विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव - क्लास दसवीं विज्ञान
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परिनालिका (सोलेनॉयड)
परिनालिका (सोलेनॉयड) में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
पास पास लिपटे विद्युतरोधी ताँम्बे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका (सोलनॉयड) कहते हैं।
जब किसी सोलनॉयड (परिनालिका) से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह परिनालिका (सोलनॉयड) एक चुम्बक की तरह व्यवहार करने लगता है। अत: किसी सोलनॉयड (परिनालिका) में विद्युत धारा प्रावाहित कर इसे एक चुम्बक की तरह उपयोग में लाया जा सकता है।
इस प्रकार से बने चुम्बक को विद्युत चुम्बक [इलेक्ट्रोमैगनेट (Electromagnet)] कहा जाता है।
- एक सोलनॉयड में विद्युत धारा प्रावहित करने पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र एक विद्युत धारावाही चालक के द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के जैसा ही होता है।
- परिनालिका एक सिरा उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है।
- चुम्बक के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है। अत: चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बंद वक्र होती हैं।
- परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर रेखाओं की भाँति होती हैं। यह बतलाता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है, अर्थात परिनालिका भीतर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
चूँकि परिनालिका पर लपेटे गये चालक तार की संख्या विद्युत धारा को बढ़ाती है जिसके साथ ही चुम्बकत्व भी बढ़ता है, अत: अधिक संख्या में लपेटा गया तार चुम्कत्व को भी बढ़ाता है। यही कारण है कि एक परिनालिका में चुम्बकीय क्षेत्र अत्यधिक प्रबल होता है।
विद्युत धारा प्रवाहित हो रहे परिनालिका के चुम्बकत्व की प्रबलता निम्नलिखित कारकों पर निर्भर होती है:
- परिनालिका पर लपेटे गये तारों की संख्या: लपेटे गये अधिक तारों की संख्या अधिक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
- परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा: चूँकि किसी विद्युत धारावाही तार के कारण किसी दिए गये बिन्दु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र प्रवाहित विद्युत धार पर अनुलोमत: निर्भर करता है, अत: विद्युत धारा की प्रबलता के साथ परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता भी बढ़ती है।
- परिनालिका में प्रयुक्त चुम्बकीय पदार्थ की प्रकृति: नर्म लोहा अधिक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
चुम्बकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल
एक चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है, तथा जब कोई चुम्बक इस विद्युत धारावाही चालक के निकट रखा जाता है तो यह चुम्बक पर एक बल आरोपित करता है।
इसके ठीक विपरीत जब किसी चुम्बक को विद्युत धारावाही चालक के निकट रखा जाता है, तो चुम्बक भी विद्युत धारावाही चालक पर एक बल आरोपित करता है।
फ्रांस के वैज्ञानिक आंद्रे मैरी ऐम्पीयर ने सर्वप्रथम विचार प्रस्तुत किया कि चुम्बक को भी विद्युत धारावाही चालक पर परिणाम में समान परंतु दिशा में विपरीत बल आरोपित करना चाहिए।
जब किसी चालक को किसी चुम्बक के दोनों ध्रुवों के बीच मुक्त रूप से लटकाकर चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो चालक एक दिशा में विस्थापित हो जाता है। यह दर्शाता है कि चुम्बक भी विद्युत धाराबाही चालक पर बल आरोपित करता है।
ऐसा इसलिए होता है कि चालक में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर वह चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र तथा चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र में आकर्षण या विकर्षण होने के कारण विस्थापन दृष्टिगोचर होता है।
विद्युत धारा प्रावाहित हो रहे चालक पर चुम्बक द्वारा आरोपित बल की दिशा विद्युत धारा की दिशा और चुम्बकीय क्षेत्र दोनों पर निर्भर करती है।
प्रयोगों द्वारा देखा गया है कि विद्युत धारावाही चालक में विस्थापन उस समय अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बबत होती है।
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम (फ्लेमिंग का लेफ्ट हैंड रूल)
जब बायें हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाया जाता है कि तीनों एक दूसरे के लम्बबत हों, तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा। यह फ्लेमिंग का वामहस्त नियम कहलाता है।
विद्युत धारावाही चालक तथा चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग
विद्युत धारावाही चालक तथा चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, ध्वनि विस्तारक यंत्र, माइक्रोफोन, तथा विद्युत मापक यंत्र आदि युक्तियों में होता है।
विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर)
विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर) घूर्णन युक्ति है जिसकी सहायता से विद्युत उर्जा (इलेक्ट्रिक एनर्जी) को यांत्रिक उर्जा (मिकेनिकल एनर्जी) में परिणत किया जाता है।
विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर) का उपयोग विभिन्न प्रकार के विद्युत यंत्रों, यथा विद्युत पंखा (इलेक्ट्रिक फैन), फ्रिज (रेफ्रिजरेटर), बाल सुखाने का यंत्र (हेयर ड्रायर), मिक्सर ग्राइंडर, कपड़ा धोने का यंत्र (वाशिंग मशीन) आदि में होता है।
विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर) की कार्य प्रणाली का सिद्धांत
विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर) चुम्बकीय क्षेत्र में विद्युत धारित चालक द्वारा आरोपित बल के सिद्धांत पर कार्य करता है। जब किसी आयताकार कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तथा चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो चालक में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र पर दूसरे चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण एक बल आरोपित होता है जो विद्युत धारावाही कुंडली को एक घूर्णन गति प्रदान करता है।
विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर) की संरचना
- एक विद्युत मोटर (इलेक्ट्रिक मोटर) में दो मुख्य युक्तियाँ होती हैं; एक आयताकार कुंडली जो कि एक चुम्बक के दोनों ध्रुवों के बीच लगाया गया होता है।
- कुंडली ABCD; जैसा कि चित्र में दिखलाया गया है; The coil ABCD; विद्युत रोधी चालक तार की बनी होती है। इस कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी जाती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बबत रहें।
- कुंडली के सिरे विभक्त वलय (स्पलिट रिंग) के दो अर्ध भागों से जुड़े होते हैं। चित्र में विभक्त वलय के दोनों भागों को P तथा Q से दर्शाया गया है।
- विभक्त वलय (स्पलिट रिंग) के अर्ध भागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धूरी से जुड़ी होती है।
- P तथा Q जो कि विभक्त वलय (स्पलिट रिंग) के दो भाग हैं, क्रमश: दो स्थिर चालक ब्रुशों X तथा Y से स्पर्श करते हैं।
विद्युत मोटर की कार्य प्रणाली
- श्रोत से विद्युत धारा चालक ब्रुश के बिनुद X से कुंडली ABCD में जाती है तथा ब्रुश के बिन्दु Y से होते हुए परिपथ पूरा करती है।
- कुंडली में विद्युत धारा भुजा AB में A से B की ओर तथा भुजा CD में C से D की ओर प्रवाहित होती है, अर्थात कुंडली की भुजा AB तथा CD में विद्युत धारा परस्पर विपरीत दिशाओं में प्रवाहित होती है।
- जब कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो फ्लेमिंग का वामहस्त नियम के अनुसार विद्युत धारा, चुम्बकीय क्षेत्र तथा लगने वाला बल परस्पर लम्बबत होता है। अत: जब विद्युत धारा तथा चुम्बकीय क्षेत्र लम्बबत होता है, तो यह कुंडली की भुजा AB को लम्बबत नीचे की ओर धकेलता है। भुजा AB के नीचे की ओर जाने पर भुजा CD ऊपर आ जाती है।
- इस आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क X से तथा P का सम्पर्क Y से होता है।
- अब कुंडली में धारा की दिशा बदल जाती है, तथा यह DCBA के अनुदिश प्रवाहित होने लगती है। इससे भुजा CD नीचे की ओर जाती है, तथा भुजा AB ऊपर की ओर आ जाती है।
- यह क्रम परस्पर चलते रहता है, जिससे कुंडली लगातार वामवर्त दिशा (एंटी क्लॉकवाइज डायरेक्शन) में घूमने लगती है।
- परिपथ में विद्युत धारा को उप्क्रमित करने के लिए लगायी गयी युक्ति, विभक्त वलय (स्पलिट रिंग), को दिकपरिवर्तक कहते हैं। यह दिकपरिवर्तक कुंडली के घूमने की दिशा को एक ही ओर बनाये रखता है।
व्यावसायिक मोटरों में निम्नलिखित विशेषता होती है:
- व्यावसायिक मोटरों में स्थायी चुम्बक के स्थान पर विद्युत चुम्बक का प्रयोग होता है। विद्युत चुम्बक स्थायी चुम्बक से अधिक शक्तिशाली होता है, जो अधिक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
- व्यावसायिक मोटर में प्रयुक्त होने वाले विद्युत चुम्बक पर लपेटे गये विद्युत धारावाही फेरों की संख्या अधिक होती है। विद्युत धारावाही फेरों की अधिक संख्या अधिक शक्तिशाली विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
- व्यावसायिक मोटरों में कुंडली को नर्म लौह क्रोड पर लपेटा जाता है। इस नर्म लौह कोड तथा उसपर लगे कुंडली को सम्मिलित रूप से आर्मेचर कहते हैं।
Reference: