जैव प्रक्रम - क्लास दसवीं विज्ञान
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वहन (Transporation)
मानव में वहन (Transportation in Human Beings)
वहन क्या है?
हमारे शरीर में भोजन से प्राप्त पोषक तत्व, ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड आदि सारे पदार्थ रूधिर [खून (Blood)] द्वारा वहन किया जाता है, अर्थात सभी अंगों में पहुँचाया जाता है। इसके लिए हमारे पूरे शरीर मे रूधिर नलियों का के परिपथ है तथा हमारा हृदय (heart) एक पंप की तरह कार्य करता है, जो रूधिर [खून (Blood)] को इन नलियों के द्वारा सारे जगहों पर अर्थात सभी ऊतकों तक भेजता है।
खून के द्वारा सभी आवश्यक सामग्री पूरे शरीर में भेजना तथा बर्ज्य पदार्थों को बाहर निकालने में सहयोग करना वहन (Transportation) कहलाता है।
नलिकाएँ: रूधिर वहिकाएँ (Blood vessels)
हमारे शरीर में दो तरह की रूधिर वहिकाएँ (Blood vessels) हैं, रूधिर वहिकाएँ अर्थात वे नलिकाएँ जो रूधिर [खून (Blood)] का वहन करती हैं अर्थात रूधिर को पूरे शरीर में प्रवाहित करती हैं।
रूधिर वहिकाओं (Blood vessels) के प्रकार:
(a) महाशिरा (Veins)
(b) धमनी (Arteries)
(a) महाशिरा (Veins)
रूधिर वहिका (Blood Vessel), जो पूरे शरीर से विऑक्सीजनित (Deoxygenated) ब्लड को हृदय तक ले जाती है, महाशिरा (Veins) कहलाती है। शिराएँ विभिन्न अंगों से रूधिर एकत्र करके वापस हृदय में लाती है। उनमें मोटी भित्ति की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसमें कम दाब होता है। शिराओं में रूधिर को एक ही दिशा में प्रवाहित करने के लिए वाल्व होते हैं।
(b) धमनी (Arteries)
वे रूधिर वहिकाएँ (Blood Vessel), जो हृदय से ऑक्सीकृत या ऑक्सीजन से युक्त (Oxygenated) रूधिर [खून (Blood)] को पूरे शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाती है, को धमनी (Arteries) कहा जाता है। धमनी की भित्ति मोटी तथा लचीली होती है क्योंकि रूधिर हृदय से उच्च दाब से निकलता है।
किसी अंग या ऊतक तक पहुँचकर धमानी उत्तरोत्तर छोटी छोटी वाहिकाओं में विभाजित हो जाती है ताकि सभी कोशिकाओं को ऑक्सीकृत रूधिर (Oxygenated blood) मिल सके।
सबसे छोटी वाहिकाओं की भित्ति एक कोशिकीय मोटी होती है और रूधिर एवं आसपास की कोशिकाओं के मध्य पदार्थों का विनिमय इस पतली भित्ति द्वारा ही होता है। कोशिकाएँ तब आपस में मिलकर शिराएँ बनाती है तथा रूधिर को अंग या ऊतक से दूर पुन: ऑक्सीकृत होने के लिए हृदय में पहुँचाया जा सके।
हमारा पंप-हृदय
हमारा हृदय एक पेशीय अंग है, जो मुट्ठी के आकार का होता है। चूँकि खून [रूधिर(Blood)] ऑक्सीकृत अर्थात ऑक्सीजन से युक्त तथा कार्बन डाइऑक्साइड युक्त दोनों का ही वहन करता है, अत: दोनों तरह के खून [रूधिर(Blood)] को आपस में मिलने से रोकने के लिए हमारा हृदय कई कोष्ठों में बँटा होता है।
fig:1 मानव हृदय की संरचना
हृदय के भाग
मनुष्य का हृदय (Heart) मुख्यत: दो भागों में बंटा रहता है, दायाँ भाग (Right part) तथा बायाँ भाग (Left Part)। पुन: यह दोनों भागा दायाँ भाग तथा बायाँ भाग दो-दो भागों में बँटा रहता है।
इस तरह हमारा हृदय चार भागों अर्थात चार प्रकोष्ठों में विभक्त होता है।
(a) दायाँ अलिंद (Right Atrium)
हृदय के दायें भाग के ऊपरी प्रकोष्ठ को दायाँ अलिंद (Right Auricle) कहा जाता है। इस भाग में पूरे शरीर से विऑक्सीजनीत रूधिर (deoxydised blood), अर्थात कार्बन डाइऑक्साइड युक्त blood महाशिरा के द्वारा लाया जाता है।
(b) दायाँ निलय (Right Ventricle)
हृदय के दायें भाग के निचले प्रकोष्ठ को दायाँ निलय (Right Ventricle) कहा जाता है। दायाँ अलिंद से विऑक्सीजनित रूधिर दायाँ अलिंद (Right atrium) से दायाँ निलय (Right Ventricle) में भेजा जाता है। दायें निलय से विऑक्सीजनित रूधिर को ऑक्सीकृत करने के लिए फेफड़े में भेजा जाता है।
(c) बायाँ अलिन्द (Left Atrium)
हृदय के बायें भाग में ऊपरि प्रकोष्ठ को बायाँ अलिन्द (Left Atrium) कहा जाता है। फेफड़े से ऑक्सीजनीकृत रूधिर हृदय के इस भाग बायाँ अलिन्द (Left Atrium) में आता है।
(d) बायाँ निलय (Right Ventricle)
हृदय के बायें भाग का निचला प्रकोष्ठ बायाँ निलय (Right Ventricle) कहलाता है। बायाँ अलिन्द (Left Atrium) से ऑक्सीजनीकृत रूधिर बायाँ नियल (Right Ventricle) में आता है, तथा यहाँ से महाधमनी के द्वारा यह ऑक्सीजनीकृत रूधिर पूरी शरीर के विभिन्न भागों तक भेजा जाता है।
हृदय के प्रकोष्ठों के नाम याद रखने का ट्रिक
बायें भाग तथा दायें भाग का प्रकोष्ठ दो-दो भागों में बँटा है। ऊपर वाला प्रकोष्ठ अंग्रेजी के अक्षर A की आकृति बनाता है, तथा ऊपर वाले प्रकोष्ठ का नाम अलिंद या Atrium है। यहाँ A से अलिंद या Atrium याद रखना है।
हृदय के नीचे वाला प्रत्येक प्रकोष्ठ अंग्रेजी के अक्षर V की आकृति बनाता है। तथा इसका नाम Ventricle (निलय) है, जो V से शुरू होता है। अर्थात V से Ventricle याद रखना है।
अत: हृदय के बायें भाग के ऊपर वाले प्रकोष्ठ का नाम बायाँ अलिन्द या Left Atrium याद रखें। तथा नीचे वाले प्रकोष्ठ का नाम Left Ventricle (बायाँ निलय) याद रखें।
उसी तरह हृदय के दायें भाग के ऊपर वाले प्रकोष्ठ का नाम दायाँ अलिन्द या Right Atrium याद रखें। तथा नीचे वाले प्रकोष्ठ का नाम Right Ventricle (दायाँ निलय) याद रखें।
हृदय के कार्य करने के चरण
ऑक्सीजनिकृत (Oxygenated) ब्लड बायाँ अलिंद (Left Atrium) में आता है। इस ब्लड को एकत्रित करते समय दायाँ अलिंद (Right Atrium) शिथिल रहता है। जब अगला चैम्बर, बायाँ निलय (Left Ventricle), फैलता है, तो यह संकुचित हो जाता है, जिससे ब्लड बायाँ निलय (Left Ventricle) में स्थानांतरित हो जाता है। अपनी बारी पर जब पेशीय बायाँ निलय (Left Ventricle) संकुचित होता है, तब ब्लड महाशिरा के द्वारा शरीर में पंप हो जाता है।
Fig:2. मानव हृदय द्वारा ब्लड का परिसंचरण (Circulation)2
ऊपर वाला दायाँ कोष्ठ, दायाँ अलिन्द (Right Atrium) जब फैलता है तो शरीर के विऑक्सीजनित ब्लड इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ अलिन्द संकुचित होता है नीचे वाला संगत कोष्ठ, दायाँ निलय (Right Ventricle) फैल जाता है यह ब्लड को दायें निलय (Right Ventricle) में स्थानांतरित कर देता है जो ब्लड को ऑक्सीनीकरण हेतु अपनी बारी पर फेफड़े में पंप कर देता है। फेफड़ा ब्लड को ऑक्सीजनित कर पुन: बायें अलिंद में भेजता है, जहाँ से ब्लड बायें निलय में आकर पुन: शरीर में चला जाता है। यह प्रक्रिया निरंतर जीवनपर्यंत चलती रहती है।
अलिंद (Atrium) तथा निलय (Ventricle) के बीच में वाल्व लगा होता है जो ब्लड को उलटी दिशा में प्रवाह को रोकना सुनिश्चित करता है।
अलिंद (Atrium) की अपेक्षा निलय (Ventricle) की भित्ति मोटी होती है क्योंकि नियल को पूरे शरीर में ब्लड को भेजना होता है।
दूसरे जंतुओं में हृदय का कार्य तथा तापमान का नियंत्रण
मनुष्य तथा अन्य स्तनधारी (Mammals) एक गर्म रूधिर (खून) वाला प्राणी (Hot blooded animal) है। अर्थात मनुष्य का रूधिर (Blood) मौसम के अनुसार गर्म या ठंढ़ा नहीं होता है, बल्कि मनुष्य को दूसरी युक्तियों द्वारा, जैसे जाड़े के मौसम में गर्म कपड़े पहनकर, अपने ब्लड तथा शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करना पड़ता है। तथा दूसरे स्तनधारी जीव, जैसे भालू को ठंढ़ से बचने के लिए शरीर पर रोयें की मोटी परत होती है।
ऐसे पाणियों का हृदय दो भागों में बँटा होता है, जो जो कि विऑक्सीजनित तथा ऑक्सीजनित ब्लड को आपस में मिलने से रोकता है। यह बनाबट उनके शरीर को आवश्यक उच्च उर्जा बनाये रखने में सहायक होता है।
परंतु कई जंतु ऐसे हैं जिनके शरीर का तापमान मौसम तथा पर्यावरण के तापमान पर निर्भर होता है। वैसे जंतुओं को कोल्ड ब्लडेड एनीमल कहा जाता है। जल स्थल चर या बहुत से सरीसृप (Reptile) जैसे प्राणियों का हृदय तीन कोष्ठकों (Chamber) में बँटा होता है। इनका हृदय ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित ब्लड को कुछ सीमा तक मिलना भी सहन कर लेते हैं।
मछली जैसी जंतुओं के हृदय में केवल दो कोष्ठक होते हैं। इनके हृदय से ब्लड सीधा क्लोम (gill) में भेजा जाता है, जहाँ वह ऑक्सीजनित होकर सीधा शरीर में भेज दिया जाता है। इस तरह मछलियों के शरीर में एक चक्र में केवल एक बार ही ब्लड हृदय में जाता है|
अन्य कशेरूकी (Vertibrate), जैसे मनुष्य, मेंढ़क, घोड़ा, कुत्ता, हाथी, आदि, में प्रत्येक चक्र में ब्लड दो बार हृदय में जाता है। इसे दोहरा परिसंचरण (Double circulation) कहते हैं।
प्लेटलैट्स द्वारा अनुरक्षण (Maintenance by platelets)
ब्लड में प्लेटलैट्स कोशिकाएँ होती हैं। ये प्लेटलैट्स कोशिकाएँ ब्लड के साथ पूरे शरीर में दौड़ती हैं और किसी भी स्थान पर ब्लड को किसी भी कारण से रिसने से रोकती हैं। घायल होने या कटने आदि पर ये प्लेटलैट्स कोशिकाएँ रक्तस्त्राव के स्थान पर ब्लड का थक्का बनाकर मार्ग अवरूद्ध कर देती है जिससे ब्लड का रक्तस्त्राव रूक जाता है। यदि तंत्र (System) से ब्लड की हानि होने लगती है, तो अतिरिक्त रक्तस्त्राव से ब्लड के दाब में कमी आ जायेगी जिससे पंपिंग प्रणाली के दक्षता में कमी आ जायेगी। यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।
एक बीमारी होता है, डेंगू (Dengue), जो एक विशेष मच्छर, जिसका नाम एडीज एजिप्टी (Aedes aegypti) होता है, के काटने से होता है। इस बीमारी में प्लेटलैट्स की मात्रा घटने लगती है। समय पर प्लेटलेट्स का अनुरक्षण नहीं होने पर इस बीमारी से जान चली जाती है। काफी संख्यां में लोग इस बीमारी से मर जाते हैं।
अत: प्लेटलेट्स हमारे ब्लड को दुर्घटना या किसी विशेष अनचाहे कारण की स्थिति में रिसने से रोकता है, तथा ब्लड का अनुरक्षण करता है।
लसिका (Lymph)
एक अन्य प्रकार का द्रव है जो वहन में भी सहायता करता है। इसे लसिका (Lymph) या ऊतक तरल (tissue fluid) कहा जाता है। कोशिकाओं की भित्ति में उपस्थित छिद्रों द्वारा कुछ प्लैज्मा, प्रोटीन तथा रूधिर कोशिकाएँ बाहर निकलकर ऊतक के अंतर्कोशिकीय अवकाश में आ जाते हैं तथा ऊतक तरल या लसिका का निर्माण करते हैं। यह रूधिर के प्लैज्मा की तरह ही है लिकिन यह रंगहीन तथा इसमें अल्पमात्रा में प्रोटीन होते हैं। लसिका अंतर्कोशिकीय अवकाश से लसिका कोशिकाओं में चला जाता है जो आपस में मिलकर बड़ी लसिका वाहिका बनाती है और अंत में बड़ी शिरा में खुलती है। पचा हुआ तथा क्षुद्रांत्र द्वारा अवशोषित वसा का वहन लसिका द्वारा होता है और अतिरिक्त तरल को बाह्य कोशिकीय अवकाश से वापस ब्लड में ले जाता है।
Reference:
Figure: 1. Taken from NCERT Science Book Class ten chapter 6 जैव प्रक्रम
Figure: 2. By DrJanaOfficial - Own work, CC BY-SA 4.0, Link