ध्वनि
नवमी विज्ञान
अनुरणन
किसी बड़े हॉल में ध्वनि के बार बार परावर्तन के कारण ध्वनि निर्बंध होता है और ध्वनि स्पष्ट सुनाई नहीं देती है, अनुरणन (रिवर्वरेशन) कहलाता है।
जब एक बड़े हॉल में भाषण या कोई संगीत आदि का प्रोग्राम चल रहा होता है, तो दीवारों से ध्वनि का बारंबार परावर्तन होने लगता है। इसके कारण बहु इको या बहु प्रतिध्वनि (ध्वनि का बहुल परावर्तन) पैदा होती है। मूल ध्वनि की यह बहु प्रतिध्वनि मूल ध्वनि को स्पष्ट सुनने में बाधा उत्पन्न करती है। इस घटना को अनुरणन (रिवरवरेशन) कहते हैं।
अनुरणन को कम करने के तरीके
अनुरणन (रिवरवरेशन) को कम करने के लिए सभा भवन की छतों तथा दीवारों और सीटों के गद्दों में पर ध्वनि अवशोषक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। जैसे कि दीवारों पर संपीड़ित फाईवर बोर्ड, खुरदरे प्लास्टर अथवा पर्दे लगाये जाते हैं तथा सीटो की गद्दों में कॉयर तथा रूई का उपयोग किया जाता है, फर्श पर कॉयर के बने कारपेट लगाये जाते हैं। ये पदार्थ ध्वनि को अवशोषित कर लेते हैं जिससे प्रतिध्वनि नहीं होती है और मूल ध्वनि स्पष्ट सुनाई पड़ती है।
ध्वनि के बहुल परावर्तन का उपयोग
(1) मेगाफोन या लाउडस्पीकर, हॉर्न आदि में ध्वनि के बहुल परावर्तन का उपयोग होता है। इन यंत्रों का उपयोग भीड़ को संबोधित करने के लिए किया जाता है। हॉर्न या लाउडस्पीकर को म्यूजिक प्लेयर आदि से जोड़ कर आवाज को अधिक जोड़ से सुनने के लिए किया जाता है।
चित्र: मेगाफोन18
चित्र: मेगाफोन19
चित्र: हॉर्न20
इन यंत्रों का उपयोग आवाज को बिना चारों ओर फैले हुए किसी एक दिशा में प्रसारित करने के लिए किया जाता है।
इन यंत्रों में एक नली का आगे का खुला भाग शंक्वाकार होता है। यह स्त्रोत से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों को बार बार परावर्तित कर श्रोताओं की ओर आगे की दिशा में भेज देता है।
चित्र: तुरही21
चित्र: शहनाई (राजेन्द्र प्रसन्ना शहनाई वादक) 22
संदर्भ: By Berthrand55 - Own work, CC BY-SA 3.0, Link
वाद्य यंत्र जैसे कि शहनाई, तुरही आदि भी ध्वनि के बहुल परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
(2) स्टेथोस्कोप
स्टेथोस्कोप एक मेडिकल यंत्र है, जिसकी सहायता से डॉक्टर शरीर के अंदर विभिन्न ऑर्गन से आने वाली आवाज को सुना जाता है जैसे कि हृदय के गति की आवाज, श्वास लेने से फेफड़े से आने वाली आवाज, नाड़ी की आवाज, आदि। स्टेथोस्कोप का उपयोग कर डॉक्टर शरीर के अंदरूनी खराबियों का पता लगाते हैं।
चित्र: स्टेथोस्कोप22
चित्र: स्टेथोस्कोप से ध्वनि का बहुल परावर्तन23
स्टेथोस्कोप में एक डॉयफ्राम एक नली से जुड़ी होती है, तथा यह नली दो इयर पीस से जुड़ी होती है। डॉयफ्राम को शरीर पर रखा जाता है तथा इयरपीस को कानों में लगाकर आवाज सुनी जाती है।
(3) कंसर्ट हॉल की वक्राकार छतें क्यों बनाई जाती हैं?
कंसर्ट हॉल या कॉन्फ्रेंश हॉल (सभागार) की छते वक्राकार बनाईं जाती है। छतों का वक्र आकार ध्वनि को परावर्तित कर सभी दिशाओं में समान रूप से भेजने में सहायक होती हैं। सभी दिशाओं में समान रूप से परावर्तित ध्वनि हॉल में बैठे सभी दर्शक के पास आसानी से पहुँच जाती है, जिससे सभी दर्शक आवाज को साफ सुन पाते हैं।
चित्र: कंसर्ट हॉल में ध्वनि का बहुल परावर्तन24
कई बार हॉल में स्टेज के पीछे वक्र आकार के साउंड बोर्ड भी लगाये जाते हैं। ये वक्र आकार के साउंड बोर्ड ध्वनि को परावर्तित कर हॉल में बैठे सभी दर्शकों तक पहुँचने में सहायक होता है।
चित्र: वक्र बोर्ड से ध्वनि का बहुल परावर्तन25
श्रव्यता का परिसर
मनुष्यों की क्षमता केवल 20 Hz से 20000 Hz आवृत्ति वाले ध्वनि को स्पष्ट रूप से सुनने की होती है। सुनने का यह रेंज श्रव्यता परिसर कहलाता है।
पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे 25000 Hz आवृत्ति तक की ध्वनि भी सुन सकते हैं। ज्यों ज्यों मनुष्य की आयु बढ़ती जाती है, उनके कान उच्च आवृत्तियों वाले ध्वनि के लिए कम सुग्राही होते जाते हैं।
कुछ जानवर जैसे कुत्ते 25000 Hz तक आवृत्ति वाले ध्वनि को सुन सकते हैं।
अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड)
20 हर्टज से कम आवृत्ति वाली ध्वनि को अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) कहा जाता है। अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) श्रव्यता परिसर से नीचे होती हैं, अत: मनुष्य इन कम आवृत्ति वाले ध्वनि को नहीं सुन पाते हैं। मनुष्यों के कान इन अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) ध्वनियों को सुनने के लिए नहीं बने होते हैं।
अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) को नहीं सुन पाता मनुष्यों के लिए एक वरदान की तरह है। यदि मनुष्य अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) ध्वनि को सुन पाते, तो शरीर के भीतर होने वाले क्रियायें की आवाज भी सुनाई देती, जैसे कि हृदय के चलने की गति, पाचन क्रिया में होने वाली आवाज आदि। और ये आवाजें मनुष्यों क बेचैन कर देती।
पेंडुलम की आवाज अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) की आवृत्ति से नीचे की होती हैं, जिसके कारण मनुष्य उसे नहीं सुन पाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि राइनोसोरस (गैंडा) 5 Hz आवृत्ति के नीचे की ध्वनि जो अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) होती है, का उपयोग करके संपर्क स्थापित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ह्वेल तथा हाथी भी अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) परिसर की ध्वनियाँ उत्पन्न करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि भूकम्प आने से पहले अवश्रव्य ध्वनि (इनफ्रासोनिक या इनफ्रा साउंड) परिसर की ध्वनि उत्पन्न होती है, जिसे सुनकर कुछ जंतु परेशान हो जाते हैं तथा जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर भाग जाते हैं।
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि (अल्ट्रा साउंड या अल्ट्रासोनिक साउंड)
20 kHz से उच्च आवृत्ति की ध्वनि को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहा जाता है। इस उच्च आवृत्ति की ध्वनि को अंग्रेजी में अल्ट्रा साउंड या अल्ट्रासोनिक साउंड कहते हैं। बहुत सारे जानवर जैसे डॉल्फिन, चमगादड़ और पॉरपॉइज पराध्वनि (पराश्रव्य ध्वनि) उत्पन्न करते हैं।
चमगादड़ शिकार को पकड़ने के लिए पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं। कुछ प्रजाति के शलभ (मॉथ्स) चमगादड़ों द्वारा उत्पन्न उच्च आवृत्ति के पराश्रव्य ध्वनि को सुन सकते हैं जिससे आसपास उड़ते चमगादड़ों के बारे में उन्हें जानकारी मिल जाती है और इससे स्वयं को पकड़े जाने से बचा पाते हैं।
ऐसी जानकारी है कि चूहे भी पराध्वनि उत्पन्न करते हैं।
मनुष्य इन उच्च आवृत्ति के पराध्वनि को नहीं सुन पाते हैं, इसलिए ऐसी उच्च आवृत्ति की ध्वनि को पराश्रव्य ध्वनि कहते हैं।
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि के उपयोग
उच्च आवृत्ति होने के कारण पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि अवरोधों की उपस्थिति में भी एक निश्चित पथ पर गमन कर सकती हैं। इसी कारण से चिकित्सा जगत तथा अन्य कई क्षेत्रों में पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग होता है।
(a) सफाई के लिए पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग
कई बार कुछ मशीनों के भीतरी भाग में पहुँच काफी मुश्किल होती है, जिसके कारण उन भागों को साफ करने में काफी कठिनाई होती है, जैसे सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक पार्टस इत्यादि। इस स्थिति में ऐसे भागों की सफाई पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग कर आसानी से कर ली जाती है।
जिन वस्तुओं को साफ करना होता है उन्हें साफ करने वाले विलयन में रखते हैं और इस विलयन में पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि तरंगें भेजी जाती है। उच्च आवृत्ति के कारण धूल, चिकनाई तथा अन्य गंदगी के कण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं और वस्तु पूरी तरह साफ हो जाती है।
(b) धातु के ब्लॉकों में दरार ढ़ूंढ़ने में पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग
बड़े बड़े संरचना यथा पुल, बड़े इमारत, बड़े मशीन आदि को बनाने में बड़े बड़े धातु के ब्लॉक का उपयोग होता है। इन धातु के ब्लॉक में दरार या अन्य गड्ढ़े हो सकते हैं जिन्हें बाहर से देखना या पता लगाना संभव नहीं हो पाता है। ये दरार, गड्ढ़े आदि संरचना को कमजोर कर सकते हैं। ऐसे दरारों आदि को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग कर आसानी से पता लगाया जा सकता है।
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि तरंगे धातु के ब्लॉक से भेजी जाती हैं और पेषित तरंगों का पता लगाने के लिए संसूचकों का उपयोग किया जाता है। यदि थोड़ा सा भी दोष होता है, तो पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि तरंगें परावर्तित हो जाती हैं जो दोष की उपस्थिति को दर्शाती है।
चित्र: पराध्वनि तरंगों के उपयोग से धातु के ब्लॉक में दरारों का पता लगाना26
साधारण ध्वनि तरंगें जिसकी तरंगदैर्ध्य अधिक होती है, दोषयुक्त स्थान के कोणों से मुड़कर संसूचक तक पहुँच जाती है, इसलिए साधारण ध्वनि तरंगों का उपयोग कर ऐसे दोषों का पता नहीं लगाया जा सकता है।
(c) इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ECG) एक एक मेडिकल तकनीक है जिसमें पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि को हृदय के विभिन्न भागों से परावर्तित करा कर हृदय का प्रतिबिम्ब बनाया जाता है। चूँकि इस तकनीक में हृदय की गति का का प्रतिबिम्ब एक ग्राफ के रूप में प्राप्त किया जाता है, इसलिए इस तकनीकि को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी कहा जाता है।
इस तकनीकि में प्राप्त ग्राफ को देखकर हृदय में यदि कोई खराबी है तो उसका पता लगाया जाता है।
(d) पराध्वनि संसूचक
पराध्वनि संसूचक एक मेडिकल यंत्र है जिसमें पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग कर मानव शरीर के अंदरूनी अंगों का प्रतिबिम्ब प्राप्त किया जाता है। जैसे कि लीवर (यकृत), पित्ताशय (गॉल ब्लडर), गर्भाशय, किडनी आदि।
चित्र: पराध्वनि संसूचक27
संदर्भ: By The original uploader was Drickey at English Wikipedia. - Transferred from en.wikipedia to Commons., CC BY-SA 2.5, Link
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग कर मानव शरीर के अंदरूनी अंगों का इमेज प्राप्त करना अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है। अल्ट्रासोनोग्राफी स्कैनर (पराध्वनि संसूचक) में एक यंत्र की मदद से पराध्वनि को मानव शरीर के अंदर भेजा जाता है। परावर्तित पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि को की सहायता से मोनिटर पर अंदरूनी अंगों का इमेज प्राप्त किया जाता है। इन इमेज को कागज पर या फिल्म पर भी प्रिंट किया जाता है।
डॉक्टर अल्ट्रासोनोग्राफी में प्राप्त इमेज को देखकर रोगी के अंगों में यदि कोई खराबी हो, का पता लगाते हैं तथा तदनुसार उपचार किया जाता है।
(e) पित्ताशय तथा किडनी में बने पथरी को तोड़ने में पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग
कई बार मनुष्य के किडनी तथा पित्ताशय में छोटी छोटी पथरी बन जाती है जिससे दर्द होता है तथा यदि उसे नहीं निकाला गया तो अन्य बीमारी होने का खतरा बना रहता है।
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग कर किडनी आदि में वर्तमान छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ दिया जाता है, जो बाद में मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है।
SONAR (सोनार)
SONAR (सोनार) Sound Navigation And Ranging (साउंड नैविगेशन एंड रेंजिंग) का एवरिवियेशन (शॉर्ट फॉर्म) है। SONAR (सोनार) के यंत्र है जिसकी सहायता से जल में स्थित पिंडों की दूरी, दिशा तथा चाल मापा जाता है। SONAR (सोनार) में पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि का उपयोग किया जात है।
SONAR (सोनार) को प्राय: पानी के जहाज पर लगाया जाता है। SONAR (सोनार) में एक प्रेषित्र तथा एक संसूचक होता है।
चित्र: SONAR28
Reference: By NOAA - http://www.nauticalcharts.noaa.gov/hsd/learn_survey.html, Public Domain, Link
प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न तथा प्रेषित करता है। ये तरंगे जल में जाकर समुद्र तल में पिंड से टकराने के पश्चात परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं।
जल में ध्वनि की चाल तथा पराध्वनि के प्रेषण तथा अभिग्रहण के समय अंतराल की गणना कर समुद्र तल में वर्तमान पिंड की दूरी की गणना की जाती है।
मान लिया कि पराध्वनि के प्रेषण तथा वापस लौट कर आने का समय अंतराल = t
तथा समुद्र जल में ध्वनि की चाल = v
मान लिया कि पराध्वनि द्वारा तय की गयी कुल दूरी = 2d
हम जानते हैं कि दूरी = गति × समय
अत:, 2d = v × t
⇒ d = vt/2
SONAR की मदद से उपरोक्त गणना द्वारा समुद्र तल की गहराई में अवस्थित पिंडों की दूरी ज्ञात कर ली जाती है।
चित्र: SONAR का सिद्धांत29
चित्र: संदर्भ: By Georg Wiora (Dr. Schorsch) - Self drawn with Inkscape, CC BY-SA 3.0, Link
इस विधि को प्रतिध्वनिक परास (इको रेंजिंग) कहते हैं।
सोनार (SONAR) तकनीकि का उपयोग समुद्र की गहराई ज्ञात करने तथा जल के अंदर स्थित चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बियों, हिम शैल, डूबे जहाज आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
चमगादड़ द्वारा पराध्वनि तरंगों का उपयोग कर शिकार को पकड़ना
चमगादड़ एक ऐसा जानवर है जो रात्रि के समय सक्रिय होता है। रात्रि के समय होने वाले सक्रिय जानवरों को निशाचर (नॉक्टरनल) कहा जाता है। चूँकि चमगादड़ एक निशाचर है, अत: यह अपना शिकार रात के अंधेरे में ही पकड़ता है।
चित्र: चमगादड़ द्वारा शिकार को चिंहित करना30
संदर्भ: By Petteri Aimonen - Own work, Public Domain, Link
चमगादड़ द्वारा शिकार को पकड़ने की प्रक्रिया विशेष है। चमगादड़ उच्च आवृत्ति की पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है। यह उच्च आवृत्ति की ध्वनि रास्ते में पड़ने वाले वस्तुओं से परावर्तित होकर जब वापस आती है तो चमगादड़ का अपने कानों द्वारा उसे पकड़ लेता है तथा उस वस्तु का एक प्रतिबिम्ब बना लेता है साथ ही उस वस्तु का आकार प्रकार एवं दूरी भी समझ जाता है। यह समझने के बाद चमगादड़ अपने शिकार को पकड़ लेता है।
चमगादड़ का वैज्ञानिक नाम काइरोपेट्रा (Chiroptera) है।
पॉरपॉइज जो कि मछली की तरह पानी में रहने वाला एक जानवर है, भी उच्च आवृत्ति की पराश्रव्य ध्वनि का उपयोग कर अपने शिकार को पकड़ता है।
मानव कर्ण की संरचना (स्ट्रक्चर ऑफ ह्युमेन इयर)
कान एक ज्ञानेन्द्री है जो हमें सुनने के काबिल बनाता है। यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है। ये विद्युत संकेत श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं और हम सुन पाते हैं।
चित्र: मानव कर्ण30
मानव कर्ण तीन भागों में विभक्त होता है, बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण तथा अंत: कर्ण
बाह्य कर्ण
बाह्य कर्ण शरीर के बाहरी भाग में होता है तथा दिखाई देता है। बाह्य कर्ण को कर्ण पल्ल्व (पिन्ना) कहा जाता है। बहुत सारे जानवर जैसे मछली, चिड़िया आदि में कर्ण पल्लव (पिन्ना) नहीं होता है। कर्ण पल्लव (पिन्ना) केवल स्तनपायी जानवर में पाया जाता है। वास्तव में कर्ण पल्लव (पिन्ना) स्तनपायी जानवर का एक अभिलक्षण है।
कर्ण पल्लव (पिन्ना) का कार्य वातावरण से ध्वनि को एकत्रित करना है। ध्वनि को एकत्रित करने के बाद कर्ण पल्लव (पिन्ना) उसे श्रवण नलिका होकर मध्य कर्ण में भेज देता है।
मध्य कर्ण
बाह्य कर्ण के के ठीक बाद वाला भाग मध्य कर्ण कहलाता है। श्रनण नलिका के अंत के सिरे पर एक पतली झिल्ली होती है जिसे कर्ण पटह झिल्ली कहते हैं। कर्ण पटह झिल्ली को अंग्रेजी में इयर ड्रम कहते हैं। कर्ण पटह झिल्ली को टिम्पैनिक मेम्बरेन भी कहते हैं।
मध्य कर्ण में तीन हड्डियाँ होती हैं जिनके नाम मुग्दरक, निहाई तथा वलयक (स्टिरप) होते हैं।
जब वातावरण से ध्वनि के कारण माध्यम के संपीड़न कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है और यह कर्ण पटह को अंदर की ओर दबाता है। इसी प्रकार विरलन के पहुँचने पर कर्ण पटह बाहर की ओर गति करता है। इस प्रकार कर्ण पटह कंपन करने लगता है। मध्य कर्ण में विद्यमान तीनों हड्डियाँ कंपन को कई गुणा बढा देती हैं।
मध्य कर्ण ध्वनि तरंगों से मिलने वाले इन दाब परिवर्तनों को आंतरिक कर्ण तक संचरित कर देता है।
अंत: कर्ण
आंत: कर्ण में कर्णावर्त द्वारा दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इन विद्युत संकेतों को श्रवण तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है।
मस्तिष्क इन विद्युत संकेतों को ध्वनि के रूप में समझता तथा ब्याख्या करता है।
Reference: