जैव प्रक्रम - क्लास दसवीं विज्ञान
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एनसीईआरटी पाठ्यनिहित प्रश्नों के उत्तर भाग:2
प्रश्न संख्या (12) मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर
मनुष्य हवा में उपस्थित ऑक्सीजन को श्वास द्वारा खींचता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड को नि:श्वास के क्रम में हवा में छोड़ता है।
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन के लिए एक विशेष तंत्र उपलब्ध होता है। इस तंत्र में मुख्य रूप हृदय, फुफ्फुस, धमनी तथा शिराएँ होती हैं जो ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का वहन करती है।
हृदय (हर्ट) : हृदय एक पम्प की तरह कार्य करता है। हृदय पूरे शरीर से आने वाले कार्बन डाइऑक्साइड से युक़्त रूधिर को एकत्रित कर फुफ्फुस (लंग) में भेजता है। तथा फुफ्फुस से आने वाले ऑक्सीकृत रूधिर अर्थात ऑक्सीजन युक्त रूधिर को पूरे शरीर में भेजने का कार्य करता है।
फुफ्फुस (लंग) : हमारा लंग हृदय से आये हुए कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रूधिर को श्वास द्वारा ली हुई हवा में उपस्थित ऑक्सीजन से संयोग कराकर ऑक्सीकृत कर हृदय में वापस कर देता है तथा रूधिर के ऑक्सीकरण के क्रम में निकले हुए कार्बन डाइऑक्साइड को श्वास द्वारा बाहर निकाल देता है।
हमारे शरीर में दो तरह की रक्त वाहिनी नलिकाएँ होती है जो पूरे शरीर में फैली होती हैं। ये धमनी तथा शिराएँ कहलाती हैं।
धमनी : धमनी हृदय से ऑक्सीकृत रूधिर को पूरे शरीर में पहुँचाती हैं।
शिराएँ : शिराएँ पूरे शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रूधिर को हृदय तक पहुँचाती हैं।
प्रश्न संख्या (13) गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित क्या है?
उत्तर
फुफ्फुस (लंग्स) के अंदर श्वास नली का मार्ग छोटी और नलिकाओं में विभाजित हो जाता है जो अंत में गुब्बारे जैसी रचनाओं में अंतकृत हो जाता है। इन गुब्बारे जैसी रचनाओं को कूपिका कहते हैं। ये कूपिकाएँ गैसों के विनिमय के लिए एक सतह उपलब्ध कराती हैं। श्वास की नलिकाएँ के इस तरह के कूपिकाओं में विभाजन गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल उपलब्ध कराती है ताकि गैसों का विनिमय आसानी से हो सके।
प्रश्न संख्या (14) मानव में वहन तंत्र के घटक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर
मानव में वहन तंत्र के घटक हैं हृदय, फुफ्फुस, धमनी तथा शिराएँ होती हैं जो ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का वहन करती है।
धमनी : धमनी हृदय से ऑक्सीकृत रूधिर को पूरे शरीर में पहुँचाती हैं।
शिराएँ: शिराएँ पूरे शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रूधिर को हृदय तक पहुँचाती हैं।
हृदय (हर्ट) : हृदय एक पम्प की तरह कार्य करता है। हृदय पूरे शरीर से आने वाले कार्बन डाइऑक्साइड से युक़्त रूधिर को एकत्रित कर फुफ्फुस (लंग) में भेजता है। तथा फुफ्फुस से आने वाले ऑक्सीकृत रूधिर अर्थात ऑक्सीजन युक्त रूधिर को पूरे शरीर में भेजने का कार्य करता है।
फुफ्फुस (लंग) : हमारा लंग हृदय से आये हुए कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रूधिर को श्वास द्वारा ली हुई हवा में उपस्थित ऑक्सीजन से संयोग कराकर ऑक्सीकृत कर हृदय में वापस कर देता है तथा रूधिर के ऑक्सीकरण के क्रम में निकले हुए कार्बन डाइऑक्साइड को श्वास द्वारा बाहर निकाल देता है।
हमारे शरीर में दो तरह की रक्त वाहिनी नलिकाएँ होती है जो पूरे शरीर में फैली होती हैं तथा रक्त एवं गैसों का वहन करती हैं। ये धमनी तथा शिराएँ कहलाती हैं।
प्रश्न संख्या (15) स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रूधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
स्तनधारी तथा पक्षी गर्म रूधिर वाले जानवर (वार्म ब्लडेड एनिमल) होते हैं। अर्थात स्तनधारी तथा पक्षियों में उनका रक्त मौसम के अनुसार गर्म या ठंढ़ा नहीं होता है, बल्कि मनुष्य को दूसरी युक्तियों द्वारा, जैसे जाड़े के मौसम में गर्म कपड़े पहनकर, अपने ब्लड तथा शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करना पड़ता है, तथा दूसरे स्तनधारी जीव, जैसे भालू को ठंढ़ से बचने के लिए शरीर पर रोयें की मोटी परत होती है।
इन तरह के जानवरों को अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है। यह उर्जा ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण अर्थात विघटन से प्राप्त होती है। ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की आवश्यकता को ध्यान रखते हुए स्तनधारी तथा पक्षियों का हृदय चार भागों में बँटा होता है, तथा ऑक्सीकृत और विऑक्सीकृत रक्त अलग अलग रक्त नलिकाओं द्वारा पूरे शरीर में दौड़ता है।
चूँकि स्तनधारी तथा पक्षियों को अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए इस अधिक उर्जा की पूर्ति के लिए इनके शरीर में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रूधिर को अलग करना आवश्यक हो जाता है।
प्रश्न संख्या (16) उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
उत्तर
पादपों में वहन के लिए दो तरह के टिशू (ऊतक) होते हैं जिन्हें जाइलम (xylem) तथा फ्लोएम (Phloem) कहा जाता है। ये दोनो ऊतक जाइलम (xylem) तथा फ्लोएम (Phloem) पादपों में जड़ से लेकर विभिन्न भागों तक फैला होता है। ये टिशू विभिन्न पदार्थों को जड़ विभिन्न भागों तक तथा पत्तियों, जहाँ पौधों द्वारा भोजन का संश्लेषण किया जाता है विभिन्न भागों तक पहुँचाते हैं अर्थात परिवहन या वहन करते हैं।
जाइलम (xylem) द्वारा जल का परिवहन जड़ से लेकर विभिन्न भागों तक होता है तथा इसके द्वारा होने वाले वहन की दिशा एक ही ओर होती है।
फ्लोएम (Phloem) द्वारा पौधे द्वारा संश्लेषित भोजन के पोषक तत्वों का परिवहन पत्तियों से पौधों के विभिन्न भागों तक होता है। फ्लोएम में वहन आवश्यकता के अनुसार दोनों दिशाओं में होता है।
प्रश्न संख्या (17) पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
उत्तर
पादपों के पूरे भाग में एक विशेष प्रकार के ऊतक, जिसे जाइलम (xylem) कहा जाता है, का जाल फैला होता है। जाइलम (xylem) की रचना बहुत महीन केशिकाओं (capillaries) जैसी होती है।
पादपों में जल और खनिज लवण का वहन इन ऊतकों, जाइलम (xylem), के द्वारा जड़ से अवशोषित होकर विभिन्न भागों तक होता है।
प्रश्न संख्या (18) पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?
उत्तर
पादप के पूरे भाग में एक विशेष प्रकार के ऊतक, जिन्हें फ्लोएम (Phloem) कहा जाता है, का जाल फैला होता है। फ्लोएम बहुत ही महीन केशिकाओं के रूप में होता है।
फ्लोएम (Phloem) द्वारा पौधे द्वारा संश्लेषित भोजन के पोषक तत्वों का परिवहन पत्तियों से पौधों के विभिन्न भागों तक होता है। फ्लोएम में वहन आवश्यकता के अनुसार दोनों दिशाओं में होता है।
भोजन से प्राप्त पोषक तत्वों का परिवहन स्थानांतरण (Translocation) कहलाता है। इन पोषक तत्वों का स्थानांतरण विशेष रूप से जड़ के भंडारण अंगों, फलों, बीजों तथा बृद्धि वाले अंगों में होता है।
प्रश्न संख्या (19) वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मानव शरीर में रक्त में उपस्थित नाइट्रोजन युक्त वर्ज्य पदार्थों रक्त से अलग करने के लिए दो वृक्क (किडनी) होते हैं। प्रत्येक वृक्क (किडनी) प्रत्येक किडनी (वृक्क) में ऐसे अनेक फिल्टरेशन यूनिट (निश्यंदन एकक) होते हैं, जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रान) कहा जाता है। ये वृक्काणु (नेफ्रान) आपस में निकटता से पैक रहते हैं।
वृक्काणु एक बेसिक फिल्टरेशन यूनिट होता है जो अत्यंत पतली दीवार वाली रूधिर कैपिलरी (केशिकाओं) का गुच्छा (cluster) होता है। वृक्क में प्रत्येक केशिका गुच्छ (capillary cluster) एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अंदर होता है, यह नलिका बोमन सम्पुट (Bowmans capsule) कहलाता है।
यह नलिका छने हुए मूत्र को एकत्र करती है। यह छना हुआ मूत्र एक लंबी नलिका, जिसे मूत्रवाहिनी कहते हैं, में प्रवेश करता है। यह मूत्रवाहिनी वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है।
प्रश्न संख्या (20) उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं।
उत्तर
पादपों में प्रकाश संश्लेषण के क्रम में ऑक्सीजन भी एक अपशिष्ट के रूप में निकलता है। इसके अतिरिक्त अधिक जल की मात्रा, कई कोशिकाएँ तथा अन्य कई पदार्थ अपशिष्ट के रूप में निकलते हैं जिनका छुटकारा निम्न तरह से होता है:
(क) पादपों में प्रकाश संश्लेषण के क्रम में ऑक्सीजन एक उत्सर्जी उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। ऑक्सीजन का उत्सर्जन पत्तियों में वर्तमान रन्ध्रों के द्वारा होता है।
(ख) पौधे में उपस्थित अतिरिक्त जल का उत्सर्जन वाष्पीकरण द्वारा होता है।
(ग) पादपों में धीरे धीरे बहुत सारी कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं जो ऊतक के रूप में रहते हैं इनका उत्सर्जी पदार्थों से छुटकारा पात्तियों आदि के क्षय के रूप में होता है।
(घ) पादपों में कुछ अपशिष्ट उत्पादों का छुटकारा गोंद तथा रेजिन के माध्यम से होता है।
(च) पादप के कुछ अपशिष्ट पदार्थ वे आसपास की मृदा में उत्सर्जित करते हैं।
प्रश्न संख्या (21) मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर
मूत्र मानव शरीर से निकलने वाला एक अपशिष्ट है, इस प्रक्रिया में मूलत: वृक्क (किडनी) में होती है जिसमें रक्त में उपस्थित वर्ज्य पदार्थों का छनन (निस्यंदन) होता है।
रक्त के प्रारंभिक निस्यंदन (फिल्टरेशन) में कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोज, अमीनो एसिड, लवण तथा प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे जैसे मूत्र वृक्काणु वाली नलिका में प्रवेश करता है इन पदार्थों का आवश्यकता के अनुसार चयनित रूप में पुन: अवशोषण हो जाता है। जल की मात्रा का पुन: अवशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है। इस प्रकार मूत्र बनने की मात्रा का नियमन होता है।
Reference: