नियंत्रण एवं समन्वय - क्लास दसवीं विज्ञान
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सजीवों की गति में नियंत्रण एवं समन्वय
सजीवों द्वारा किया जाने वाला गति पर्यावरण में हुये परिवर्तन की अनुक्रिया होती है। दूसरे शब्दों में पर्यावरण में प्रत्येक परिवर्तन की अनुक्रिया के रूप में ही सजीव गति करता है। पर्यावरण में परिवर्तन सजीवों के लिए लाभकारी या हानिकारक दोनों हो सकते हैं, परंतु पर्यावरण के परिवर्तन के कारण गति लाभकारी ही होता है।
इसका अर्थ है सजीवों के चारों ओर अर्थात वातावरण या पर्यावरण में यदि कोई बदलाव होता है तो सजीव उन परिवर्तन के अनुरूप लाभ लेने के लिए गति करता है।
जिस प्रकार प्रत्येक क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है, उसी प्रकार पर्यावरण में हुए किसी भी बदलाव के प्रतिउत्तर में सजीवों के द्वारा गति किया जाता है। यह गति सजीवों के लाभ के लिए होता है।
गति करना सजीव होने का एक अभिलक्षण है। परंतु सजीवों द्वारा किया जाने वाली प्रत्येक गति पर्यावरण में आये पर्तिवर्तन की अनुक्रिया होती है तथा सावधानी से समन्वय पूर्वक नियंत्रित होती है।
जब भी बिल्ली एक चूहे को देखती है तो उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगती है। एक चूहे को देखते ही बिल्ली को लगता है कि वह उसका भोजन है, तथा उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ती है। बिल्ली द्वारा चूहे को देखकर गति अर्थात दौड़ना बिल्ली के लिए लाभकारी है ताकि यदि बिल्ली चूहे को पकड़ ले तो वह उसे खाकर भूख मिटा सकती है।
वहीं दूसरी ओर चूहा भी बिल्ली को देखकर दौड़ता है अर्थात भागता है ताकि वह अपने जान की सुरक्षा कर सके। यहाँ चूहे तथा बिल्ली दोनों द्वारा किया जाने वाला गति दोनों के लिए लाभकारी है।
उसी प्रकार जब भी हम अपने मनपसंद का भोजन देखते हैं या कभी कभी उसके बारे में सोचते हैं, तो अनायाय ही हमारे मुँह में लार भर जाता है या भरने लगता है।
यहाँ मुँह में लार का स्त्रावण एक प्रकार की गति है। भोजन करने के क्रम में तो मुँह में अवस्थित ग्रंथियाँ लार स्त्रावित करती है। लार जहाँ पाचन में मदद करती है वहीं यह भोजन को गीला कर जीभ द्वारा उसे दाँतों की ओर धकेला जाने में मदद करती है तथा गीला हो जाने के पश्चात उसे निगलना आसान बनाती है।
जब क्लास में शिक्षक हों और हमें अपने दोस्त से या सहपाठी से बात करना होता है तो धीमी स्वर में फुसफुसाते हुए बात करते हैं न कि जोर से, ऐसा हम बिना सोचे ही करते हैं, अर्थात हमें पता होता है कि यहाँ जोर से बात नहीं कर सकते। यहाँ क्लास में फुसफुसाते हुए बात करना लाभकारी है क्योंकि जोर से बात करने पर शिक्षक नाराज हो सकते हैं। इसमें घीरे, फुसफुसाते हुए बात करना समन्वय के साथ नियंत्रित है तथा लाभकारी है।
साइकल को सीधा चलाना, या एक बॉल को सही दिशा में फेंकना, किसी गर्म वस्तु को अचानक छू लेने पर तेजी से हाथ को पीछे खींच लेना, आदि कुछ उदाहरण हैं जिसमें हम पाते हैं कि किस तरह हमारा शरीर या किसी अन्य जंतुओं के शरीर नियंत्रण तथा समन्वय के साथ कार्य करता है।
जंतुओं में विशेषकर मानव शरीर काफी जटिल है। शरीर द्वारा की जाने वाली क्रियाओं तथा उन क्रियाओं को सम्पन्न करने वाले अंगों के बीच एक अत्यधिक उच्च स्तर का नियंत्रण तथा समन्वय स्थापित रहता है। इस प्रकार के नियंत्रण तथा समन्वय का यदि आभाव हुआ तो काफी मुश्किल स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सजीव द्वारा पर्यावरण में हुए परिवर्तन की अनुक्रिया में की जाने गति को विशिष्टीकृत ऊतक के द्वारा समन्वयित तथा नियंत्रित किया जाता है।
पर्यावरण में हुए परिवर्तन की अनुक्रिया में सजीव द्वारा की जाने गति उनके शरीर के अंदर विद्यमान विशिष्टीकृत ऊतक के द्वारा समन्वयित तथा नियंत्रित होती है।
इस खंड में हम सजीवों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं तथा उन क्रियाओं के लिए अंगों के नियंत्रण तथा समन्वय के बारे में समझेंगे।
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