मानव नेत्र तथा रंग विरंगा संसार - क्लास दसवीं विज्ञान

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वायुमंडलीय अपवर्तन

Atmospheric Refraction

वायुमंडलीय घनत्व में उँचाई में अंतर के कारण प्रकाश की तरंगों या किरणों के अपवर्तनांक में होने वाले परिवर्तन को वायुमंडलीय अपवर्तन कहते हैं।

उँचाई में परिवर्तन के कारण वायु के तापमान में भी परिवर्तन होता है। यह तापमान में परिवर्तन बिभिन्न घटकों पर निर्भर करता है, जिसमें से उँचाई (altitude) एक प्रमुख घटक है। उँचाई बढ़ने के साथ साथ हवा का तापमान कम होता जाता है।

गर्म हवा ठंढ़ी हवा की तुलना में कम सघन होती है। जिसके कारण अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ अस्थिर होती हैं। अत: तापमान में अंतर के कारण अपवर्तक माध्यम की अस्थिरता के कारण गर्म वायु से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है, तथा वस्तु हिलती हुई प्रतीत होती है।

उदारण:

किसी अलाव (जलती हुई आग) या के दूसरी तरफ रखी वस्तुओं को देखने पर वह वस्तु हिलती हुई अर्थात अस्थिर नजर आती है। ऐस इसलिये होता है क्योंकि अलाव के उपर की गर्म वायु, ठंढ़ी वायु से हल्की होने के कारण उपर की ओर उठती रहती है, जो कि आग के उपर स्थित वायु को अस्थिर कर देती है, तथा उस स्थान के दूसरी ओर रखी वस्तु को देखने पर वह हिलती हुई नजर आती है।

तारों का टिमटिमाना, अग्रिम सूर्योदय, बिलंबित सूर्यास्त, रेगिस्तान में बनने वाली मृगमरीचिका, आदि वायुमंडलीय अवपर्तन का ही परिणाम है।

तारों की मिथ्या या अवास्तविक स्थिति (Apparent position of Stars)

तारे जब क्षितिज पर होते हैं, तो वे उनकी वास्तिविक स्थिति (जगह) से थोड़ा उपर अर्थात मिथ्या स्थिति (अवास्तिविक) स्थिति में दिखाई देते हैं।

वायुमंडल का घनत्व समान नहीं होता है, बल्कि यह उँचाई के साथ बदलता रहता है। घनत्व बदलने के कारण वायुमंडल का अपवर्तनांक भी बदलता रहता है, जिसके कारण वायुमंडल से आती हुई प्रकाश की किरणें अपवर्तित होती रहती है। जैसे जैसे उँचाई घटती है, वायुमंडल सघन होती जाती है, जिससे तारों से आती हुई प्रकाश की किरणें सघन वायुमंडल में प्रवेश करने पर अभिलम्ब की ओर झुक जाती है और तारे क्षितिज पर वास्तविक स्थिति से थोड़ा उपर दिखाई देते हैं।

तारों के टिमटिमाने का कारण (Cause of Twinkling of Stars)

तारे वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं। तारों का पृथ्वी से बहुत दूरी पर अवस्थित होने के कारण वे प्रकाश के बिन्दु स्त्रोत के समान प्रतीत होते हैं। तारों से आने वाली प्रकाश की किरणें का पृथ्वी पर पहुँचने के क्रम में वायुमंडल में कई बार असमान तरीके से अपवर्तन होता है। तारों से आने वाली प्रकाश की किरणों के असमान अपवर्तन से उसका पथ लगातार बदलता रहता है, जिसके कारण तारे की आभासी स्थिति भी बदलती रहती है। चूँकि तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों मे प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है, जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला तो कभी धुँधला प्रतीत होता है, और तारे हमें टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं।

ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते हैं? (Why do Planets not twinkle?)

ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास है, जिसके कारण उन्हें प्रकाश के विस्तृत स्त्रोत की भाँति माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिन्दु साईज के अनेक प्रकाश स्त्रोतों का संग्रह मान लें तो सभी बिन्दु साइज के प्रकाश स्त्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य हो जायेगा। चूँकि ग्रहों से आने वाली प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसता का मान शून्य हो जाता है, जिससे टिमटिमाने का प्रभाव निष्प्रभावित हो जाता है, और ग्रह टिमटिमाते हुए नहीं प्रतीत होते है।

अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त (Advance Sunrise and Delayed Sunset)

अंतरिक्ष में कोई वायुमंडल नहीं होता है, जबकि पृथ्वी पर एक सघन वायुमंडल है। जब सूर्य से प्रकाश की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल, जो कि सघन है, में प्रवेश करती है, तो सूर्य से आने वाली किरणें अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है, जिसके कारण सूर्य अपनी वास्तविक स्थिति से थोड़ा उपर दिखाई देता है। अत: सूर्योदय के समय जब सूर्य क्षितिज पर होता है, सूर्य से आने वाली किरणों के अपवर्तन के कारण, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले ही सूर्य दिखाई देने लगता है। सूर्य के दिखाई देने का समय वास्तविक सूर्योदय से दो मिनट पहले होता है। इसे अग्रिम सूर्योदय कहते हैं।

उसी प्रकार, सूर्यास्त के समय भी सूर्य क्षितिज पर होता है, और सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने पर अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है, जिससे सूर्य अपनी वास्तविक स्थिति से क्षितिज पर थोड़ा उपर दिखाई देता है। इसके कारण सूर्यास्त के लभग दो मिनट बाद तक सूर्य दिखाई देता रहता है। इसे बिलम्बित सूर्यास्त कहते हैं।

इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत होती है।

प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)

वायुमंडल में निलंबित सूस्म कणों द्वारा प्रकाश की किरणों का असमान परावर्तन, प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है।

हमारा वायुमंडल धूलकणों से भरा है, जो कि वायुमंडल में घुलते नहीं बल्कि निलंबित (Suspended) रहते हैं। इनमें कुछ धूलकण अत्यधिक छोटे तथा कुछ धूलकण थोड़ा बड़े होते हैं। इन धूलकणों से टकराने के कारण सूर्य की किरण असमान तरह से परावर्तित होती हैं, जिसे सूर्य की प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण तरह तरह की अनेक आश्चर्यजनक परिघटनाएँ देखने को मिलतीं हैं, यथा: आकाश का नीला रंग, गहरे समुद्र के जल का रंग, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का रक्ताभ दिखाई देना, आदि।

टिंडल प्रभाव (Tyndall Effect)

प्रकाश की किरण के पुंज का वायुमंडल में विलंबित सूक्ष्म कणों से परावर्तित होकर उसका पथ दृश्य होना टिंडल प्रभाव कहलाता है।

पृथ्वी का वायुमंडल सूक्ष्म कणों, यथा धुँआ के कण, जल की सूक्ष्म बूंदें, धूल के कण, वायु के अणु, आदि, का विषमांगी मिश्रण है। जब प्रकाश की किरण का पुंज, वायुमंडल में निलंबित सूक्ष्म कणोंसे टकराती है, तो उस किरण का मार्ग दिखाई देने लगता है, क्योंकि इन कणों से प्रकाश परावर्तित होकर हमारी आँखों तक पहुँचता है। इसे टिंडल प्रभाव कहते हैं।

उदाहरण:

(a) किसी खिडकी या किवाड़ की दरार से प्रकाश की पुंज आती रहती है, तो उसका पथ वातावरण में निलंबित कोलॉइडी कणों से प्रकाश की किरण के टकराने के कारण दृश्य होने लगता है। ऐसा टिंडल प्रभाव के कारण होता है।

(b) इसी तरह जब किसी घने जंगल में पेड़ की पत्तियों से प्रकाश का पुंज नीचे आता रहता है, तो वातावरण में वर्तमान निलंबित सूक्ष्म कणों (suspended small particles) से प्रकाश की किरण का परावर्तन (reflection) होने के कारण प्रकाश पुंज (beam of light) का पथ दृश्य होने लगता है। प्रकाश पुंज के पथ का दृश्य होना टिंडल प्रभाव के कारण होता है।

कणों का आकार एवं प्रकाश का प्रकीर्णन (The Size of Particles and Scattering of Light)

प्रकाश का प्रकीर्णन वायुमंडल या किसी माध्यम में उपस्थित सूक्ष्म कणों के आकार पर निर्भर करता है। बहुत सूक्ष्म कण नीले रंग के प्रकाश, जिनकी आवृति काफी छोटी होती है, को अधिक मात्रा में परावर्तित करते है, जबकि वायुमंडल में निलंबित थोड़े बड़े कण, जिनकी आवृति तथा तरंग की लंबाई थोड़ी ज्यादा होती है, नारंगी तथा लाल रंग के प्रकाश को अधिक मात्रा में परावर्तित करते हैं।

और वायुमंडल में निलंबित कणों का आकार और अधिक बड़ा होने की स्थिति में इनसे परावर्तित किरणिं श्वेत नजर आती है।

स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है? (Why is the Color of the Clear Sky Blue?)

वायुमंडल में वर्तमान वायु के कण तथा अन्य सूक्ष्म कणों का आकार काफी सूक्ष्म होते हैं। ये कण दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के प्रकाश की अपेक्षा नीले रंग की ओर के कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक प्रभावी तरीके से करते हैं। लाल रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य नीले प्रकाश की अपेक्षा लगभग `1.8` गुणी है। अत: जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, तो वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं, जिसके कारण प्रकीर्णित नीला प्रकाश हमारी आँखों में पहुँचता है, और हमें स्वच्छ आकाश नीले वर्ण का दिखता है।

यदि पृथ्वी पर कोई वायुमंडल नहीं होता, तो आकाश काला प्रतीत होता। अत्यधिक उँचाई पर उड़ने वाले वायुयान के यात्रियों को प्रकाश का प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होने के कारण आकाश का रंग काला दिखाई देता है।

चूँकि अंतरिक्ष में कोई वायुमंडल नहीं होता है, अत: अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष का रंग काला दिखाई देता है।

सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग नारंगी–लाल (रक्ताभ) क्यों प्रतीत होता है? (Why Sun appears red–organe at Sunrise and Sunset?)

सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज पर रहता है। क्षितिज पर स्थित सूर्य सर के उपर स्थित सूर्य से ज्यादा दूरी पर रहता है। क्षितिज से आती हुई सूर्य की किरणों को ज्यादा सघन वायुमंडल से गुजरते हुए ज्यादा दूरी तय करना होता है। क्षितिज के समीप नीले तथा कम तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश का अधिकांश भाग वायुमंडल में निलंबित कणों द्वार प्रकीर्ण हो जाता है। इसलिये हमारे नेत्रों तक पहुँचने वाला प्रकाश अधिक तरंगदैर्ध्य वाला अर्थात नारंगी तथा लाल रंग का होता है।

यही कारण है कि सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग नारंगी–लाल (रक्ताभ) प्रतीत होता है।

दोपहर के समय सूर्य श्वेत क्यों प्रतीत होता है? (Why Sun appears white in the noon?)

दोपहर के समय जब सूर्य सिर के ठीक उपर (उर्ध्वस्थ) होता है। इस समय सूर्य से आने वाले प्रकाश को पृथ्वी पर आने में क्षितिज की अपेक्षा कम दूरी तय करना होता है तथा अपेक्षाकृत कम सघन वायुमंडल से गुजरना होता है। कम सघन वायुमंडल होकर कम दूरी तय करने के कारण नीले तथा बैंगनी रंग के प्रकाश का बहुत थोड़ा भाग ही प्रकीर्ण हो पाता है। जिस कारण हमारी आँखों में श्वेत रंग पहुँच पाता है।

यही कारण है कि दोपहर के समय सूर्य का रंग श्वेत दिखाई देता है।

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Reference: