कोण [स्ट्रेट एंगल (Straight Angle)]
कोण जिसकी माप 180o होती है ऋजु कोण [स्ट्रेट एंगल (Straight Angle)] कहलाता है।
यहाँ दिये गये कोण की माप 180o है, अत: यह ऋजु कोण [स्ट्रेट एंगल (Straight Angle)] है।
(v) प्रतिवर्ती कोण [रिफ्लेक्स एंगल (Reflex Angle)]
वैसे कोण जो 180o से बड़े तथा 360o से छोटे हों, को प्रतिवर्ती कोण [रिफ्लेक्स एंगल (Reflex Angle)] कहा जाता है।
यहाँ दिये गये कोण की माप 325o है, जो कि 180o से बड़ी तथा 360o से छोटी है, अत: यह प्रतिवर्ती कोण [रिफ्लेक्स एंगल (Reflex Angle)] का एक उदाहरण है।
उसी प्रकार 200o, 240o, 310o, 325o, आदि के कोण प्रतिवर्ती कोण [रिफ्लेक्स एंगल (Reflex Angle)] के कुछ उदाहरण हैं।
कोणों के युग्म
पूरक कोण [कॉम्पलिमेंटरी एंगल्स (Complementary Angles)]
यदि दो कोणों का योग 90o के बराबर होता है, तो उन कोणों के युग्म को पूरक कोण [कॉम्पलिमेंटरी एंगल्स (Complementary Angles)] कहते हैं।
उदाहरण
यहाँ `/_AOB` और `/_BOC` पूरक कोण [कॉम्पलिमेंटरी एंगल्स (Complementary Angles)] हैं क्योंकि इन दोनों कोणों का योग (30o + 60o = 90o) 90o के बराबर है।
संपूरक कोण [सप्लिमेंटरी एंगल (Supplementary Angles)]
जब दो कोणों का योग 180o होता है, तो कोणों के इस युग्म को संपूरक कोण [सप्लिमेंटरी एंगल (Supplementary Angles)] कहते हैं।
उदाहरण
यहाँ दिये गये कोणों की माप क्रमश: 120o तथा 60o है जिनका योग 180o होता है, अत: ये कोण संपूरक कोण [सप्लिमेंटरी एंगल (Supplementary Angles)] हैं।
आसन्न कोण [एडजेसेंट एंगल्स (Adjacent Angles)]
यदि दो कोणों के उभयनिष्ठ शीर्ष तथा एक उभयनिष्ठ भुजा हो और उनकी वे भुजाएँ जो उभयनिष्ठ नहीं है, उभयनिष्ठ भुजा के विपरीत ओर स्थित हों, तो वे दोनों कोण आसन्न कोण [एडजेसेंट एंगल्स (Adjacent Angles)] कहलाते हैं।
उदाहरण
यहाँ कोण AOB और कोण BOC आसन्न कोण हैं, क्योंकि दोनों किरण OB तथा शीर्ष O दोनों कोणों में उभयनिष्ठ हैं।
कोणों का रैखिक युग्म [लिनियर पेयर ऑफ एंगल्स (Linear Pair of Angles)]
यदि दो आसन्न कोण की उभयनिष्ठ भुजा के दोनों ओर स्थित विपरीत भुजाएँ एक सरल रेखा बनाती हैं, तो ऐसे कोणों को कोणों का रैखिक युग्म [लिनियर पेयर ऑफ एंगल्स (Linear Pair of Angles)] कहा जाता है।
उदाहरण
यहाँ आसन्न कोण AOC और कोण COB की भुजाएँ OA और OB जो उभयनिष्ठ नहीं हैं, परस्पर एक सरल रेखा बनाती हैं अत: कोण AOC और कोण COB कोणों का एक रैखिक युग्म बनाते हैं।
शीर्षाभिमुख कोण [वर्टिकली अपोजिट एंगल्स (Vertically Opposite Angles)]
जब दो रेखाएँ एक दूसरे को काटती हैं, तो कटान बिन्दु परस्पर चार कोण बनते हैं जिसमें आमने सामने कोणों के दो युग्म बनते हैं। इस तरह बने आमने सामने के कोणों के युग्म को शीर्षाभिमुख कोण [वर्टिकली अपोजिट एंगल्स (Vertically Opposite Angles)] कहते हैं।
शीर्षाभिमुख कोण [वर्टिकली अपोजिट एंगल्स (Vertically Opposite Angles)] की माप आपस में बराबर होते हैं।
यहाँ कोण 1 और कोण 3 शीर्षाभिमुख कोण हैं। उसी तरह कोण 2 और कोन 4 शीर्षाभिमुख कोण हैं।
तथा कोण 1 = कोण 3.
और कोण 2 = कोण 4.
समांतर रेखाएँ और तिर्यक रेखा [पैरेलल लाइंस एंड ट्रांसवर्सल (Parallel Lines and Transversal)]
मान लिया कि m तथा n दो समांतर रेखाएँ हैं।
तथा एक तिर्यक रेखा t इन दोनों समांतर रेखाएँ m तथा n को क्रमश: दो बिन्दुओं पर काटती हैं।
मान लिया इन दोनों समांतर रेखाओं को तिर्यक रेखा के द्वारा काटने पर बने हुए कोण क्रमश: 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 तथा 8 हैं।
इस तरह बने कोणों में, ∠1, ∠2, ∠7 और ∠8 को बाह्य कोण [एक्सटिरियर एंगल्स (Exterior Angles)] कहते हैं।
तथा ∠3, ∠4, ∠5 और ∠6 को अंत: कोण [इनटिरियर एंगल्स (Interior Angles)] कहते हैं।
(a) संगत कोण [कॉरेशपॉन्डिंग एंगल्स (Corresponding Angles)]
(i) ∠1 और ∠5, (ii) ∠2 और ∠6, (iii) ∠4 और ∠8 और (iv) ∠3 और ∠7
(b) एकांतर अंत: कोण [अलटरनेट इनटिरियर एंगल्स (Alternate Interior Angles)]
(i) ∠4 और ∠6 (ii) ∠3 और ∠5
(c) एकांतर बाह्य कोण [अलटरनेट एक्सटिरियर एंगल्स (Alternate Exterior Angles)]
(i) ∠1 और ∠7 (ii) ∠2 और ∠8
(d) तिर्यक रेखा के एक ही ओर के अंत: कोण [इनटिरियर एंगल्स ऑन द सेम साइड ऑफ ट्रांसवर्सल (Interior Angles on the same side of the Transversal)]
(i) ∠4 और ∠5 (ii) ∠3 और ∠6
तिर्यक रेखा के एक ही ओर के अंत: कोणों को क्रमागत अंत: कोण [कॉन्सेक्यूटिव इनटिरियर एंगल्स (Consecutive Interior Angles)] या संबंधित कोण [एलायड एंगल्स (Allied Angles)] या सह अंत: कोण [को इनटिरियर एंगल्स (Co-interior Angles)] भी कहा जाता है।
रैखिक युग्म अभिगृहीत [लीनियर पेयर एक्सिअम्स (Linear Pair Axioms)]
अभिगृहीत 1 (एक्सिअम 1)
यदि एक किरण एक रेखा पर खड़ी हो, तो इस प्रकार बनों दोनों आसन्न कोणों का योग 180o होता है।
अभिगृहीत 2 (एक्सिअम 2)
यदि दो आसन्न कोणों का योग 180o है, तो उनकी उभयनिष्ठ भुजाएँ एक रेखा बनाती हैं
अभिगृहीत 2 को अभिगृहीत 1 का विलोम कहा जाता है।
चूँकि अभिगृहीत 2 अभिगृहीत 2 का विलोम है, अत: इन दोनों अभिगृतीतों को मिला कर इन्हें रैखिक युग्म अभिगृही (Linear Pair Axiom) कहते हैं।
समांतर रेखाओं और तिर्यक रेखा से संबंधित अभिगृहीतअभिगृहीत 3 (एक्सिअम 3)
यदि एक तिर्यक रेखा दो समांतर रेखाओं को प्रतिच्छेद करे, तो संगत कोणों का प्रत्येक युग्म बराबर होता है।
अभिगृहीत 3 [(एक्सिअम 3 (Axiom 3)] को संगत कोण अभिगृहीत (कॉरेशपोन्डिंग एंगल एक्सिअम) भी कहा जाता है।
अभिगृहीत 4 (एक्सिअम 4)
यदि एक तिर्यक रेखा दो रेखाओं को इस प्रकार प्रतिच्छेद करे कि संगत कोणों के युग्म बराबर हैं, तो दोनों रेखाएँ परस्पर समांतर होती हैं।
Reference: