हमारे आसपास के पदार्थ
नवमी विज्ञान
गुप्त उष्मा (Latent Heat)
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन (Change of state of matter) के क्रम में तापमान (temperature) में परिवर्तन के बिना ही अवशोषित (absorbed) या उत्सर्जित (released) की जाने वाली तापीय उर्जा (heat energy) को गुप्त उष्मा (LATENT HEAT) या प्रसुप्त उष्मा कहा जाता है। [Heat (energy) absorbed or released by a substance during the change in its phase (physical state) without changing in its temperature is called LATENT HEAT.]
'लैटेंट (Latent)' एक लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ 'छिपा हुआ' होता है। अत: लैटेंट हीट का अर्थ छिपी हुई उष्मा य गुप्त उष्मा या ताप या प्रसुप्त उष्मा होती है। [The 'Latent` is a Latin word comes from 'LATERE' which means 'to lie hidden'. Thus, LATENT HEAT means internal heat.]
दूसरे शब्दों में बिना तापमान में परिवर्तन के किसी ठोस को द्रव में या किसी द्रव को ठोस में परिवर्तित करने में लगी हुई उष्मा गुप्त ताप या प्रसुप्त ताप कहलाती है। [In other words, the heat required to covert a solid into liquid or a liquid into solid without change in temperature is called LATENT HEAT.]
यह देखा जा सकता है कि किसी ठोस को द्रव में परिवर्तन करने के लिये अर्थात गलने के क्रम में गलनांक पर पहुँचने के बाद, जब तक संपूर्ण ठोस द्रव में नहीं पिघल जाता है, लगातार उष्मा प्रदान करने के बाबजूद भी तापमान नहीं बदलता है। यह संपूर्ण तापमान ठोस के कणों के बीच आकर्षण बल को ठोस के पूर्ण रूप से द्रव में बदलने तक, समाप्त करने में उपयोग होअता है। चूँकि तापमान में बिना किसी बृद्धि के इस उष्मीय उर्जा को ठोस अवशोषित कर लेता है, अत: यह माना जाता है कि बीकर या सिस्टम में ली गई सामग्री में यह उष्मा छुपी रहती है, जिसे गुप्त उष्मा कहा जाता है।
संगलन की गुप्त या प्रसुप्त उष्मा या ताप (Heat of Fusion)
वायुमंडलीय दाब पर 1 kg ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिये आवश्यक उष्मीय उर्जा को उस ठोस के संगलन की गुप्त या प्रसुप्त उष्मा कहते हैं [The amount of heat energy that is required to change 1 kg of solid into liquid at atmospheric pressure at its melting point is known as the LATENT HEAT OF FUSION.]
चूँकि बर्फ (ठोस) को पूरी तरह जल (द्रव) में बद्लने के क्रम में उपयोग की गई उष्मा जल में छुपी रहती है, अत: `O^o\ C` (273 K) पर जल के कणों की उर्जा उसी तापमान पर बर्फ के कणों की उर्जा से अधिक होती है।
जल का वाष्प में परिवर्तन (Changing of water into vapour)
जब जल को आवश्यक उष्मा प्रदान की जाती है तो वह वाष्प में बदल जाता है।
जब जल में उष्मीय उर्जा दिया जाता है, तो जल के कण तेजी से गति करने लगते हैं। एक निश्चित तापमान पर पहुँचकर कणों में इतनी उर्जा आ जाती है कि वे परस्पर आकर्षण बल को तोड़कर स्वतंत्र हो जाते हैं। इस तापमान पर द्रव का गैस में बदलना शुरू हो जाता है।
क्वथनांक (Boiling Point)
वह तापमान जिसपर द्रव उबलने लगता है, उसे उस द्रव का क्वथनांक कहते हैं। [The temperature at which a liquid starts boiling at the atmospheric pressure is known as its BOILING POINT.]
क्वथनांक समष्टि गुण (Bulk phenomenon) है। क्योंकि इस बिन्दु पर द्रव के सभी कणों को इतनी उर्जा मिल जाती है कि वे वाष्प में बदल जाते हैं। [Boiling is a bulk phenomenon. Particles from the bulk of the liquid gain enough energy to change into vapour sate.]
जल (Water) का क्वथनांक (Boiling point) 373 K (`100^o\ C`) है।
वाष्पीकरण की गुप्त या प्रसुप्त उष्मा (Latent Heat of Vapourisation)
वायुमंडलीय दाब पर 1 किलोग्राम द्रव को उसके क्वथनांक पर गैस में बदलने के लिये जितनी उष्मा की आवश्यकता होती है, उस उष्मा को वाष्पीकरण की गुप्त या प्रसुप्त उष्मा कहते हैं। [The amount of heat energy that is required to change 1 kg of liquid into vapour at atmospheric pressure at its boiling point is known as the LATENT HEAT OF VAPOURISATION. ]
जब जल को वाष्प में परिवर्तित करने के लिये उष्मा प्रदान की जाती है, जल के उबलना प्रारम्भ होने के पश्चात अर्थात जल के क्वथनांक बिन्दु पर पहुँचने के पश्चात लगातार उष्मा दिये जाने की बाबजूद भी बर्तन या सिस्टम का तापमान तबतक नहीं बढ़ता है जबतक सारा जल वाष्प में परिवर्तित नहीं हो जाता है। ऐसा इसलिये होता है कि जल के क्वथनांक बिन्दु पर पहुँचने के बाद उसमें दी जाने वाली उष्मा का उपयोग जल को वाष्प में परिवर्तित करने में लगने लगता है, तथा संपूर्ण जल के वाष्प में बदल जाने के बाद ही सिस्टम का तापमान बढ़ता है, यही ताप गुप्त ताप या गुप्त उष्मा या प्रसुप्त उष्मा कहलाती है।
उबलते हुये जल का उसी तापमान पर वाष्प की अपेक्षा कम उर्जा होती है, क्यों?
373 K (`100^o\ C`) तापमान पर वाष्प के कणों में उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक उर्जा होती हैं, क्योंकि वाष्प कण वाष्पीकरण की गुप्त उष्मा अवशोषित कर लेती है।
उर्ध्वपातन (Sublimation)
द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ही ठोस अवस्था से सीधे गैस और वापस ठोस में बदलने की प्रक्रिया को उर्ध्वपातन कहते हैं। [A change of state directly from solid to gas without changing into liquid state and from gas to solid without changing into liquid is called SUBLIMATION.]
गर्म करने पर पदार्थ की अवस्था बदल जाती है। गर्म होने पर पदार्थ ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में तथा द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। परंतु कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जो द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ही ठोस से सीधे गैस तथा गैस से सीधे ठोस में बदल जाते हैं। इस प्रक्रया को उर्ध्वपातन कहा जाता है।
उदाहरण: कपूर या अमोनियम क्लोराईड को जब गर्म किया जाता है, तो यह बिना द्रव में बदले ही गैस में बदल जाता है, तथा जब उस गैस को ठंढ़ा किया जाता है तो गैस से सीधे ठोस में बदल जाता है। ऐसा उर्ध्वपातन के कारण होता है।
दाब परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Change in Pressure)
दाब बढ़ाने तथा तापमान घटाने पर गैस को द्रव में बदला जा सकता है, इस प्रक्रिया को द्रवीकरण या द्रवण (LIQUEFACTTION) कहा जाता है।
Carbon dioxide (`CO_2`) गैस को उच्च दाब पर ठोस में परिवर्तत किया जाता है। ठोस Carbon dioxide (`CO_2`) को शुष्क बर्फ (dry ice) कहा जाता है।
साथ ही वायुमंडलीय दाब को 1 atmosphere (atm) घटाने पर शुष्क बर्फ [Solid ice (Solid Carbon dioxide)] सीधे ठोस अवस्था से गैस में परिणत हो जाता है।
ठोस Carbon dioxide (`CO_2`) का उपयोग सिनेमा आदि में धुँए का दृश्य दिखाने में किया जाता है।
अत: यह कहा जा सकता है कि पदार्थ की अवस्थाएँ, यानि ठोस, द्रव और गैस, दाब और तापमान के द्वार तय होती है।
वाष्पीकरण (Evaporation)
बिना क्वथनांक पर पहुँचे ही द्रव का वाष्प में बदलना वाष्पीकरण (Evaporation) कहलाता है।
उदारण:
पानी को खुला छोड़ देने पर यह धीरे धीरे वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, ऐसा वाष्पीकरण (Evaporation) की प्रक्रिया के कारण होता है।
गीले कपड़े को खुले में छोड़ देने पर यह धीरे धीरे सूख जाता है, ऐसा वाष्पीकरण (Evaporation) के कारण होता है।
पदार्थ के कण हमेशा गतिशील रहते हैं। एक निश्चित तापमान पर गैस, द्रव या ठोस के कणों में विभिन्न मात्रा में गतिज उर्जा होती है। द्रवों की सतह पर स्थित कणों के कुछ अंशों में इतनी गतिज उर्जा होती है कि वे दूसरे कणों के आकर्षण बल से मुक्त हो जाता है तथा गैसीय अवस्था में बदल जाता है। क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की यह प्रक्रिया Evaporation (वाष्पीकरण) कहलाती है।
वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Evaporation)
सतह क्षेत्र, तापमान, आद्रता तथा वायु की गति वाष्पीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक हैं।
सतह क्षेत्र (Surface area)
वाष्पीकरण एक सतही प्रक्रिया है।
सतह क्षेत्र के बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर तेज हो जाती है तथा सतह क्षेत्र के घटने पर वाष्पीकरण की दर घट जाती है।
यही कारण है कि कपड़े को सुखाने के लिये उसे फैला दिया जाता है। यदि कपड़े को बिना फैलाये ही सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है, तो उसे सूखने में फैले हुए कपड़े की अपेक्षा काफी समय लगता है।
वाष्पीकरण पर तापमान का प्रभाव (Effect of Temperature on Evaporation)
तापमान बढ़ने पर evaporation (वाष्पीकरण) की दर बढ़ जाती है, तथा तापमान घटने पर evaporation (वाष्पीकरण) की दर घट जाती है।
तापमान बढ़ने पर द्रव के कणों को पर्याप्त उर्जा मिलती है, जिससे वह जल्दी वाष्पीकृत हो जाते हैं।
वाष्पीकरण पर आद्रता का प्रभाव (Effect of Humidity on rate of Evaporation)
Humidity (आद्रता) बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर घट जाती है तथा Humidity (आद्रता) के कम रहने अर्थात घटने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।
वायु में बिद्यमान जलवाष्प की मात्रा को Humidity (आद्रता) कहते हैं। किसी निश्चित तापमान पर हमारे आस पास की वायु में एक निश्चित मात्रा में जलवाष्प होता है। वायु में जलवाष्प की मात्रता अर्थात Humidity (आद्रता) बढ़ने पर वायु के जलवाष्प की घारिता घट जाती है, जिसके कारण वाष्पीकरण घीरे होने लगता है, अर्थात वाष्पीकरण की दर घट जाती है।
वायु की गति का वाष्पीकरण पर प्रभाव (Effect of Wind speed on the rate of Evaporation)
वायु की गति बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है, तथा वायु की गति कम होने पर वाष्पीकरण की दर घट जाती है।
वायु की गति ज्यादा होने की स्थिति में जलवाष्प के कण वायु के साथ उड़ जाते हैं, जिससे आस पास की वायु में जलवाष्प की मात्रा घट जाती है, अर्थात आद्रता घट जाती है, और वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
वाष्पीकरण के कारण शीतलता कैसे होती है ?
खुले हुए बर्तन में रखे द्रव में निरंतर वाष्पीकरण होता रहता है। वाष्पीकरण के दौरान कम हुई उर्जा को पुन: प्राप्त करने के लिए द्रव के कण आसपास से ताप उर्जा को अवशोषित कर लेती है, जिसके कारण आस पास शीतलता हो जाती है।
क्या होता है जब आप एसीटोन या नाखूनों की पॉलिश हटाने वाले द्रव को हथेली पर गिराते है ?
एसीटोन या नाखूनों की पॉलिश हटाने वाले द्रव सामन्य तापमान पर Volatile (उड़नशील) होते हैं। जब एसीटोन या नाखूनों की पॉलिश हटाने वाले द्रव को हथेली पर गिराया जाता है, तो ये तेजी से वाष्पीकृत होने लगते हैं। वाष्पीकरण के क्रम में एसीटोन या नाखूनों की पॉलिश हटाने वाले द्रव के कण हथेली से ताप उष्मा अवशोषित कर लेते हैं, जिससे हथेली का तापमान घट जाता है और हथेली पर शीतलता महसूस होती है।
तेज धूप वाले गर्म दिनों के बाद लोग क्यों अपनी छतों या खुले स्थान पर जल छिड़कते हैं?
तेज धूप वाले गर्म दिनों के बाद छत या खुले स्थान गर्म हो जाते हैं, उनपर जल छिड़कने से जल वाष्पीकृत होने लगता है, वाष्पीकरण के क्रम में जल गर्म छतों या खुले स्थानों से तापीय उष्मा प्राप्त करती है, जिसके कारण उन स्थानों की गर्मी कम हो जाती है। अर्थात वाष्पीकरण की गुप्त उष्मा गर्म सतह को शीतल कर देती है।
इसी कारण से तेज धूप वाले गर्म दिनों के बाद छत या खुले स्थानों पर लोग जल छिड़कते हैं, ताकि वह सतह ठंढ़ी हो सके।
गर्मी में हमें सूती कपड़े क्यों पहनने चाहिए?
