गुरूत्वाकर्षण
नवमी विज्ञान
दाब प्रणोद तथा क्षेत्रफल में सम्बन्ध
हम जानते हैं कि,
यहाँ दाब के परिभाषा से स्पष्ट है कि दाब क्षेत्रफल के ब्युत्क्रमानुपाती होता है।
अर्थात क्षेत्रफल बढ़ने पर दाब कम होगा तथा क्षेत्रफल के कम होने पर दाब बढ़ता है।
क्या कारण है कि ऊँट रेगिस्तान में आसानी से चल या दौड़ पाता है?
ऊँट के पंजे काफी चौड़े होते हैं। हम जानते हैं कि क्षेत्रफल बढ़ने से दाब कम हो जाता है। पंजे चौड़े होने के कारण ऊँट के शरीर का वजन ज्यादा क्षेत्रफल पर बँट जाता है जिससे ऊँट के वजन के कारण बालू पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है। बालू पर दाब कम होने के कारण ऊँट का पैर बालू में ज्यादा अंदर तक नहीं धँसता है और ऊँट रेगिस्तान में आसानी से चल तथ दौड़ पाता है।
लोहे की कील का एक सिरा नुकीला तथा दूसरा सिरा चौड़ा होता है, क्यों?
लोहे की कील का नुकीला सिरा दीवार या लकड़ी में छेद कर गाड़ने के लिए होता है जबकि कील का चौड़ा वाला सिरा कील ठोकने के समय हथौड़ी से प्रहार करने के लिए होता है।
हम जानते हैं कि क्षेत्रफल बढ़ने पर दाब कम होता है तथा क्षेत्रफल के कम होने से दाब बढ़ता है। जब कील के चौड़े वाले सिरे पर हथौड़े से प्रहार किया जाता है, तो कील का दूसरा सिरा जो नुकीला होता है के द्वारा काफी अधिक दाब कम क्षेत्रफल पर पड़ता है। कम क्षेत्रफल पर अधिक दाब पड़ने के कारण कील आसानी से दीवार या लकड़ी में छेद कर अंदर चला जाता है।
यही कारण है कि कील का एक सिरा नुकीला तथा दूसरा सिरा चौड़ा होता है।
उदाहरण प्रश्न (4) एक ईंट जिसकी विमाएँ 30 cm × 15 cm × 10 cm है तथा इसका द्रव्यमान 5 kg है। यह ईंट जमीन पर निम्नांकित तीन तरीकों से रखी जा सकती है
(a) 15 cm × 10 cm वाले भाग को जमीन पर नीचे की ओर रखकर।
(b) 30 cm × 10 cm वाले भाग को जमीन पर नीचे की ओर रखकर।
(c) 30 cm × 15 cm वाले भाग को जमीन पर नीचे की ओर रखकर।
दिये गये ईंट का प्रणोद तथा तीनों स्थिति में जमीन पर लगने वाले दाब को ज्ञात कीजिए। [g का मान = 9.8 m s–2]
हल:
दिया गया है, ईंट की विमाएँ = 30 cm × 15 cm× 10 cm
तथा ईंट का द्रव्यमान (m) = 5 kg
अत: प्रणोद = ?
तथा तीनों स्थिति में दाब = ?
प्रणोद की गणना
हम जानते हैं कि प्रणोद = F = m 7#215; g
⇒ F = 5 kg 7#215; 9.8 m s–2
⇒ F = 49 N
चूँकि ईंट का द्रव्यमान प्रत्येक स्थिति में समान है, अत: तीनों स्थिति में जमीन पर रखने पर प्रणोद भी समान होगा।
(a) 15 cm × 10 cm वाले भाग को जमीन पर रखने पर दाब
दिया गया है, साईड जिस ओर से ईंट को जमीन पर रखा गया है = 15 cm × 10 cm
`15\ cm = 15/100\ m` = 0.15 m
And, `10\ cm = 10/100\ m` = 0.1 m
ईंट दिये गये भाग का क्षेत्रफल = 0.15 m × 0.1 m
= 0.015 m2
अब हम जानते हैं कि
`= (49\ N)/(0.015\ m^2)`
= 3266.66 N m2
(b) ईंट को 30 cm × 10 cm भाग से रखने पर जमीन पर पड़ने वाले दाब की गणना
दिया गया है, जमीन पर रखा जाने वाला साईड = 30 cm × 10 cm
`30\ cm = 30/100\ m` = 0.3 m
तथा, `10\ cm = 10/100\ m` = 0.1 m
अत: ईंट की साईड का क्षेत्रफल = 0.3 m × 0.1 m
= 0.03 m2
अब हम जानते हैं कि
`= (49\ N)/(0.03\ m^2)`
= 1633.33 N m2
(c) ईंट की साईड 30 cm × 15 cm के लिए दाब की गणना
दिया गया है, ईंट का जमीन पर रखा जाने वाला साईड = 30 cm × 15 cm
`30\ cm = 30/100\ m` = 0.3 m
तथा, `15\ cm = 15/100\ m` = 0.15 m
अत: ईंट की साईड का क्षेत्रफल = 0.3 m × 0.15 m
= 0.045 m2
अब हम जानते हैं कि
`= (49\ N)/(0.03\ m^2)`
`= (49\ N)/(0.045\ m^2)`
= 1088.88 N m2
अत: सभी तीनों स्थितियों में प्रणोद (थ्रस्ट) = 49 N
तथा दाब (a) 3266.66 N m2
(b) = 1633.33 N m2
(c) 1088.88 N m2
तरलों में दाब (द्रव या तरल या फ्लूड में प्रेशर)
पदार्थ जो फ्लो करते हैं, फ्लूड या तरल या द्रव कहलाते हैं। चूँकि गैसों तथा तरलों में फ्लो करने का स्वभाव होता है, अत: गैसें तथा द्रव फ्लूड कहलाते हैं।
एक ठोस अपने भार के कार सतह पर दबाव डालता है। उसी प्रकार तरल में भी भार होता है। लेकिन ठोस केवल निचले सतह पर दबाव डालते हैं जबकि तरल निचले सतह के साथ साथ बर्तन की दीवारों पर भी दबाव डालते हैं जिसमें उन्हें रखा जाता है।
किसी परिरूद्ध द्रव्यमान के तरल पर लगने वाला दाब सभी दिशाओं में बिना घटे संचरित हो जाता है। अर्थात एक द्रव जिस बर्तन में रखा जाता है उसके दीवारों पर समान रूप से दबाव डालता है, तथ एक गैस बर्तन की सभी दीवारों पर समान रूप से दबाव डालता है।
उत्प्लावकता (बायोयेंसी)
पानी या किसी भी तरल पदार्थ द्वारा ऊपर की ओर उस वस्तु पर लगाया जाने वाला बल जिस वस्तु को उस तरल में डुबोया जाता है, उत्प्लावन बल कहलाता है। उत्प्लावन बल को अंग्रेजी में बायोयंसी फोर्स या केवल बायोयंसी कहलाता है। बायोयंसी को अपथ्रस्ट भी कहा जाता है।
किसी भी तल में डुबोने पर सभी वस्तुओं पर एक उत्प्लावन बल लगता है। उत्प्लावन बल का परिणाम तरल के घनत्व पर निर्भर करता है। अधिक घनत्व वाला तरल अधिक उत्प्लावन बल लगाता है जबकि कम घनत्व वाला तरल कम उत्प्लावन बल लगाता है। अर्थात तरल के घनत्व के बढ़ने के साथ साथ उत्प्लावन बल भी बढ़ता है।
उदाहरण
जब किसी खाली बंद बोतल को पानी में डुबोया जाता है, तो पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल बोतल को नीचे की ओर खींचती है, परन्तु पानी बोतल को ऊपर की ओर बल लगाता है, जिससे बोतल ऊपर की दिशा में धकेली जाती है। पानी द्वारा बोतल को ऊपर की ओर धकेला जाना उत्प्लावन कहलाता है। या पानी के द्वारा बोतल पर ऊपर की ओर लगाया जाने वाला बल उत्प्लावन बल या उत्प्लाबक बल कहलाता है। तथा पानी के द्वारा ऊपर की ओर लगाया जाने वाला यह बल उत्प्लावकता कहलाता है।
बोतल को पानी में डुबाये जाने पर पानी द्वारा बोतल पर लगाया जाने वाला उत्प्लावक बल बोतल के भार से अधिक होता है, अत: बोतल पानी में नहीं डूबता या छोड़ने पर बोतल ऊपर की ओर उठने लगता है।
बोतल को पानी में डुबाये रखने के लिए बोतल पर ऊपर से बल लगाना पड़ता है, जो पानी द्वारा लगाये जानेवाले उत्प्लावक बल से अधिक होना चाहिए।
एक खाली बोतल पानी में तैरता है क्योंकि पानी द्वारा लगाया जाने वाला बल बोतल की भार से अधिक होता है।
पानी की सतह पर रखने पर वस्तुएँ तैरती या डूबती क्यों हैं ?
पृथ्वी किसी भी वस्तु को गुरूत्वाकर्षण बल से अपनी ओर खींचती है। किसी भी वस्तु में भार गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ही होता है।
जब किसी वस्तु को पानी की सतह पर रखा जाता है, तो पृथ्वी उसे अपनी ओर खींचती है, लेकिन उत्प्लावन बल के कारण पानी उसे ऊपर की ओर धकेलती है।
यदि किसी वस्तु का भार, पानी के उत्प्लावन बल से ज्यादा हो, तो वस्तु पानी में डूब जाता है। और यदि पानी का उत्प्लावन बल वस्तु के भार से ज्यादा हो, तो वस्तु पानी में नहीं डूबता है।
किसी भी वस्तु का पानी या किसी भी तरल पदार्थ में डूबना या तैरना वस्तु तथा तरल पदार्थ के घनत्व पर निर्भर करता है। यदि वस्तु का घनत्व तरल के घनत्व से अधिक होता है, तो वस्तु उस तरल पदार्थ में डूब जायेगा। और यदि वस्तु का घनत्व तरल पदार्थ के घनत्व से कम होगा, तो वस्तु उस तरल पदार्थ में नहीं डूबेगा।
उदाहरण
एक लोहे की कील पानी में क्यों डूब जाती है, जबकि एक कॉर्क पानी में तैरता है?
चूँकि लोहे का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक है इसलिए एक लोहे की कील पानी में डूब जाती है। वहीं एक कॉर्क का घनत्व पानी के घनत्व से कम है इसलिए कॉर्क पानी में तैरता है।
आर्किमीडीज का सिद्धांत
आर्किमीडीज के सिद्धांत के अनुसार "जब किसी वस्तु को किसी तरल में पूर्ण या आंशिक रूप से डुबोया जाता है तो उसके भार में एक प्रत्यक्ष कमी आती है, यह कमी उस वस्तु द्वारा हटाये गये तरल की मात्रा के बराबर होती है।".
आर्किमीडीज एक ग्रीक वैज्ञानिक थे। उन्हें उस समय के राजा के सोने के मुकुट की शुद्धता जाँच निर्धारित समय में करने का कार्य दिया गया था, जिस कारण से वे उलझन में थे। अचानक बाथ टब में स्नान करते समय उन्हें पानी के द्वारा लगाया जाने वाले उत्प्लावन बल का एहसास हुआ तथा बाथ टब में घुसने पर उन्होंने पाया कि टब से पानी बाहर आने लगता है। इसे समझते ही वे "यूरेका यूरेका" जिसका अर्थ होता है, मैंने पा लिया, मैने पा लिया, कहते हुए नंगे दौड़ते हुए राजा के दरबार में पहुँचे तथा सोने की मुकुट के शुद्धता वाली समस्या को सुलझा दिया। और उन्होंने एक सिद्धांत दिया जिसे आर्किमीडीज के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है।
आर्किमीडीज के सिद्धांत का उपयोग
जलयानों तथा पनडुब्बियों के डिजाइन बनाने के काम में आता है।
दुग्धमापी, जो दूध के किसी नमूने की शुद्धता की जाँच करने के लिए प्रयुक्त होते हैं, आर्किमीडीज के सिद्धांत पर कार्य करता है।
हाइड्रोमीटर, जो द्रवों के घनत्व को मापने के लिए प्रयुक्त होता है, आर्किमीडीज के सिद्धांत पर कार्य करता है।
घनत्व
किसी वस्तु का प्रति एकांक आयतन का द्रव्यमान, घनत्व कहलाता है।
द्रव्यमान को ग्रीक अक्षर `rho` (रो) or `D` से व्यक्त किया जाता है।
अत:
घनत्व का एस आई मात्रक
चूँकि प्रति एकांक आयतन का द्रव्यमान घनत्व कहलाता है, अत: द्रव्यमान तथा आयतन के एस आई मात्रक के उपयोग से घनत्व के एस आई मात्रक को प्राप्त किया जा सकता है।
हम जानते हैं कि द्रव्यमान का एस आई मात्रक किलोग्राम (kg) है तथा आयतन का एस आई मात्रक घन मीटर (m3) है।
अत: घनत्व का एस आई मात्रक, kg m–3 है।
समान परिस्थिति में किसी पदार्थ का घनत्व एक समान रहता है। अत: घनत्व किसी पदार्थ एक अभिलाक्षणिक गुण है।
उदाहरण
सोने का घनत्व = 19300 kg m–3
पानी का घनत्व = 1000 kg m–3
चूँकि, घनत्व पदार्थों का एक अभिलाक्षणिक गुण है, अत: घनत्व की सहायता से किसी पदार्थ की शुद्धता ज्ञात की जा सकती है।
आपेक्षिक घनत्व या सापेक्षिक घनत्व
किसी भी पदार्थ पदार्थ के घनत्व तथा पानी के घनत्व का अनुपात, उस पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व कहलाता है।
या,
चूँकि आपेक्षिक घनत्व दो राशियों का अनुपात है, अत: आपेक्षिक घनत्व का कोई मात्रक नहीं होता है।
आपेक्षिक घनत्व के लिए पानी को इसलिए स्टैंडर्ड माना गया है, क्योंकि पानी सभी जगहों पर प्राय: सुलभता से उपलब्ध होता है। तथा प्राय: किसी पदार्थ के घनत्व को पानी के घनत्व की तुलना में व्यक्त करना सुविधाजनक होता है।
Reference: