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पंचांग अंग्रेजी संस्करण
फ्री जन्म-कुंडली
सूर्योदय/सूर्यास्त
सूर्योदय : 06:53:24
सूर्यास्त : 17:20:46
दिनमान(hms): 10:27:22
रात्रिमान(hms): 13:33:26
सूर्योदय (अगले दिन): 06:54:12
सूर्योदय (पिछला दिन): 06:52:35
तिथि (हिंदी)
द्वितीय, शुक्ल पक्ष
समाप्त होने का समय : 17:12:35
कुल अवधि : 26hour 23min 18sec
शुरू होने का समय 21-11-2025 at 14:0:49 hour
समाप्त होने का समय 22-11-2025 at 17:12:35
यह द्वितीय तिथि शुक्ल पक्ष का दूसरा दिन होता है। इसे दूज के नाम से भी जाना जाता है।
अगली तिथि: तृतीया, शुक्ल पक्ष
करण
Kaulava करण
करण के समाप्त होने का समय :17:12:35
नक्षत्र
ज्येष्ठा नक्षत्र
समाप्त होने का समय :16:47:40
ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वामी : बुध
अगला नक्षत्र: मूला
योग
सुकर्मा योग
योग के समाप्त होने का समय : 11:29:47
अगला योग: धृति
शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त
शुरू होने का समय: 11:46:10
समाप्त होने का समय: 12:27:59
कुल अवधि : 0:41:49
अमृत काल
शुरू होने का समय 6:57:16
समाप्त होने का समय 8:44:37
कुल अवधि: 1:47:20
अशुभ मुहूर्तत्याज्य/ विष काल शुरू होने का समय 26:7:57
समाप्त होने का समय 27:54:41
अवधि: 1:46:43
राहु कालशुरू होने का समय 9:30:14
समाप्त होने का समय 10:48:39
राहु काल की अवधि (hms) 1:18:25
गुलिक कालशुरू होने का समय 6:53:23
समाप्त होने का समय 8:11:49
गुलिक काल की अवधि (hms) 1:18:25
यम गण्ड काल
शुरू होने का समय 13:25:30
समाप्त होने का समय 14:43:55
यम गण्ड काल की अवधि (hms) 1:18:25
दुर्र मुहूर्तशुरू होने का समय 8:17:2
समाप्त होने का समय 8:58:52
दुर्र मुहूर्त की अवधि 0:41:49
चौघड़िया मुहूर्त: दिनकालीन
(1) काल चौघड़िया
प्रकार: अशुभ
शुरू होने का समय: 6:53:23
समाप्त होने का समय: 8:11:49
अवधि: 1:18:25
(2) शुभ चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 8:11:49
समाप्त होने का समय: 9:30:14
अवधि: 1:18:25
(3) रोग चौघड़िया
प्रकार: अशुभ
शुरू होने का समय: 9:30:14
समाप्त होने का समय: 10:48:39
अवधि: 1:18:25
(4) उद्वेग चौघड़िया
प्रकार: अशुभ
शुरू होने का समय: 10:48:39
समाप्त होने का समय: 12:7:5
अवधि: 1:18:25
(5) चर चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 12:7:5
समाप्त होने का समय: 13:25:30
अवधि: 1:18:25
(6) लाभ चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 13:25:30
समाप्त होने का समय: 14:43:55
अवधि: 1:18:25
(7) अमृत चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 14:43:55
समाप्त होने का समय: 16:2:20
अवधि: 1:18:25
(8) काल चौघड़िया
प्रकार: अशुभ
शुरू होने का समय: 16:2:20
समाप्त होने का समय: 17:20:46
अवधि: 1:18:25
चौघड़िया मुहूर्त: रात्रिकालीन
(1) लाभ चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 17:20:46
समाप्त होने का समय: 19:2:26
अवधि: 1:41:40
(2) उद्वेग चौघड़िया
प्रकार: अशुभ
शुरू होने का समय: 19:2:26
समाप्त होने का समय: 20:44:7
अवधि: 1:41:40
(3) शुभ चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 20:44:7
समाप्त होने का समय: 22:25:48
अवधि: 1:41:40
(4) अमृत चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 22:25:48
समाप्त होने का समय: 24:7:29
अवधि: 1:41:40
(5) चर चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 24:7:29
समाप्त होने का समय: 25:49:10
अवधि: 1:41:40
(6) लाभ चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 25:49:10
समाप्त होने का समय: 27:30:50
अवधि: 1:41:40
(7) काल चौघड़िया
प्रकार: अशुभ
शुरू होने का समय: 27:30:50
समाप्त होने का समय: 29:12:31
अवधि: 1:41:40
(8) लाभ चौघड़िया
प्रकार: शुभ
शुरू होने का समय: 29:12:31
समाप्त होने का समय: 30:54:12
अवधि: 1:41:40
पंचांग क्या है?
पंचांग एक भारतीय कैलेंडर है। पंचांग चंद्रमा और सूर्य की चाल पर आधारित समय की गणना है क्योंकि ज्योतिष शास्त्र को कालविधान का शास्त्र कहा जाता है। काल अर्थात समय।
पंचांग संस्कृत के दो शब्दों "पंच" तथा "अंग" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है "पाँच अंगों वाला" या वह जिसके पाँच अंग हैं।
पंचांग के पाँच अंग हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण।
(1) तिथि
पंचांग का प्रथम अंग तिथि है।
पंचांग में तिथि चंद्रमा और सूर्य की चाल या स्थिति के आधार पर निर्धारित की गयी है। चंद्रमा और सूर्य के बीच बारह डिग्री का अंतर होने पर एक तिथि व्यतीत होती है। इस तरह भारतीय ज्योतिष में आकाश, जो गोलाकार रूप में है, की परिधि कुल तीन सौ साठ डिग्री को कुल तीस तिथियों में विभाजित किया गया है। अर्थात पंचांग के अनुसार कुल तीस तिथि हैं, जिसमें पन्द्रह तिथि का एक पक्ष तथा एक माह में दो पक्ष होते हैं।
इस तरह पंचांग में तीस तिथियों का एक माह या महीना होता है, तथा बारह महीनों का एक वर्ष होता है।
पंचांग में प्रत्येक महीने को दो पक्षों में विभाजित किया गया है, प्रथम शुक्ल पक्ष तथा द्वितीय कृष्ण पक्ष। इस तरह पंचांग के अनुसार पंद्रह दिनों का एक पक्ष होता है। अर्थात शुक्ल पक्ष में पंद्रह तिथि तथा कृष्ण पक्ष में पंद्रह तिथि। तथा दोनों पक्षों को मिलाकर एक महीना कुल तीस तिथियों का होता है।
तिथियों के नाम क्रमश: प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी हैं। पंचांग में शुक्ल पक्ष की पन्द्रहवीं तिथि को पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है।
उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत के पंचांग में माह की शुरूआत अलग अलग रीति से मानी जाती है। प्राय: उत्तर भारत में प्रचलित पंचांग के अनुसार महीने की शुरूआत कृष्ण पक्ष से मानी जाती है, जिसे पूर्णिमांत कहा जाता है। तथा दक्षिण भारत के पंचांग के अनुसार महीने की शुरूआत शुक्ल पक्ष से की जाती है, जिसे अमांत कहा जाता है।
पंचांग में तिथि की गणना सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक की जाती है।
(2) वार
पंचांग का दूसरा अंग वार है।
पंचांग में वार के नाम क्रमश: रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार या गुरूवार, शुक्रवार, तथा शनिवार है। इन वारों के अंग्रेजी नाम क्रमश: संडे, मंडे, ट्यूजडे, वेडनेसडे, थर्सडे, फ्राइडे, तथा सटरडे है।
(3) नक्षत्र
पंचांग का तीसरा अंग नक्षत्र है।
पंचांग में नक्षत्रों की कुल संख्या सत्ताइस हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार नक्षत्रों के नाम क्रमश: अश्निनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्र, उत्तराभाद्र, तथा रेवती है, जो पंचांग में उल्लिखित रहता है।
इन सत्ताइस नक्षत्रों के अतिरिक्त एक अठाइसवें नक्षत्र की भी संकल्पना की गयी है जिसका नाम अभिजीत नक्षत्र है, हालांकि पंचांग में प्राय: अभिजीत नक्षत्र को नहीं दर्शाया जाता है। वैसे अभिजित नक्षत्र को काफी शुभ माना जाता है क्योंकि अभिजीत नक्षत्र में ही भगवान राम का जन्म हुआ है।
पंचांग में नक्षत्र की गणना चंद्रमा की चाल के आधार पर की जाती है। एक नक्षत्र का मान तेरह डिग्री बीस मिनट होता है। अर्थात पंचांग के अनुसार जब चंद्रमा शून्य से तेरह डिग्री बीस मिनट चलता है तो एक नक्षत्र व्यतीत होता है।
(4) योग
पंचांग का चौथा अंग योग है।
पंचांग में चंद्रमा तथा सूर्य के योग को "योग" कहते हैं।
नक्षत्र की तरह ही योग की कुल संख्या सत्ताइस है जैसा कि भारतीय पंचांग में गणना की जाती है। इस तरह एक योग का मान तेरह डिग्री बीस मिनट होता है।
पंचांग में योग की गणना चंद्रमा तथा सूर्य के कोणों के योग को तेरह डिग्री बीस मिनट से भाग देकर की जाती है।
पंचांग के अनुसार योगों के नाम क्रमश: विषकुम्भ योग, प्रीति योग, आयुष्मान योग, शौभाग्य योग, शोभन योग, अतिगण्ड योग, सुकर्मा योग, धृति योग, शूल योग, गण्ड योग, वृद्धि योग, ध्रुव योग, व्याघात योग, हर्षण योग, बज्र योग, सिद्धि योग, व्यतीपात योग, वरीयन योग, परिघ योग, शिव योग, सिद्ध योग, साध्य योग, शुभ योग, शुक्ल योग, ब्रह्म योग, ऐंद्र योग, एवं वैधृति योग। इन योगों को प्राय: विषकुम्भादि योग के नाम से जाना जाता है।
(5) करण
करण को पंचांग का पाँचवा अंग माना जाता है।
पंचांग के अनुसार करण, तिथि का अर्ध भाग है। पंचांग की गणना में सुविधा के लिए तिथि के अर्ध भाग की इकाई को निर्धारित किया गया है तथा इस इकाई का नाम करण रखा गया है।
भारतीय ज्योतिष के पंचांग के अनुसार करण की संख्या कुल ग्यारह है। जिसमें चार अचर या स्थिर करण तथा सात चर करण होते हैं।
भारतीय पंचांग के अनुसार स्थिर या अचर करण, जिनकी संख्या चार हैं, के नाम हैं किस्तुघ्न करण, शकुनि करण, चतुष्पद करण, तथा नाग करण।
तथा चर करण जिनकी संख्या सात हैं, के नाम हैं क्रमश: बव करण, बालव करण, कौलव करण, तैतिल करण, गर करण, वणिज करण, तथा विष्टि करण्।
इन पाँच अंगों के अतिरिक्त भी आज के आधुनिक पंचांग में अन्य कई जानकारियाँ दी जा रही हैं, यथा स्पष्ट ग्रह, ग्रहों की गति, दिनमान, रात्रिमान, सूर्योदय, सूर्यास्त, लग्न तालिका, व्रत एवं पर्वों की जानाकारी, मुहूर्त, वर कन्या मेलापक चक्र इत्यादि।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पंचांग की उपयोगिता अत्यधिक है। वास्तव में पंचांग ज्योतिष शास्त्र के समग्र रूप को सार के रूप में प्रकट करता है यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्र के विद्यार्थियों को सर्वप्रथम पंचांग देखना सिखलाया जाता है। ऐसा कहा गया है कि पंचांग के अध्ययन से एक मनुष्य ज्योतिष शास्त्र में निपुण हो सकता है।