गुरूत्वाकर्षण

नवमी विज्ञान

गुरूत्वाकर्षण क्या है?

साधारण शब्दों में, वह बल जिसके द्वारा पृथ्वी किसी भी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है, गुरूत्वाकर्षण या गुरूत्वाकर्षण बल कहलाता है। परंतु विज्ञान की भाषा में; ब्रह्मांड में सभी वस्तु एक दूसरे को एक अदृश्य बल से आकर्षित करती है, इस अदृश्य बल को गुरूत्वाकर्षण या गुरूत्वाकर्षण बल कहते हैं।

किसी भी वस्तु को ऊपर की ओर फेंकने पर वह नीचे धरती पर वापस गिर जाता है। सेव के पेड़ से नीचे गिरने पर ब्रिटिश वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम इस बारे में सोचना शुरू किया, और उन्होंने इस बल के बारे में एक नियम प्रतिपादित किया जिस रहस्यमयी गुरूत्वाकर्षण बल के कारण सभी वस्तु ऊपर फेंकने पर या ऊपर से छोड़ने पर पृथ्वी की ओर गिरता है न कि ऊपर की ओर चला जाता है।

जैसे कि जब भी किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंका जाता है तो वापस वह पृथ्वी पर गिर जाता है। या किसी भी वस्तु को एक ऊँचाई से छोड़ने पर वह पृथ्वी की ओर गिर जाता है।

चन्द्रमा की पृथ्वी के परिक्रमा करने की गति

चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करती है क्योंकि पृथ्वी चन्द्रमा पर गुरूत्वाकर्षण बल लगाती है। पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल चन्द्रमा को आपनी ओर खींचती है।

केन्द्राभिसारी बल या अभिकेन्द्र बल के कारण ही चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करती है। पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण ही चन्द्रमा पर अभिकेन्द्र बल लगता है। यदि चन्द्रमा पर पृथ्वी द्वारा अभिकेन्द्र या केन्द्राभिसारी बल जैसा कोई बल नहीं लगाया जाता, तो चन्द्रमा एकसमान गति से सरल रेखीय पथ पर चलता रहता। अर्थात पृथ्वी की केन्द्र की ओर लगने वाला अभिकेन्द्र या केन्द्राभिसारी बल की अनुपस्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता।

चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा की गति को समझने के लिए क्रियाकलाप

पतली रस्सी का एक टुकड़ा लेकर उसके एक सिरे पर एक छोटा सा पत्थर बाँधिए।

रस्सी के दूसरे छोड़ जिसपर पत्थर नहीं बांधा गया है को हाथ से पकड़िये।

अब उसे रस्सी के टुकड़े को वृत्ताकार पथ पर घुमाइए।

अब रस्सी को हाथ से छोड़ दिजिए।

रस्सी के दूसरे छोड़ को हाथ से को छोड़ने पर उससे बँधा पत्थर रस्सी के सहित एक सीधी रेखा में गमन करता है।

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ब्याख्या

रस्सी को छोड़ने से पहले, उससे बंधा पत्थर वृत्ताकार पथ पर एक निश्चित चाल से गति करता रहता है। इस स्थिति में प्रत्येक बिन्दु पर पत्थर की गति की दिशा बदलती है।

दिशा के परिवर्तन में वेग परिवर्तन या त्वरण सम्मिलित है। जिस बल के कारण यह त्वरण होता है, तथा जो वस्तु को वृत्ताकार पथ में गतिशील रखता है, वह बल केन्द्र की ओर लगता है। इस बल को अभिकेन्द्र बल या केन्द्राभिसारी बल कहते हैं।

रस्सी को छोड़ देने पर केन्द्र की ओर लगने वाला अभिकेन्द्र या केन्द्राभिसारी बल अनुपस्थित हो जाता है। इस अभिकेन्द्र या केन्द्राभिसारी बल की अनुपस्थिति में रस्सी से बंधा पत्थर मुक्त रूप से एक सरल रेखा में गतिशील हो जाता है। यह सरल रेखा उस वृत्तीय पथ पर स्पर्श रेखा होगी।

चन्द्रमा की गति भी रस्सी में बंधे धागे की तरह है, जो पृथ्वी के केन्द्र की ओर लगने वाले बल, जिसे अभिकेन्द्र बल या केन्द्राभिसारी बल कहा जाता है, से बंधा है। तथा इस अभिकेन्द्र बल के कारण चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक वृत्तीय पथ पर परिक्रमा करता है। पृथ्वी के केन्द्र की ओर लगने वाले इस अभिकेन्द्र बल की अनुपस्थिति में, चन्द्रमा भी रस्सी से बंधे पत्थर की तरह मुक्त होकर एक सरल रेखीय दिशा में गति करने लगेगा।

जिस तरह पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है उसी प्रकार सभी ग्रह सूर्य के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण सूर्य की परिक्रमा करता है।

चूँकि सभी ब्रह्मांड में उपस्थित सभी पिंड एक दूसरे को आकर्षित करते हैं, अत: सूर्य भी सभी ग्रहों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

गुरूत्वाकर्षण बल की परिभाषा

वह बल जिसके द्वारा ब्रह्मांड में वर्तमान सभी पिंड एक दूसरे को आकर्षित करते हैं, गुरूत्वाकर्षण बल कहलाता है।

वृत्त की स्पर्श रेखा

कोई सरल रेखा जो वृत्त से केवल एक ही बिन्दु पर मिलती है, वृत्त की स्पर्श रेखा कहलाती है। सरल रेखा ABC वृत्त के बिन्दु B पर स्पर्श रेखा है।

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गुरूत्वार्षण का सार्वत्रिक नियम (Universal Law of Gravitation)

विश्व का प्रत्येक पिंड अन्य पिंड को एक बल से आकर्षित करता है, जो दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों पिंडों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में लगता है।

गुरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम का गणितीय सूत्र

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मान लिया कि A तथा B दो पिंड हैं।

मान लिया कि A तथा B का द्रव्यमान क्रमश: M और m हैं।

मान लिया कि A तथा B के केन्द्रों के बीच की दूरी बराबर d है।

मान लिया दोनों पिंडों के बीच आकर्षण बल F है।

अत: गुरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार,

(1) दोनों पिंडों के बीच का बल दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है।

अर्थात, `F prop Mxxm` ---------- (i)

(2) तथा दोनों पिंडों के बीच का बल दोनों पिंडों के बीच की दूरी के वर्ग के ब्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात

`F prop 1/d^2` ------------(ii)

अब समीकरण (i) तथा (ii) को मिलाने पर, हम पाते हैं कि

`F prop (Mxxm)/d^2` ----------- (iii)

`=>F=G(Mxxm)/d^2` -------------- (iv)

जहाँ G एक आनुपातिकता स्थिरांक है, और इसे सार्वत्रिक गुरूत्वीय स्थिरांक (UNIVERSAL GRAVITATION CONSTANT) कहते हैं ।

समीकरण (iv) में बज्र गुणन से हम पाते हैं कि

`Fxxd^2 = G Mxxm`

`=>G=(F d^2)/(Mxxm)` ------------- (v)

समीकरण (v) को सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक का फॉर्मूला कहा जाता है।

G (सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक) का एस आई मात्रक

बल, दूरी तथा द्रव्यमान के एस आई मात्रक को सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक के फॉर्मूला में रखने पर G (सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक) का एस आई मात्रक प्राप्त किया जा सकता है।

बल का एस आई मात्रक = N (न्यूटन)

दूरी का एस आई मात्रक = m (मीटर)

द्रव्यमान का एस आई मात्रक = kg (किलोग्राम)

अत:, G का एस आई मात्रक `= N m^2 kg^2`

G (सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक) का मान

हेनरी कैवेंडिस, जो कि एक ब्रिटिश वैज्ञानिक थे, ने एक सुग्राही तुला का उपयोग करके G का मान ज्ञात किया।

G का वर्तमान मान्य मान = 6.673 × 10–11 N m2 kg–2 है।

गुरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम का महत्व

गुरूत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम अनेक ऐसी परिघटनाओं की सफलतापूर्वक ब्याख्या करता है जो असंबद्ध मानी जाती थीं:

(i) हमें पृथ्वी से बाँधे रखने वाला बल

(ii) पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की गति

(iii) सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति तथा

(iv) चन्द्रमा के कारण ज्वार भाटा

पृथ्वी द्वारा चन्द्रमा पर लगाये जाने वाले बल की गणना

पृथ्वी द्वारा चन्द्रमा पर लगाये जाने वाले बल की गणना गुरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम का गणितीय सूत्र के उपयोग से किया जा सकता है।, जो कि

`G = (F d^2)/(Mxxm)` है।

`=>F d^2= G(Mxxm)`

`=>F = G(Mxxm)/d^2` --------------- (iv)

जहाँ, F = Force

G = गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक

M और m क्रमश: दिये गये पिंडों के द्रव्यमान है, जिनके बीच का आकर्षण बल ज्ञात किया जाना है।

तथा, d दोनों पिंडों के बीच की दूरी है।

अत: पृथ्वी तथा चन्द्रमा के बीच की दूरी ज्ञात कर दोनों के बीच लगने वाले बल की गणना की जा सकती है।

प्रायोगिक रूप से हमे ज्ञात है कि

पृथ्वी का द्रव्यमान (M) = 5.972 × 1024 kg

⇒ M≈ 6 × 1024 kg

चन्द्रमा का द्रव्यमान (m) = 7.4 × 1022 kg

पृथ्वी तथा चन्द्रमा के बीच की दूरी (d) = 3.84 × 105 km

= 3.84 × 105 × 1000 m

या, d= 3.84 × 108 m

G का मान = 6.7 × 10–11 N m2 kg–2

समीकरण (iv) में M, m, d और G का मान रखने पर

`F = G(Mxxm)/d^2`

`=(6.7xx10^(-11) N m^2 kg^(-2) xx6xx10^(24)kgxx7.4xx10^(22)kg)/(3.84xx10^8 m)^2`

`=>F=2.01xx10^(20)N`

अत:, पृथ्वी द्वारा चन्द्रमा पर लगाया जाने वाला बल = 2.01 × 1020 N

उदाहरण प्रश्न (1) दो पिंड जिसका द्रव्यमान क्रमश: 500 kg और 50 kg है। यदि दोनो पिंडों के बीच की दूरी 300 m हैं, तो दोनों के बीच लगने वाला आकर्षण बल ज्ञात करें। [Value of G = 6.7 × 10–11 N m2 kg–2]

हल:

यहाँ दिया गया है, एक पिंड का द्रव्यमान (M) = 500 kg

तथा दूसरे पिंड का द्रव्यमान (m) = 50 kg

दोनों पिंडों के बीच की दूरी (d) = 300 m

तो, दोनों के बीच लगने वाला आकर्षण बल, F =?

हम जानते हैं कि, `F = G(Mxxm)/d^2`

`=>F = (6.7xx10^(-11) N m^2 kg^(-2)xx500kgxx50kg)/(300 m)^2`

`=(6.7xx10^(-11) N m^2 kg^(-2)xx25000 kg^2)/(90000 m^2)`

`=(167.5xx10^(-11)N m^2)/(90 m^2)`

`=1.86xx10^(-11) N`

अत: दिये गये दोनों पिंडों में एक के द्वारा दूसरे पर लगाया जाने वाला आकर्षण बल = 1.86 × 10–11 N उत्तर

मुक्त पतन

जब कोई वस्तु पृथ्वी की ओर केवल गुरूत्व बल के कारण गिरती है, तो कहा जाता है कि वतु मुक्त पतन में है।

मुक्त पतन की ब्याख्या

पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। पृथ्वी के इस आकर्षण बल को गुरूत्वीय बल कहते हैं। अत: जब वस्तुएँ पृथ्वी की ओर केवल इसी बल के कारण गिरती हैं, तो वह वस्तु मुक्त पतन में कहलाता है।

क्या मुक्त पतन में वस्तु के वेग में कोई परिवर्तन होता है?

मुक्त पतन में गिरने के क्रम में वस्तुओं की गति की दिशा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अत: मुक्त पतन के क्रम में वस्तु के वेग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

लेकिन पृथ्वी के आकर्षण के कारण वेग के परिमाण में परिवर्तन होता है। वेग में कोई भी परिवर्तन त्वरण उत्पन्न करता है। वेग में कोई भी परिवर्तन त्वरण को उत्पन्न करता है। जब भी कोई वस्तु पृथ्वी की ओर गिरती है, त्वरण कार्य करता है। यह त्वरण पृथ्वी के गुरूत्वीय बल के कारण है। इसलिए इस त्वरण को पृथ्वी के गुरूत्वीय बल के कारण त्वरण या गुरूत्वीय त्वरण कहते हैं।

पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न त्वरण जिसे गुरूत्वीय त्वरण कहते हैं को अंग्रेजी के अक्षर `g` से सूचित किया जाता है।

गुरूत्वीय त्वरण (g) का एस आई मात्रक = m s–2

गुरूत्वाकर्षण के कारण त्वरण (g) का सूत्र या गुरूत्वीय त्वरण (g) का सूत्र

न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार हम जानते हैं कि बल, द्रव्यमान तथा त्वरण का गुणनफल है।

अर्थात, F = m g ------------- (A)

जहाँ, F = बल, m = द्रव्यमान और g = त्वरण

तथा गूरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार हम जानते हैं कि,

`F=G(Mxxm)/d^2` ------------ (B)

अत: न्यूटन के द्वितीय नियम तथा गुरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार, अर्थात समीकरण (A) और समीकरण (B) के अनुसार हम जानते हैं कि

`mg = G(Mxxm)/d^2`

`=>g = GM/d^2` ------------- (C)

जहाँ, M = पृथ्वी का द्रव्यमान, d = किसी पिंड तथा पृथ्वी के बीच की दूरी तथा G = सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण स्थिरांक

समीकरण (C), जो कि गुरूत्वीय त्वरण के लिए समीकरण है बतलाता है कि मुक्त पतन के समय गुरूत्वीय त्वरण (g) वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।

अर्थात यदि दो विभिन्न द्रव्यमान वाले वस्तुओं को समान ऊँचाई से एक साथ गिराया जाता है, तो दोनों वस्तुएँ एक ही साथ पृथ्वी की सतह से टकरायेंगी।

पृथ्वी की सतह पर गुरूत्वीय त्वरण

जब कोई वस्तु पृथ्वी की सतह पर होती है, तो वस्तु तथा पृथ्वी के बीच की दूरी, वस्तु तथा पृथ्वी के केन्द्र की दूरी को माना जाता है।

अर्थात दूरी `d` पृथ्वी की त्रिज्या `R` के बराबर होगी।

अब समीकरण (C) में `d` के स्थान पर `R` रखने पर हम पाते हैं कि

`=>g = GM/R^2` ------------- (D)

समीकरण (D) पृथ्वी की सतह पर या पृथ्वी के नजदीक रखे वस्तुओं पर लागू होती है।

ध्रुव तथा विषुवत रेखा पर गुरूत्वीय त्वरण `g` में बदलाव या अंतर

चूँकि पृथ्वी एक पूर्ण गोला नहीं है और पृथ्वी की त्रिज्या ध्रुवों से विषुवत वृत्त की ओर जाने पर बढ़ती है, इसलिए `g` का मान ध्रुवों पर विषुवत रेखा की अपेक्षा अधिक होता है।Earth is not a perfect square. अर्थात गुरूत्वीय त्वरण `g` का मान `R` के बढ़ने पर घटेगा तथा `R` के घटने पर बढ़ेगा।

इसका अर्थ यह है कि गुरूत्वीय त्वरण `g` का मान ध्रुवों पर अधिक होता है तथा विषुवत रेखा पर अपेक्षाकृत कम होता है।

गुरूत्वीय त्वरण `g` के मान का परिकलन

हम जानते हैं कि, `=>g = GM/R^2` ------------- (D)

अत: पृथ्वी के द्रव्यमान (M), पृथ्वी की त्रिज्या (R) और गुरूत्वीय स्थिरांक (G) का मान रखने पर गुरूत्वीय त्वरण (g) का मान निकाला जा सकता है।

हम जानते हैं कि,

G = 6.7 × 10–11 N m2 kg–2

M = 6 × 1024 kg

R = 6.4 × 106 m

समीकरण (D) में G, M और R का मान रखने पर हम पाते हैं कि

`g=(6.7xx10^(-11) N m^2 kg^2xx6xx10^(24)kg)/(6.4xx10^6m)^2`

`=>g = 9.8 m s^(-2)`

अत: पृथ्वी के गुरूत्वीय त्वरण (g) का मान `= 9.8 m s^(-2)`.

पृथ्वी पर या पृथ्वी के नजदीक के पिंडों या वस्तुओं के लिए गणना करते समय सामान्य रूप से गुरूत्वीय त्वरण, `g` का मान नियत रखा जाता है।

पृथ्वी के गुरूत्वीय बल के प्रभाव में वस्तुओं की गति

हम जानते हैं कि, `g=GM/R^2` or `g=GM/d^2`

चूँकि गुरूत्वीय त्वरण, `g` का मान वस्तुओं के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है, अत: सभी वस्तुएँ चाहे वह छोटी हों या बड़ी, हल्की हों या भारी, पृथ्वी पर समान दर से गिरेंगी।

एक कहानी के अनुसार, इस विचार की पुष्टि के लिए गैलीलियो ने इटली में पीसा की झुकी मीनार से विभिन्न वस्तुओं को गिराकर बतलाया कि सभी वस्तुएँ मुक्त पतन में पृथ्वी पर समान दर से गिरती हैं।

चूँकि पृथ्वी के निकट `g` का मान स्थिर है, अत: एकसमान त्वरित गति के सभी समीकरण, त्वरण, `a` के स्थान पर `g` रखने पर भी मान्य होंगे।

इसका अर्थ यह है कि गति के लिए समीकरण

`v=u+at`

`s= ut + 1/2 at^2`

और `v^2 = u^2+2as` क्रमश: निम्नलिखित समीकरणों के रूप में बदल जायेंगे या लिखे जा सकते हैं।

`v=u+gt`

`s= ut + 1/2 gt^2`

और `v^2 = u^2+2gs`.

गति के सभी समीकरणों में त्वरण, a की जगह पर गुरूत्वीय त्वरण, g लिखा गया है।

जब कोई वस्तु पृथ्वी की ओर गिर रही हो, तो `g` को धनात्मक लिया जाता है तथा वस्तु के पृथ्वी के उर्ध्वाकार गति की स्थिति अर्थात वस्तु को ऊपर की ओर फेंकने के क्रम में गुरूत्वीय त्वरण `g` को ऋणात्मक लिया जाता है।

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