गर्मी के दिनों में हमें ज्यादा पसीना निकलता है। पसीना निकलना एक शारीरिक प्रक्रिया है, जो गर्म दिनों में शरीर को ठंढ़ा रखता है, अर्थात पसीना निकलने से हमें शीतलता मिलती है। वाष्पीकरण के दौरान द्रव की सतह के कण हमारे शरीर या आसपास से उर्जा प्राप्त करके वाष्प में बदल जाते हैं। वाष्पीकरण की प्रसुप्त उष्मा के बराबर उष्मीय उर्जा हमारे शरीर से अवशोषित हो जाती है, जिससे शरीर का तापमान कम हो जाता है, तथा हमारा शरीर शीतल हो जाता है।
चूँकि सूती कपड़ों में अवशोषण अधिक होता है, इसलिये हमारा पसीना इसमें अवशोषित होकर वायुमंडल में आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है, तथा हम आराम महसूस करते हैं। अत: गर्मी के दिनों में हमें सूती कपड़े पहनने चाहिए।
बर्फीले जल से भरे गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूँदें क्यों नजर आती हैं?
बर्फीले जल से भरे गिलास की बाहरी सतह का तापमान काफी कम होता है, जिसके कारण वायु में उपस्थित जलवाष्प की उर्जा ठंढ़े पानी से भरे गिलास की सतह के संपर्क में आकर कम हो जाती है और यह द्रव अवस्था में बदल जाता है, जो जल की बूंदों के रूप में नजर आता है।
अत: बर्फीले जल से भरे गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूँदें नजर आती हैं।
पदार्थ की दो अन्य अवस्थाएँ
आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार पदार्थ की पाँच अवस्थाएँ हैं: बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट [Bose-Einstein Condensate (BEC)], ठोस (Solid), द्रव (liquid) , गैस (Gas) तथा प्लाज्मा (Plasma)।
Plasma
प्लाज्मा (plasma) को पदार्थ की चौथी अवस्था के रूप में माना गया है। प्लाज्मा (Plasma) पृथ्वी पर सामान्य प्राकृतिक अवस्था में नहीं पाया जाता है। लेकिन प्लाज्मा को कृत्रिम रूप से अक्रिय गैसों के द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है।
प्लाज्मा में कण अत्यधिक उर्जा वाले और अधिक उत्तेजित होते हैं, जो आयनीकृत गैस के रूप में होते हैं। फ्लोरेसेंट ट्यूब और नियॉन बल्ब में प्लाज्मा पाया जाता है। नियॉन बल्ब में नियॉन गैस तथा फ्लोरेसेंट ट्यूब के अंदर हीलियम या कोई अन्य अक्रिय गैस भरी हुई होती है। जब नियॉन बल्ब या फ्लोरेसेंट ट्यूब में विद्युत उर्जा प्रवाहित की जाती है, तो उसमें भरी हुई गैस आयनीकृत अर्थात आवेशित हो जाती है, जिसके कारण ट्यूब या बल्ब के अंदर चमकीला प्लाज्मा तैयार होता है। गैस के स्वभाव के अनुसार इस प्लाज्मा में एक विशेष चमक होती है।
प्लाज्मा के कारण ही सूर्य तथा तारों में भी चमक होती है। तारों में उच्च तापमान के कारण ही प्लाज्मा बनता है।
बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट [Bose-Einstein Condensate (BEC)]
बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट [Bose-Einstein Condensate (BEC)] को पदार्थ की पाँचवी अवस्था माना जाता है। बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट [Bose-Einstein Condensate (BEC)] को संक्षिप्त में बीoइoसीo (BEC) या बीoइo कंडनसेट कहा जाता है।
सामान्य वायु के घनत्व के एक लाखवें भाग जितने कम घनत्व वाली गैस को बहुत ही कम तापमान पर ठंढ़ा करने से बीoइo कंडनसेट तैयार होता है।
पदार्थ की इस अवस्था का नाम भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस (Satyendranath Bose) तथा जर्मन वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) के नाम पर रखा गया है, चूँकि पदार्थ की इस अवस्था की भविष्यवाणी उन्होंने ही की थी।
Reference: