परमाणु की संरचना
नवमी विज्ञान
परमाणु अविभाज्य नहीं है
दो वस्तुओं को परस्पर रगड़ने से वह आवेशित हो जाती हैं, अर्थात उसमें विद्युतीय गुण आ जाता है। इस तरह विभिन्न पदार्थों द्वारा विद्युतीय गुण प्रदर्शित करने के कारण यह स्पष्ट संकेत मिलने लगा कि कि परमाणु अविभाज्य नहीं हैं। बल्कि परमाणु में आवेशित कण विद्यमान हैं।
पदार्थों में आवेशित कण
19 वीं शताब्दी तक यह स्पष्ट हो गया कि परमाणु अविभाज्य नहीं है। बल्कि परमाणु में आवेशित कण अर्थात अवपरमाणुक कण (sub atomic particles) विद्यमान हैं।
परमाणु तीन सब–एटॉमिक कणों से मिलकर बना है, ये कण हैं: इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन। ये सब एटॉमिक पार्टिकल [(Sub Atomic Particles(अवपरमाणुक कण)] कहलाते हैं।
अवपरमाणुक कण [सब एटॉमिक कण(Sub Atomic Particles)]
इलेक्ट्रॉन (Electron) : इलेक्ट्रॉन को अंग्रेजी के अक्षर e से निरूपित किया जाता है। इलेक्ट्रॉन पर एक ऋणात्मक आवेश होता है तथा इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान बहुत ही कम होने के कारण शून्य माना जाता है। इलेक्ट्रॉन पर ऋणात्मक आवेश होने के कारण इसे e– से निरूपित किया जाता है।
इलेक़्ट्रॉन का संकेत: e–
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान : 9.109 × 10– 31
इलेक्ट्रॉन का सापेक्ष द्रव्यमान : 1/1836 ≈ 0 [चूँकि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान काफी कम है, अत: इसे नगण्य मानकर शून्य माना जाता है। ]
इलेक्ट्रॉन पर आवेश : इलेक्ट्रॉन पर एवशाल्यूट आवेश = – 1.6 × 10– 19 है।
इलेक्ट्रॉन पर सापेक्ष आवेश : – 1
इलेक्ट्रॉन के पाये जाने का स्थान: परमाणु की कक्षाओं में
इलेक्ट्रॉन की खोज
जेo जेo थॉमसन, जो एक ब्रिटिश भौतिकशास्त्री थे ने वर्ष 1897 में इलेक्ट्रॉन की खोज की थी। उन्होंने बताया कि परमाणु में कम से कम एक ऋणआवेशित कण है, जिसे उन्होनें "कॉर्प्सकल्स (corpuscles)" नाम दिया। इसे बाद में चलकर इलेक्ट्रॉन नाम दिया गया।
प्रोटॉन (Proton) : प्रोटॉन को अंग्रेजी के अक्षर p से निरूपित किया जाता है। प्रोटॉन पर एक धनात्मक आवेश होता है तथा प्रोटॉन का सापेक्ष द्रव्यमान 1 के बराबर होता है। चूँकि प्रोटॉन पर एक धनात्मक आवेश होता है, अत: प्रोटॉन को p+ से निरूपित किया जाता है।
प्रोटॉन का संकेत: p+
प्रोटॉन का द्रव्यमान : 1.673 × 10– 27 kg
प्रोटॉन का सापेक्ष द्रव्यमान : 1
प्रोटॉन पर आवेश : इलेक्ट्रॉन पर एवशाल्यूट आवेश = 1.6 × 10– 19 कूलॉम (Coulomb) है।
प्रोटॉन पर सापेक्ष आवेश : + 1
प्रोटॉन के पाये जाने का स्थान: परमाणु की नाभिक में
प्रोटॉन की खोज
ईo गोल्डस्टीन, वर्ष 1886 में, परमाणु की खोज होने से पहले ही, एक नए विकिरण की खोज की, जिसे उन्होंने "केनाल रे" कहा। ये "केनाल रे" धनावेशित किरणें थीं, जिसके द्वारा बाद में प्रोटॉन का नाम दिया गया। इन कणों का आवेश इलेक्ट्रॉन के बराबर किंतु विपरीत था। इनका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा लगभग 2000 गुणा अधिक होता है।
न्यूट्रॉन (Neutron): न्यूट्रॉन को अंग्रेजी के अक्षर n से निरूपित किया जाता है। न्यूट्रॉन पर कोई आवेश नहीं होता है तथा न्यूट्रॉन का सापेक्ष द्रव्यमान 1 के बराबर होता है।न्यूट्रॉन का संकेत: n
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान : 1.673 × 10– 27 kg
न्यूट्रॉन का सापेक्ष द्रव्यमान : 1
न्यूट्रॉन पर आवेश : इलेक्ट्रॉन पर एवशाल्यूट आवेश 0 कूलॉम (Coulomb) है।
न्यूट्रॉन पर सापेक्ष आवेश : 0
न्यूट्रॉन के पाये जाने का स्थान: परमाणु की नाभिक में
न्यूट्रॉन की खोज
जेo चैडविक, वर्ष 1932 में एक और सब एटॉमिक कण को खोज निकाला। चूँकि इस सब एटॉमिक कण पर कोई आवेश नहीं था, अर्थात न्यूट्रल था, इसलिये इसका नाम न्यूट्रॉन रखा गया। न्यूट्रॉन की खोज इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन की खोज के काफी बाद की गई। न्यूट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान के बराबर होता है, तथा यह परमाणु के नाभिक अर्थात केन्द्रक (Nucleus) में रहता है।
बिना न्यूट्रॉन के परमाणु – हाइड्रोजन
सभी तत्व के परमाणु इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से बने होते हैं, दूसरे शब्दों में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन सभी परमाणुओं में होते हैं। इस कणों को सब एटॉमिक कण या अवपरमाणुक कहा जाता है। इन तीनों सब एटॉमिक कणों में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन परमाणु के केन्द्रक में होते हैं तथा इलेक्ट्रॉन इस केन्द्रक के चारों तरफ घूमते हैं। परंतु हाइड्रोजन एक ऐसा तत्व है, जिसमें न्यूट्रॉन नहीं होता है। हाइड्रोज़न परमाणु के केन्द्रक में मात्र प्रोटॉन होता है, तथा उसके बाह इलेक्ट्रॉन होता है, न्यूट्रॉन नहीं होता।
परमाणु की संरचना
इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन की खोज के बाद डाल्टन का परमाणु सिद्धांत जिसके अनुसार परमाणु अविभाज्य तथा अविनाशी था, गलत साबित हो गया। इसके बाद इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन की परमाणु के अंदर संरचना तथा व्यवस्था के बारे में कई मॉडल प्रस्तुत किये गये।
जेo जेo टॉमसन पहले वैज्ञाणिक थे, जिन्होनें परमाणु संरचना से संबंधित पहला मॉडल प्रतुत किया।
टॉमसन का परमाणु मॉडल
टॉमसन का परमाणु मॉडल क्रिसमस केक की तरह था। इस मॉडल को "प्लम पुडिंग" मॉडल भी कहा जाता है।
टॉमसन के अनुसार परमाणु क्रिसमस की केक की तरह एक धनावेशित गोला था, जिसमें इलेक्ट्रॉन क्रिसमस केक में लगे सूखे मेवे की तरह थे। इस मॉडल की तुलना तरबूज से भी की जा सकती है, जिसके अनुसार परमाणु में धन आवेश तरबूज के खाने वाले भाग की तरह तथा इलेक्ट्रॉन धनावेशित गोले में तरबूज के बीज की भाँति धंसे हैं।
टॉमसन ने प्रस्तावित किया कि:
(i) परमाणु धन आवेशित गोले का बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें धँसे होते हैं।
(ii) ऋणात्मक और धनात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं। इसलिये परमाणु वैद्युतीय रूप से उदासीन होते हैं।
टॉमसन के परमाणु मॉडल द्वारा परमाणु के उदासीन होने की ब्याख्या तो की गई, परंतु बाद के प्रयोगों द्वारा मिले परिणामों को इस मॉडल द्वारा समझाया नहीं जा सका।
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
परमाणु में इलेक्ट्रॉन की व्यवस्था को समझने के लिये अरनेस्ट रदरफोर्ड ने 1909 में सोने की काफी पतली पन्नी (Gold foil) पर तेज गति से वाले `alpha`–कणों से प्रहार करवाया तथा पाया कि
(i) तेज गति से चल रहे अधिकतर अल्फा कण सोने की पन्नी से सीधे निकल गये।
(ii) कुछ अल्फा कण पन्नी के द्वारा बहुत छोटे कोण से विक्षेपित हुए।
(iii) परंतु लगभग प्रत्येक 12000 कणों में से एक कण अपने पथ पर वापस आ गया।
इस प्रयोग से रदरफोर्ड ने निम्न परिणाम निकाले :
(i) परमाणु के भीतर अधिकांश भाग खाली है क्योंकि अधिकतर अल्फा कण बिना विक्षेपित हुए ही पन्नी से बाहर निकल गये।
(ii) परमाणु में धनावेशित भाग बहुत कम है, क्योंकि बहुत कम अल्फा कण अपने मार्ग से विक्षेपित हुए।
(iii) बहुत कम अल्फा कण 180o पर विक्षेपित हुए, जिससे यह संकेत मिलता है कि सोने के परमाणु का पूर्ण धनावेशित भाग और द्रव्यमान परमाणु के भीतर बहुत कम आयतन में सीमित है।
इन निष्कर्षों के आधार पर रदरफोर्ड ने एक परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया जिसे "रदरफोर्ड परमाणु मॉडल" के नाम से जाना जाता है। रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के मुख्य लक्षण या बिन्दु:
(i) परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है जिसे नाभिक कहा जाता है।
(ii) एक परमाणु का लगभग संपूर्ण द्रव्यमान नाभिक में होता है।
(iii) इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं।
(iv) नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में काफी कम होता है।
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियाँ
रद्ररफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार परमाणु अस्थायी थे। क्योंकि
रदरफोर्ड ने बताया कि इलेक्ट्रॉन, जो ऋण आवेशित होता है, नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाता है।
यदि कोई भी आवेशित कण गोलाकार कक्षा में त्वरित होगा तो आवेशित कणों से उर्जा का विकिरण होगा अर्थात क्षय होगा। इस प्रकार स्थायी कक्षा में घूमता हुआ इलेक्ट्रॉन अपनी उर्जा विकिरित करेगा और अंतत: नाभिक से टकरा जायेगा।
यदि ऐसा होता परमाणु नष्ट हो जाता अर्थात अस्थिर होता। परंतु परमाणु स्थायी होते हैं।
यह रदरफोर्ड मॉडल की सबसे बड़ी कमी थी।
नील्स बोर का परमाण्विक मॉडल
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमी को दूर करने के लिए नील्स बोर ने परमाणु की संरचना के बारे में अवधारणा प्रस्तुत की।
नील्स बोर के परमाणु मॉडल की अवधारणा
(i) इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉन की अलग या विशेष (discrete) कक्षा कहते हैं।
(ii) जब इलेक्ट्रॉन इन विशेष कक्षा में चक्कर लगाते हैं, तो उनकी उर्जा का विकिरण नहीं होता है।
उर्जा स्तर
इलेक्ट्रॉन परमाणु के जिन कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं, उन कक्षाओं (Orbit) या शेल (कोशों) को उर्जा स्तर कहा जाता है। इन उर्जा स्तर या कक्षाओं को अंग्रेजी के अक्षर क्रमश: K, L, M, N, ....... से दर्शाया जाता है।
अंग्रेजी के अक्षरों क्रमश: K, L, M, N, ......... द्वारा क्रमश: 1, 2, 3, 4, .... कक्षाओं को दर्शाया जाता है।
विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन कैसे वितरित होते हैं?
बोर तथा बरी ने परमाणुओं की कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन के वितरण के लिये नियम प्रस्तुत किये, जिसे बोर–बरी स्कीम कहा जाता है।
बोर–बरी स्कीम
(i) परमाणु की किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्यां 2n2 होती है। जहाँ `n` बराबर कक्षा संख्यां = 1, 2, 3, ........ इत्यादि।
(ii) सबसे बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है।
(iii) किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन क्रमानुसार कक्षाओं में भरती हैं।
किसी कक्षा में अधिकतम इलेक्ट्रॉन की संख्यां
परमाणु की किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्यां = 2n2
जहाँ n = 1, 2, 3, 4, .... जो कि कक्षा संख्या है।
(i) प्रथम कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्या
यहाँ n = 1 (अर्थात कक्षा संख्या = 1 या K)
अत: प्रथम कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या = 2 n2
= 2 × 12 = 2 × 1 = 2
अत: प्रथम कक्षा (K) में अधिकतम इलेक्ट्रॉन की संख्या = 2
(ii) दूसरे कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्या
यहाँ n = 2 (अर्थात कक्षा संख्या = 2 या L)
अत: इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्यां = 2n2
= 2 × 22 = 2 × 4 = 8
अत: दूसरी कक्षा (L) में अधिकतम इलेक्ट्रॉन की संख्या = 8
(iii) तीसरी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्या
यहाँ n = 3 (अर्थात कक्षा संख्या = 3 या M)
अत: इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्यां = 2n2
= 2 × 32 = 2 × 9 = 18
अत: तीसरी कक्षा (L) में अधिकतम इलेक्ट्रॉन की संख्या = 18
(iv) चौथी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्या
यहाँ n = 4 (अर्थात कक्षा संख्या = 4 या N)
अत: इलेक्ट्रॉन की अधिकत संख्यां = 2n2
= 2 × 42 = 2 × 16 = 32
अत: चौथी कक्षा (N) में अधिकतम इलेक्ट्रॉन की संख्या = 32
परमाणु संख्यां
किसी भी तत्व में वर्तमान प्रोटॉन की संख्या उसके परमाणु संख्या के बराबर होता है।
परमाणु संख्यां परमाणु का एक अभिलाक्षणिक गुण है, अर्थात प्रत्येक तत्व का परमाणु संख्यां अलग अलग होता है।
परमाणु संख्यां = प्रोटॉन की संख्यां = इलेक्ट्रॉन की संख्या
किसी तत्व में वर्तमान इलेक्ट्रॉन की संख्या उसके परमाणु संख्या के बराबर होता है। तथा परमाणु संख्या तत्व में वर्तमान प्रोटॉन की संख्या के बराबर होता है।
उदाहरण:
हाइड्रोजन (H) में प्रोटॉन की संख्या = 1
अत: हाइड्रोजन की परमाणु संख्या = 1
तथा हाइड्रोजन के इलेक्ट्रॉन की संख्या = 1
(2) हीलियम (He)
हीलियम (He) की परमाणु संख्या = 2
अत: हीलीयम में प्रोटॉन की संख्या = 2
तथा हीलियम में इलेक्ट्रॉन की संख्या = 2
(3) लीथियम (Li)
लीथियम (Li) की परमाणु संख्या = 3
अत: लीथियम (Li) में प्रोटॉन की संख्या = 3
तथा लीथियम (Li) में इलेक्ट्रॉन की संख्या = 3
(3) बेरिलियम (Be)
बेरिलियम (Be) की परमाणु संख्या = 4
अत: बेरिलियम (Be) में प्रोटॉन की संख्या = 4
तथा बेरिलियम (Be) में इलेक्ट्रॉन की संख्या = 4
Reference: